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ओडिशा का 'सुपर 30'- गरीब बच्चों को मेडिकल की तैयारी करवाता है 'जिंदगी कार्यक्रम' - super 30 coaching

देश में न जाने कितनी नन्हीं आंखों का सपना एक प्रतिभावान डॉक्टर बनने का होगा. लेकिन अफसोस.. गरीबी के कुचक्र में फंसी यह उम्मीदें पूरी होने से पहले ही खत्म हो जाती हैं. ऐसे ही उम्मीदों को पूरा कर रहे हैं उड़ीसा के अजय बहादुर सिंह. जानें कौन हैं अजय बहादुर....

फाउंडेशन के संस्थापक अजय बहादुर सिंह
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Published : Sep 13, 2019, 10:05 AM IST

Updated : Sep 30, 2019, 10:33 AM IST

भुवनेश्वरः गणितज्ञ आनंद कुमार के प्रसिद्ध सुपर 30 से प्रेरित एक ऐसी ही शानदार पहल की शुरुआत ओडिशा में भी हुई. लेकिन इसमें इंजीनियरिंग नहीं बल्कि मेडिकल की तैयारी की जाती है.

बच्चों के सपनों को कर रहे साकार
जिन्दगी नाम की यह पहल आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्चों के सपनों को साकार करने का काम कर रही है. यह पहल उनकी उड़ान को पंख दे रही है.

कैसे होता है बच्चों का चुनाव
यह कार्यक्रम एक गैर सरकारी संगठन द्वारा संचालित किया जाता है. कार्यक्रम के तहत मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश लेने के लिए राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा की तैयारी करवाई जाती है. इस परीक्षा को करवाने के लिए सब्जी विक्रेताओं, मछुआरों और गरीब किसानों जैसे समाज में हाशिये पर पड़े लोगों के बच्चों को चुना जाता है.

कहां से हुई शुरुआत
इस पहल को शुरू करने की कहानी के पीछे जो शख्स है, उनका नाम है- अजय बहादुर सिंह.

उन्हें अपने परिवार की आर्थिक तंगी के कारण अपनी मेडिकल की पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी थी और परिवार का पेट भरने के लिए चाय और शर्बत बेचना पड़ा था.

जिंदगी कार्यक्रम 19 मेधावी छात्रों को करा रहा मेडिकल की तैयारी
ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में वर्ष 2016 में शुरू किया गया जिंदगी कार्यक्रम वर्तमान में 19 मेधावी छात्रों को मेडिकल की तैयारी करवा रहा है, जो आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों से आये हुए हैं, जिनमें लड़के और लड़कियां दोनों शामिल हैं.

दी जाती हैं तमाम सुविधाएं
इस कार्यक्रम के तहत, एक राज्य स्तरीय परीक्षा के माध्यम से गरीब पृष्ठभूमि के चयनित प्रतिभाशाली छात्रों को डॉक्टर बनने में मदद करने के लिए शिक्षा दी जाती है, जिन्हें मुफ्त भोजन, आवास और अन्य तमाम सुविधाएं प्रदान की जाती है.

नवीन पटनायक ने किया था सम्मानित
इसके चौदह छात्रों ने 2018 में नीट में सफलता पायी थी, जिनमें से 12 को ओडिशा के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में दाखिला मिला है, जिनकी उपलब्धियों के लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने जुलाई में उन्हें सम्मानित किया था.

विद्यार्थियों के साथ की बातचीत
जब मीडिया की नजर जिंदगी फाउंडेशन की कक्षा पर पड़ी तो उन्होंने वहां का माहौल देखा, विद्यार्थियों के साथ बातचीत की, जिनमें से कुछ सब्जी विक्रेताओं, दिहाड़ी मजदूरों, मछुआरों और गरीब किसानों के बच्चे थे, जिन्होंने सपने में भी कभी डॉक्टर बनने के बारे में नहीं सोचा था.

इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि मेडिकल की तैयारी में अमूमन काफी पैसे खर्च होते हैं और महंगी कोचिंग लेनी पड़ती है.

पढ़ेंः मिसाल हैं ओडिशा की बिनोदिनी समल, बच्चों को पढ़ाने का जुनून ऐसा कि खुद के जान की परवाह नहीं

बच्चे दिन रात कर रहे कड़ी मेहनत
इन बच्चों में अंगुल जिले के एक गरीब किसान की बेटी क्षीरोदिनी साहू, कोरापुट के एक मजदूर की बेटी रेखा रानी बाग, भद्रक जिले के एक ट्रक ड्राइवर के बेटे स्मृति रंजन सेनापति, पानागढ़ के एक सब्जी विक्रेता के बेटे सत्यजीत साहू और पूर्वी मलकानगिरी के एक मछुआरे के बेटे मंजीत बाला हैं, जो अपने सपने को पंख देने में लगे हुए हैं. ये बच्चे दिन-रात कड़ी मेहनत कर अपनी बाधाओं को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं.

बच्चों में कुछ बड़ा करने का आत्मविश्वास इतना प्रबल है कि उनकी गरीबी भी उनके मार्ग में बाधा पैदा नहीं कर सकती.

बच्चों का हौसला बुलंद
उनके हौसलों की एक बानगी खुर्दा जिले के एक छोटे से किसान की बेटी शुभलक्ष्मी साहू के जज्बे में दिखती है, जिसका मानना है, जब एक चाय बेचने वाला प्रधानमंत्री (नरेंद्र मोदी) बन सकता है तो हम डॉक्टर क्यों नहीं बन सकते? उनके शिक्षक- मुकुल कुमार, मानस कुमार नायक और दुर्गा प्रसाद का कहना है कि इन बच्चों के लिए करो या मरो की स्थिति है, या तो मेडिकल परीक्षाओं को पास कर एक सुनहरे भविष्य की ओर कदम बढ़ाएं या अपने उसी अभावग्रस्त जीवन में लौट जाएं.

प्राणि विज्ञान के शिक्षक दुर्गा प्रसाद ने कहा, इन सभी बच्चों में अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने की इच्छा बहुत तीव्र है.

जिंदगी कार्यक्रम के समन्वयक ज़ाहिद अख्तर ने कहा कि लड़कों और लड़कियों को संगठन द्वारा संचालित अलग-अलग छात्रावासों में रखा जाता है जहां उन्हें सादा लेकिन पौष्टिक भोजन मुफ्त में मिलता है.

जिंदगी फाउंडेशन के वरिष्ठ समन्वयक शिवेन सिंह चौधरी ने कहा कि इसका एक साल का कार्यक्रम होता है, जो जुलाई के पहले सप्ताह में प्रवेश की औपचारिकताओं को पूरा करने के बाद शुरू होता है.

उन्होंने कहा कि इसमें आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों का ही चयन किया जाता है क्योंकि परियोजना का उद्देश्य दुनिया में गरीब परिवारों को आगे बढ़ाने में मदद करना है.

बच्चों के जरिये होगा सपना पूरा
सुपर 30 के संस्थापक आनंद कुमार को अपना प्रेरणास्रोत मानने वाले जिंदगी फाउंडेशन के संस्थापक अजय बहादुर सिंह ने कहा कि वह यह सब गरीब बच्चों को उनके सपने पूरे करने में मदद करने के लिए कर रहे हैं. वह अपने सपने को इन बच्चों के जरिए पूरा करना चाहते हैं.

उन्होंने कहा कि संघर्ष के बावजूद शिक्षा क्षेत्र से जुड़े रहने की उनकी चाहत ने उन्हें यहां तक पहुंचाया है.

भुवनेश्वरः गणितज्ञ आनंद कुमार के प्रसिद्ध सुपर 30 से प्रेरित एक ऐसी ही शानदार पहल की शुरुआत ओडिशा में भी हुई. लेकिन इसमें इंजीनियरिंग नहीं बल्कि मेडिकल की तैयारी की जाती है.

बच्चों के सपनों को कर रहे साकार
जिन्दगी नाम की यह पहल आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्चों के सपनों को साकार करने का काम कर रही है. यह पहल उनकी उड़ान को पंख दे रही है.

कैसे होता है बच्चों का चुनाव
यह कार्यक्रम एक गैर सरकारी संगठन द्वारा संचालित किया जाता है. कार्यक्रम के तहत मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश लेने के लिए राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा की तैयारी करवाई जाती है. इस परीक्षा को करवाने के लिए सब्जी विक्रेताओं, मछुआरों और गरीब किसानों जैसे समाज में हाशिये पर पड़े लोगों के बच्चों को चुना जाता है.

कहां से हुई शुरुआत
इस पहल को शुरू करने की कहानी के पीछे जो शख्स है, उनका नाम है- अजय बहादुर सिंह.

उन्हें अपने परिवार की आर्थिक तंगी के कारण अपनी मेडिकल की पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी थी और परिवार का पेट भरने के लिए चाय और शर्बत बेचना पड़ा था.

जिंदगी कार्यक्रम 19 मेधावी छात्रों को करा रहा मेडिकल की तैयारी
ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में वर्ष 2016 में शुरू किया गया जिंदगी कार्यक्रम वर्तमान में 19 मेधावी छात्रों को मेडिकल की तैयारी करवा रहा है, जो आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों से आये हुए हैं, जिनमें लड़के और लड़कियां दोनों शामिल हैं.

दी जाती हैं तमाम सुविधाएं
इस कार्यक्रम के तहत, एक राज्य स्तरीय परीक्षा के माध्यम से गरीब पृष्ठभूमि के चयनित प्रतिभाशाली छात्रों को डॉक्टर बनने में मदद करने के लिए शिक्षा दी जाती है, जिन्हें मुफ्त भोजन, आवास और अन्य तमाम सुविधाएं प्रदान की जाती है.

नवीन पटनायक ने किया था सम्मानित
इसके चौदह छात्रों ने 2018 में नीट में सफलता पायी थी, जिनमें से 12 को ओडिशा के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में दाखिला मिला है, जिनकी उपलब्धियों के लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने जुलाई में उन्हें सम्मानित किया था.

विद्यार्थियों के साथ की बातचीत
जब मीडिया की नजर जिंदगी फाउंडेशन की कक्षा पर पड़ी तो उन्होंने वहां का माहौल देखा, विद्यार्थियों के साथ बातचीत की, जिनमें से कुछ सब्जी विक्रेताओं, दिहाड़ी मजदूरों, मछुआरों और गरीब किसानों के बच्चे थे, जिन्होंने सपने में भी कभी डॉक्टर बनने के बारे में नहीं सोचा था.

इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि मेडिकल की तैयारी में अमूमन काफी पैसे खर्च होते हैं और महंगी कोचिंग लेनी पड़ती है.

पढ़ेंः मिसाल हैं ओडिशा की बिनोदिनी समल, बच्चों को पढ़ाने का जुनून ऐसा कि खुद के जान की परवाह नहीं

बच्चे दिन रात कर रहे कड़ी मेहनत
इन बच्चों में अंगुल जिले के एक गरीब किसान की बेटी क्षीरोदिनी साहू, कोरापुट के एक मजदूर की बेटी रेखा रानी बाग, भद्रक जिले के एक ट्रक ड्राइवर के बेटे स्मृति रंजन सेनापति, पानागढ़ के एक सब्जी विक्रेता के बेटे सत्यजीत साहू और पूर्वी मलकानगिरी के एक मछुआरे के बेटे मंजीत बाला हैं, जो अपने सपने को पंख देने में लगे हुए हैं. ये बच्चे दिन-रात कड़ी मेहनत कर अपनी बाधाओं को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं.

बच्चों में कुछ बड़ा करने का आत्मविश्वास इतना प्रबल है कि उनकी गरीबी भी उनके मार्ग में बाधा पैदा नहीं कर सकती.

बच्चों का हौसला बुलंद
उनके हौसलों की एक बानगी खुर्दा जिले के एक छोटे से किसान की बेटी शुभलक्ष्मी साहू के जज्बे में दिखती है, जिसका मानना है, जब एक चाय बेचने वाला प्रधानमंत्री (नरेंद्र मोदी) बन सकता है तो हम डॉक्टर क्यों नहीं बन सकते? उनके शिक्षक- मुकुल कुमार, मानस कुमार नायक और दुर्गा प्रसाद का कहना है कि इन बच्चों के लिए करो या मरो की स्थिति है, या तो मेडिकल परीक्षाओं को पास कर एक सुनहरे भविष्य की ओर कदम बढ़ाएं या अपने उसी अभावग्रस्त जीवन में लौट जाएं.

प्राणि विज्ञान के शिक्षक दुर्गा प्रसाद ने कहा, इन सभी बच्चों में अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने की इच्छा बहुत तीव्र है.

जिंदगी कार्यक्रम के समन्वयक ज़ाहिद अख्तर ने कहा कि लड़कों और लड़कियों को संगठन द्वारा संचालित अलग-अलग छात्रावासों में रखा जाता है जहां उन्हें सादा लेकिन पौष्टिक भोजन मुफ्त में मिलता है.

जिंदगी फाउंडेशन के वरिष्ठ समन्वयक शिवेन सिंह चौधरी ने कहा कि इसका एक साल का कार्यक्रम होता है, जो जुलाई के पहले सप्ताह में प्रवेश की औपचारिकताओं को पूरा करने के बाद शुरू होता है.

उन्होंने कहा कि इसमें आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों का ही चयन किया जाता है क्योंकि परियोजना का उद्देश्य दुनिया में गरीब परिवारों को आगे बढ़ाने में मदद करना है.

बच्चों के जरिये होगा सपना पूरा
सुपर 30 के संस्थापक आनंद कुमार को अपना प्रेरणास्रोत मानने वाले जिंदगी फाउंडेशन के संस्थापक अजय बहादुर सिंह ने कहा कि वह यह सब गरीब बच्चों को उनके सपने पूरे करने में मदद करने के लिए कर रहे हैं. वह अपने सपने को इन बच्चों के जरिए पूरा करना चाहते हैं.

उन्होंने कहा कि संघर्ष के बावजूद शिक्षा क्षेत्र से जुड़े रहने की उनकी चाहत ने उन्हें यहां तक पहुंचाया है.

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Last Updated : Sep 30, 2019, 10:33 AM IST
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