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1984 के सिख विरोधी दंगों की कहानी, पीड़िता की जुबानी

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Published : Oct 31, 2020, 6:01 PM IST

आज पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की पुण्य तिथि है. इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली और उसके आस-पास के इलाकों में हिंसा भड़क गई थी. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, दंगों में हजारों सिख मारे गए थे. ईटीवी भारत ने उन दंगों की अनगिनत पीड़िताओं में से एक प्रेम कौर से बात की.

assassination of indira gandhi
प्रेम कौर

नई दिल्ली : 31 अक्टूबर, 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली में भड़की हिंसा में त्रिलोकपुरी और कल्याणपुरी सबसे अधिक प्रभावित इलाकों में से एक थे. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, दंगों के दौरान दिल्ली में लगभग 3,000 सिखों की हत्या हुई थी और 400 से अधिक सिख त्रिलोकपुरी में मारे गए थे और सैकड़ों महिलाएं विधवा हुई थीं.

देखें 84 के दंगों की पीड़िता से ईटीवी भारत की बातचीत

ऐसी ही एक महिला प्रेम कौर ने दंगों के दौरान जो देखा था, उसके बारे में ईटीवी भारत को बताया. कल्याणपुरी में रहने वाली प्रेम कौर के परिवार के 14 लोगों की हत्या नवंबर 1984 में की गई थी.

प्रेम कौर तब 20 वर्ष की थीं और उनकी शादी 22 अक्टूबर, 1984 को हुई थी और 27 अक्टूबर को उनके पति बलवंत सिंह को विदेश जाना था, लेकिन किसी कारणवश उनका जाना एक नवंबर को तय हुआ था. 31 अक्टूबर को इंदिरा गांधी की हत्या के बाद इलाके में हालात बिगड़ गए.

उस दिन की घटना को याद करते हुए प्रेम कौर ने बताया कि भीड़ उनके घर तीन बार आकर चली गई. कुछ समय के पश्चात उनके पति को बाहर बुलाया गया और उन पर डंडे से हमला करके हाथ तोड़ दिए गए.

हमलावर दोबारा आए और उनके पति के गले में पीछे से जंजीर डालकर गिरा दिया और कुल्हाड़ी से हमला किया. खून से लथपथ अपने पति बलवंत सिंह को प्रेम कौर ने शॉल में लपेटा, लेकिन वह उनको बचा नहीं सकीं.

दंगाई भीड़ ने उनके परिवार के और कई सदस्यों को (जिनमें देवर और अन्य रिश्तेदार शामिल थे) भी मार डाला. भीड़ ने इससे पहले बलवंत सिंह के जीजा को मार डाला था, लेकिन जैसे-जैसे परिवार ने प्रेम कौर को पड़ोसियों के यहां छिपा दिया.

प्रेम कौर ने बताया कि दंगों के दौरान पुलिस ने किसी प्रकार की कोई मदद नहीं की और दो-तीन दिन के बाद भारतीय सेना आई और उसके बाद परिवार पुलिस थाने में गया. पड़ोसियों की मदद से प्रेम कौर की जान बची थी.

इंसाफ की उम्मीद में कुछ साल तक उनकी सास कोर्ट कचहरी जाती रहीं, लेकिन धीरे-धीरे वह भी खत्म हो गया. शादी के एक हफ्ते बाद ही अपने पति को खोने के बाद प्रेम कौर आज अपनी दो वक्त की रोटी जुटाने के लिए हार शिंगार के सामान की रेहड़ी लगाती हैं.

यह भी पढ़ें- आतंकवाद वैश्विक चिंता का विषय, इसके खिलाफ एकजुट होने की जरूरत : पीएम मोदी

प्रेम कौर ने ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा कि सरकार की तरफ से उनको ₹5 लाख की मदद मिली थी, जो उन्होंने अपने घर बनाने में लगा दिए. लगभग चार दशक बीतने के बाद भी आज उनके परिवार की हालत में कोई सुधार नहीं है.

सिख दंगों में माता-पिता खो चुके बच्चों को न तो अच्छी शिक्षा मिल पाई और न ही उन्हें अच्छी नौकरियां मिलीं.

प्रेम कौर ने सरकार से ऐसे लोगों के लिए अच्छी नौकरी और उनके बच्चों के लिए अच्छी पढ़ाई की मांग की और दोषियों के लिए सजा, लेकिन दिल्ली के कई इलाकों में प्रेम कौर जैसी महिलाओं की मांगे आज तक पूरी नहीं हुई हैं.

नई दिल्ली : 31 अक्टूबर, 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली में भड़की हिंसा में त्रिलोकपुरी और कल्याणपुरी सबसे अधिक प्रभावित इलाकों में से एक थे. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, दंगों के दौरान दिल्ली में लगभग 3,000 सिखों की हत्या हुई थी और 400 से अधिक सिख त्रिलोकपुरी में मारे गए थे और सैकड़ों महिलाएं विधवा हुई थीं.

देखें 84 के दंगों की पीड़िता से ईटीवी भारत की बातचीत

ऐसी ही एक महिला प्रेम कौर ने दंगों के दौरान जो देखा था, उसके बारे में ईटीवी भारत को बताया. कल्याणपुरी में रहने वाली प्रेम कौर के परिवार के 14 लोगों की हत्या नवंबर 1984 में की गई थी.

प्रेम कौर तब 20 वर्ष की थीं और उनकी शादी 22 अक्टूबर, 1984 को हुई थी और 27 अक्टूबर को उनके पति बलवंत सिंह को विदेश जाना था, लेकिन किसी कारणवश उनका जाना एक नवंबर को तय हुआ था. 31 अक्टूबर को इंदिरा गांधी की हत्या के बाद इलाके में हालात बिगड़ गए.

उस दिन की घटना को याद करते हुए प्रेम कौर ने बताया कि भीड़ उनके घर तीन बार आकर चली गई. कुछ समय के पश्चात उनके पति को बाहर बुलाया गया और उन पर डंडे से हमला करके हाथ तोड़ दिए गए.

हमलावर दोबारा आए और उनके पति के गले में पीछे से जंजीर डालकर गिरा दिया और कुल्हाड़ी से हमला किया. खून से लथपथ अपने पति बलवंत सिंह को प्रेम कौर ने शॉल में लपेटा, लेकिन वह उनको बचा नहीं सकीं.

दंगाई भीड़ ने उनके परिवार के और कई सदस्यों को (जिनमें देवर और अन्य रिश्तेदार शामिल थे) भी मार डाला. भीड़ ने इससे पहले बलवंत सिंह के जीजा को मार डाला था, लेकिन जैसे-जैसे परिवार ने प्रेम कौर को पड़ोसियों के यहां छिपा दिया.

प्रेम कौर ने बताया कि दंगों के दौरान पुलिस ने किसी प्रकार की कोई मदद नहीं की और दो-तीन दिन के बाद भारतीय सेना आई और उसके बाद परिवार पुलिस थाने में गया. पड़ोसियों की मदद से प्रेम कौर की जान बची थी.

इंसाफ की उम्मीद में कुछ साल तक उनकी सास कोर्ट कचहरी जाती रहीं, लेकिन धीरे-धीरे वह भी खत्म हो गया. शादी के एक हफ्ते बाद ही अपने पति को खोने के बाद प्रेम कौर आज अपनी दो वक्त की रोटी जुटाने के लिए हार शिंगार के सामान की रेहड़ी लगाती हैं.

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प्रेम कौर ने ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा कि सरकार की तरफ से उनको ₹5 लाख की मदद मिली थी, जो उन्होंने अपने घर बनाने में लगा दिए. लगभग चार दशक बीतने के बाद भी आज उनके परिवार की हालत में कोई सुधार नहीं है.

सिख दंगों में माता-पिता खो चुके बच्चों को न तो अच्छी शिक्षा मिल पाई और न ही उन्हें अच्छी नौकरियां मिलीं.

प्रेम कौर ने सरकार से ऐसे लोगों के लिए अच्छी नौकरी और उनके बच्चों के लिए अच्छी पढ़ाई की मांग की और दोषियों के लिए सजा, लेकिन दिल्ली के कई इलाकों में प्रेम कौर जैसी महिलाओं की मांगे आज तक पूरी नहीं हुई हैं.

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