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विशेष लेख : 2024 ओलंपिक जीतने के लिए भारत की रणनीति - मॉन्ट्रीयल वर्ल्ड स्पोर्ट्स मीट

भारत को 2024 ओलंपिक खेलों में कम से कम 50 पदक हासिल करने का लक्ष्य रखना चाहिए और इसके लिए अपने खेल की रणनीति में लक्ष्य निर्धारित करने चाहिए. इसके लिए सरकार और संघ को खिलाड़ियों के प्रशिक्षण पर ध्यान देना चाहिए न कि खेलों के आयोजन कराने पर.

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Published : Jan 13, 2020, 10:21 PM IST

2016 में नीति आयोग ने यह कह कर आम लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया था कि भारत को 2024 ओलंपिक खेलों में कम से कम 50 पदक हासिल करने का लक्ष्य रखना चाहिए और इसके लिए अपने खेल की रणनीति में लक्ष्य निर्धारित करने चाहिए.

ऊपर बताए गए लक्ष्य को साधने की जिम्मेदारी भारतीय ओलंपिक संघ (आईओसी) ने ली है, और संघ ने अगले एक दशक के लिए भारतीय खेल क्षेत्र के लिए जो लक्ष्य रखे हैं वह सच्चाई से दूर लगते हैं.

छह महीन पहले आईओसी के अध्यक्ष नरेंद्र बत्रा ने बताया कि संघ, 2021 के अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक कमेटी के सत्र के साथ 2026 के यूथ ओलंपिक खेल और 2030 के एशियन गेम्स की मेजबानी की कोशिशें कर रहा है.

बत्रा ने कहा कि यह लिस्ट और बड़ रही है. आईओसी रणनीति बनाकर 2026 या 2030 के राष्ट्रमंडल खेलों और 2032 के ओलंपिक खेलों की मेजबानी के लिए अपनी दावेदारी की तैयारियां भी कर रहा है. संघ का मानना है कि अगर राष्ट्रमंडल खेलों की मेजबानी भारत को मिल जाएगी तो ओलंपिक खेलों की मेजबानी का रास्ता साफ हो जाएगा.

इस साल के ओलंपिक और पैरा ओलंपिक खेलों की मेजबानी के लिए जापान ने खर्च का जो अनुमान लगाया था वह बढ़कर 1,85,000 करोड़ रुपये तक जा पहुंचा है. इसे देखते हुए यह अनुमान और उम्मीद करना गलत होगा कि 2030 ओलंपिक की मेजबानी मिलने की सूरत में यह खर्च कितना बढ़ जाएगा.

2032 की मेजबानी के लिए ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, दक्षिण कोरिया और जर्मनी के मेजबानी के दावेदारी की खबरों के बीच यह दिलचस्प है कि भारत करीब16 खेलों के लिए ज़्यादा दिलचस्पी दिखा रहा है, इनमें से कुछ तो अभी आखिरी सूचि में भी नहीं आए हैं. ऐसे में यह आश्चर्यजनक है कि आईओसी बिना किसी जमीनी होमवर्क के ओलंपिक की मेजबानी के लिए दावा ठोंक रही है.

सियोल, बार्सिलोना और लंदन जैसे शहरों में ओलंपिक की मेजबानी ने इन जगहों के मूलभूत ढांचे, पर्यटन, और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा को बढ़ाने में मदद की है. ओलंपिक खेलों के मैनेजमेंट भी एक कमी है. जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है.

1976 में कनाडा के बजट में आया घाटा जो दशकों तक देश को परेशान करता रहा, कनाडा की मॉन्ट्रीयल वर्ल्ड स्पोर्ट्स मीट की मेजबानी करने के बाद आया था. ग्रीस में हुए 2004 के ओलंपिक खेलों में रहने और अन्य सुविधाओं पर हुए बड़े खर्च के चलते देश आज तक आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है.

फीफा विश्व कप के लिए खासतौर पर दक्षिण अफ़्रीका और ब्राजील में बने स्टेडियम इस इवेंट के बंद होने के बाद से ही खाली पड़े हैं. भारत में भी दल साल पहले, राष्ट्रमंडल खेलों की मेजबानी के लिए कई इमारतों का निर्माण किया गया था. राष्ट्रमंडल खेलों के शुरुआत और खत्म होने के समारोह के लिए, जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम को करीब 960 करोड़ की लागत से रेनोवेट किया गया था.

इसके बाद से ही स्टेडियम को किसी बड़े खेल के आयोजन के उपयोग में नहीं लाया गया है. इससे साफ है कि 960 करोड़ की रकम बर्बाद गई है. इन खेलों के दौरान कई और संसाधनों के निर्माण पर कई सौ करोड़ रुपये खर्च किए गए थे, जो अब इस्तेमाल में नहीं आने के कारण और अपने रख रखाव के खर्च के चलते सफेद हाथी बनकर रह गए हैं,और देशों में भी ऐसे अनुभव देखने को मिले हैं. उस समय दिल्ली के राष्ट्रमंडल खेलों में हुए करोड़ों के भ्रष्टाचार ने कई सालों तक दिल्ली के आम लोगों और राजनीति को प्रभावित किया.

केंद्र सरकार और आईओएस द्वारा इस तरह की गलतियों को रोकने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं इसके बारे में जानकारी नहीं है. हालांकि अपनी कार्यप्रणाली में इस तरह की खामियों के बावजूद आईओसी कई तरह के खेल महाकुंभ आदि की मेजबानी के लिए दावेदारी कर रहा है.

चार साल पहले हुए रियो ओलंपिक खेलों में भारतीय उप महाद्वीप को कुल चार पदक ही मिल सके थे, मतलब 65 करोड़ की आबादी पर एक पदक!! भारत दक्षिण एशियन खेलों में, निशानेबाजी, मुक्केबाज़ी, जूडो आदी में सबसे ज़्यादा पदक जीतने का दम भरता है, लेकिन ओलंपिक और विश्व एथेलटिक मुकाबलों में उसका प्रदर्शन न के बराबर ही रहा है.

हालांकि भारत बहुत कम खेलों में पदक के लिए कोई चुनौती दे पाता है, लेकिन तत्कालीन खेल मंत्री अजय माकन ने यह दावा कर दिया था कि भारत 2020 ओलंपिक खेलों में कम से कम 25 पदक हासिल करेगा. मौजूदा खेल मंत्री किरेंन रिजूजू भी दावे करने में पीछे नहीं हैं, और उन्होंने कहा है कि 2024 और 2028 ओलंपिक खेलों में भारत स्वर्ण पदक जीतने वाले टॉप टेन देशों में शामिल होगा.

अगर इस सपने को सच करना है तो सरकार और संघ को खिलाड़ियों के प्रशिक्षण पर ध्यान देना चाहिए न कि खेलों के आयोजन कराने पर. जानकार कई साल से इस बात पर जोर दे रहे हैं कि हमारे देश में अच्छे खिलाड़ी न होने का सबसे बड़ा कारण स्कूल के स्तर पर शुरू हो जाता है.

पढ़ें- विशेष लेख : मोदी की विदेश नीति में पाम ऑयल है नया हथियार?

चीन जो पहले ही अपने यहां 80 लाख के करीब व्यायाम केंद्र और तीन हजार से ज्यादा खेल सेंटर बना चुका है अब चार साल के बच्चों के बीच टैलेंट की पहचान करने के लिए देशव्यापी अभियान चला रहा है. अमरीका में, एनसीएए (नेशनल कॉलिजियेट एथलेटिक्स एसोसियेशन) के जरिये कॉलेज के स्तर पर छात्रों को प्रशिक्षित करने का काम किया जा रहा है.

वहीं, भारत में स्कूलों में खेलों के टीचरों और ट्रेनर्रों के अनेक पद खाली पड़े हैं. शिक्षा के अधिकार के नियमों की स्कूल खुले तौर पर अनदेखी कर रहे हैं. स्कूल न तो छात्रों के लिए खेलने की व्यवस्थाऐं देते हैं और न ही समय. भारत का खेल और खिलाड़ियों के लिहाज से स्वर्णिम इतिहास रहा है, लेकिन जब तक हम देश में मौजूद प्रतिभा को पूरी तरह नहीं निखार लेते हैं हमें किसी भी बड़े खेल आयोजन का हिस्सा नहीं बनना चाहिए.

2016 में नीति आयोग ने यह कह कर आम लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया था कि भारत को 2024 ओलंपिक खेलों में कम से कम 50 पदक हासिल करने का लक्ष्य रखना चाहिए और इसके लिए अपने खेल की रणनीति में लक्ष्य निर्धारित करने चाहिए.

ऊपर बताए गए लक्ष्य को साधने की जिम्मेदारी भारतीय ओलंपिक संघ (आईओसी) ने ली है, और संघ ने अगले एक दशक के लिए भारतीय खेल क्षेत्र के लिए जो लक्ष्य रखे हैं वह सच्चाई से दूर लगते हैं.

छह महीन पहले आईओसी के अध्यक्ष नरेंद्र बत्रा ने बताया कि संघ, 2021 के अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक कमेटी के सत्र के साथ 2026 के यूथ ओलंपिक खेल और 2030 के एशियन गेम्स की मेजबानी की कोशिशें कर रहा है.

बत्रा ने कहा कि यह लिस्ट और बड़ रही है. आईओसी रणनीति बनाकर 2026 या 2030 के राष्ट्रमंडल खेलों और 2032 के ओलंपिक खेलों की मेजबानी के लिए अपनी दावेदारी की तैयारियां भी कर रहा है. संघ का मानना है कि अगर राष्ट्रमंडल खेलों की मेजबानी भारत को मिल जाएगी तो ओलंपिक खेलों की मेजबानी का रास्ता साफ हो जाएगा.

इस साल के ओलंपिक और पैरा ओलंपिक खेलों की मेजबानी के लिए जापान ने खर्च का जो अनुमान लगाया था वह बढ़कर 1,85,000 करोड़ रुपये तक जा पहुंचा है. इसे देखते हुए यह अनुमान और उम्मीद करना गलत होगा कि 2030 ओलंपिक की मेजबानी मिलने की सूरत में यह खर्च कितना बढ़ जाएगा.

2032 की मेजबानी के लिए ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, दक्षिण कोरिया और जर्मनी के मेजबानी के दावेदारी की खबरों के बीच यह दिलचस्प है कि भारत करीब16 खेलों के लिए ज़्यादा दिलचस्पी दिखा रहा है, इनमें से कुछ तो अभी आखिरी सूचि में भी नहीं आए हैं. ऐसे में यह आश्चर्यजनक है कि आईओसी बिना किसी जमीनी होमवर्क के ओलंपिक की मेजबानी के लिए दावा ठोंक रही है.

सियोल, बार्सिलोना और लंदन जैसे शहरों में ओलंपिक की मेजबानी ने इन जगहों के मूलभूत ढांचे, पर्यटन, और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा को बढ़ाने में मदद की है. ओलंपिक खेलों के मैनेजमेंट भी एक कमी है. जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है.

1976 में कनाडा के बजट में आया घाटा जो दशकों तक देश को परेशान करता रहा, कनाडा की मॉन्ट्रीयल वर्ल्ड स्पोर्ट्स मीट की मेजबानी करने के बाद आया था. ग्रीस में हुए 2004 के ओलंपिक खेलों में रहने और अन्य सुविधाओं पर हुए बड़े खर्च के चलते देश आज तक आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है.

फीफा विश्व कप के लिए खासतौर पर दक्षिण अफ़्रीका और ब्राजील में बने स्टेडियम इस इवेंट के बंद होने के बाद से ही खाली पड़े हैं. भारत में भी दल साल पहले, राष्ट्रमंडल खेलों की मेजबानी के लिए कई इमारतों का निर्माण किया गया था. राष्ट्रमंडल खेलों के शुरुआत और खत्म होने के समारोह के लिए, जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम को करीब 960 करोड़ की लागत से रेनोवेट किया गया था.

इसके बाद से ही स्टेडियम को किसी बड़े खेल के आयोजन के उपयोग में नहीं लाया गया है. इससे साफ है कि 960 करोड़ की रकम बर्बाद गई है. इन खेलों के दौरान कई और संसाधनों के निर्माण पर कई सौ करोड़ रुपये खर्च किए गए थे, जो अब इस्तेमाल में नहीं आने के कारण और अपने रख रखाव के खर्च के चलते सफेद हाथी बनकर रह गए हैं,और देशों में भी ऐसे अनुभव देखने को मिले हैं. उस समय दिल्ली के राष्ट्रमंडल खेलों में हुए करोड़ों के भ्रष्टाचार ने कई सालों तक दिल्ली के आम लोगों और राजनीति को प्रभावित किया.

केंद्र सरकार और आईओएस द्वारा इस तरह की गलतियों को रोकने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं इसके बारे में जानकारी नहीं है. हालांकि अपनी कार्यप्रणाली में इस तरह की खामियों के बावजूद आईओसी कई तरह के खेल महाकुंभ आदि की मेजबानी के लिए दावेदारी कर रहा है.

चार साल पहले हुए रियो ओलंपिक खेलों में भारतीय उप महाद्वीप को कुल चार पदक ही मिल सके थे, मतलब 65 करोड़ की आबादी पर एक पदक!! भारत दक्षिण एशियन खेलों में, निशानेबाजी, मुक्केबाज़ी, जूडो आदी में सबसे ज़्यादा पदक जीतने का दम भरता है, लेकिन ओलंपिक और विश्व एथेलटिक मुकाबलों में उसका प्रदर्शन न के बराबर ही रहा है.

हालांकि भारत बहुत कम खेलों में पदक के लिए कोई चुनौती दे पाता है, लेकिन तत्कालीन खेल मंत्री अजय माकन ने यह दावा कर दिया था कि भारत 2020 ओलंपिक खेलों में कम से कम 25 पदक हासिल करेगा. मौजूदा खेल मंत्री किरेंन रिजूजू भी दावे करने में पीछे नहीं हैं, और उन्होंने कहा है कि 2024 और 2028 ओलंपिक खेलों में भारत स्वर्ण पदक जीतने वाले टॉप टेन देशों में शामिल होगा.

अगर इस सपने को सच करना है तो सरकार और संघ को खिलाड़ियों के प्रशिक्षण पर ध्यान देना चाहिए न कि खेलों के आयोजन कराने पर. जानकार कई साल से इस बात पर जोर दे रहे हैं कि हमारे देश में अच्छे खिलाड़ी न होने का सबसे बड़ा कारण स्कूल के स्तर पर शुरू हो जाता है.

पढ़ें- विशेष लेख : मोदी की विदेश नीति में पाम ऑयल है नया हथियार?

चीन जो पहले ही अपने यहां 80 लाख के करीब व्यायाम केंद्र और तीन हजार से ज्यादा खेल सेंटर बना चुका है अब चार साल के बच्चों के बीच टैलेंट की पहचान करने के लिए देशव्यापी अभियान चला रहा है. अमरीका में, एनसीएए (नेशनल कॉलिजियेट एथलेटिक्स एसोसियेशन) के जरिये कॉलेज के स्तर पर छात्रों को प्रशिक्षित करने का काम किया जा रहा है.

वहीं, भारत में स्कूलों में खेलों के टीचरों और ट्रेनर्रों के अनेक पद खाली पड़े हैं. शिक्षा के अधिकार के नियमों की स्कूल खुले तौर पर अनदेखी कर रहे हैं. स्कूल न तो छात्रों के लिए खेलने की व्यवस्थाऐं देते हैं और न ही समय. भारत का खेल और खिलाड़ियों के लिहाज से स्वर्णिम इतिहास रहा है, लेकिन जब तक हम देश में मौजूद प्रतिभा को पूरी तरह नहीं निखार लेते हैं हमें किसी भी बड़े खेल आयोजन का हिस्सा नहीं बनना चाहिए.

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भारत की ओलंपिक 2024 कि लिये जीत की रणनीति



2016 में नीति आयोग ने यह कह कर आम लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया था कि भारत को 2024 ओलंपिक खेलों में कम से कम 50 पदक हासिल करने का लक्ष्य रखना चाहिये और इसके लिये अपने खेल की रणनीति में लक्ष्य निर्धारित करने चाहिये.  



ऊपर बताये गये लक्ष्य को साधने की ज़िम्मेदारी भारतीय ओलंपिक संघ (आईओसी) ने ली है, और संघ ने अगले एक दशक के लिये भारतीय खेल क्षेत्र के लिये जो लक्ष्य रखे हैं वो सच्चाई से दूर लगते हैं. छह महीन पहले आईओसी के अध्यक्ष नरेंद्र बत्रा ने यह बताया कि संघ, 2021 के अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक कमेटी के सत्र के साथ 2026 के यूथ ओलंपिक खेल और 2030 के एशियन गेम्स की मेज़बानी की कोशिशें कर रहा है. बत्रा ने कहा कि यह लिस्ट और बड़ रही है.  आईओसी रणनीति बनाकर 2026 या 2030 के राष्ट्रमंडल खेलों औऱ 2032 के ओलंपिक खेलों की मेज़बानी के लिये अपनी दावेदारी की तैयारियाँ भी कर रहा है. संघ का मानना है कि अगर राष्ट्रमंडल खेलों की मेज़बानी भारत को मिल जायेगी तो ओलंपिक खेलों की मेज़बानी का रास्ता साफ़ हो जायेगा.



इस साल के ओलंपिक और पैरा ओलंपिक खेलों की मेज़बानी के लिये जापान ने खर्च का जो अनुमान लगाया था वो बढ़कर 1,85,000 करोड़ रुपये तक जा पहुँचा है. इसे देखते हुए यह अनुमान और उम्मीद करना ग़लत होगा कि 2030 ओलंपिक की मेज़बानी मिलने की सूरत में यह खर्च कितना बढ़ जायेगा.  2032 की मेज़बानी के लिये ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, दक्षिण कोरिया और जर्मनी के मेज़बानी के दावेदारी की ख़बरों के बीच यह दिलचस्प है कि भारत क़रीब सोलह खेलों के लिये ज़्यादा दिलचस्पी दिखा रहा है, इनमे से कुछ तो अभी आख़िरी सूचि में भी नहीं आये हैं. ऐसे में यह आश्चर्यजनक है कि आईओसी बिना किसी जमीनी होमवर्क के ओलंपिक की मेज़बानी के लिये दावा ठोंक रही है. 



सियोल, बार्सिलोना और लंदन जैसे शहरों में ओलंपिक की मेज़बानी ने इन जगहों के मूलभूत ढाँचे, पर्यटन, और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा को बढ़ाने में मदद की है. ओलंपिक खेलों के मैनेजमेंट एक कमी भी है जिसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है. 1976 में कनाडा के बजट में आया घाटा जो दशकों तक देश को परेशान करता रहा, कनाडा की मॉन्ट्रीयल वर्ल्ड स्पोर्ट्स मीट की मेज़बानी करने के बाद आया था. ग्रीस में हुए 2004 के ओलंपिक खेलों में रहने और अन्य सुविधाओं पर हुए बड़े खर्च के चलते देश आज तक आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है. फ़ीफ़ा विश्व कप के लिये ख़ासतौर पर दक्षिण अफ़्रीका और ब्राज़ील में बने स्टेडियम इस इवेंट के बंद होने के बाद से ही ख़ाली पड़े हैं. भारत में भी दल साल पहले, राष्ट्रमंडल खेलों की मेज़बानी के लिये कई इमारतों का निर्माण किया गया था. राष्ट्रमंडल खेलों के शुरुआत और ख़त्म होने के समारोह के लिये, जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम को क़रीब 960 करोड़ की लागत से रेनोवेट किया गया था. इसके बाद से ही स्टेडियम को किसी बड़े खेल आयोजन के उपयोग में नहीं लाया गया है और साफ़ है कि 960 करोड़ की रक़म बर्बाद गई है. इन खेलों के दौरान कई और संसाधनों के निर्माण पर कई सौ करोड़ रुपये खर्च किये गये थे जो अब इस्तेमाल में नहीं आने का कारण और अपने रख रखाव के खर्च के चलते सफ़ेद हाथी बनकर रह गये हैं. और देशों में भी ऐसे अनुभव देखने को मिले हैं. उस समय दिल्ली के राष्ट्रमंडल खेलों में हुए करोड़ों के भ्रष्टाचार ने कई सालो तक दिल्ली के आम लोगों और राजनीति को प्रभावित किया. केंद्र सरकार और आईओएस द्वारा इस तरह की ग़लतियों को रोकने के लिये क्या कदम उठाये जा रहे हैं इसके बारे में जानकारी नहीं है.हालाँकि अपनी कार्यप्रणाली में इस तरह की ख़ामियों के बावजूद आईओसी कई तरह के खेल महाकुंभ आदि की मेज़बानी के लिये दावेदारी कर रहा है.        



चार साल पहले हुए रियो ओलंपिक खेलों में भारतीय उप महाद्वीप को कुल चार पदक ही मिल सके थे, मतलब 65 करोड़ की आबादी पर एक पदक!! भारत दक्षिण एशियन खेलों में, निशानेबाज़ी  मुक्केबाज़ी, जूडो आदी में सबसे ज़्यादा पदक जीतने का दम भरता है, लेकिन ओलंपिक और विश्व एथेलटिक मुक़ाबलों में उसका प्रदर्शन न के बराबर ही रहा है. हालाँकि भारत बहुत कम खेलों में पदक के लिये कोई चुनौती दे पाता है, लेकिन तत्कालीन खेल मंत्री अजय माकन ने यह दावा कर दिया था कि भारत 2020 ओलंपिक खेलों में कम से कम 25 पदक हासिल करेगा. मौजूदा खेल मंत्री किरेंन रिजूजू भी दावे करने में पीछे नहीं हैं, और उन्होंने कहा है कि 2024 और 2028 ओलंपिक खेलों में भारत स्वर्ण पदक जीतने वाले टॉप टेन देशों में शामिल होगा.  अगर इस सपने को सच करना है तो सरकार और संघ को खिलाड़ियों के प्रशिक्षण पर ध्यान देना चाहिये न कि खेलों के आयोजन कराने पर. जानकार कई साल से इस बात पर ज़ोर दे रहे हैं कि हमारे देश में अच्छे खिलाड़ी न होने का सबसे बड़ा कारण स्कूल के स्तर पर शुरू हो जाता है. चीन जो पहले ही अपने यहां 80 लाख के करीब व्यायाम केंद्र और तीन हज़ार से ज़्यादा खेल सेंटर बना चुका है अब चार साल के बच्चों के बीच टैलेंट की पहचान करने के लिये देशव्यापी अभियान चला रहा है. अमरीका में, एनसीएए (नेशनल कॉलिजियेट एथलेटिक्स एसोसियेशन) के ज़रिये कॉलेज के स्तर पर छात्रों को प्रशिक्षित करने का काम किया जा रहा है.      



वहीं, भारत में स्कूलों में खेलों के टीचरों और ट्रेनर्रों के अनेक पद ख़ाली पड़े हैं. शिक्षा के अधिकार के नियमों की स्कूल खुले तौर पर अनदेखी कर रहे हैं. स्कूल न तो छात्रों के लिये खेलने की व्यवस्थाऐं देते हैं और न ही समय. भारत का खेल और खिलाड़ियों के लिहाज़ से स्वर्णिम इतिहास रहा है, लेकिन जब तक हम देश में मौजूद प्रतिभा को पूरी तरह नहीं निखार लेते हैं हमें किसी भी बड़े खेल आयोजन का हिस्सा नहीं बनना चाहिये.


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