नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय पीएसए के तहत उमर अब्दुल्ला को हिरासत में लिए जाने के खिलाफ दायर याचिका पर आज सुनवाई करेगा. बुधवार को सुनवाई शुरू होने से पहले जस्टिस शांतनागौडर ने खुद को इस मामले से अलग कर लिया था. यही वजह है कि इस मामले में आज सुनवाई की जाएगी.
दरअसल, उमर अब्दुल्ला पर पीएसए कानून के तहत कार्रवाई को लेकर उनकी बहन सारा पायलट ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की है. न्यायमूर्ति एन वी रमणा की अध्यक्षता वाली पीठ में उनके अलावा जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस शांतनागौडर शामिल हैं. पीठ के समक्ष बुधवार को सुनवाई के दौरान जब मामला पहुंचा तो सारा अब्दुल्ला पायलट की ओर से पैरवी करने के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल मौजूद थे.
जस्टिस शांतनागौडर के खुद को इस मामले से अलग करने पर सिब्बल ने इस मामले को गुरुवार के लिए सूचीबद्ध करने की अपील की, जिस पर कोर्ट ने सहमति जताई. अब इस मामले में आज सुनवाई होगी.
क्या है याचिका ?
सारा अब्दुल्ला पायलट ने अपनी याचिका में कहा है कि ऐसा व्यक्ति जो पहले ही छह महीने से नजरबंद हो, उसे नजरबंद करने के लिए कोई नई सामग्री नहीं हो सकती.
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याचिका में नजरबंदी के आदेश को गैरकानूनी बताते हुए कहा गया है कि इसमें बताई गईं वजहों के लिए पर्याप्त सामग्री और ऐसे विवरण का अभाव है जो इस तरह के आदेश के लिए जरूरी है.
इसमें कहा गया है, 'यह बिरला मामला है कि वे लोग जिन्होंने सांसद, मुख्यमंत्री और केन्द्र में मंत्री के रूप में देश की सेवा की और राष्ट्र की आकांक्षाओं के साथ खड़े रहे, उन्हें अब राज्य के लिए खतरा माना जा रहा है.'
याचिका में कहा गया है कि उमर अब्दुल्ला को चार-पांच अगस्त, 2019 की रात घर में ही नजरबंद कर दिया गया था. बाद में पता चला कि इस गिरफ्तारी को न्यायोचित ठहराने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 107 लागू की गई है.
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इसके अनुसार, 'इसलिए यह नितांत महत्वपूर्ण और जरूरी है कि यह न्यायालय व्यक्ति के जीने और दैहिक स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा ही नहीं करे बल्कि संविधान के भाग के अनुरूप अनुच्छेद 21 के भाव की भी रक्षा करे क्योंकि जिसका उल्लंघन एक लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए अभिशाप है.
याचिका में उमर अब्दुल्ला को जन सुरक्षा कानून के तहत नजरबंद करने संबंधी पांच फरवरी का आदेश निरस्त करने का अनुरोध किया गया है.
वाजपेयी सरकार में थे मंत्री
गौरतलब है कि उमर अब्दुल्ला 2000 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री थे. उन्हें इस नजरबंदी के संबंध में तीन पेज का आदेश दिया गया है, जिसमें उनके दिए गए कथित बयान हैं, जिन्हें विघटनकारी स्वरूप का माना गया है.
इस आदेश में यह भी कहा गया है कि अनुच्छेद 370 और 35-ए के फैसले के खिलाफ सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर उनकी टिप्पणियों में सार्वजनिक व्यवस्था में गड़बड़ी पैदा करने की क्षमता है.
राज्य में पांच अगस्त, 2019 से ही संचार संपर्क पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. बाद में इसमें ढील दी गई. कुछ स्थानों पर अब इंटरनेट सेवा काम कर रही है. मोबाइल इंटरनेट सुविधा भी अब शुरू हो गई है, लेकिन इसकी गति 2जी की है और शर्त यह है कि सोशल मीडिया साइट्स के लिए इसका इस्तेमाल नहीं होगा.