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सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील ने मध्यस्थता के जरिए अयोध्या केस को निपटाने की खबरों का खंडन किया

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Published : Oct 18, 2019, 12:42 PM IST

Updated : Oct 18, 2019, 6:29 PM IST

अयोध्या मामले में सुन्नी वक्फ बोर्ड के अधिवक्ता एजाज मकबूल ने सुप्रीम कोर्ट में मध्यस्थता की खबरों का खंडन किया है.

अधिवक्ता एजाज मकबूल ( फाइल फोटो)

नई दिल्ली : अयोध्या भूमि विवाद में मुस्लिम पक्षकारों ने बयान जारी कर सुन्नी वक्फ बोर्ड द्वारा मामला वापस लेने संबंधी खबरों पर शुक्रवार को हैरानी जताई.

अयोध्या भूमि विवाद में अहम मुस्लिम वादी एम सिद्दीक के वकील एजाज मकबूल ने कहा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड को छोड़कर सभी मुस्लिम पक्षों ने समझौते को खारिज कर दिया है क्योंकि विवाद के मुख्य हिंदू पक्षकार मध्यस्थता प्रक्रिया और इसके तथाकथित समाधान का हिस्सा नहीं थे.

सुन्नी वक्फ बोर्ड को छोड़कर मुस्लिम पक्षकारों ने स्पष्टीकरण बयान जारी कर कहा कि वे उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त मध्यस्थता समिति के राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद भूमि विवाद को सौहार्दपूर्वक सुलझाने के लिए तथाकथित समझौते के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करेंगे.

वहीं, इस मामले पर हिंदू महासभा के वकील विष्णु शंकर जैन ने कहा कि एजाज मकबूल की तरफ से ऐसा कोई बयान सुप्रीम कोर्ट में नहीं दिया गया था, जिसमें मध्यस्थता की बात की गई हो.

ईटीवी भारत से बात करते विष्णु जैन

उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि इस मामले पर सार्वजिनक मंच और मीडिया में कोई बात नहीं की जाएगी और अगर कोई ऐसा करता है तो यह कोर्ट की अवमानना होगी.

विष्णु शंकर ने आगे बताया कि जब तक सभी पक्ष मध्यस्थता को लेकर दस्तावेज पर हस्ताक्षर नही करेंगे तब तक मध्यस्थता नहीं हो सकती.

बता दें कि प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अगुवाई वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने इस मामले पर 40 दिन सुनवाई करने के बाद 16 अक्टूबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. ऐसा बताया जाता है कि इसी दिन मध्यस्थता समिति की रिपोर्ट भी न्यायालय को सौंपी गई थी.

उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एफ एम आई कलीफुल्ला तीन सदस्यीय मध्यस्थता समिति की अध्यक्षता कर रहे थे. समिति के दो अन्य सदस्यों में आध्यात्मिक गुरू श्री श्री रविशंकर और मध्यस्थ्ता विशेषज्ञ वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीराम पांचू शामिल थे.

मध्यस्थता समिति से जुड़े सूत्रों ने बताया कि सीलबंद लिफाफे में सौंपी गई रिपोर्ट हिंदू और मुस्लिम पक्षकारों के बीच एक तरह का समझौता है.

पढ़ें- अयोध्या मसले पर बोली भाजपा - 'हमें न्यायालय पर पूरा भरोसा है'

सूत्रों ने बताया कि सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्वाणी अखाड़ा, निर्मोही अखाड़ा, राम जन्मभूमि पुनरुद्धार समिति और कुछ अन्य हिंदू पक्षकार भूमि विवाद को आपसी सहमति से सुलझाने के समर्थन में हैं.

कथित रूप से ऐसा भी बताया जा रहा है कि सुन्नी वक्फ बोर्ड समझौते के फार्मूले के तहत मुकदमे को वापस लेने का इच्छुक है.

मुस्लिम पक्षकारों के वरिष्ठ वकील शकील अहमद सैयद और एमआर शमशाद ने मुस्लिम पक्ष द्वारा दिए गए बयानों की निंदा की.

मुस्लिम पक्षकार के वकील ने क्या कहा जानें..

मुस्लिम पक्षकार के वकील शकील अहमद सैयद ने कहा जहां तक मुस्लिम पक्षकारों का सवाल है तो इस पक्ष की ओर से कुल 6 से 7 पार्टियां केस लड़ रही हैं. इनमें सुन्नी वक्फ बोर्ड एक पार्टी है. सभी पार्टियां इस मामले में अपनी ओर से दलीलें पेश कर रही हैं.

सिर्फ एक पक्षकार के वक्फ बोर्ड के चेयरमैन ने मध्यस्थता में कुछ पहल दिखाई है. उन्होंने कहा इस पेशकश के बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है. मुझे बाहर से इसकी जानकारी मिली है.
सुन्नी वक्फ बोर्ड की तरफ उनके सामने मध्यस्थता को लेकर किसी तरह का कोई प्रस्ताव नहीं आया है.

क्या मुस्लिम पक्षकार आपस में ही बंट गए हैं, इस सवाल का जवाब देते हुए वकील शकील अहमद सैयद ने कहा कि पक्षकार नहीं बंटे हैं. सीजेआई ने आर्डर में लिखा था कि सुनवाई अंतिम दौर में हैं तो इस अवस्था में सुनवाई होती रहेगी और मध्यस्थता वाले अपनी तरफ से प्रयास जारी रख सकते हैं और बाद में रिपोर्ट सौंप दें. इसमें भी गोपनीयता बरती जाएगी. उन्होंने कहा कि एक व्यक्ति के हस्ताक्षर को अंतिम फैसला नहीं माना जा सकता है, जबकि अपील करने वाल कई सारे हैं.

दूसरी तरफ मुस्लिम पक्षकार के एक दूसरे वकील एमआर शमशाद ने कहा कि पहले राउंड की मध्यस्थता में वे सब लोग शामिल थे. दूसरे राउंड की मध्यस्थता में काफी लोगों को शामिल नहीं किया गया था.

दूसरे राउंड की मध्यस्थता की बैठक में क्या हुआ इसके विषय में अधिकतर मुस्लिम पक्षकारों को मालूम नहीं है. सिर्फ जफर फारूकी ने समझौता के लिए प्रस्ताव कोर्ट के सामने रखे हैं तो उसका कानून प्रभाव बहुत ज्यादा नहीं है. क्योंकि इसमें सात पार्टी शामिल हैं और वे सभी प्रतिनिधि की हैसियत से कोर्ट के सामने हैं.

अयोध्या मामले की सुनवाई खत्म हो गई है और यह भी रिकार्ड में कह दिया गया है कि मध्यस्थता कारगर साबित नहीं हुआ है. ऐसे समय एक व्यक्ति जो प्रतिनिधि की हैसियत से मुकदमें की पैरवी कर रहा था, वह सरेंडर करने की बात कर रहा है तो इसकी कोई अहमियत नहीं है. अगर जफर फारूकी ने इस तरह का बयान दिया है तो यह उनका मामला है.

नई दिल्ली : अयोध्या भूमि विवाद में मुस्लिम पक्षकारों ने बयान जारी कर सुन्नी वक्फ बोर्ड द्वारा मामला वापस लेने संबंधी खबरों पर शुक्रवार को हैरानी जताई.

अयोध्या भूमि विवाद में अहम मुस्लिम वादी एम सिद्दीक के वकील एजाज मकबूल ने कहा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड को छोड़कर सभी मुस्लिम पक्षों ने समझौते को खारिज कर दिया है क्योंकि विवाद के मुख्य हिंदू पक्षकार मध्यस्थता प्रक्रिया और इसके तथाकथित समाधान का हिस्सा नहीं थे.

सुन्नी वक्फ बोर्ड को छोड़कर मुस्लिम पक्षकारों ने स्पष्टीकरण बयान जारी कर कहा कि वे उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त मध्यस्थता समिति के राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद भूमि विवाद को सौहार्दपूर्वक सुलझाने के लिए तथाकथित समझौते के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करेंगे.

वहीं, इस मामले पर हिंदू महासभा के वकील विष्णु शंकर जैन ने कहा कि एजाज मकबूल की तरफ से ऐसा कोई बयान सुप्रीम कोर्ट में नहीं दिया गया था, जिसमें मध्यस्थता की बात की गई हो.

ईटीवी भारत से बात करते विष्णु जैन

उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि इस मामले पर सार्वजिनक मंच और मीडिया में कोई बात नहीं की जाएगी और अगर कोई ऐसा करता है तो यह कोर्ट की अवमानना होगी.

विष्णु शंकर ने आगे बताया कि जब तक सभी पक्ष मध्यस्थता को लेकर दस्तावेज पर हस्ताक्षर नही करेंगे तब तक मध्यस्थता नहीं हो सकती.

बता दें कि प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अगुवाई वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने इस मामले पर 40 दिन सुनवाई करने के बाद 16 अक्टूबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. ऐसा बताया जाता है कि इसी दिन मध्यस्थता समिति की रिपोर्ट भी न्यायालय को सौंपी गई थी.

उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एफ एम आई कलीफुल्ला तीन सदस्यीय मध्यस्थता समिति की अध्यक्षता कर रहे थे. समिति के दो अन्य सदस्यों में आध्यात्मिक गुरू श्री श्री रविशंकर और मध्यस्थ्ता विशेषज्ञ वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीराम पांचू शामिल थे.

मध्यस्थता समिति से जुड़े सूत्रों ने बताया कि सीलबंद लिफाफे में सौंपी गई रिपोर्ट हिंदू और मुस्लिम पक्षकारों के बीच एक तरह का समझौता है.

पढ़ें- अयोध्या मसले पर बोली भाजपा - 'हमें न्यायालय पर पूरा भरोसा है'

सूत्रों ने बताया कि सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्वाणी अखाड़ा, निर्मोही अखाड़ा, राम जन्मभूमि पुनरुद्धार समिति और कुछ अन्य हिंदू पक्षकार भूमि विवाद को आपसी सहमति से सुलझाने के समर्थन में हैं.

कथित रूप से ऐसा भी बताया जा रहा है कि सुन्नी वक्फ बोर्ड समझौते के फार्मूले के तहत मुकदमे को वापस लेने का इच्छुक है.

मुस्लिम पक्षकारों के वरिष्ठ वकील शकील अहमद सैयद और एमआर शमशाद ने मुस्लिम पक्ष द्वारा दिए गए बयानों की निंदा की.

मुस्लिम पक्षकार के वकील ने क्या कहा जानें..

मुस्लिम पक्षकार के वकील शकील अहमद सैयद ने कहा जहां तक मुस्लिम पक्षकारों का सवाल है तो इस पक्ष की ओर से कुल 6 से 7 पार्टियां केस लड़ रही हैं. इनमें सुन्नी वक्फ बोर्ड एक पार्टी है. सभी पार्टियां इस मामले में अपनी ओर से दलीलें पेश कर रही हैं.

सिर्फ एक पक्षकार के वक्फ बोर्ड के चेयरमैन ने मध्यस्थता में कुछ पहल दिखाई है. उन्होंने कहा इस पेशकश के बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है. मुझे बाहर से इसकी जानकारी मिली है.
सुन्नी वक्फ बोर्ड की तरफ उनके सामने मध्यस्थता को लेकर किसी तरह का कोई प्रस्ताव नहीं आया है.

क्या मुस्लिम पक्षकार आपस में ही बंट गए हैं, इस सवाल का जवाब देते हुए वकील शकील अहमद सैयद ने कहा कि पक्षकार नहीं बंटे हैं. सीजेआई ने आर्डर में लिखा था कि सुनवाई अंतिम दौर में हैं तो इस अवस्था में सुनवाई होती रहेगी और मध्यस्थता वाले अपनी तरफ से प्रयास जारी रख सकते हैं और बाद में रिपोर्ट सौंप दें. इसमें भी गोपनीयता बरती जाएगी. उन्होंने कहा कि एक व्यक्ति के हस्ताक्षर को अंतिम फैसला नहीं माना जा सकता है, जबकि अपील करने वाल कई सारे हैं.

दूसरी तरफ मुस्लिम पक्षकार के एक दूसरे वकील एमआर शमशाद ने कहा कि पहले राउंड की मध्यस्थता में वे सब लोग शामिल थे. दूसरे राउंड की मध्यस्थता में काफी लोगों को शामिल नहीं किया गया था.

दूसरे राउंड की मध्यस्थता की बैठक में क्या हुआ इसके विषय में अधिकतर मुस्लिम पक्षकारों को मालूम नहीं है. सिर्फ जफर फारूकी ने समझौता के लिए प्रस्ताव कोर्ट के सामने रखे हैं तो उसका कानून प्रभाव बहुत ज्यादा नहीं है. क्योंकि इसमें सात पार्टी शामिल हैं और वे सभी प्रतिनिधि की हैसियत से कोर्ट के सामने हैं.

अयोध्या मामले की सुनवाई खत्म हो गई है और यह भी रिकार्ड में कह दिया गया है कि मध्यस्थता कारगर साबित नहीं हुआ है. ऐसे समय एक व्यक्ति जो प्रतिनिधि की हैसियत से मुकदमें की पैरवी कर रहा था, वह सरेंडर करने की बात कर रहा है तो इसकी कोई अहमियत नहीं है. अगर जफर फारूकी ने इस तरह का बयान दिया है तो यह उनका मामला है.

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Last Updated : Oct 18, 2019, 6:29 PM IST
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