नई दिल्ली : भारत और स्वीडन ने वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन से निबटने के लिए एक-दूसरे से हाथ मिलाया है। इस क्रम में भारत के दौरे पर आए स्वीडिश राजा कार्ल XVI गुस्ताफ ने पीएम नरेंद्र मोदी के साथ औपचारिक मुलाकात में औद्योगिक उत्सर्जन कम करने के लिए विभिन्न तकनीकी समाधानों पर चर्चा की. इस दौरान दोनों देशों के बीच कई द्विपक्षीय मुद्दों पर हस्ताक्षर भी किए गए.
स्वीडन के एक मंत्री ने कहा कि उनके देश का 2030 तक कार्बन मुक्त इस्पात एवं कार्बन मुक्त सीमेंट बनाने का लक्ष्य है.
भारत के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार वी.के. राघवन तथा पर्यावरण, कृषि और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालयों के अधिकारियों ने राजा कार्ल गुस्ताफ की अगुवाई में आए 100 सदस्यीय स्वीडिश प्रतिनिधिमंडल से पर्यावरण समस्याओं के तकनीकी समाधान के मुद्दों पर चर्चा की.
तीसरी बार भारत दौरे पर आए गुस्ताफ ने वनों की गुणवत्ता सुधारने के महत्व के बारे में बात की और माना कि बातचीत में उन्होंने सकारात्मक महसूस किया. उन्होंने कहा, 'वन बहुत महत्वपूर्ण है. सभी को मिलकर काम करना है.'
राघवन ने कहा कि भारत और स्वीडन पर्यावरण से जुडी समस्याओं के तकनीकी हल पर गौर कर रहे हैं.
स्वीडन के व्यापार, नवोन्मेष और उपक्रम मंत्री इब्राहिम बायलान ने कहा, 'वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन एक ही सिक्के के दो अनिवार्य पहलू हैं. अब हमारे पास एक वैश्विक जलवायु संधि है एवं ज्यादातर देशों में इस बात पर बहुत अच्छी चर्चा चल रही है कि कैसे अधिक सतत विकास को बढ़ावा दिया जाए. हम विभिन्न क्षेत्रों में जो कुछ कर सकते हैं, हमें करना होगा.'
उन्होंने कहा कि स्वीडन 2030 तक कार्बन मुक्त इस्पात और कार्बन मुक्त सीमेंट बनाने की दिशा में नवोन्मेष में लगा है.
रानी सिल्विया ने एम्स में डिमेंसिया विषयक परिचर्चा में शिरकत की
उधर, स्वीडिश रानी सिल्विया अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) अपने प्रतिनिधियों के साथ गईं और एम्स द्वारा आयोजित ' स्मृति लोप के मरीजों के लिए जीवन की गुणवत्ता' विषयक एक परिचर्चा में हिस्सा लिया.
रानी सिल्विया ने स्मृति लोप (डिमेंशिया) के शिकार मरीजों को इस प्रतिष्ठित संस्थान द्वारा प्रदान की जा रही उपचार पद्धतियों के बारे में एम्स के अध्यापकों के साथ बातचीत की.
स्मृति लोप एक ऐसी दशा है, जहां मरीज की यादाश्त, चिंतन, राजमर्रा के कामकाज करने की उनकी क्षमता आदि में गिरावट आ जाती है.
एम्स के एक अधिकारी के अनुसार स्वीडिश दूतावास ने स्वास्थ्य मंत्रालय के माध्यम से एम्स से संपर्क किया था और ऐसे मरीजों के लिए इस संस्थान द्वारा उपलब्ध करायी जा रही उपचार पद्धति को समझाने की मांग की थी.
अधिकारी ने कहा कि यह भारत-स्वीडन स्वास्थ्य वर्ष है और दोनों देश स्वास्थ्य के क्षेत्र में सहयोग का दसवां साल पूरा कर रहे हैं. रानी ने अस्पताल में मरीजों से भी बातचीत की.
स्मृति ईरानी की महिला एवं बाल विकास के क्षेत्रों में स्वीडिश विदेश मंत्री से चर्चा
इस बीच, केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने स्वीडन की मंत्री एन. लिंडे से भेंट की. इस भेंट के बाद स्मृति ने ट्वीट किया, 'स्वीडन की विदेश मंत्री एन. लिंडे से मिली और उनके साथ महिला एवं बाल विकास के क्षेत्रों में भारत एवं स्वीडन के बीच सहयोग के विभिन्न मंचों के बारे में चर्चा की.'
स्वास्थ्य और सामाजिक मामलों की मंत्री की सचिव माजा फजाएस्ताद ने कहा कि सूक्ष्मजीव रोधी अनुसंधान (एएमआर) और कृत्रिम मेधा कुछ ऐसे अहम क्षेत्र हैं, जहां स्वीडन भारत के साथ स्वास्थ्य क्षेत्र में अपना सहयोग बढ़ाने की आस करता है.
फजाएस्ताद ने कहा, '(स्वास्थ्य क्षेत्र में) हमारा सहयोग 2009 में शुरू हुआ और तब से हमारी साझेदारी मजबूत होती गई है. अहम क्षेत्रों में इस सहयोग के तहत दोनों पक्षों की ओर से कई उच्च स्तरीय दौरे हुए, करीब हर साल एक दौरा हुआ. 2019 में हमारे राजा और रानी की यह वर्तमान यात्रा पिछले दस सालों में सबसे अच्छी बात हुई है.'
इस सहयोग के तहत भारत और स्वीडन ने पहले ही संक्रामक रोगों और सूक्ष्मजीव रोधी अनुसंधान जैसे क्षेत्रों में साथ मिलकर अनुसंधान किए हैं. सहयोग के तहत पब्लिक हेल्थ एजेंसी ऑफ स्वीडन और भारतीय राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र के बीच करार हुआ था.
फजाएस्ताद ने कहा कि उनका देश एएमआर के क्षेत्र में सहयोग प्रगाढ़ करने को इच्छुक है और उम्मीद करता है कि भारत 'एलायंस ऑफ चैंपियंस' से जुड़ेगा.
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जिनेवा में 2015 की विश्व स्वास्थ्य सभा में स्वीडन के स्वास्थ्य मंत्री गैब्रियल विकस्ट्रोम ने एएमआर पर राजनीतिक जागरूकता, सहयोग और नेतृत्व को बढ़ावा देने के लिए 'एलायंस ऑफ चैंपियंस' का शुभारंभ किया था, जिसमें 14 देशों के स्वास्थ्य मंत्री शामिल हुए थे.
फजाएस्ताद ने कृत्रिम मेधा के क्षेत्र में भी सहयोग बढ़ाने की अपने देश की इच्छा प्रकट की.
स्वीडिश विदेश मंत्री एन. लिंडे ने अपने भारतीय समकक्ष एस. जयशंकर से भी एक-दूसरे के लाभ के लिए चर्चा की.
बता दें कि भारत में नाममि गंगे परियोजना में स्वीडिश कम्पनी काम कर रही है और मोहाली में बॉयो-कोल के लिए पायलट प्रोजेक्ट पर भी काम कर रही है.