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ओडिशा में सुना बेशा यात्रा का आयोजन, 150 किलो के आभूषणों से सजाए गए देवता - kapilendra dev

ओडिशा में शुक्रवार को बाहुड़ा यात्रा का आयोजन किया गया. इस मौके पर पुरी के श्रीमंदिर में भगवान बसभजद्र, भगवान जगन्नाथ और देवी सुभद्रा को सोने के आभूषणों से सजाया गया. इस दौरान लाखों लोग इस आयोजन में शामिल हुए.

श्रीमंदिर
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Published : Jul 19, 2019, 2:28 PM IST

पुरी: जगन्नाथ पुरी में विग्रह की घर वापसी को बाहुड़ा यात्रा कहा जाता है. बाहुड़ा यात्रा भगवान जगन्नाथ और भाई-बहनों की गुंडिचा मंदिर से श्रीमंदिर की वापसी का प्रतीक है. इसे देखने के लिए शुक्रवार को लाखों लोग तीर्थ नगरी जगन्नाथपुरी पहुंचे.

इसके बाद शनिवार को पुरी के श्री मंदिर में प्रतिष्ठापित करने से पहले भगवान बलभद्र, भगवान जगन्नाथ और देवी सुभद्रा को सोने के आभूषणों से सजाया गया. ओडिशा में इस प्रक्रिया को सुना बेशा अनुष्ठान कहा जाता है. सुना बेशा के दौरान तीनों विग्रह रथारूढ़ ही रहते हैं.

मान्यता है कि तीनों देवता आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष में रथयात्रा के दौरान गुंडिचा मंदिर जाते हैं. यह देवताओं के 12वीं सदी के मंदिर (श्री जगन्नाथ मंदिर) से देवी गुंडिचा मंदिर की नौ दिनों की यात्रा होती है. देवी गुंडिचा उनकी मौसी हैं. सुना बेशा के दौरान ओडिशा पुलिस ने ट्रैफिक की समस्या से निपटने के लिए सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए थे.

सुना बेशा यात्रा

श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन (SJTA) ने बताया कि सुना बेशा अनुष्ठान शनिवार शाम 4 बजे शुरू किया गया. संध्या धूप शाम 8 बजे और इसके बाद रविवार लगभग आधी रात- 12: 30 बजे चंदन लग्गी की प्रक्रिया पूरी की गई.

जानें रोचक तथ्य

  • 'सुन बेशा' भगवान बलभद्र, देवी सुभद्रा और भगवान जगन्नाथ के अप्रतिम सौंदर्य और अनंत खुशियों का प्रतीक है. इस शुभ अवसर पर देवता पर्याप्त मात्रा में सोने के आभूषणों से सुशोभित होते हैं. उन्हें देखने के लिए श्रद्धालु लाखों की संख्या में मौजूद होते हैं. श्रृंगार के बाद तीनों अत्यंत प्रिय बन जाते हैं.
  • सुना बेशा केवल बाहुड़ा यात्रा के दौरान मनाया जाता है. इसे आषाढ़ एकादशी या बाहुड़ा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है.
  • पुरी के श्री जगन्नाथ मंदिर के अंदर सुना बेशा एक वर्ष में चार बार मनाया जाता है. यह माघ पूर्णिमा, दशहरा (विजयादशमी), कार्तिक पूर्णिमा और पौष पूर्णिमा के दौरान मनाया जाता है.
  • इस दौरान देवताओं को रत्न सिंघासन पर आसीन कर आभूषणों से सजाया जाता है.
  • सुन बेशा के दौरान भगवान जगन्नाथ और बलभद्र के हाथ और पैर सोने की प्लेटों से सजाए जाते हैं. इसके अलावा, भगवान जगन्नाथ के दाहिने हाथ पर एक स्वर्ण चक्र लगाया जाता है. जबकि बाएं हाथ पर चांदी का शंख सुशोभित होता है.
  • भगवान जगन्नाथ के बड़े भाई बलभद्र को बाएं हाथ पर सोने से बना हल से सजाया जाता है . बलभद्र के दाहिने हाथ पर सोने की गदा सुशोभित होती है.
  • देवी सुभद्रा को भी सोने और हीरे के सर्वश्रेष्ठ आभूषणों से सुशोभित किया जाता है.

पढ़ें- कानपुर देहात की मजार पर मौजूद हैं पैगंबर मोहम्मद के कदमों के निशान

सुना बेशा के दौरान इस्तेमाल किए जाने वाले सोने के आभूषणों को अलग-अलग नामों से जाना जाता है. देखें इन नामों की सूची

  • श्री हस्त (सुनहरा हाथ)
  • श्री पायार (सुनहरा पैर),
  • श्री मुकुट (स्वर्ण बड़ा मुकुट),
  • श्री मयूर चंद्रिका (भगवान जगन्नाथ के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक स्वर्ण पंख)
  • श्री चूलापटी (माथे की स्वर्ण पोशाक जो चेहरे की सुंदरता को उजागर करती है)
  • श्री कुंडल (सोने की कान की बालियां)
  • श्री राहुरेखा (चेहरे के लिए आधा चौकोर आकार की सजावट)
  • श्री माला (कई डिजाइनों के साथ सोने से बने हार)
  • श्री चिता (देवताओं की तीसरी आंख)
  • श्री चक्र (स्वर्ण पहिया)
  • श्री गदा (स्वर्ण गदा)
  • श्री पद्म (स्वर्ण कमल)
  • श्री शंख (चांदी का शंख)
  • श्री माला में होते हैं कई प्रकार के डिजाइन

श्रृंगार में प्रयोग किए जाने वाले श्री माला में कई डिजाइन का प्रयोग किया जाता है. इसमें प्रमुख हैं:

  • पद्म माला (कमल जैसे आकार की)
  • सेवती माला (छोटे सूरजमुखी के आकार का)
  • अगस्ती माला (चंद्राकार)
  • कदंब माला (कदंब के फूल जैसा, गोलाकार गेंद जैसा)
  • कंठ माला (सोने के बड़े मनके जैसा)
  • मयूर माला (मोर के पंख जैसा आकार)
  • चंपा माला (चंपा के पीले फूल के आकार का)

श्री चिता देवताओं के तीसरी आंख को दर्शाती है. इसे हर देवता के लिए अलग-अलग रूप में प्रस्तुत किया जाता है.

  • एक गोल्डन प्लेट पर आठ कीमती रत्न होते हैं और जिसके केंद्र में एक शुद्ध गहना होता है.
  • भगवान जगन्नाथ का ललाट हीरा जड़ित होता है.
  • देवी सुभद्रा के माथे को पन्ना (emerald) से सजाया जाता है.
  • देवताओं के माथे के अलंकरण तब हटाए जाते हैं जब इन्हें देव स्नान पूर्णिमा के दौरान बाहर लाया जाता है.
  • ओडिशा में चितालागी अमावस्या चंद्र सावन महीने में मनाया जाता है. इसे चितलागी अमावसी भी कहा जाता है.
  • चितालागी अमावस्या के दिन भगवान गर्भगृह में लौटते हैं और इस दिन देवताओं का दोबारा श्रृंगार किया जाता है.

सोने के आभूषणों को मंदिर के खजाने में रखा जाता है. इसे भीतर भंडारघर के नाम से जाना जाता है.

  • श्रीमंदिर भंडार के अधिकार अभिलेख के अनुसार यहां 150 किलो स्वर्ण के आभूषण मौजूद हैं.
  • इसमें लगभग 1.4 किलो वजन के तीन हार शामिल हैं. जगन्नाथ और बलभद्र के अंग (हाथ और पैर) क्रमश: लगभग 9 किलो और 8 किलोग्राम सोने से बने हैं.
  • भगवान जगन्नाथ का मुकुट 7 किलोग्राम, बलभद्र का 5 और सुभद्रा के मुकुट का वजन लगभग तीन किलोग्राम है.
  • रथों पर देवताओं के श्रृंगार के लिए आभूषण लाए जाने के दौरान भंडार गृह के कम से कम 25 कर्मचारी और सशस्त्र पुलिसकर्मी भी साथ होते हैं.
  • सुरक्षा कारणों से पुजारियों और सेवादारों के अलावा किसी अन्य को रथों पर मौजूद रहने की इजाजत नहीं दी जाती है.

क्या है मंदिर का इतिहास

  • मंदिर के इतिहास के अनुसार सुना बेशा की शुरुआत 1460 ईस्वी में राजा कपिलेंद्र देव के शासनकाल के दौरान हुई थी.
  • 1460 में राजा कपिलेंद्र तत्कालीन प्रदेश दक्खन (दक्षिणी भारत) के शासकों के खिलाफ युद्ध जीत कर वापस लौटे थे. राजा कपिलेंद्र देव ने 1434 से 1466 ईस्वी के बीच राज किया था.
  • बताया जाता है कि राजा कपिलेंद्र युद्ध में जीते गए हीरे और सोने के आभूषणों को 16 हाथियों पर रख कर पुरी लाए थे.
  • पुरी पहुंचने के साथ ही राजा कपिलेंद्र देव ने सारी दौलत भगवान जगन्नाथ को दान कर दी. उन्होंने मंदिर के पुजारियों को देवताओं को श्रंगार से जुड़े निर्देश दिए.
  • निर्देश में कहा गया कि रथ यात्रा के अवसर पर श्रृंगार के लिए सोने और हीरे से निर्मित आभूषण का प्रयोग करें. तभी से बाहुड़ा यात्रा के बाद देवताओं को इन आभूषणों से सजाया जाता है.

पुरी: जगन्नाथ पुरी में विग्रह की घर वापसी को बाहुड़ा यात्रा कहा जाता है. बाहुड़ा यात्रा भगवान जगन्नाथ और भाई-बहनों की गुंडिचा मंदिर से श्रीमंदिर की वापसी का प्रतीक है. इसे देखने के लिए शुक्रवार को लाखों लोग तीर्थ नगरी जगन्नाथपुरी पहुंचे.

इसके बाद शनिवार को पुरी के श्री मंदिर में प्रतिष्ठापित करने से पहले भगवान बलभद्र, भगवान जगन्नाथ और देवी सुभद्रा को सोने के आभूषणों से सजाया गया. ओडिशा में इस प्रक्रिया को सुना बेशा अनुष्ठान कहा जाता है. सुना बेशा के दौरान तीनों विग्रह रथारूढ़ ही रहते हैं.

मान्यता है कि तीनों देवता आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष में रथयात्रा के दौरान गुंडिचा मंदिर जाते हैं. यह देवताओं के 12वीं सदी के मंदिर (श्री जगन्नाथ मंदिर) से देवी गुंडिचा मंदिर की नौ दिनों की यात्रा होती है. देवी गुंडिचा उनकी मौसी हैं. सुना बेशा के दौरान ओडिशा पुलिस ने ट्रैफिक की समस्या से निपटने के लिए सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए थे.

सुना बेशा यात्रा

श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन (SJTA) ने बताया कि सुना बेशा अनुष्ठान शनिवार शाम 4 बजे शुरू किया गया. संध्या धूप शाम 8 बजे और इसके बाद रविवार लगभग आधी रात- 12: 30 बजे चंदन लग्गी की प्रक्रिया पूरी की गई.

जानें रोचक तथ्य

  • 'सुन बेशा' भगवान बलभद्र, देवी सुभद्रा और भगवान जगन्नाथ के अप्रतिम सौंदर्य और अनंत खुशियों का प्रतीक है. इस शुभ अवसर पर देवता पर्याप्त मात्रा में सोने के आभूषणों से सुशोभित होते हैं. उन्हें देखने के लिए श्रद्धालु लाखों की संख्या में मौजूद होते हैं. श्रृंगार के बाद तीनों अत्यंत प्रिय बन जाते हैं.
  • सुना बेशा केवल बाहुड़ा यात्रा के दौरान मनाया जाता है. इसे आषाढ़ एकादशी या बाहुड़ा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है.
  • पुरी के श्री जगन्नाथ मंदिर के अंदर सुना बेशा एक वर्ष में चार बार मनाया जाता है. यह माघ पूर्णिमा, दशहरा (विजयादशमी), कार्तिक पूर्णिमा और पौष पूर्णिमा के दौरान मनाया जाता है.
  • इस दौरान देवताओं को रत्न सिंघासन पर आसीन कर आभूषणों से सजाया जाता है.
  • सुन बेशा के दौरान भगवान जगन्नाथ और बलभद्र के हाथ और पैर सोने की प्लेटों से सजाए जाते हैं. इसके अलावा, भगवान जगन्नाथ के दाहिने हाथ पर एक स्वर्ण चक्र लगाया जाता है. जबकि बाएं हाथ पर चांदी का शंख सुशोभित होता है.
  • भगवान जगन्नाथ के बड़े भाई बलभद्र को बाएं हाथ पर सोने से बना हल से सजाया जाता है . बलभद्र के दाहिने हाथ पर सोने की गदा सुशोभित होती है.
  • देवी सुभद्रा को भी सोने और हीरे के सर्वश्रेष्ठ आभूषणों से सुशोभित किया जाता है.

पढ़ें- कानपुर देहात की मजार पर मौजूद हैं पैगंबर मोहम्मद के कदमों के निशान

सुना बेशा के दौरान इस्तेमाल किए जाने वाले सोने के आभूषणों को अलग-अलग नामों से जाना जाता है. देखें इन नामों की सूची

  • श्री हस्त (सुनहरा हाथ)
  • श्री पायार (सुनहरा पैर),
  • श्री मुकुट (स्वर्ण बड़ा मुकुट),
  • श्री मयूर चंद्रिका (भगवान जगन्नाथ के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक स्वर्ण पंख)
  • श्री चूलापटी (माथे की स्वर्ण पोशाक जो चेहरे की सुंदरता को उजागर करती है)
  • श्री कुंडल (सोने की कान की बालियां)
  • श्री राहुरेखा (चेहरे के लिए आधा चौकोर आकार की सजावट)
  • श्री माला (कई डिजाइनों के साथ सोने से बने हार)
  • श्री चिता (देवताओं की तीसरी आंख)
  • श्री चक्र (स्वर्ण पहिया)
  • श्री गदा (स्वर्ण गदा)
  • श्री पद्म (स्वर्ण कमल)
  • श्री शंख (चांदी का शंख)
  • श्री माला में होते हैं कई प्रकार के डिजाइन

श्रृंगार में प्रयोग किए जाने वाले श्री माला में कई डिजाइन का प्रयोग किया जाता है. इसमें प्रमुख हैं:

  • पद्म माला (कमल जैसे आकार की)
  • सेवती माला (छोटे सूरजमुखी के आकार का)
  • अगस्ती माला (चंद्राकार)
  • कदंब माला (कदंब के फूल जैसा, गोलाकार गेंद जैसा)
  • कंठ माला (सोने के बड़े मनके जैसा)
  • मयूर माला (मोर के पंख जैसा आकार)
  • चंपा माला (चंपा के पीले फूल के आकार का)

श्री चिता देवताओं के तीसरी आंख को दर्शाती है. इसे हर देवता के लिए अलग-अलग रूप में प्रस्तुत किया जाता है.

  • एक गोल्डन प्लेट पर आठ कीमती रत्न होते हैं और जिसके केंद्र में एक शुद्ध गहना होता है.
  • भगवान जगन्नाथ का ललाट हीरा जड़ित होता है.
  • देवी सुभद्रा के माथे को पन्ना (emerald) से सजाया जाता है.
  • देवताओं के माथे के अलंकरण तब हटाए जाते हैं जब इन्हें देव स्नान पूर्णिमा के दौरान बाहर लाया जाता है.
  • ओडिशा में चितालागी अमावस्या चंद्र सावन महीने में मनाया जाता है. इसे चितलागी अमावसी भी कहा जाता है.
  • चितालागी अमावस्या के दिन भगवान गर्भगृह में लौटते हैं और इस दिन देवताओं का दोबारा श्रृंगार किया जाता है.

सोने के आभूषणों को मंदिर के खजाने में रखा जाता है. इसे भीतर भंडारघर के नाम से जाना जाता है.

  • श्रीमंदिर भंडार के अधिकार अभिलेख के अनुसार यहां 150 किलो स्वर्ण के आभूषण मौजूद हैं.
  • इसमें लगभग 1.4 किलो वजन के तीन हार शामिल हैं. जगन्नाथ और बलभद्र के अंग (हाथ और पैर) क्रमश: लगभग 9 किलो और 8 किलोग्राम सोने से बने हैं.
  • भगवान जगन्नाथ का मुकुट 7 किलोग्राम, बलभद्र का 5 और सुभद्रा के मुकुट का वजन लगभग तीन किलोग्राम है.
  • रथों पर देवताओं के श्रृंगार के लिए आभूषण लाए जाने के दौरान भंडार गृह के कम से कम 25 कर्मचारी और सशस्त्र पुलिसकर्मी भी साथ होते हैं.
  • सुरक्षा कारणों से पुजारियों और सेवादारों के अलावा किसी अन्य को रथों पर मौजूद रहने की इजाजत नहीं दी जाती है.

क्या है मंदिर का इतिहास

  • मंदिर के इतिहास के अनुसार सुना बेशा की शुरुआत 1460 ईस्वी में राजा कपिलेंद्र देव के शासनकाल के दौरान हुई थी.
  • 1460 में राजा कपिलेंद्र तत्कालीन प्रदेश दक्खन (दक्षिणी भारत) के शासकों के खिलाफ युद्ध जीत कर वापस लौटे थे. राजा कपिलेंद्र देव ने 1434 से 1466 ईस्वी के बीच राज किया था.
  • बताया जाता है कि राजा कपिलेंद्र युद्ध में जीते गए हीरे और सोने के आभूषणों को 16 हाथियों पर रख कर पुरी लाए थे.
  • पुरी पहुंचने के साथ ही राजा कपिलेंद्र देव ने सारी दौलत भगवान जगन्नाथ को दान कर दी. उन्होंने मंदिर के पुजारियों को देवताओं को श्रंगार से जुड़े निर्देश दिए.
  • निर्देश में कहा गया कि रथ यात्रा के अवसर पर श्रृंगार के लिए सोने और हीरे से निर्मित आभूषण का प्रयोग करें. तभी से बाहुड़ा यात्रा के बाद देवताओं को इन आभूषणों से सजाया जाता है.
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Suna Besha - Watch The Deities In Their Golden Makeover





Millions congregated in the pilgrim town on Friday to witness Bahuda Yatra, the homecoming of the Holy Trinity. Today, the sibling deities of Puri Srimandir- Lord Balabhadra, Lord Jagannath and Devi Subhadra will be adorned with gold ornaments also known as the Suna Besha (Raja or Rajadhiraja Besha) atop their respective chariots in Puri.



All the preparations have reached final stages as lakhs of devotees are expected to throng the pilgrim town for the Suna Besha of the deities, informed senior officials of Shree Jagannath Temple Administration (SJTA).



As per the schedule, Suna Besha rituals will start at 4 PM today while Sandhya Dhupa and Chandan Lagi rituals will be conducted at 8 PM and 12: 30 AM (tomorrow), respectively.



Elaborate security and traffic arrangements have been made by Odisha Police for crowd management and smooth conduct of Suna Besha of the annual Rath Yatra festival.



 Interesting Facts About Suna Besha Ritual 



Numero Uno 'Suna Besha' of the Holy Trinity - Lord Balabhadra ,  Devi Subhadra and  Lord Jagannath - is a thing of eternal beauty and joy for a life time.  The deities are adorned with gaudy gold jewellery in ample quantum on this auspicious occasion and become the darling of the milling crowd.



Below are some interesting facts about Suna Besha that only few people know about.



1.) Suna Besha ritual on the chariots is only observed during the Bahuda Yatra or Bahuda Ekadashi also known as Asadha Ekadashi. But, it is observed four more times in a year inside the temple during Magha Purnima, Dashahara (Vijyadashami), Karthik Purnima and Pousa Purnima when the deities are adorned with the ornaments on the Ratna Singhasana (gem studded altar).



2.) Hands and feet of Lord Jagannath and Balabhadra are decorated with gold plates during the Suna Besha. Besides, Lord Jagannath is also adorned with a golden ‘Chakra’ (disc) on the right hand while a silver conch adorns the left hand. Elder brother Balabhadra is decorated with a plough made of gold on the left hand while a golden ‘gada’ (mace) adorns the right hand. Devi Subhadra is also prettily adorned with her best golden and diamond ornaments.



3.) The gold ornaments used during the Suna Besha are known as Sri Hasta (golden hand), Sri Payar (golden feet), Sri Mukuta (golden big crown), Sri Mayur Chandrika (a golden peacock feather used by Lord Jagannath), Sri Chulapati (golden forehead costume which highlights facial beauty), Sri Kundal (golden hanging earrings), Sri Rahurekha (half square shaped decorative for the face), Sri Mala (necklaces with several design made of gold), Sri Chita (third eye of gods), Sri Chakra (golden wheel), Sri Gada (golden bludgeon), Sri Padma (golden lotus), Sri Sank (silver conch).



4.) The various designs of Sri Mala are Padam Mala (Lotus Shaped), Sevati Mala (Small Sun flower shape), Agasti Mala (Moon shape), Kadamba Mala (Kadamba flower design or round ball shape), Kante Mala (Big gold beads design), Mayur Mala (Peacock feather shape) and Champa Mala (Yellow Champa flower shape).



5: The Sri Chita which denotes the third eye of gods is represented separately for each of the deities. On a Golden plate there are eight precious gems and in the center it is found a pure jewel. Lord Jagannath’s forehead is affixed with a diamond and Goddess Subhadra’s forehead is decorated with an emerald (panna). These forehead ornamentations are removed when the deities are brought out during the Deb Snana Purnima. They are then redecorated when the deities return to the sanctum sanctorum on the day called Chitalagai Amavasya Day which is observed on New-Moon day of the lunar month of Shravana.



6.) The gold ornaments are stored at the temple’s treasury known as Bhitaara Bhandaraghara. According to the "Records of Rights" of the Srimandir the Bhandara (store) has 150 gold articles comprising three necklaces of approximately 1.4 kg each, limbs (hands and feet) of Jagannatha and Balabhadra made in gold of approximately 9 kg and 8 kg. Also recorded are decorative crowns of the deities Jagannath, Balabhadra and Subhadra in the order of approximately 7 kg, 5 kg and 3 kg in weight. When the jewellery is brought out for decorating the deities on the chariots, armed policemen accompany it along with a minimum of 25 storekeepers. Except the priests and the servitors, no one else is allowed to remain on the chariots for security reasons.



7.) According to temple history, Suna Bhesha was introduced during the era of King Kapilendradeva in 1460 A.D. When King Kapilendradeva, who ruled between 1434 and 1466 AD, returned home triumphant after winning wars over the rulers of the Deccan (Southern India) he brought a huge bounty carried on 16 elephants. The trophies which he collected consisted of diamonds and gold. The day he arrived in Puri he donated all the booty to Lord Jagannath. He instructed the temple priests to get ornaments crafted out of the gold and diamond to adorn the deities on occasion of Rath Yatra. Since then the deities are decorated with these jewellery after the Bahuda Yatra.


Conclusion:
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