नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने राज्य और केंद्र सरकारों को धार्मिक रिवाजों के नाम पर पशुओं की हत्या को रोकने के उपाय करने और फसलों को बचाने के लिए, कानून बनाने का निर्देश देने के लिए दायर की गई एक याचिका पर सुनवाई की.
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और दिनेश माहेश्वरी की पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा की गई मांग बहुत व्यापक है और इस पर दिशानिर्देश पारित करना मुश्किल होगा.
इस दौरान अदालत ने पर्यावरण के संरक्षण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980, द वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट 1972, भारतीय वन अधिनियम 1972 और पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 का निरीक्षण किया. कोर्ट ने पाया कि विधायिका को इसको पूरी भावना और इरादे के साथ इन कानूनों को लागू करना चाहिए.
क्रूरता अधिनियम, 1960 के प्रावधानों के उल्लंघन के मामले में अदालत ने केंद्र से इस मुद्दे की जांच करने और यह देखने का अनुरोध किया कि क्या इसमें किसी संशोधन की आवश्यकता है.
अदालत ने निर्देश दिया कि इसके आदेश की एक प्रति सरकार को भेजी जाए और याचिका का निपटारा किया जाए.
बता दें कि, यह याचिका विस्फोटक लदे फल खाने के बाद केरल में एक गर्भवती हाथी की मौत के मद्देनजर दायर की गई थी.
याचिकाकर्ता ने सूअर, गाय, पक्षी आदि जैसे जानवर कटने, पोषण से वंचित, दवाइयों के साथ इंजेक्शन, अरंडी इत्यादि से जुड़ी विभिन्न घटनाओं को पेश किया और सरकार से इन मुद्दों पर ध्यान देने की मांग की.
याचिकाकर्ता ने दलील दी कि देश में दुधारू और गर्भवती गायों के वध पर रोक है और गोहत्या पर प्रतिबंध है या नहीं. इस देश में जंगली और पालतू दोनों तरह के जानवरों पर अत्याचार किया जाता है.
याचिकाकर्ता ने कहा कि अपने प्राकृतिक घरों के सिकुड़ने के कारण- जंगलों- मानव गतिविधि के कारण, हाथी, जंगली सूअर और अन्य जानवर मानव बस्ती में प्रवेश करते हैं और इसके परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर मनुष्य बनाम पशु संघर्ष होता है.
किसान जंगली जानवरों के प्रकोप से अपनी खेती को बचाने के लिए क्रूर साधनों का सहारा लेने को मजबूर हैं, क्योंकि कोई बीमा या सरकारी सहायता नहीं है. किसान निर्माण बाड़ आदि द्वारा अपनी खेती की रक्षा करते हैं, जबकि गरीब किसान सस्ते मैटर का उपयोग करके अपने खेत की रक्षा करने की कोशिश करते हैं जो टिकाऊ नहीं होते हैं.
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अंतिम उपाय के रूप में वह पटाखे, जहर से लदे फलों आदि का उपयोग करते हैं, जो जंगली जानवरों को मौत की ओर ले जाते हैं.
गौरतलब है कि, यह याचिका मैथ्यूज जे नेदुम्परा और केंद्र सरकार द्वारा दायर की गई है. इसमें केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र को उत्तरदाता बनाया गया था.