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गन्ने की कीमत को लेकर किसानों में नाराजगी

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Published : Dec 10, 2019, 2:07 PM IST

Updated : Dec 11, 2019, 11:51 PM IST

गन्ना किसानों में इन दिनों निराशा के साथ साथ आक्रोश का भी माहौल है. दरअसल लगातार दूसरे वर्ष गन्ने की कीमत में बढ़ोतरी ना होना इसका मुख्य कारण है. अब कई किसान संगठन राज्य में आंदोलन तक की तैयारी शुरू कर चुके हैं. जानें पूरा विवरण...

Sugarcane farmers issue
डिजाइन फोटो

नई दिल्ली : गन्ना किसानों को समय से ना होने वाले भुगतान की बात अक्सर खबरों में रहती है. खेती की ऊंची लागत के बावजूद समय से भुगतान ना होना और फिर सरकार द्वारा भी गन्ने की एसएपी (राज्य परामर्श मूल्य) न बढ़ना एक गंभीर समस्या है.

ईटीवी भारत ने इस पूरे मामले पर किसान शक्ति संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष और कृषि मामलों के विशेषज्ञ चौधरी पुष्पेंद्र सिंह से विशेष बातचीत की है. पुष्पेंद्र सिंह ने बताया कि साल 2017 में 10 रुपये की बढ़ोतरी कीमतों में की गई थी, लेकिन वर्ष 2018-19 और वर्ष 2019-20 के लिए गन्ने की कीमतों में किसी तरह की बढ़ोतरी नहीं की गई है, जबकि अगर सरकार चाहती तो कुछ नीतिगत बदलाव के साथ किसानों को लाभ पहुंचाया जा सकता था.

आंकड़ों के मुताबिक 2018-19 में देश में चीनी का ओपनिंग स्टॉक 104 लाख तथा जबकि उत्पादन 332 लाख तथा घरेलू खपत 255 लाख टन और कुल निर्यात 38 लाख टन रहा.

किसान नेता चौधरी पुष्पेंद्र सिंह की ईटावी भारत से बातचीत

अगर 2019-20 की बात करें तो चीनी का ओपनिंग स्टॉक 143 लाख टन है जिसका मतलब है कि लगभग 7 महीने की खपत के बराबर चीनी पहले ही गोदामों में रखी हुई है.

चीनी वर्ष 2019-20 के पहले दो महीनों अक्टूबर-नवंबर में देश मे चीनी का उत्पादन पिछले साल के 41 लाख टन के मुकाबले 19 लाख टन रह गया है.


अगर कुछ महीने पहले की बात करें तो यह स्थिति चिंताजनक जरूर थी जिस को ध्यान में रखते हुए सरकार ने चीनी मिलों को चीनी की जगह एथेनॉल बनाने के लिए प्रोत्साहित किया था, लेकिन उसके बाद मौसम में अप्रत्याशित बदलाव के कारण देशभर में गन्ने की फसल को काफी नुकसान हुआ और गन्ना का उत्पादन करने वाले राज्य जैसे कि महाराष्ट्र और कर्नाटक में गन्ने के पैदावार में कमी आई.

इस तरह से बीते साल की तुलना में इस साल गन्ने का उत्पादन लगभग 21% घटकर 260 लाख टन होने का अनुमान है, जो कि घरेलू बाजार की खपत के लिए ही पर्याप्त होगा वर्ष 2019-20 के अगर पहले 2 महीनों की बात करें तो चीनी का उत्पादन पिछले साल के मुकाबले घटकर महज 19 लाख टन रह गया है.

किसान नेता चौधरी पुष्पेंद्र सिंह ने बताया कि 2019-20 में अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर चीनी का उत्पादन 1756 लाख टन और मांग 1876 लाख टन रहने की संभावना है. यानी उत्पादन मांग से 120 लाख टन कम रहेगा.

पढ़ें-स्पेशल रिपोर्ट: रासायनिक खेती से तौबा! घटती उर्वरक क्षमता से किसान परेशान

इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि इस वर्ष अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीनी की अच्छी मांग होगी जिसकी आपूर्ति हम कर सकते हैं.

चौधरी पुष्पेंद्र सिंह ने बताया कि पिछले 2 सालों से अत्यधिक चीनी उत्पादन और भरे हुए भंडारों का हवाला देकर एक तरफ चीनी मिल किसानों का भुगतान टालती रही है. दूसरी तरफ सरकार ने भी गन्ने के दाम नहीं बढ़ाए.

केंद्र सरकार ने जुलाई में वर्ष 2019-20 के लिए गन्ने का उचित एवं लाभकारी मूल्य (एफआरपी) 10% की आधार रिकवरी के लिए 275 प्रति क्विंटल घोषित किया था. ये वर्ष 2018-19 में भी केंद्र सरकार का इतना ही था, लेकिन आधार रिकवरी दर 9.5% थी.

किसानों का कहना है कि 2 सालों से गन्ने के रेट नहीं बढ़ाए गए हैं जबकि लागत काफी बढ़ गई है. गन्ने की उत्पादन लागत लगभग ₹300 प्रति क्विंटल आ रही है सरकार के लागत के डेढ़ गुना के वायदे को भूल भी जाएं तो भी बदली परिस्थिति में कम से कम ₹400 प्रति क्विंटल का भाव मिलना चाहिए था.

यदि पिछले 2 सालों में 10% की मामूली दर से वृद्धि भी की जाती तो इस दर से इस वर्ष ₹400 प्रति क्विंटल का भाव अपने आप हो जाता.

किसान नेताओं ने मांग की है कि हर साल होने वाली गन्ना भुगतान और किसानों को अच्छा मूल्य नाम मिलने की समस्या से निपटने के लिए हमें चीनी उद्योग के विषय में एक अलग नीति पर विचार करना होगा.

देश में चीनी का 75% उपयोग व्यवसायिक प्रतिष्ठानों द्वारा किया जाता है, जिसमें चॉकलेट पेय पदार्थ जूस मिठाई इत्यादि शामिल है. इन पदार्थों में 60% तक चीनी होती है जिससे अत्याधिक महंगे दामों पर उपभोक्ताओं को बेचा जाता है.

इस लिहाज से अगर देश भर में चीनी के व्यवसायिक उपयोग और घरेलू उपयोग के लिए अलग-अलग कीमतें तय कर दी जाएं, तो किसानों को इसका लाभ दिया जा सकता है. बहरहाल कई किसान संगठनों ने गन्ने की कीमत नहीं बढ़ाए जाने के खिलाफ आंदोलन छेड़ने की बात कही है, ऐसे में देखना होगा कि आने वाले समय में उत्तर प्रदेश में किसानों की रणनीति क्या रहती है.

नई दिल्ली : गन्ना किसानों को समय से ना होने वाले भुगतान की बात अक्सर खबरों में रहती है. खेती की ऊंची लागत के बावजूद समय से भुगतान ना होना और फिर सरकार द्वारा भी गन्ने की एसएपी (राज्य परामर्श मूल्य) न बढ़ना एक गंभीर समस्या है.

ईटीवी भारत ने इस पूरे मामले पर किसान शक्ति संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष और कृषि मामलों के विशेषज्ञ चौधरी पुष्पेंद्र सिंह से विशेष बातचीत की है. पुष्पेंद्र सिंह ने बताया कि साल 2017 में 10 रुपये की बढ़ोतरी कीमतों में की गई थी, लेकिन वर्ष 2018-19 और वर्ष 2019-20 के लिए गन्ने की कीमतों में किसी तरह की बढ़ोतरी नहीं की गई है, जबकि अगर सरकार चाहती तो कुछ नीतिगत बदलाव के साथ किसानों को लाभ पहुंचाया जा सकता था.

आंकड़ों के मुताबिक 2018-19 में देश में चीनी का ओपनिंग स्टॉक 104 लाख तथा जबकि उत्पादन 332 लाख तथा घरेलू खपत 255 लाख टन और कुल निर्यात 38 लाख टन रहा.

किसान नेता चौधरी पुष्पेंद्र सिंह की ईटावी भारत से बातचीत

अगर 2019-20 की बात करें तो चीनी का ओपनिंग स्टॉक 143 लाख टन है जिसका मतलब है कि लगभग 7 महीने की खपत के बराबर चीनी पहले ही गोदामों में रखी हुई है.

चीनी वर्ष 2019-20 के पहले दो महीनों अक्टूबर-नवंबर में देश मे चीनी का उत्पादन पिछले साल के 41 लाख टन के मुकाबले 19 लाख टन रह गया है.


अगर कुछ महीने पहले की बात करें तो यह स्थिति चिंताजनक जरूर थी जिस को ध्यान में रखते हुए सरकार ने चीनी मिलों को चीनी की जगह एथेनॉल बनाने के लिए प्रोत्साहित किया था, लेकिन उसके बाद मौसम में अप्रत्याशित बदलाव के कारण देशभर में गन्ने की फसल को काफी नुकसान हुआ और गन्ना का उत्पादन करने वाले राज्य जैसे कि महाराष्ट्र और कर्नाटक में गन्ने के पैदावार में कमी आई.

इस तरह से बीते साल की तुलना में इस साल गन्ने का उत्पादन लगभग 21% घटकर 260 लाख टन होने का अनुमान है, जो कि घरेलू बाजार की खपत के लिए ही पर्याप्त होगा वर्ष 2019-20 के अगर पहले 2 महीनों की बात करें तो चीनी का उत्पादन पिछले साल के मुकाबले घटकर महज 19 लाख टन रह गया है.

किसान नेता चौधरी पुष्पेंद्र सिंह ने बताया कि 2019-20 में अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर चीनी का उत्पादन 1756 लाख टन और मांग 1876 लाख टन रहने की संभावना है. यानी उत्पादन मांग से 120 लाख टन कम रहेगा.

पढ़ें-स्पेशल रिपोर्ट: रासायनिक खेती से तौबा! घटती उर्वरक क्षमता से किसान परेशान

इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि इस वर्ष अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीनी की अच्छी मांग होगी जिसकी आपूर्ति हम कर सकते हैं.

चौधरी पुष्पेंद्र सिंह ने बताया कि पिछले 2 सालों से अत्यधिक चीनी उत्पादन और भरे हुए भंडारों का हवाला देकर एक तरफ चीनी मिल किसानों का भुगतान टालती रही है. दूसरी तरफ सरकार ने भी गन्ने के दाम नहीं बढ़ाए.

केंद्र सरकार ने जुलाई में वर्ष 2019-20 के लिए गन्ने का उचित एवं लाभकारी मूल्य (एफआरपी) 10% की आधार रिकवरी के लिए 275 प्रति क्विंटल घोषित किया था. ये वर्ष 2018-19 में भी केंद्र सरकार का इतना ही था, लेकिन आधार रिकवरी दर 9.5% थी.

किसानों का कहना है कि 2 सालों से गन्ने के रेट नहीं बढ़ाए गए हैं जबकि लागत काफी बढ़ गई है. गन्ने की उत्पादन लागत लगभग ₹300 प्रति क्विंटल आ रही है सरकार के लागत के डेढ़ गुना के वायदे को भूल भी जाएं तो भी बदली परिस्थिति में कम से कम ₹400 प्रति क्विंटल का भाव मिलना चाहिए था.

यदि पिछले 2 सालों में 10% की मामूली दर से वृद्धि भी की जाती तो इस दर से इस वर्ष ₹400 प्रति क्विंटल का भाव अपने आप हो जाता.

किसान नेताओं ने मांग की है कि हर साल होने वाली गन्ना भुगतान और किसानों को अच्छा मूल्य नाम मिलने की समस्या से निपटने के लिए हमें चीनी उद्योग के विषय में एक अलग नीति पर विचार करना होगा.

देश में चीनी का 75% उपयोग व्यवसायिक प्रतिष्ठानों द्वारा किया जाता है, जिसमें चॉकलेट पेय पदार्थ जूस मिठाई इत्यादि शामिल है. इन पदार्थों में 60% तक चीनी होती है जिससे अत्याधिक महंगे दामों पर उपभोक्ताओं को बेचा जाता है.

इस लिहाज से अगर देश भर में चीनी के व्यवसायिक उपयोग और घरेलू उपयोग के लिए अलग-अलग कीमतें तय कर दी जाएं, तो किसानों को इसका लाभ दिया जा सकता है. बहरहाल कई किसान संगठनों ने गन्ने की कीमत नहीं बढ़ाए जाने के खिलाफ आंदोलन छेड़ने की बात कही है, ऐसे में देखना होगा कि आने वाले समय में उत्तर प्रदेश में किसानों की रणनीति क्या रहती है.

Intro:उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों में इन दिनो निराशा के साथ साथ आक्रोश का भी माहौल है। दरसल लगातार दूसरे वर्ष गन्ने की कीमत में बढ़ोतरी न होना इसका मुख्य कारण है और अब कई किसान संगठन राज्य में आंदोलन तक की तैयारी शुरु कर चुके हैं ।
ईटीवी भारत ने इस पूरे मामले पर किसान शक्ती संघ के राष्ट्रिय अध्यक्ष और कृषि मामलों के विशेषज्ञ चौधरी पुष्पेंद्र सिंह से विशेष बातचीत की है।
पुष्पेंद्र सिंह ने बताया कि साल 2017 में 10% की बढ़ोतरी कीमतों में की गई थी लेकिन वर्ष 2018-19 और वर्ष 2019-20 के लिए गन्ने की कीमतों में किसी तरह की बढ़ोतरी नहीं की गई है जबकि अगर सरकार चाहती तो कुछ नीतिगत बदलाव के साथ किसानों को लाभ पहुंचाया जा सकता था। आंकड़ों के मुताबिक दो हजार अट्ठारह उन्नीस में देश में चीनी का ओपनिंग स्टॉक 104 लाख तथा जबकि उत्पादन 332 लाख तथा घरेलू खपत 255 लाख टन और कुल निर्यात 3800000 टन रहा । अगर 2019 20 की बात करें तो चीनी का ओपनिंग स्टॉक 143 लाख टर्न है जिसका मतलब है कि लगभग 7 महीने की खपत के बराबर चीनी पहले ही गोदामों में रखी हुई है अगर कुछ महीने पहले की बात करें तो यह स्थिति चिंताजनक जरूर थी जिस को ध्यान में रखते हुए सरकार ने चीनी मिलों को चीनी की जगह एथेनॉल बनाने के लिए प्रोत्साहित किया था लेकिन उसके बाद मौसम में अप्रत्याशित बदलाव के कारण देशभर में गन्ने की फसल को काफी नुकसान हुआ और गन्ना का उत्पादन करने वाले राज्य जैसे कि महाराष्ट्र कर्नाटक उत्तर प्रदेश गुजरात इत्यादि में गन्ने के पैदावार में कमी आई इस तरह से बीते साल की तुलना में इस साल गन्ने का उत्पादन लगभग 21% घटकर 260 लाख टन होने का अनुमान है जो कि घरेलू बाजार की खपत के लिए ही पर्याप्त होगा वर्ष 2019-20 के अगर पहले 2 महीनों की बात करें तो चीनी का उत्पादन पिछले साल के मुकाबले घटकर महज 1900000 टन रह गया है बतौर किसान नेता चौधरी पुष्पेंद्र सिंह 2,000 1920 में चीनी का उत्पादन 1756 लाख और मांग 18 सो 7600000 टन रहने की संभावना है यानी कि उत्पादन मांग से लगभग 120 लाख कम होने का अनुमान है इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि इस वर्ष अंतर्राष्ट्रीय बाजार में चीनी की अच्छी मांग होगी जिसकी आपूर्ति हम कर सकते हैं चौधरी पुष्पेंद्र सिंह ने बताया कि पिछले 2 सालों से अत्यधिक चीनी उत्पादन और भरे हुए भंडारों का हवाला देकर एक तरफ चीनी मिल किसानों का भुगतान डालती रही है तो दूसरी तरफ सरकार ने भी गन्ने के दाम नहीं बढ़ाए केंद्र सरकार ने जुलाई में वर्ष 2019 20 के लिए गन्ने का एफआरपी 10% की आधार रिकवरी के लिए 275 प्रति क्विंटल घोषित किया था वर्ष 2018 19 में भी केंद्र सरकार का इतना ही था लेकिन आधार रिकवरी दर 9.5% थी।


Body:किसानों का कहना है कि 2 सालों से गन्ने के रेट नहीं बढ़ाए गए हैं जबकि लागत काफी बढ़ गई है गन्ने की उत्पादन लागत लगभग ₹300 प्रति क्विंटल आ रही है सरकार के लागत के डेढ़ गुना के वायदे को भूल भी जाएं तो भी बदली परिस्थिति में कम से कम ₹400 प्रति क्विंटल का भाव मिलना चाहिए था यदि पिछले 2 सालों में 10% की मामूली दर से वृद्धि भी की जाती तो इस दर से इस वर्ष ₹400 प्रति क्विंटल का भाव अपने आप हो जाता किसान नेता ने मांग की है कि हर साल होने वाली गन्ना भुगतान और किसानों को अच्छा मूल्य नाम मिलने की समस्या से निपटने के लिए हमें चीनी उद्योग के विषय में एक अलग नीति पर विचार करना होगा देश में चीनी का 75% उपयोग व्यवसायिक प्रतिष्ठानों द्वारा किया जाता है जिसमें चॉकलेट पेय पदार्थ जूस मिठाई इत्यादि शामिल है इन पदार्थों में 60% तक चीनी होती है जिससे अत्याधिक महंगे दामों पर उपभोक्ताओं को बेचा जाता है इस लिहाज से अगर देश भर में चीनी के व्यवसायिक उपयोग और घरेलू उपयोग के लिए अलग-अलग कीमतें तय कर दी जाए तो किसानों को इसका लाभ दिया जा सकता है बरहाल कई किसान संगठनों ने गन्ने की कीमत 9 बढ़ाए जाने के खिलाफ आंदोलन छेड़ने की बात कही है ऐसे में देखना होगा कि आने वाले समय में उत्तर प्रदेश में किसानों की रणनीति क्या रहती है ।


Conclusion:
Last Updated : Dec 11, 2019, 11:51 PM IST
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