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इस मां के जज्बे को सलाम, पति की शहादत के बाद बेटे को भी किया देश के नाम

20 साल पहले हुए कारगिल युद्ध में दुश्मनों से लोहा लेते हुए वीर अमर सिंह शहीद हो गए थे. कोटद्वार के दुर्गापुरी निवासी शहीद अमर सिंह रावत के परिवार का देश के प्रति समर्पण देखते ही बनता है. शहीद के परिवार का इकलौता बेटा भी अपने पिता के नक्शे कदम पर चलते हुए देश की रक्षा के लिए सीमा पर तैनात है.

कारगिल के शहीद
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Published : Jul 26, 2019, 9:42 AM IST

कोटद्वार: कारगिल शहीदों के शौर्य और पराक्रम को लेकर आज हम आपको एक ऐसी कहानी से रूबरू करवा रहे हैं. जहां पति की शहादत के बाद भी वीरांगना ने अपने कलेजे के टुकड़े को भी देश की सेवा के लिए सीमा पर भेज दिया.

कारगिल युद्ध को 20 साल पूरे होने वाले हैं. लेकिन आज भी कारगिल युद्ध में शहीद हुए वीर जवानों की वीर गाथाएं हैं. जो अपने हमें वीर सपूतों के अदम्य साहस की अनुभूति करवाती है. ऐसी कहानी 15 गढ़वाल के वीर सिपाही अमर सिंह रावत की है. वीर अमर सिंह 20 साल पहले हुए कारगिल युद्ध में दुश्मनों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए और वो अपने पीछे पत्नी और तीन बच्चों को छोड़ गए. लेकिन वक्त बदला और बच्चे अपने पैरों पर खड़े हो गए.

कारगिल के शहीदों का साहस

कोटद्वार के दुर्गापुरी निवासी शहीद अमर सिंह रावत के परिवार का देश के प्रति समर्पण देखते ही बनता है. शहीद के परिवार का इकलौता बेटा भी अपने पिता के नक्शे कदम पर चलते हुए देश की रक्षा के लिए सीमा पर तैनात है. 14 साल बाद शहीद अमर सिंह रावत के बेटे प्रवीन रावत ने सेना में भर्ती हो गए. इतना ही नहीं इसे शहीद अमर सिंह की पत्नी सुशीला देवी का जिजीविषा ही कहेंगे कि पति के शहीद होने के बाद उन्होंने अपने बेटे को न सिर्फ सेना में भेजा बल्कि, अपनी बेटी की शादी भी सेना के जवान से की.

ये भी पढ़ें: दावों की पोल खोलती तस्वीर: 8KM पैदल डंडी-कंडी के सहारे बीमार महिला को पहुंचाया अस्पताल

शहीद अमर सिंह की पत्नी सुशीला देवी बताती है कि ऐसा नहीं है कि उनका मन नहीं घबराता या फिर उनके मन में बुरे ख्याल नहीं आते. लेकिन देश के प्रति सम्मान और समर्पण ने उन्हें यह फैसला लेने की हिम्मत दी. सुशीला देवी ने बताया कि जब उनके पति शहीद हुए थे तो उनका बेटा केवल 7 साल का था. पिता के शौर्य की कहानी सुनकर ही उसे सेना में जाने की प्रेरणा मिली. शहीद अमर सिंह के पुत्र प्रवीण सिंह रावत आज जम्मू के राजौरी सेक्टर में पुंछ में तैनात हैं.

कोटद्वार: कारगिल शहीदों के शौर्य और पराक्रम को लेकर आज हम आपको एक ऐसी कहानी से रूबरू करवा रहे हैं. जहां पति की शहादत के बाद भी वीरांगना ने अपने कलेजे के टुकड़े को भी देश की सेवा के लिए सीमा पर भेज दिया.

कारगिल युद्ध को 20 साल पूरे होने वाले हैं. लेकिन आज भी कारगिल युद्ध में शहीद हुए वीर जवानों की वीर गाथाएं हैं. जो अपने हमें वीर सपूतों के अदम्य साहस की अनुभूति करवाती है. ऐसी कहानी 15 गढ़वाल के वीर सिपाही अमर सिंह रावत की है. वीर अमर सिंह 20 साल पहले हुए कारगिल युद्ध में दुश्मनों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए और वो अपने पीछे पत्नी और तीन बच्चों को छोड़ गए. लेकिन वक्त बदला और बच्चे अपने पैरों पर खड़े हो गए.

कारगिल के शहीदों का साहस

कोटद्वार के दुर्गापुरी निवासी शहीद अमर सिंह रावत के परिवार का देश के प्रति समर्पण देखते ही बनता है. शहीद के परिवार का इकलौता बेटा भी अपने पिता के नक्शे कदम पर चलते हुए देश की रक्षा के लिए सीमा पर तैनात है. 14 साल बाद शहीद अमर सिंह रावत के बेटे प्रवीन रावत ने सेना में भर्ती हो गए. इतना ही नहीं इसे शहीद अमर सिंह की पत्नी सुशीला देवी का जिजीविषा ही कहेंगे कि पति के शहीद होने के बाद उन्होंने अपने बेटे को न सिर्फ सेना में भेजा बल्कि, अपनी बेटी की शादी भी सेना के जवान से की.

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शहीद अमर सिंह की पत्नी सुशीला देवी बताती है कि ऐसा नहीं है कि उनका मन नहीं घबराता या फिर उनके मन में बुरे ख्याल नहीं आते. लेकिन देश के प्रति सम्मान और समर्पण ने उन्हें यह फैसला लेने की हिम्मत दी. सुशीला देवी ने बताया कि जब उनके पति शहीद हुए थे तो उनका बेटा केवल 7 साल का था. पिता के शौर्य की कहानी सुनकर ही उसे सेना में जाने की प्रेरणा मिली. शहीद अमर सिंह के पुत्र प्रवीण सिंह रावत आज जम्मू के राजौरी सेक्टर में पुंछ में तैनात हैं.

Intro:summary इस मां के जज्बे को सलाम, पति की शहादत के बाद बेटे को भी किया सेना के नाम।


intro कारगिल शहीदों के शौर्य और पराक्रम को लेकर आज हम आपको एक ऐसी कहानी से रूबरू करवा रहे हैं जहां पति की शहादत के बाद भी महिला ने अपने जिगर के टुकड़े को देश की सीमा पर भारत माता के गौरव की रक्षा करने के लिए भेज दिया।
कोटद्वार के दुर्गापुरी निवासी शहीद अमर सिंह रावत के परिवार का देश के प्रति समर्पण देखिए, आज भी शाहिद परिवार का इकलौता तारा अपने पिता की शहादत का बदला लेने के लिए देश की सीमा पर तैनात हैं, तो वही उसकी मां का भी जिगर देखिये, जिस ने पति की शहादत के बाद बेटे को भी देश के लिए समर्पित कर दिया।





Body:वीओ1- कारगिल युद्ध को कुछ समय में ही 20 वर्ष पूरे हो जाएंगे लेकिन आज भी कारगिल युद्ध में शहीद हुए वीर जवानों की वीर गाथाएं हैं, अपने आप में अदम्य साहस की अनुभूति करवाती है, ऐसी कहानी 15 गढ़वाल के वीर सिपाही अमर सिंह रावत की है..... वीर अमर सिंह आज से 20 साल पहले हुए कारगिल युद्ध में दुश्मनो से लोहा लेते हुए शहीद हो गए थे और पीछे छोड़ गए थे विधवा पत्नी और अपने इकलौते बेटे और दो बेटियों को.... लेकिन वक्त बदलाव और बच्चे बड़े हुए लेकिन पिता की शहादत का बदला लेने के लिए बेटे ने भी एक बार सेना में जाने का फैसला ले लिया और 14 साल बाद शहीद अमर सिंह रावत के बेटे प्रवीन रावत ने सेना में भर्ती हो गए, इस परिवार का देश के प्रति समर्पण है आज एक घर से पिता के शहीद होने के बाद उसका पुत्र भी सेना में सेवाएं दे रहा है इतना ही नहीं शहीद अमर सिंह की पत्नी सुशीला देवी का देश के प्रति जज्बा तो देखें पति के शहीद होने के बाद अपने बेटे को भी सेना में भेज दिया बल्कि अपनी बेटी को भी ऐसे घर में सादी की उसका पति भी सेना में रह कर देश की सेवा कर रहा है।

वीओ2- शहीद अमर सिंह की पत्नी सुशीला देवी बताती है कि ऐसा नहीं है कि उनका मन नहीं घबराता या फिर उनके मन में बुरे ख्याल नहीं आते, लेकिन देश के प्रति सम्मान और समर्पण ने उन्हें यह फैसला लेने की हिम्मत दी, सुशीला देवी ने बताया कि जब उनके पति शहीद हुए थे तो उनका बेटा केवल 7 साल का था और इतनी छोटी उम्र में उसके सर से पिता का साया हट गया था, लेकिन उसके बावजूद ही पिता के शौर्य की कहानियां ने बेटे को सेना में जाने के लिए प्रेरित किया, शहीद अमर सिंह के पुत्र प्रवीण सिंह रावत आज जम्मू के राजौरी सेक्टर में पुंछ में तैनात हैं और भारतीय सेना में अपनी सेवाएं दे रहे हैं, हालांकि उनकी माता को चिंता जरूर होती है सहित अमर सिंह की पत्नी और सेना में कार्यरत प्रवीन की मां का कहना है कि प्रवीण ही उनके परिवार का एकमात्र सहारा है।

बाइट सुशील देवी पत्नी शाहिद अमर सिंह रावत
निवासी दुर्गापुरी कोटद्वार



Conclusion:
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