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स्थायी कमीशन मामला : महिला अधिकारियों की याचिका खारिज - WOMEN in ARMED FORCES'

भारतीय सेना में महिला अफसरों के लिए स्थायी कमीशन के मामले को लेकर कुछ महिला अफसरों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया है.

SUPREME COURT
सुप्रीम कोर्ट
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Published : Sep 3, 2020, 4:44 PM IST

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने शीर्ष अदालत द्वारा निर्धारित तारीख 17 फरवरी के बाद सेना में 14 साल की नौकरी पूरी करने वाली महिला सैन्य अधिकारियों को स्थाई कमीशन के लाभ प्रदान करने की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया है.

शीर्ष अदालत ने कहा कि महिला अधिकारियों द्वारा मांगी राहत एक तरह से उसके फैसले पर पुनर्विचार करना है और यदि वह इसकी अनुमति देता है तो अधिकारियों के दूसरे बैच भी इसी तरह की राहत मांग सकते हैं.

न्यायालय ने 17 फरवरी को अपने ऐतिहासिक फैसले में केंद्र को सभी सेवारत एसएससी महिला अधिकारियों को स्थाई कमीशन देने पर तीन महीने के भीतर विचार करने का निर्देश दिया था. चाहें वे 14 साल की सेवा की सीमा पार कर चुकी हों या सेवा के 20 साल.

शीर्ष अदालत ने कहा था कि एक बार के उपाय के रूप में पेंशन योग्य सेवा की अवधि 20 साल तक पहुंचने का लाभ उन सभी मौजूदा एसएससी अधिकारियों को मिलेगा जो 14 साल से ज्यादा समय से सेवारत हैं.

न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा और न्यायमूर्ति के एम जोसफ की पीठ ने कहा कि वह इस याचिका पर विचार के इच्छुक नहीं है क्योंकि इसमें जो राहत मांगी गई है वह फैसले पर पुनर्विचार के समान है.

इस मामले की सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता मीनाक्षी लेखी ने कहा कि यह आवेदन 19 महिला अधिकारियों ने दायर किया है जो मार्च में सेवानिवृत्त हुई हैं और वे स्थाई कमीशन का लाभ चाहती हैं.

लेखी ने कहा कि न्यायालय द्वारा निर्धारित तारीख फैसले का दिन अर्थात 17 फरवरी है लेकिन, कट आफ तारीख स्वीकार करने और स्थाई कमीशन प्रदान करने का सरकार का आदेश 17 जुलाई को आया.

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, 'अगर हम कट-आफ तारीख में ढील देंगे तो इसका कोई अंत नहीं होगा. हम कहां लाइन खींचे? इसे लेकर मैं चिंतित हूं.'

पीठ ने फैसले का उल्लेख किया और कहा कि इसमें सिर्फ एकबार के उपाय के रूप में निर्देश दिया गया था.

पीठ ने टिप्पणी की, 'इन महिला अधिकारियों ने मार्च में सेवा में 14 साल पूरे किए हैं और हमने अपने फैसले की तारीख को कट आफ तारीख निर्धारित किया था. सरकार का आदेश बाद में आया. हम कहां तक जा सकते हैं?'

केंद्र की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आर बाला सुब्रमण्यम ने इस आवेदन का विरोध किया और कहा कि इसे खुला नहीं छोड़ा जा सकता.

उन्होंने कहा कि मौजूदा आवेदकों ने शीर्ष अदालत द्वारा फैसला सुनाए जाने की तारीख 17 फरवरी को 14 साल की सेवा पूरी नहीं की थी. उन्होंने कहा कि सरकार ने स्थाई कमीशन के बारे में 16 जुलाई को आदेश पारित किया और 17 फरवरी की तारीख तक 14 साल की सेवा पूरी करने वाली सभी महिला सैन्य अधिकारियों को पेंशन और दूसरे लाभ मिलेंगे.

उन्होंने कहा कि अगर न्यायालय इस मुद्दे को खुला रहने की इजाजत देगा तो यह सरकार के लिये लागू करना मुश्किल हो जाएगा.

पढ़ें :- तीन महीने के भीतर दिल्ली की 48 हजार झुग्गियों को हटाएं : सुप्रीम कोर्ट

पीठ ने लेखी से कहा, 'अब, अगर हम इसका लाभ (आवेदकों को) देते हैं तो हमें इनके बाद वाले बैच के अधिकारियों को भी देना होगा.'

पीठ ने कहा कि इसके गंभीर निहितार्थ होंगे क्योंकि प्रत्येक बैच सेवा में 14 साल पूरे करेगा.

पीठ ने लेखी से कहा कि वह इस आवेदन को वापस लें और उन्हें स्थाई कमीशन देने के उनके आवेदनों पर बोर्ड द्वारा विचार किए जाने का इंतजार करें.

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने शीर्ष अदालत द्वारा निर्धारित तारीख 17 फरवरी के बाद सेना में 14 साल की नौकरी पूरी करने वाली महिला सैन्य अधिकारियों को स्थाई कमीशन के लाभ प्रदान करने की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया है.

शीर्ष अदालत ने कहा कि महिला अधिकारियों द्वारा मांगी राहत एक तरह से उसके फैसले पर पुनर्विचार करना है और यदि वह इसकी अनुमति देता है तो अधिकारियों के दूसरे बैच भी इसी तरह की राहत मांग सकते हैं.

न्यायालय ने 17 फरवरी को अपने ऐतिहासिक फैसले में केंद्र को सभी सेवारत एसएससी महिला अधिकारियों को स्थाई कमीशन देने पर तीन महीने के भीतर विचार करने का निर्देश दिया था. चाहें वे 14 साल की सेवा की सीमा पार कर चुकी हों या सेवा के 20 साल.

शीर्ष अदालत ने कहा था कि एक बार के उपाय के रूप में पेंशन योग्य सेवा की अवधि 20 साल तक पहुंचने का लाभ उन सभी मौजूदा एसएससी अधिकारियों को मिलेगा जो 14 साल से ज्यादा समय से सेवारत हैं.

न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा और न्यायमूर्ति के एम जोसफ की पीठ ने कहा कि वह इस याचिका पर विचार के इच्छुक नहीं है क्योंकि इसमें जो राहत मांगी गई है वह फैसले पर पुनर्विचार के समान है.

इस मामले की सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता मीनाक्षी लेखी ने कहा कि यह आवेदन 19 महिला अधिकारियों ने दायर किया है जो मार्च में सेवानिवृत्त हुई हैं और वे स्थाई कमीशन का लाभ चाहती हैं.

लेखी ने कहा कि न्यायालय द्वारा निर्धारित तारीख फैसले का दिन अर्थात 17 फरवरी है लेकिन, कट आफ तारीख स्वीकार करने और स्थाई कमीशन प्रदान करने का सरकार का आदेश 17 जुलाई को आया.

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, 'अगर हम कट-आफ तारीख में ढील देंगे तो इसका कोई अंत नहीं होगा. हम कहां लाइन खींचे? इसे लेकर मैं चिंतित हूं.'

पीठ ने फैसले का उल्लेख किया और कहा कि इसमें सिर्फ एकबार के उपाय के रूप में निर्देश दिया गया था.

पीठ ने टिप्पणी की, 'इन महिला अधिकारियों ने मार्च में सेवा में 14 साल पूरे किए हैं और हमने अपने फैसले की तारीख को कट आफ तारीख निर्धारित किया था. सरकार का आदेश बाद में आया. हम कहां तक जा सकते हैं?'

केंद्र की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आर बाला सुब्रमण्यम ने इस आवेदन का विरोध किया और कहा कि इसे खुला नहीं छोड़ा जा सकता.

उन्होंने कहा कि मौजूदा आवेदकों ने शीर्ष अदालत द्वारा फैसला सुनाए जाने की तारीख 17 फरवरी को 14 साल की सेवा पूरी नहीं की थी. उन्होंने कहा कि सरकार ने स्थाई कमीशन के बारे में 16 जुलाई को आदेश पारित किया और 17 फरवरी की तारीख तक 14 साल की सेवा पूरी करने वाली सभी महिला सैन्य अधिकारियों को पेंशन और दूसरे लाभ मिलेंगे.

उन्होंने कहा कि अगर न्यायालय इस मुद्दे को खुला रहने की इजाजत देगा तो यह सरकार के लिये लागू करना मुश्किल हो जाएगा.

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पीठ ने लेखी से कहा, 'अब, अगर हम इसका लाभ (आवेदकों को) देते हैं तो हमें इनके बाद वाले बैच के अधिकारियों को भी देना होगा.'

पीठ ने कहा कि इसके गंभीर निहितार्थ होंगे क्योंकि प्रत्येक बैच सेवा में 14 साल पूरे करेगा.

पीठ ने लेखी से कहा कि वह इस आवेदन को वापस लें और उन्हें स्थाई कमीशन देने के उनके आवेदनों पर बोर्ड द्वारा विचार किए जाने का इंतजार करें.

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