हैदराबाद : अक्सर आपने लोगों को यह कहते हुए सुना होगा कि भगवान हमारा ध्यान रखने के लिए हर जगह नहीं पहुंच सकते, इसलिए उन्होंने मां को बनाया है. मां के प्रति सम्मान और प्यार जताने के लिए उसके बच्चे मातृत्व दिवस मनाते हैं. आइए इस मदर्स डे पर जानते हैं उन पांच महान व्यक्तिओं की मांओं से जुड़े किस्से, जिसके बारे में बहुत कम लोग कुछ जानते हैं.
महात्मा गांधी - महात्मा गांधी की माता पुतली बाई एक साध्वी महिला थीं. वह एक श्रद्धालु भी थीं. बिना पूजा-पाठ के कभी भोजन भी नहीं किया करती थीं. वह कठिन व्रत किया करती थीं और उन्हें निर्विघ्न पूरा किया करती थीं. वह अस्वस्थ होने पर भी व्रत करना नहीं छोड़ती थीं, जो उनकी दृढ़ प्रतिज्ञा व ईश्वरीय आस्था का प्रमाण भी है. वह व्यवहार कुशल स्त्री थीं. गांधी के व्यक्तित्व पर उनकी माता पुतली बाई का गहरा प्रभाव था. माता के अनंत प्रेम, तपोमय जीवन और अटल इच्छा शक्ति की अमिट छाप गांधी के व्यक्तित्व में समाहित थी. मां पुतलीबाई प्यार से मोहन को मोनिया कहकर पुकारती थीं. वही मोनिया आगे चलकर मोहन दास करमचंद गांधी यानी बापू के रूप में पूरी दुनिया में मशहूर हुए.
एपीजे अब्दुल कलाम - अब्दुल कलाम की माता का नाम अशिअम्मा था. अब्दुल कलाम हमेशा अपनी सफलता का श्रेय अपनी माता को देते थे. उनका कहना था उनकी माता ने ही उन्हें अच्छे-बुरे को समझने की शिक्षा दी. वह कहते थे 'पढ़ाई के प्रति मेरे रुझान को देखते हुए मेरी मां ने मेरे लिए छोटा सा लैंप खरीदा था, जिससे मैं रात को 11 बजे तक पढ़ सकता था. मां ने अगर साथ न दिया होता, तो मैं यहां तक न पहुंचता.' अब्दुल कलाम भारत के ग्यारहवें और पहले गैर-राजनीतिज्ञ राष्ट्रपति रहे, जिनको यह पद तकनीकी एवं विज्ञान में विशेष योगदान की वजह से मिला था.
थॉमस अल्वा एडिसन - थॉमस अल्वा एडिसन स्कूल से अपने घर आया और स्कूल से मिले हुए पत्र को अपनी मां को देते हुए बोला कि 'मां मेरे शिक्षक ने मुझे यह पत्र दिया है और कहा है कि इसे केवल अपनी मां को ही देना. बताओ मां आखिर इसमें ऐसा क्या लिखा है, मुझे जानने की बड़ी उत्सुकता है. तब पेपर को पढ़ते हुए मां की आंखें रुक गईं और तेज आवाज में पत्र पढ़ते हुए बोलीं 'आपका बेटा बहुत ही प्रतिभाशाली है यह विद्यालय उसकी प्रतिभा के आगे बहुत छोटा है, उसे और बेहतर शिक्षा देने के लिए हमारे पास इतने काबिल शिक्षक नहीं हैं. इसलिए आप उसे खुद पढ़ाएं या हमारे स्कूल से भी अच्छे स्कूल में पढ़ने को भेजें.' यह सब सुनने के बाद एडिसन अपने आप पर गर्व करने लगा और मां के देखरेख में अपनी पढ़ाई करने लगा.
एडिसन के मां के मृत्यु के कई सालों बाद एडिसन तो एक महान वैज्ञानिक बन गया और एक दिन अपने कमरे की सफाई कर रहा था, तो उसे अलमारी में रखा हुआ वह पत्र मिला. पत्र में लिखा था कि 'आपका बेटा मानसिक रूप से बीमार है, जिससे उसकी आगे की पढ़ाई इस स्कूल में नहीं हो सकती है. इसलिए उसे अब स्कूल से निकाला जा रहा है.' इसे पढ़ते ही एडिसन भावुक हो गया और फिर अपनी डायरी में लिखा की 'थॉमस एडिसन तो एक मानसिक रूप से बीमार बच्चा था, लेकिन उसकी मां ने अपने बेटे को सदी का सबसे प्रतिभाशाली व्यक्ति बना दिया.'
मदर टेरेसा : मदर टेरेसा का वास्तविक नाम अगनेस गोंझा बोयाजिजू (Agnes Gonxha Bojaxhiu) था और उनकी माता का नाम नाम द्रना बोयाजू था और उनकी माता ने ही उन्हें पाला-पोषा था. पिता के गुजर जाने के बाद मदर टेरेसा के परिवार को आर्थिक परेशानी से गुजरना पड़ा, लेकिन उनकी माता ने उनको बचपन से ही मिल-बांट कर खाने की शिक्षा दी. उनकी माता कहती थीं, जो कुछ भी मिले उसे सबके साथ बांट कर खाओ. कोमल मन की मदर टेरेसा अपनी मां से पूछतीं वह कौन लोग है, किनके साथ हम मिल बांट कर खाएं? तब उनकी माता कहतीं कभी हमारे रिश्तेदार, तो कभी वह सभी लोग, जिन्हें इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है. माता की यह बात अगनेस के कोमल मन में घर कई गई और उन्होंने इसे अपने जीवन में उतारा. इसी के चलते वह आगे चलकर मदर टेरेसा बन गई.
स्वामी विवेकानंद : स्वामी विवेकानंद का असली नाम नरेंद्रनाथ दत्ता था. उनकी माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था और वह एक धार्मिक, सरल, घर को संभालने में अति-कुशल और अत्यधिक बुद्धिमान महिला थीं. परिवार की देख-रेख की जिम्मेदारी होने के बावजूद स्वामी विवेकानंद की माता संगीत और सिलाई के लिए समय निकाल लेती थी. ईश्वर के प्रति समर्पण की भावना और सभी परिस्थितियों में भगवान पर अटूट विश्वास वाली भुवनेश्वरी देवी एक आदर्श हिंदू महिला थीं. सही निर्णय लेने की क्षमता के कारण भुवनेश्वरी देवी का उन सभी लोगों द्वारा सम्मान होता जो उनके संपर्क में आते थे. स्वामी विवेकानंद की माता की स्मरण क्षमता उच्च-स्तर की थी और वह दीन-दुखियों की सेवा करने में कभी संकोच नहीं करती थीं. नरेंद्रनाथ दत्ता जो बाद में स्वामी विवेकानंद के नाम से विख्यात हुए.