हैदराबाद : कोरोना वायरस महामारी से देशभर में लगभग 4,25,000 लोग संक्रमित हो चुके हैं और यह खतरनाक वायरस लगभग 13,700 लोगों की जान ले चुका है. केंद्र और राज्य सरकारें महामारी के प्रकोप को रोकने की हरसंभव कोशिश कर रही हैं.
मौसम में बदलाव जैसे बारिश की शुरुआत से विभिन्न संक्रामक बीमारियों के फैलने का खतरा उत्पन्न हो रहा है, जो अधिकारियों के लिए बड़ी चुनौती हो सकता है. केंद्र सरकार द्वारा इस साल संसद में प्रस्तुत की गई रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले साल स्वाइन फ्लू (एच1एन1) वायरस के दोगुना मामले दर्ज किए गए हैं. महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, दिल्ली और तमिलनाडु में स्वाइन फ्लू के सबसे अधिक मामले सामने आए हैं.
सामान्य संक्रामक रोग भी बन सकते हैं महामारी
देश में कोरोना महामारी का प्रकोप जारी है और अध्ययन में कोरोना वायरस के सिर्फ रोकथाम और उपचार पर ध्यान केंद्रित किया गया है, जबकि टीकाकरण और प्रतिरक्षा कार्यक्रमों की अनदेखी हो रही है. ऐसी स्थिति में सामान्य संक्रामक रोग भी कोरोना वायरस की तरह महामारी बन सकते हैं.
डेंगू, चिकुनगुनिया, मलेरिया, डायरिया, टाइफाइड, खतरनाक वायरल बुखार, हैजा, मस्तिष्क ज्वर, पीलिया आमतौर पर बरसात के मौसम में फैलते हैं और जानलेवा बीमारियों का कारण बनते हैं.
कोरोना लक्षण वाले रोगियों में डेंगू के सबसे आम मामले पाए गए हैं और यह मुंबई में पहले ही रिपोर्ट किए जा चुके हैं. सर्दी, खांसी और बुखार के सामान्य लक्षण जो कोरोना वायरस के भी मूल लक्षण हैं, देश के लोगों में घबराहट पैदा कर रहे हैं, क्योंकि यह सभी लक्षण आमतौर पर सामान्य और मौसमी होते हैं.
चिकित्सा स्वास्थ्य प्रणालियों को मजबूत करने पर जोर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ सप्ताह पहले सुझाव दिया था कि चिकित्सा स्वास्थ्य प्रणालियों को मजबूत किया जाना चाहिए और गैर-कोरोना रोगों के उन्मूलन के लिए तैयार किया जाना चाहिए क्योंकि बारिश का मौसम पूरी तरह शुरू होने वाला है. अगर मौसमी बुखार के मामले बढ़ते हैं तो कोरोना महामारी और गंभीर हो सकती है.
इससे पहले जनवरी में केंद्र सरकार ने डेंगू, मलेरिया, चिकुनगुनिया, डायरिया, पीलिया और टाइफाइड जैसे दूषित पानी, भोजन, हवा और कीट-जनित रोगों के प्रसार को रोकने के लिए एक अत्याधुनिक प्रणाली स्थापित करने की आवश्यकता महसूस की थी.
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राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ने पहले ही संकेत दिया है कि नॉन-क्लिनिकल सेक्टर में सार्वजनिक स्वास्थ्य में डिग्री पूरी करने वाले चिकित्सकों को जिम्मेदारियों को सौंपने से संक्रमण की रोकथाम के साथ-साथ उच्च रक्तचाप और डायबिटीज जैसी जीवनशैली से जुड़ी बीमारियां भी दूर होंगी.
कोरोना काल में कई रोगों के पूर्ण उन्मूलन जैसे लक्ष्यों की अनदेखी
वर्तमान कोरोना महामारी और उसके लॉकडाउन कार्यान्वयन के कारण, काला-अजार (Kala-Azar), फाइलेरिया और अन्य रोगों के पूर्ण उन्मूलन जैसे लक्ष्यों को कई सरकारों द्वारा अनदेखा किया गया है. क्षय रोग (तपेदिक) के 40 लाख से अधिक मामले अभी भी प्रतिवर्ष सामने आते हैं, मलेरिया भी बड़े पैमाने पर फैला हुआ है.
ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज (जीबीडी मैगजीन) द्वारा किए गए अध्ययन में दावा किया गया है कि भारत में प्रतिदिन लगभग 11 हजार लोग प्रथम पांच सूचीबद्ध जानलेवा रोगों से प्रभावित हो रहे हैं.
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वहीं देशभर में डेंगू मामलों को गंभीरता से लेते हुए तेलंगाना हाईकोर्ट ने आदेश दिया है कि डेंगू से होने वाली हर मौत का जल्द से जल्द मुआवजा दिया जाना चाहिए और इसे रोकने के लिए सावधानी बरतनी चाहिए.
यह सच है कि मौसमी बीमारियों की शुरुआत से पहले मच्छर प्रजनन केंद्रों के उन्मूलन और पर्यावरण की स्वच्छता अति आवश्यक है. सरकारी अस्पतालों और क्लिनिक्स में डॉक्टरों और नर्सिंग स्टाफ की कमी भी एक और कड़वा सच है.
हालांकि, कोरोना के जरूरी निवारक उपाय जैसे हाथ धोना और मास्क का उपयोग कुछ सुरक्षा प्रदान कर सकता है. यह अनिवार्य है कि परिवेश को साफ और स्वच्छ बनाए रखा जाए ताकि वह मच्छर के आवास और प्रजनन केंद्र न बन सकें. यह एकमात्र उपाय है जिसे हम सभी को स्वेच्छा से पालन करना चाहिए.