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निखिल के जज्बे को सलाम : सेरेब्रल पाल्सी से पीड़ित होने के बाद बने सिविल जज

किसी इंसान में यदि दृढ़ इच्छाशक्ति और कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो उसके सामने कठिन से कठिन लक्ष्य भी आसान हो जाता है. ऐसा ही कुछ कर दिखाया है पुणे के निखिल प्रसाद बाजी ने, जो जन्म से सेरेब्रल पाल्सी (मस्तिष्क पक्षाघात) के मरीज हैं. लेकिन उन्होंने सिविल जज और प्रथम श्रेणी के ज्युडिशियल मजिस्ट्रेट परीक्षा में सफलता प्राप्त की है. पढे़ं पूरा विवरण.....

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फैमिली के साथ निखिल प्रसाद बाजी
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Published : Dec 31, 2019, 9:11 PM IST

पुणे : सेरेब्रल पाल्सी ( मस्तिष्क पक्षाघात) से पीड़ित पुणे के निखिल प्रसाद बाजी ने तमाम बाधाओं का सामना करते हुए सिविल जज और प्रथम श्रेणी के ज्युडिशियल मजिस्ट्रेट परीक्षा में सफलता प्राप्त कर एक मिसाल कायम की है.

आपको बता दें कि 31 वर्षीय निखिल फरवरी में जूनियर डिवीजन के सिविल जज के रूप में कार्यभार संभालेंगे.

निखिल ने एक समाचार एजेंसी से बातचीत में कहा, 'मैं जिस तरह से हूं, मैंने सदैव उसी तरीके से अपने आप को स्वीकारा है.'

उन्होंने कहा, 'बचपन में जब बच्चे क्रिकेट खेलते थे तो मेरा भी मन करता था कि मैं भी खेलूं, लेकिन दिव्यांग होने के वजह से मैं नहीं खेल पाता था. इसलिए मैंने अंपायर बनने का फैसला किया और तय किया कि अगर मैं क्रिकेट नहीं खेल सकता तो एक अच्छा अंपायर बन सकता हूं.'

पढ़ें : ईटीवी भारत की खबर का असर- आंध्र प्रदेश की अरुणा को मिली मदद

निखिल ने कहा, 'मुझे शुरू से ही राजनीति विज्ञान पसंद था, इसलिए, मुझे शुरू से ही इस बात का ध्यान था कि मुझे लॉ करना चाहिए और इसके लिए मैंने कोर्ट में अभ्यास किया.'

वहीं प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी स्टीफन हॉकिंग का. जो खुद सेरेब्रल पाल्सी के रोगी भी थे, उदाहरण देते हुए निखिल ने कहा कि जीवन में किसी को भी यह महसूस नहीं करना चाहिए कि उसके पास कुछ न कुछ कमी है.

पुणे : सेरेब्रल पाल्सी ( मस्तिष्क पक्षाघात) से पीड़ित पुणे के निखिल प्रसाद बाजी ने तमाम बाधाओं का सामना करते हुए सिविल जज और प्रथम श्रेणी के ज्युडिशियल मजिस्ट्रेट परीक्षा में सफलता प्राप्त कर एक मिसाल कायम की है.

आपको बता दें कि 31 वर्षीय निखिल फरवरी में जूनियर डिवीजन के सिविल जज के रूप में कार्यभार संभालेंगे.

निखिल ने एक समाचार एजेंसी से बातचीत में कहा, 'मैं जिस तरह से हूं, मैंने सदैव उसी तरीके से अपने आप को स्वीकारा है.'

उन्होंने कहा, 'बचपन में जब बच्चे क्रिकेट खेलते थे तो मेरा भी मन करता था कि मैं भी खेलूं, लेकिन दिव्यांग होने के वजह से मैं नहीं खेल पाता था. इसलिए मैंने अंपायर बनने का फैसला किया और तय किया कि अगर मैं क्रिकेट नहीं खेल सकता तो एक अच्छा अंपायर बन सकता हूं.'

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निखिल ने कहा, 'मुझे शुरू से ही राजनीति विज्ञान पसंद था, इसलिए, मुझे शुरू से ही इस बात का ध्यान था कि मुझे लॉ करना चाहिए और इसके लिए मैंने कोर्ट में अभ्यास किया.'

वहीं प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी स्टीफन हॉकिंग का. जो खुद सेरेब्रल पाल्सी के रोगी भी थे, उदाहरण देते हुए निखिल ने कहा कि जीवन में किसी को भी यह महसूस नहीं करना चाहिए कि उसके पास कुछ न कुछ कमी है.

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