नई दिल्ली: इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार इस्लामिक साल का पहला महीना मोहर्रम होता है. मोहर्रम में शिया समुदाय के लोग पैगंबर-ए-इस्लाम हजरत मोहम्मद साहब के नवासे हजरत इमाम हुसैन की शहादत को याद कर शोक मनाते हैं.
मोहर्रम शहादत की याद में मनाया जाता है
मौलाना जलाल हैदर नकवी ने बताया मोहर्रम शहादत की याद में मनाया जाता है. पैगंबर-ए-इस्लाम हजरत मोहम्मद के नवासे हजरत इमाम हुसैन को कर्बला के मैदान में 1400 साल पहले उनके घर वालों के साथ शहीद कर दिया गया था. इमाम हुसैन ने अपनी शहादत से पूरी दुनिया को यह पैगाम दिया कि कभी भी जुल्म के सामने सर झुकाने की जरूरत नहीं है.
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'काला कपड़ा है शोक की अलामत'
मोहर्रम में काले कपड़े पहनने के सवाल पर मौलाना जलाल ने बताया कि काला कपड़ा वन की अलामत है. मोहर्रम में काले कपड़े केवल शिया समुदाय के लोग ही नहीं बल्कि जो लोग हजरत इमाम हुसैन का शोक मनाते हैं, वह सब मोहर्रम के दौरान काले कपड़े पहनते हैं.
उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया में हजरत इमाम हुसैन का शोक मनाया जाता है. दुनिया भर में मोहर्रम रीति-रिवाज के अनुसार मनाया जाता है. उन्होंने कहा कि जैसे भारत में मोहर्रम में ताजिए निकाले जाते हैं, वैसे ही दूसरे देशों में भी मुहर्रम मनाया जाता है.
शोक मनाने का महीना
हजरत इमाम हुसैन का शोक दो महीने आठ दिन तक मनाया जाता है, जबकि मोहर्रम महीने के शुरू के 10 दिन तक मनाया जाता है. इसे अशरा-ए-मोहर्रम कहा जाता है.
हजरत इमाम हुसैन की शहादत मोहर्रम की दसवीं तारीख को हुई है, इसलिए एक मोहर्रम से लेकर 10 मोहर्रम तक मातम, मजलिस और जुलूस का सिलसिला जारी रहता है. अधिकतर लोग मोहर्रम को त्योहार समझते हैं, बता दें कि मोहर्रम खुशियों का त्योहार नहीं बल्कि इमाम हुसैन की शहादत का मातम और शोक मनाने का महीना है.