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विशेष : कोरोना महामारी बढ़ाएगी पानी की समस्या - अटल मिशन फॉर कायाकल्प

सरकार ने कोरोना महामारी से बचाव के लिए कुछ दिशा निर्देश जारी किए हैं. ये दिशा निर्देश लोगों को कोरोना वायरस से तो सुरक्षित कर देंगे, लेकिन भविष्य में देशवासियों के सामने नई चुनौतियां पेश करेंगे. उन्हीं चुनौतियों में से एक चुनौती है पानी का संकट, जिसका सामना न केवल भारत बल्कि कई अन्य देश भी कर रहे हैं.

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Published : Apr 26, 2020, 3:34 PM IST

Updated : Apr 26, 2020, 6:01 PM IST

हैदराबाद : कोरोना वायरस महामारी से देशभर में हाहाकार मचा हुआ है. इस बीमारी ने अब तक भारत में 26 हजार से अधिक लोगों को प्रभावित किया है और 800 से ज्यादा लोगों की जान ले ली है. हालांकि सरकार ने इस बीमारी से बचाव के लिए कुछ दिशा निर्देश जारी किए हैं. ये दिशा निर्देश लोगों को कोरोना वायरस से तो सुरक्षित कर देंगे, लेकिन भविष्य में देशवासियों के सामने नई चुनौतियां पेश करेंगे. उन्हीं चुनौतियों में से एक चुनौती है पानी का संकट, जिसका सामना न केवल भारत बल्कि कई अन्य देश भी कर रहे हैं.

भारत में नगरपालिका और पंचायत प्रशासकों के लिए, पानी के संकट से निबटने के लिए एक कठिन लड़ाई है.

भारत में आम तौर पर अप्रैल और मई के महीने ऐसे होते हैं, जब शहरों से लेकर ग्रामीण इलाकों तक देश का एक बड़ा हिस्सा पानी के संकट का सामना करता है.

पूरा प्रशासन जब कोरोना वायरस से निबटने पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहा है, तो ऐसे समय में देश के एक बड़े हिस्से की स्थिति बेहद खराब हो सकती है.

भारत में गर्मियों में सभी सार्वजनिक प्राधिकरणों के लिए पानी उपलब्ध कराना हमेशा एक गंभीर चुनौती रही है, विशेष रूप से इस वर्ष चुनौती अधिक है. चूंकि कोरोना के कारण हर अवसर पर हाथ धोना एक आवश्यकता बन गई है, लिहाजा पीने योग्य पानी की लाइनें चालू रखना सबसे आवश्यक हो गया है.

आम तौर पर इस अवधि के दौरान स्थानीय निकायों को पानी के नलके सूखने, पानी के पाइपों के रिसने, जल निकासी को दूषित करने वाले सीवेज और नालियों के अवरुद्ध होने की शिकायतें मिलती हैं.

ये सभी तनाव इस वर्ष भी विकसित होंगे, लेकिन संबंधित विभाग उन पर ध्यान केंद्रित करने में असमर्थ हैं. ऐसे में यह बड़ी चुनौती बनकर उभर सकती है.

कोविड-19 का प्रमुख योजनाओं पर प्रभाव
कोरोना वायरस जल संक्षरित कई अहम योजनाओं को प्रभावित कर सकती है.

अटल मिशन फॉर कायाकल्प और शहरी परिवर्तन योजना
अटल मिशन फॉर कायाकल्प और शहरी परिवर्तन (अमृत) के तहत शहरों में 92 प्रतिशत जलापूर्ति और सीवरेज परियोजनाओं के लिए 77,640 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जो लॉकडाउन के दौरान पूरी तरह से ठप पड़ी हैं.

जल शक्ति योजना
इस योजना के तहत 2020-21 के लिए 17 लाख नए घरेलू पानी के कनेक्शन प्रदान किए जाने हैं. इस वर्ष ये सभी लक्ष्य गंभीर तनाव में हैं. इस लक्ष्य को पूरा न होने से बीमारी फैलने का जोखिम बढ़ जाएगा.

नगर पालिकाओं और पंचायतों के लिए धन की कमी
शहरी स्तर पर धन की कमी अधिक स्थानिक है और इस साल शहर के लोगों को काफी परेशानी होगी. वर्षों से राज्यों ने अपनी नगर पालिकाओं और पंचायतों को वित्तपोषित रखा है. लेकिन लॉकडाउन के कारण ये वित्तीय समस्या का सामना कर सकती हैं.

कुछ अन्य रिपोर्ट की मुख्य बातें
दिसंबर 2015 में संसद को अपनी रिपोर्ट सौंपने वाली जल संसाधन संबंधी स्थायी समिति ने पाया कि देश के 92 प्रतिशत जिलों में 1995 में भूजल विकास का सुरक्षित स्तर था, वहीं 2011 में यह घटकर 71 प्रतिशत रह गया.

नीति थिंक-टैंक NITI Aayog ने एक रिपोर्ट में कहा है कि 60 करोड़ भारतीय पहले से ही उच्च से अत्यधिक पानी के तनाव का सामना कर रहे हैं, जिससे दिल्ली, बेंगलुरु, चेन्नई और हैदराबाद सहित 21 शहरों से भूजल खत्म हो जाएगा, जिससे लगभग 10 करोड़ लोग प्रभावित होंगे.

पेयजल और स्वच्छता विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि मार्च 2019 तक देश में केवल 18.33 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों के पास ही पानी के कनेक्शन हैं.

विश्व बैंक का मुताबिक भारत में 21 प्रतिशत रोग जल और स्वच्छता कीकमी से जुड़े हुए हैं.

कोविड19 के दौरान जल संकट के प्रमुख मुद्दे
एक अनुमान से पता चलता है कि कोरोना के दौरान हर 20 सेकेंड के लिए प्रति व्यक्ति को हाथ धोने के लिए एक से दो लीटर स्वच्छ पानी की आवश्यकता होगी. इस दर के हिसाब से एक दिन में कई बार हाथ धोने के लिए, पांच व्यक्तियों के घर को कम से कम 50-70 लीटर अतिरिक्त पानी की आवश्यकता पड़ेगी.

विश्व बैंक की एक रिपोर्ट कहती है कि भारत के आधे से अधिक जिलों को भूजल की कमी या प्रदूषण से खतरा है.

इस साल गर्मी से पहले ही, भारत का लगभग 33 प्रतिशत हिस्सा पहले से ही सूखे या सूखे जैसी स्थितियों का सामना कर रहा है.

पानी संकट का सामना करने वाले क्षेत्र, ज्यादातर ग्रामीण भारत में, सरकारी पानी के टैंकरों पर निर्भर करते हैं, जो प्रतिदिन प्रति व्यक्ति के लिए अधिकतम 20 से 25 लीटर पानी पहुंचाते हैं. इतना पानी कोविड-19 से बचने के वास्ते हाथ धोने के लिए तो पर्याप्त है, लेकिन ग्रामीण इस पानी का कुछ और इस्तेमाल न करें तो.

2011 की जनगणना के आंकड़ों से पता चलता है कि भारत सरकार ने 100 प्रतिशत जल कवरेज के सेवा बेंचमार्क के विपरीत, केवल 70 प्रतिशत घरों में नल का पानी पहुंचाया है, जिसमें से 62 प्रतिशत घरों में उपचारित नल का पानी पहुंचा है.

पढ़ें- विशेष लेख : प्रदूषण– धरती पर जीवन के लिए खतरा !

मलिन बस्तियों में यह आंकड़ा 74 प्रतिशत है क्योंकि झुग्गीवासी व्यक्तिगत कनेक्शन के माध्यम से नहीं बल्कि सामुदायिक नलों से पानी लेते हैं. अधिकतर शहरी मलिन बस्तियां पानी की आपूर्ति के लिए टैंकरों पर निर्भर हैं और ऐसे घरों के लिए, अल्कोहल-आधारित सेनिटाइजर अप्रभावी और अपर्याप्त हैं.

इन बस्तियों के लगभग दो-तिहाई परिवारों को अपने घरों के भीतर पानी की सुविधा नहीं है और आठ प्रतिशत परिवारों को लॉकडाउन के दौरान अपने घरों से 100 मीटर से अधिक दूर से पानी लाना पड़ता है.

इन इलाकों में पानी भरने, भंडारण और प्रबंधन का भार आमतौर पर ज्यादातर परिवारों में महिलाओं और लड़कियों पर पड़ता है. ऐसे में इन महिलाओं के लिए अपने घरों के लिए हाथ धोने की सलाह को प्रभावी बनाना मुश्किल है.

भारतीय शहरों में पानी की आपूर्ति की अवधि औसतन केवल 2 से 3 घंटे है. प्रतिदिन 135 लीटर प्रति व्यक्ति (lpcd) सेवा बेंचमार्क की तुलना में, शहरों को औसतन केवल 69 lpcd है.

लगभग दो करोड़ की वयस्क आबादी वाली दिल्ली के लिए, कोरोना पर काबू पाने के लिए आवश्यक स्वच्छ पानी की अतिरिक्त मात्रा लगभग 35-40 मिलियन लीटर प्रतिदिन (mld) होगी.

चेन्नई जैसे पुराने जल-तनावग्रस्त शहर के लिए आवश्यक पानी की अतिरिक्त मात्रा 20 mld (एक करोड़ की आबादी मानकर) है.

जब आप घरों और सार्वजनिक स्थानों की सफाई के लिए आवश्यक पानी को इकठ्ठा करते हैं, तो आवश्यक पानी की अतिरिक्त मात्रा बहुत अधिक होती है, अर्थात अकेले हाथ धोने के लिए अनुमान से अधिक.

अधिकतर जल निकाय प्रदूषित हैं और हाथ धोने के लिए अयोग्य हैं. इस कारण कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई में प्रदूषित स्रोतों से आने वाला ऐसा पानी बेकार है.

भारत के भीतर राजस्थान, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, गुजरात आदि के कुछ हिस्से शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्र हैं. इन क्षेत्रों में आमतौर पर कम भूजल तालिका, अत्यधिक तापमान, 100 मिमी और 800 मिमी के बीच वार्षिक वर्षा की विशेषता होती है, लगातार पानी की कमी का सामना करती है.

पानी के संकट के तहत कम से कम 45 फीसदी भारतीय न केवल कोविड-19 ट्रांसमिशन बल्कि अन्य संचारी रोगों से भी खतरे के विभिन्न स्तरों पर हैं.

भारत में प्रति व्यक्ति पर्याप्त, सुलभ और अच्छी गुणवत्ता वाले पानी या मालड्रोइट जल प्रबंधन की कमी संक्रामक रोगों के खतरे को कई गुना बढ़ा देती है.

वर्षों से पानी के बुनियादी ढांचे की उपेक्षा, पुरानी अंडरफडिंग और अच्छे जल प्रशासन की कमी ने राष्ट्र और उसके नागरिकों को कोविड -19 के प्रसार के खतरे में डाल दिया है.

हैदराबाद : कोरोना वायरस महामारी से देशभर में हाहाकार मचा हुआ है. इस बीमारी ने अब तक भारत में 26 हजार से अधिक लोगों को प्रभावित किया है और 800 से ज्यादा लोगों की जान ले ली है. हालांकि सरकार ने इस बीमारी से बचाव के लिए कुछ दिशा निर्देश जारी किए हैं. ये दिशा निर्देश लोगों को कोरोना वायरस से तो सुरक्षित कर देंगे, लेकिन भविष्य में देशवासियों के सामने नई चुनौतियां पेश करेंगे. उन्हीं चुनौतियों में से एक चुनौती है पानी का संकट, जिसका सामना न केवल भारत बल्कि कई अन्य देश भी कर रहे हैं.

भारत में नगरपालिका और पंचायत प्रशासकों के लिए, पानी के संकट से निबटने के लिए एक कठिन लड़ाई है.

भारत में आम तौर पर अप्रैल और मई के महीने ऐसे होते हैं, जब शहरों से लेकर ग्रामीण इलाकों तक देश का एक बड़ा हिस्सा पानी के संकट का सामना करता है.

पूरा प्रशासन जब कोरोना वायरस से निबटने पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहा है, तो ऐसे समय में देश के एक बड़े हिस्से की स्थिति बेहद खराब हो सकती है.

भारत में गर्मियों में सभी सार्वजनिक प्राधिकरणों के लिए पानी उपलब्ध कराना हमेशा एक गंभीर चुनौती रही है, विशेष रूप से इस वर्ष चुनौती अधिक है. चूंकि कोरोना के कारण हर अवसर पर हाथ धोना एक आवश्यकता बन गई है, लिहाजा पीने योग्य पानी की लाइनें चालू रखना सबसे आवश्यक हो गया है.

आम तौर पर इस अवधि के दौरान स्थानीय निकायों को पानी के नलके सूखने, पानी के पाइपों के रिसने, जल निकासी को दूषित करने वाले सीवेज और नालियों के अवरुद्ध होने की शिकायतें मिलती हैं.

ये सभी तनाव इस वर्ष भी विकसित होंगे, लेकिन संबंधित विभाग उन पर ध्यान केंद्रित करने में असमर्थ हैं. ऐसे में यह बड़ी चुनौती बनकर उभर सकती है.

कोविड-19 का प्रमुख योजनाओं पर प्रभाव
कोरोना वायरस जल संक्षरित कई अहम योजनाओं को प्रभावित कर सकती है.

अटल मिशन फॉर कायाकल्प और शहरी परिवर्तन योजना
अटल मिशन फॉर कायाकल्प और शहरी परिवर्तन (अमृत) के तहत शहरों में 92 प्रतिशत जलापूर्ति और सीवरेज परियोजनाओं के लिए 77,640 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जो लॉकडाउन के दौरान पूरी तरह से ठप पड़ी हैं.

जल शक्ति योजना
इस योजना के तहत 2020-21 के लिए 17 लाख नए घरेलू पानी के कनेक्शन प्रदान किए जाने हैं. इस वर्ष ये सभी लक्ष्य गंभीर तनाव में हैं. इस लक्ष्य को पूरा न होने से बीमारी फैलने का जोखिम बढ़ जाएगा.

नगर पालिकाओं और पंचायतों के लिए धन की कमी
शहरी स्तर पर धन की कमी अधिक स्थानिक है और इस साल शहर के लोगों को काफी परेशानी होगी. वर्षों से राज्यों ने अपनी नगर पालिकाओं और पंचायतों को वित्तपोषित रखा है. लेकिन लॉकडाउन के कारण ये वित्तीय समस्या का सामना कर सकती हैं.

कुछ अन्य रिपोर्ट की मुख्य बातें
दिसंबर 2015 में संसद को अपनी रिपोर्ट सौंपने वाली जल संसाधन संबंधी स्थायी समिति ने पाया कि देश के 92 प्रतिशत जिलों में 1995 में भूजल विकास का सुरक्षित स्तर था, वहीं 2011 में यह घटकर 71 प्रतिशत रह गया.

नीति थिंक-टैंक NITI Aayog ने एक रिपोर्ट में कहा है कि 60 करोड़ भारतीय पहले से ही उच्च से अत्यधिक पानी के तनाव का सामना कर रहे हैं, जिससे दिल्ली, बेंगलुरु, चेन्नई और हैदराबाद सहित 21 शहरों से भूजल खत्म हो जाएगा, जिससे लगभग 10 करोड़ लोग प्रभावित होंगे.

पेयजल और स्वच्छता विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि मार्च 2019 तक देश में केवल 18.33 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों के पास ही पानी के कनेक्शन हैं.

विश्व बैंक का मुताबिक भारत में 21 प्रतिशत रोग जल और स्वच्छता कीकमी से जुड़े हुए हैं.

कोविड19 के दौरान जल संकट के प्रमुख मुद्दे
एक अनुमान से पता चलता है कि कोरोना के दौरान हर 20 सेकेंड के लिए प्रति व्यक्ति को हाथ धोने के लिए एक से दो लीटर स्वच्छ पानी की आवश्यकता होगी. इस दर के हिसाब से एक दिन में कई बार हाथ धोने के लिए, पांच व्यक्तियों के घर को कम से कम 50-70 लीटर अतिरिक्त पानी की आवश्यकता पड़ेगी.

विश्व बैंक की एक रिपोर्ट कहती है कि भारत के आधे से अधिक जिलों को भूजल की कमी या प्रदूषण से खतरा है.

इस साल गर्मी से पहले ही, भारत का लगभग 33 प्रतिशत हिस्सा पहले से ही सूखे या सूखे जैसी स्थितियों का सामना कर रहा है.

पानी संकट का सामना करने वाले क्षेत्र, ज्यादातर ग्रामीण भारत में, सरकारी पानी के टैंकरों पर निर्भर करते हैं, जो प्रतिदिन प्रति व्यक्ति के लिए अधिकतम 20 से 25 लीटर पानी पहुंचाते हैं. इतना पानी कोविड-19 से बचने के वास्ते हाथ धोने के लिए तो पर्याप्त है, लेकिन ग्रामीण इस पानी का कुछ और इस्तेमाल न करें तो.

2011 की जनगणना के आंकड़ों से पता चलता है कि भारत सरकार ने 100 प्रतिशत जल कवरेज के सेवा बेंचमार्क के विपरीत, केवल 70 प्रतिशत घरों में नल का पानी पहुंचाया है, जिसमें से 62 प्रतिशत घरों में उपचारित नल का पानी पहुंचा है.

पढ़ें- विशेष लेख : प्रदूषण– धरती पर जीवन के लिए खतरा !

मलिन बस्तियों में यह आंकड़ा 74 प्रतिशत है क्योंकि झुग्गीवासी व्यक्तिगत कनेक्शन के माध्यम से नहीं बल्कि सामुदायिक नलों से पानी लेते हैं. अधिकतर शहरी मलिन बस्तियां पानी की आपूर्ति के लिए टैंकरों पर निर्भर हैं और ऐसे घरों के लिए, अल्कोहल-आधारित सेनिटाइजर अप्रभावी और अपर्याप्त हैं.

इन बस्तियों के लगभग दो-तिहाई परिवारों को अपने घरों के भीतर पानी की सुविधा नहीं है और आठ प्रतिशत परिवारों को लॉकडाउन के दौरान अपने घरों से 100 मीटर से अधिक दूर से पानी लाना पड़ता है.

इन इलाकों में पानी भरने, भंडारण और प्रबंधन का भार आमतौर पर ज्यादातर परिवारों में महिलाओं और लड़कियों पर पड़ता है. ऐसे में इन महिलाओं के लिए अपने घरों के लिए हाथ धोने की सलाह को प्रभावी बनाना मुश्किल है.

भारतीय शहरों में पानी की आपूर्ति की अवधि औसतन केवल 2 से 3 घंटे है. प्रतिदिन 135 लीटर प्रति व्यक्ति (lpcd) सेवा बेंचमार्क की तुलना में, शहरों को औसतन केवल 69 lpcd है.

लगभग दो करोड़ की वयस्क आबादी वाली दिल्ली के लिए, कोरोना पर काबू पाने के लिए आवश्यक स्वच्छ पानी की अतिरिक्त मात्रा लगभग 35-40 मिलियन लीटर प्रतिदिन (mld) होगी.

चेन्नई जैसे पुराने जल-तनावग्रस्त शहर के लिए आवश्यक पानी की अतिरिक्त मात्रा 20 mld (एक करोड़ की आबादी मानकर) है.

जब आप घरों और सार्वजनिक स्थानों की सफाई के लिए आवश्यक पानी को इकठ्ठा करते हैं, तो आवश्यक पानी की अतिरिक्त मात्रा बहुत अधिक होती है, अर्थात अकेले हाथ धोने के लिए अनुमान से अधिक.

अधिकतर जल निकाय प्रदूषित हैं और हाथ धोने के लिए अयोग्य हैं. इस कारण कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई में प्रदूषित स्रोतों से आने वाला ऐसा पानी बेकार है.

भारत के भीतर राजस्थान, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, गुजरात आदि के कुछ हिस्से शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्र हैं. इन क्षेत्रों में आमतौर पर कम भूजल तालिका, अत्यधिक तापमान, 100 मिमी और 800 मिमी के बीच वार्षिक वर्षा की विशेषता होती है, लगातार पानी की कमी का सामना करती है.

पानी के संकट के तहत कम से कम 45 फीसदी भारतीय न केवल कोविड-19 ट्रांसमिशन बल्कि अन्य संचारी रोगों से भी खतरे के विभिन्न स्तरों पर हैं.

भारत में प्रति व्यक्ति पर्याप्त, सुलभ और अच्छी गुणवत्ता वाले पानी या मालड्रोइट जल प्रबंधन की कमी संक्रामक रोगों के खतरे को कई गुना बढ़ा देती है.

वर्षों से पानी के बुनियादी ढांचे की उपेक्षा, पुरानी अंडरफडिंग और अच्छे जल प्रशासन की कमी ने राष्ट्र और उसके नागरिकों को कोविड -19 के प्रसार के खतरे में डाल दिया है.

Last Updated : Apr 26, 2020, 6:01 PM IST
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