श्रीनगर : हुर्रियत नेता सैयद अली शाह गिलानी ने एक नाटकीय घटनाक्रम के तहत ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस से इस्तीफा दे दिया है. उन्होंने हुर्रियत के अन्य सदस्यों को लिखे एक पत्र में सदस्य दलों द्वारा अनुशासन की कमी, असंवैधानिक गतिविधियों का हवाला देते हुए पार्टी से अलग होने का प्रमुख कारण बताया है.
गिलानी ने खत में लिखा है, 'ऑल जमाती हुर्रियत कांफ्रेंस की मौजूदा स्थिति को देखते हुए मैं पार्टी से पूरी तरह अलग होने का एलान करता हूं.'
हुर्रियत नेता ने कहा, 'अनुच्छेद 370 के उन्मूलन और जनसांख्यिकीय परिवर्तन जैसे मुद्दों पर मंच ने कश्मीरी लोगों का मार्गदर्शन करने में कोई सक्रिय भूमिका नहीं निभाई है .... मैंने इस्तीफा दे दिया है, लेकिन आंदोलन के लिए काम करता रहूंगा.'
जम्मू-कश्मीर की अलगाववादी राजनीति में यह बदलाव केंद्र सरकार द्वारा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के उन्मूलन के लगभग एक साल बाद आया है.
बता दें कि ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस का गठन नौ मार्च 1993 को हुआ था. जमात-ए-इस्लामी, मुस्लिम कॉन्फ्रेंस, पीपुल्स लीग, पीपुल्स कॉन्फ्रेंस, इत्तेहाद-ए-मुसलमीन, अवामी कॉन्फ्रेंस और जेकेएलएफ को मिलाकर गठित इस संगठन का एक मात्र मकसद कश्मीरी अलगाववाद की आवाज बुलंद करना रहा है.
इस संगठन को हमेशा पाकिस्तान का समर्थन रहा है क्योंकि वह भी कहता रहता है कि कश्मीर पर भारत ने कब्जा कर रखा है. वैचारिक मतभेद उभरने के बाद सात सितंबर 2003 को हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के दो धड़े हो गए. आज एक धड़ा आतंक और हिंसा को सही मान रहा है, वहीं दूसरा धड़ा वार्ता के जरिए मसलों को हल करने की सोच रखता है.
वहीं एक धड़े की अगुआई पाकिस्तान समर्थक सैयद अली शाह गिलानी करते हैं, वहीं दूसरे धड़े का नेतृत्व मीरवाइज उमर फारूक करते हैं, जो अपेक्षाकृत नरमपंथी हैं. मीरवाइज लगभग तीन दशकों से भारत विरोधी अलगाववादी आंदोलन की अगुआई कर रहे हैं.
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सूत्रों ने कहा कि विभिन्न अलगाववादी और इस्लामिक संगठनों का गुट पांच अगस्त को नई दिल्ली द्वारा जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा छीने जाने के बाद से पूरी तरह अव्यवस्थित है.
गौरतलब है कि बीते साल मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर के संदर्भ में अनुच्छेद 370 और आर्टिकल 35-ए में बदलाव किए थे. इसके बाद जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को अलग-अलग केंद्रशासित प्रदेशों का दर्जा दे दिया गया था.