ETV Bharat / bharat

सार्वजनिक स्थानों पर कब्जे अस्वीकार्य, सरकारें न करें कोर्ट का इंतजार

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के शाहीन बाग में 101 दिनों तक हुए धरना और विरोध प्रदर्शन को लेकर एक अहम फैसला सुनाया. विरोध के अधिकार को लेकर दिशा-निर्देश से जुड़ी अपनी टिप्पणी में कोर्ट ने कहा कि विरोध प्रदर्शन के लिये शाहीन बाग जैसे सार्वजनिक स्थानों पर अनिश्चितकाल के लिये कब्जा स्वीकार्य नहीं है.

शाहीन बाग मामले में एससी का फैसला,
डिजाइन फोटो
author img

By

Published : Oct 7, 2020, 11:27 AM IST

Updated : Oct 7, 2020, 6:27 PM IST

नई दिल्ली : संशोधित नागरिकता कानून को लेकर नई दिल्ली के शाहीन बाग में पिछले साल दिसंबर में शुरू हुआ धरना प्रदर्शन 101 दिनों तक चला था. इस धरना प्रदर्शन से लोगों को काफी असुविधाएं भी हुई. इसी पृष्ठभूमि में सार्वजनिक स्थानों पर नागरिकों के धरना प्रदर्शन के अधिकार को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी. इस पर आज उच्चतम न्यायालय ने कहा कि विरोध प्रदर्शन के लिए शाहीन बाग जैसे सार्वजनिक स्थलों पर कब्जा करना स्वीकार्य नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस प्रकार के स्थानों पर अनिश्चितकाल के लिए कब्जा नहीं किया जा सकता.

न्यायालय ने कहा कि धरना प्रदर्शन एक निर्धारित स्थान पर ही होना चाहिए और विरोध प्रदर्शन के लिये सार्वजनिक स्थानों या सड़कों पर कब्जा करके बड़ी संख्या में लोगों को असुविधा में डालने या उनके अधिकारों का हनन करने की कानून के तहत इजाजत नहीं है.

न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति अनिरूद्ध बोस और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि विरोध प्रदर्शन के अधिकार और दूसरे लोगों के आने-जाने के अधिकार जैसे अधिकारों के बीच संतुलन बनाना होगा. पीठ ने कहा, 'लोकतंत्र और असहमति एक साथ चलते हैं.'

पीठ ने कहा कि इसका तात्पर्य यह है कि आन्दोलन करने वाले लोगों को विरोध के लिए ऐसे तरीके अपनाने चाहिए जो ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ अपनाए जाते थे. पीठ ने कहा कि सार्वजनिक स्थलों पर विरोध प्रदर्शन के लिए अनिश्चितकाल तक कब्जा नहीं किया जा सकता, जैसा कि शाहीन बाग मामले में हुआ.

न्यायालय ने संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान पिछले साल दिसंबर से शाहीन बाग की सड़क को आन्दोलनकारियों द्वारा अवरुद्ध किये जाने को लेकर दायर याचिका पर यह फैसला सुनाया.

वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से फैसला सुनाते हुए पीठ ने कहा कि दिल्ली पुलिस जैसे प्राधिकारियों को शाहीन बाग इलाके को प्रदर्शनकारियों से खाली कराने के लिए कार्रवाई करनी चाहिए थी.

न्यायालय ने कहा कि प्राधिकारियों को खुद ही कार्रवाई करनी होगी और वे ऐसी स्थिति से निबटने के लिए अदालतों के पीछे पनाह नहीं ले सकते.

शाहीन बाग की सड़क से अवरोध हटाने और यातायात सुचारू करने के लिए अधिवक्ता अमित साहनी ने याचिका दायर की थी.

शीर्ष अदालत ने इस याचिका पर 21 सितंबर को सुनवाई पूरी की थी. न्यायालय ने उस समय टिप्पणी की थी कि विरोध के अधिकार के लिए कोई एक समान नीति नहीं हो सकती है.

यह भी पढ़ें : शाहीन बाग मामला : विरोध-प्रदर्शन के अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला सुरक्षित

साहनी ने कालिन्दी कुंज-शाहीन बाग खंड पर यातायात सुगम बनाने का दिल्ली पुलिस को निर्देश देने के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी. उच्च न्यायालय ने स्थानीय प्राधिकारियों को कानून व्यवस्था की स्थिति को ध्यान में रखते हुए इस स्थिति से निबटने का निर्देश दिया था.

इसके बाद, साहनी ने शीर्ष अदालत में याचिका दायर की थी. साहनी ने कहा कि व्यापक जनहित को ध्यान में रखते हुये इस तरह के विरोध प्रदर्शनों की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.

उन्होंने कहा, 'इसे 100 दिन से भी ज्यादा दिन तक चलने दिया गया और लोगों को इससे बहुत तकलीफें हुयीं. इस तरह की घटना नहीं होनी चाहिए. हरियाणा में कल चक्का जाम था. उन्होंने 24-25 सितंबर को भारत बंद का भी आह्वाहन किया था.' भाजपा के पूर्व विधायक नंद किशोर गर्ग ने अलग से अपनी याचिका दायर की थी, जिसमें प्रदर्शनकारियों को शाहीन बाग से हटाने का अनुरोध किया गया था.

हालांकि, कोविड-19 महामारी की आशंका और इस वजह से निर्धारित मानदंडों के पालन के दौरान शाहीन बाग क्षेत्र को खाली कराया गया और तब स्थिति सामान्य हुई थी.

नई दिल्ली : संशोधित नागरिकता कानून को लेकर नई दिल्ली के शाहीन बाग में पिछले साल दिसंबर में शुरू हुआ धरना प्रदर्शन 101 दिनों तक चला था. इस धरना प्रदर्शन से लोगों को काफी असुविधाएं भी हुई. इसी पृष्ठभूमि में सार्वजनिक स्थानों पर नागरिकों के धरना प्रदर्शन के अधिकार को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी. इस पर आज उच्चतम न्यायालय ने कहा कि विरोध प्रदर्शन के लिए शाहीन बाग जैसे सार्वजनिक स्थलों पर कब्जा करना स्वीकार्य नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस प्रकार के स्थानों पर अनिश्चितकाल के लिए कब्जा नहीं किया जा सकता.

न्यायालय ने कहा कि धरना प्रदर्शन एक निर्धारित स्थान पर ही होना चाहिए और विरोध प्रदर्शन के लिये सार्वजनिक स्थानों या सड़कों पर कब्जा करके बड़ी संख्या में लोगों को असुविधा में डालने या उनके अधिकारों का हनन करने की कानून के तहत इजाजत नहीं है.

न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति अनिरूद्ध बोस और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि विरोध प्रदर्शन के अधिकार और दूसरे लोगों के आने-जाने के अधिकार जैसे अधिकारों के बीच संतुलन बनाना होगा. पीठ ने कहा, 'लोकतंत्र और असहमति एक साथ चलते हैं.'

पीठ ने कहा कि इसका तात्पर्य यह है कि आन्दोलन करने वाले लोगों को विरोध के लिए ऐसे तरीके अपनाने चाहिए जो ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ अपनाए जाते थे. पीठ ने कहा कि सार्वजनिक स्थलों पर विरोध प्रदर्शन के लिए अनिश्चितकाल तक कब्जा नहीं किया जा सकता, जैसा कि शाहीन बाग मामले में हुआ.

न्यायालय ने संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान पिछले साल दिसंबर से शाहीन बाग की सड़क को आन्दोलनकारियों द्वारा अवरुद्ध किये जाने को लेकर दायर याचिका पर यह फैसला सुनाया.

वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से फैसला सुनाते हुए पीठ ने कहा कि दिल्ली पुलिस जैसे प्राधिकारियों को शाहीन बाग इलाके को प्रदर्शनकारियों से खाली कराने के लिए कार्रवाई करनी चाहिए थी.

न्यायालय ने कहा कि प्राधिकारियों को खुद ही कार्रवाई करनी होगी और वे ऐसी स्थिति से निबटने के लिए अदालतों के पीछे पनाह नहीं ले सकते.

शाहीन बाग की सड़क से अवरोध हटाने और यातायात सुचारू करने के लिए अधिवक्ता अमित साहनी ने याचिका दायर की थी.

शीर्ष अदालत ने इस याचिका पर 21 सितंबर को सुनवाई पूरी की थी. न्यायालय ने उस समय टिप्पणी की थी कि विरोध के अधिकार के लिए कोई एक समान नीति नहीं हो सकती है.

यह भी पढ़ें : शाहीन बाग मामला : विरोध-प्रदर्शन के अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला सुरक्षित

साहनी ने कालिन्दी कुंज-शाहीन बाग खंड पर यातायात सुगम बनाने का दिल्ली पुलिस को निर्देश देने के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी. उच्च न्यायालय ने स्थानीय प्राधिकारियों को कानून व्यवस्था की स्थिति को ध्यान में रखते हुए इस स्थिति से निबटने का निर्देश दिया था.

इसके बाद, साहनी ने शीर्ष अदालत में याचिका दायर की थी. साहनी ने कहा कि व्यापक जनहित को ध्यान में रखते हुये इस तरह के विरोध प्रदर्शनों की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.

उन्होंने कहा, 'इसे 100 दिन से भी ज्यादा दिन तक चलने दिया गया और लोगों को इससे बहुत तकलीफें हुयीं. इस तरह की घटना नहीं होनी चाहिए. हरियाणा में कल चक्का जाम था. उन्होंने 24-25 सितंबर को भारत बंद का भी आह्वाहन किया था.' भाजपा के पूर्व विधायक नंद किशोर गर्ग ने अलग से अपनी याचिका दायर की थी, जिसमें प्रदर्शनकारियों को शाहीन बाग से हटाने का अनुरोध किया गया था.

हालांकि, कोविड-19 महामारी की आशंका और इस वजह से निर्धारित मानदंडों के पालन के दौरान शाहीन बाग क्षेत्र को खाली कराया गया और तब स्थिति सामान्य हुई थी.

Last Updated : Oct 7, 2020, 6:27 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.