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नागरिकता कानून पर सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की स्टे की मांग, केंद्र को भेजा नोटिस

नागरिकता संशोधन कानून पर रोक से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया है. इसे लेकर कोर्ट ने सरकार को नोटिस जारी किया है. अब सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर जनवरी में अगली सुनवाई करेगा. पढ़ें पूरी खबर...

नागरिकता संशोधन कानून पर सुप्रीम कोर्ट का केंद्र को नोटिस
नागरिकता संशोधन कानून पर सुप्रीम कोर्ट का केंद्र को नोटिस
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Published : Dec 18, 2019, 9:33 AM IST

Updated : Dec 18, 2019, 5:40 PM IST

नई दिल्ली : सर्वोच्च न्यायालय ने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 को चुनौती देने वाली सभी याचिकाओं की सुनवाई करने के बाद केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है. साथ ही अदालत ने नागरिकता संशोधन कानून पर रोक से भी इनकार कर दिया है.

मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे, न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति सूर्य कांत की खंडपीठ ने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 पर रोक से इनकार कर दिया. सर्वोच्च न्यायालय का कहना है कि वह जनवरी में याचिका पर सुनवाई करेगा.

गौरतलब है कि नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली कांग्रेस नेता जयराम रमेश और त्रिपुरा राज परिवार के वंशज प्रद्योत किशोर देव बर्मन की याचिकाओं पर आज सुनवाई की गई थी.

वहीं वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने दोनों याचिकाओं को तत्काल सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने की अपील करते हुए कहा था कि इन पर इस संबंध में इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) द्वारा दायर याचिका के साथ ही सुनवाई की जाए, जिस पर सुनवाई होनी है.

सिंघवी ने कहा, 'मैंने नागरिकता संशोधन कानून की वैधता को चुनौती देते हुए दो याचिकाएं दाखिल की हैं. एक कांग्रेस की ओर से, दूसरी त्रिपुरा के पूर्व महाराजा की ओर से. मैं बस यही चाहता हूं कि आईयूएमएल की इसी तरह की एक याचिका के साथ इन पर 18 दिसंबर को सुनवाई होनी चाहिए.'

इसे भी पढ़ें- हर हाल में लागू करेंगे संशोधित नागरिकता कानून : अमित शाह

तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा द्वारा दायर याचिका सहित कई याचिकाएं उच्चतम न्यायालय में दायर की गई हैं जिनमें नागरिकता (संशोधन) कानून 2019 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है.

एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी ने भी कानून की वैधता को चुनौती देते हुए याचिका दाखिल की है.

उन्होंने नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 के प्रावधानों को असंवैधानिक, अमान्य तथा संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 25 का उल्लंघन करने वाला घोषित करने का निर्देश जारी करने की मांग की है.

हर्ष मंदर और अन्य मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की ओर से वकील प्रशांत भूषण ने एक और याचिका दाखिल की है.

इसे भी पढ़ें- सीएए हिंसा के पीछे चरमपंथी संगठन सिमी व पीएफआई : खुफिया रिपोर्ट

संशोधित कानून के अनुसार धार्मिक प्रताड़ना के चलते 31 दिसंबर 2014 तक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आए हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को अवैध प्रवासी नहीं माना जाएगा और उन्हें भारतीय नागरिकता दी जाएगी.

राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने गुरुवार की रात नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2019 को स्वीकृति प्रदान कर दी थी जिससे यह कानून बन गया था.

कानून को चुनौती देने वाले अन्य कई याचिकाकर्ताओं में ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू), पीस पार्टी, गैर सरकारी संगठन 'रिहाई मंच' और सिटिजंस अगेंस्ट हेट, अधिवक्ता एम एल शर्मा तथा कानून के कई छात्र शामिल हैं.

रमेश ने अपनी याचिका में कहा है कि कानून संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकारों पर 'खुला हमला' है. वहीं, मोइत्रा ने कहा है कि कानून की असंवैधानिकता भारत के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने पर हमला है.

रमेश ने कहा कि न्यायालय के विचार के लिए कई महत्वपूर्ण सवाल हैं जिनमें यह भी शामिल है कि भारत में नागरिकता प्राप्त करने या नागरिकता से इनकार करने के लिए क्या धर्म एक कारक हो सकता है क्योंकि नागरिकता कानून 1955 में यह असंवैधानिक संशोधन है.

मोइत्रा ने अपनी याचिका में कहा है कि कानून विभाजक और भेदभाव करने वाला है. उन्होंने शीर्ष अदालत से कानून के क्रियान्वयन पर रोक लगाने का निर्देश दिए जाने का आग्रह किया है.

आईयूएमएल ने कहा है कि कानून संवैधानिक ढांचे के खिलाफ है और यह मुसलमानों से भेदभाव करता है.

नई दिल्ली : सर्वोच्च न्यायालय ने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 को चुनौती देने वाली सभी याचिकाओं की सुनवाई करने के बाद केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है. साथ ही अदालत ने नागरिकता संशोधन कानून पर रोक से भी इनकार कर दिया है.

मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे, न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति सूर्य कांत की खंडपीठ ने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 पर रोक से इनकार कर दिया. सर्वोच्च न्यायालय का कहना है कि वह जनवरी में याचिका पर सुनवाई करेगा.

गौरतलब है कि नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली कांग्रेस नेता जयराम रमेश और त्रिपुरा राज परिवार के वंशज प्रद्योत किशोर देव बर्मन की याचिकाओं पर आज सुनवाई की गई थी.

वहीं वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने दोनों याचिकाओं को तत्काल सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने की अपील करते हुए कहा था कि इन पर इस संबंध में इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) द्वारा दायर याचिका के साथ ही सुनवाई की जाए, जिस पर सुनवाई होनी है.

सिंघवी ने कहा, 'मैंने नागरिकता संशोधन कानून की वैधता को चुनौती देते हुए दो याचिकाएं दाखिल की हैं. एक कांग्रेस की ओर से, दूसरी त्रिपुरा के पूर्व महाराजा की ओर से. मैं बस यही चाहता हूं कि आईयूएमएल की इसी तरह की एक याचिका के साथ इन पर 18 दिसंबर को सुनवाई होनी चाहिए.'

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तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा द्वारा दायर याचिका सहित कई याचिकाएं उच्चतम न्यायालय में दायर की गई हैं जिनमें नागरिकता (संशोधन) कानून 2019 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है.

एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी ने भी कानून की वैधता को चुनौती देते हुए याचिका दाखिल की है.

उन्होंने नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 के प्रावधानों को असंवैधानिक, अमान्य तथा संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 25 का उल्लंघन करने वाला घोषित करने का निर्देश जारी करने की मांग की है.

हर्ष मंदर और अन्य मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की ओर से वकील प्रशांत भूषण ने एक और याचिका दाखिल की है.

इसे भी पढ़ें- सीएए हिंसा के पीछे चरमपंथी संगठन सिमी व पीएफआई : खुफिया रिपोर्ट

संशोधित कानून के अनुसार धार्मिक प्रताड़ना के चलते 31 दिसंबर 2014 तक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आए हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को अवैध प्रवासी नहीं माना जाएगा और उन्हें भारतीय नागरिकता दी जाएगी.

राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने गुरुवार की रात नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2019 को स्वीकृति प्रदान कर दी थी जिससे यह कानून बन गया था.

कानून को चुनौती देने वाले अन्य कई याचिकाकर्ताओं में ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू), पीस पार्टी, गैर सरकारी संगठन 'रिहाई मंच' और सिटिजंस अगेंस्ट हेट, अधिवक्ता एम एल शर्मा तथा कानून के कई छात्र शामिल हैं.

रमेश ने अपनी याचिका में कहा है कि कानून संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकारों पर 'खुला हमला' है. वहीं, मोइत्रा ने कहा है कि कानून की असंवैधानिकता भारत के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने पर हमला है.

रमेश ने कहा कि न्यायालय के विचार के लिए कई महत्वपूर्ण सवाल हैं जिनमें यह भी शामिल है कि भारत में नागरिकता प्राप्त करने या नागरिकता से इनकार करने के लिए क्या धर्म एक कारक हो सकता है क्योंकि नागरिकता कानून 1955 में यह असंवैधानिक संशोधन है.

मोइत्रा ने अपनी याचिका में कहा है कि कानून विभाजक और भेदभाव करने वाला है. उन्होंने शीर्ष अदालत से कानून के क्रियान्वयन पर रोक लगाने का निर्देश दिए जाने का आग्रह किया है.

आईयूएमएल ने कहा है कि कानून संवैधानिक ढांचे के खिलाफ है और यह मुसलमानों से भेदभाव करता है.

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Print Printपीटीआई-भाषा संवाददाता 20:52 HRS IST

सीएए के खिलाफ कांग्रेस,त्रिपुरा राजपरिवार के वंशज की याचिकाओं पर बुधवार को सुनवाई करेगी शीर्ष अदालत





नयी दिल्ली, 16 दिसंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि वह नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली कांग्रेस नेता जयराम रमेश और त्रिपुरा राज परिवार के वंशज प्रद्योत किशोर देव बर्मन की याचिकाओं पर 18 दिसंबर को सुनवाई करेगा।



प्रधान न्यायाधीश एस. ए. बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि वह अन्य लंबित याचिकाओं के साथ इन याचिकाओं पर 18 दिसंबर को सुनवाई करेगी।



वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने दोनों याचिकाओं को तत्काल सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने की अपील करते हुए कहा कि इन पर इस संबंध में इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) द्वारा दायर याचिका के साथ ही सुनवाई की जाए, जिस पर बुधवार को सुनवाई होनी है।



सिंघवी ने कहा, ‘‘मैंने नागरिकता संशोधन कानून की वैधता को चुनौती देते हुए दो याचिकाएं दाखिल की हैं। एक कांग्रेस की ओर से, दूसरी त्रिपुरा के पूर्व महाराजा की ओर से। मैं बस यही चाहता हूं कि आईयूएमएल की इसी तरह की एक याचिका के साथ इन पर 18 दिसंबर को सुनवाई होनी चाहिए।’’



तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा द्वारा दायर याचिका सहित कई याचिकाएं उच्चतम न्यायालय में दायर की गई हैं जिनमें नागरिकता (संशोधन) कानून 2019 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है।



एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी ने भी कानून की वैधता को चुनौती देते हुए याचिका दाखिल की है।



उन्होंने नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 के प्रावधानों को असंवैधानिक, अमान्य तथा संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 25 का उल्लंघन करने वाला घोषित करने का निर्देश जारी करने की मांग की है।



हर्ष मंदर और अन्य मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की ओर से वकील प्रशांत भूषण ने एक और याचिका दाखिल की है।



संशोधित कानून के अनुसार धार्मिक प्रताड़ना के चलते 31 दिसंबर 2014 तक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आए हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को अवैध प्रवासी नहीं माना जाएगा और उन्हें भारतीय नागरिकता दी जाएगी।



राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने गुरुवार की रात नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2019 को स्वीकृति प्रदान कर दी थी जिससे यह कानून बन गया था।



कानून को चुनौती देने वाले अन्य कई याचिकाकर्ताओं में ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू), पीस पार्टी, गैर सरकारी संगठन ‘रिहाई मंच’ और सिटिजंस अगेंस्ट हेट, अधिवक्ता एम एल शर्मा तथा कानून के कई छात्र शामिल हैं।



रमेश ने अपनी याचिका में कहा है कि कानून संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकारों पर ‘‘खुला हमला’’ है। वहीं, मोइत्रा ने कहा है कि कानून की असंवैधानिकता भारत के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने पर हमला है।



रमेश ने कहा कि न्यायालय के विचार के लिए कई महत्वपूर्ण सवाल हैं जिनमें यह भी शामिल है कि भारत में नागरिकता प्राप्त करने या नागरिकता से इनकार करने के लिए क्या धर्म एक कारक हो सकता है क्योंकि नागरिकता कानून 1955 में यह असंवैधानिक संशोधन है।



मोइत्रा ने अपनी याचिका में कहा है कि कानून विभाजक और भेदभाव करने वाला है।



उन्होंने शीर्ष अदालत से कानून के क्रियान्वयन पर रोक लगाने का निर्देश दिए जाने का आग्रह किया है।



आईयूएमएल ने कहा है कि कानून संवैधानिक ढांचे के खिलाफ है और यह मुसलमानों से भेदभाव करता है।


Conclusion:
Last Updated : Dec 18, 2019, 5:40 PM IST
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