नई दिल्ली : विश्वविद्यालय में प्रथम और द्वितीय वर्ष की प्रवेश परीक्षा आयोजित करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा कि देश भर के विश्वविद्यालयों में प्रथम और द्वितीय वर्ष के छात्रों के लिए परीक्षा आयोजित करने से लिए विश्वविद्यालय स्वत्रंत है. जुलाई 2020 में इंटरमीडिएट सेमेस्टर के छात्रों के लिए परीक्षा आयोजित करना यूजीसी द्वारा संबंधित विश्वविद्यालय के विवेक पर छोड़ दिया गया था.
सुप्रीम कोर्ट ने इग्नू के एक छात्र द्वारा दायर याचिका की सुनवाई के दौरान यूजीसी दिशानिर्देशों की प्रयोज्यता की सीमा के बारे में स्पष्टीकरण प्रदान किया, जिन्होंने इंटरमीडिएट के सेमेस्टर के छात्रों के लिए परीक्षा आयोजित करने के फैसले को चुनौती दी थी.
परीक्षा लेने के लिए विश्वविद्यालय स्वतंत्र
सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित आदेश के अनुसार यूजीसी को विवेकाधीन शक्तियां यह तय करने के लिए दी हैं कि इंटरमीडिएट सेमेस्टर के छात्रों के लिए परीक्षा आयोजित की जानी चाहिए या नहीं. याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के 3 जजों जस्टिस अशोक भूषण, आर एस रेड्डी और एम आर शाह की बेंच ने सुनवाई की.
अपने आदेश में पीठ ने नोट किया कि अदालत यह तय करना शुरू नहीं कर सकती है कि परीक्षा आवश्यक है या नहीं. इसमें यह बताया गया कि इग्नू के मध्यवर्ती सेमेस्टर की परीक्षा आयोजित करने का निर्णय यूजीसी के जुलाई के दिशानिर्देशों का उल्लंघन नहीं करता है. इस निर्णय से अन्य विश्वविद्यालयों को भी इंटरमीडिएट सेमेस्टर के छात्रों के लिए परीक्षा आयोजित करने के पक्ष में निर्णय लेने की अनुमति मिल सकती है.
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अंतिम वर्ष परीक्षा अनिवार्य
इससे पहले एक अलग याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सुनाया था कि सभी विश्वविद्यालयों को अंतिम वर्ष या अंतिम सेमेस्टर के छात्रों के लिए अनिवार्य रूप से यूजीसी द्वारा जारी दिशानिर्देशों के अनुरूप परीक्षा आयोजित करनी होगी.
हालांकि राज्य सरकारों और विश्वविद्यालयों को कुछ राहत देते हुए कोर्ट ने उन्हें यूजीसी से औपचारिक अनुरोध करके परीक्षा आयोजित करने की समय सीमा में छूट देने की अनुमति दी थी.