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जलियांवाला बाग हत्याकांड के 100 साल पूरे, शहीदों को नमन

सारा देश आज जलियांवाला बाग हत्याकांड के 100 साल पूरे होने पर शहीदों को नमन कर रहा है. 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी का दिन था. लोग रॉलेट एक्ट के शांतिपूर्ण विरोध के लिए अमृतसर के पास जलियांवाला बाग में लोग एकत्रित हो रहे थे. कर्फ्यू लगा दिया गया, लेकिन आम जनता को इस प्रतिबंध की जानकारी नहीं थी. हजारों लोग मैदान में जमा थे, तभी जनर्ल डायर ने बिना किसी चेतावनी के गोली चलाने का हुक्म दे दिया.

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Published : Apr 13, 2019, 11:38 AM IST

Updated : Apr 13, 2019, 12:12 PM IST

डिजाइन फोटो.

नई दिल्ली: पंजाब, पांच नदियों से घिरा प्रदेश है. इस प्रदेश ने महान गुरुओं को जन्म दिया. इसी राज्य का एक शहर है अमृतसर, जहां से थोड़ी ही दूर पर एक जगह है, जलियांवाला बाग.

तारीख 3 अप्रैल, 1919 थी, बैसाखी का दिन. इस दिन खुशहाली और हरियाली का जश्‍न चारों ओर मनाया जा रहा था. बच्चे-युवा-बुजुर्ग सब एक साथ एक सभा में भाग लेने आए थे.

देखें जलियांवाला बाग की कहानी.
तभी चारों ओर से ...धांय..धांय...धांय...की आवाज आने लगी और फिर चारों ओर चीख पुकार मच गई. जिधर देखो, उधर खून ही खून, लाशें ही लाशें. हजारों लोग घायल हो गए. किसी को कुछ नहीं पता चला. आखिर ये क्या हो गया, उनकी क्या खता थी. कोई तो बताता कि तुमने ये जुर्म किया है.अंग्रेजों का क्रूर और अमानवीय शासन पूरे देश पर जुल्म ढा रहा था. बिना किसी वार्निंग के ही फायरिंग की इजाजत दे दी गई थी.इस घटना ने पूरे देश को स्तब्ध कर दिया था.दरअसल, 1919 में अंग्रेजी हुकूमत ने रॉलेट एक्ट पारित किया था. इसके तहत किसी भी हिंदुस्तानी को अंग्रेज सरकार गिरफ्तार कर सकती थी. यह सचमुच बहुत ही भयानक था.इस कानून का विरोध करने के लिए महात्मा गांधी ने आवाज उठाई. उन्होंने लोगों से शांति पूर्वक विरोध करने को कहा.छह अप्रैल 1919 को राष्ट्रीय अपमान विरोध दिवस मनाया गया. अंग्रेजों ने इसका दमन करने के लिए पंजाब के अलग-अलग हिस्सों में हिंसा का सहारा लिया.डॉ सतपाल और डा किचलू, उनके निशाने पर थे. इन दोनों नेताओं को शहर से निकाला दे दिया गया.आम सभाओं पर रोक थी. कर्फ्यू लगा दिया गया, लेकिन आम जनता को इस प्रतिबंध के बारे में विशेष जानकारी नहीं थी.इस समय यहां की जिम्मेवारी जनरल डायर को दे दी गई थी. 13 अप्रैल, 1919 को शांतिपूर्वक सभा का आयोजन किया जा रहा था. जगह जलियांवाला बाग.हजारों लोग मैदान में जमा थे. वे लोग शांतिपूर्वक अंग्रेजो का विरोध करने के लिए एकत्रित हुए थे. बैसाखी का दिन था, इसलिए वहां काफी संख्या में बच्चे और महिलाएं भी मौजूद थीं.तभी जनरल डायर का राक्षसी चेहरा सामने दिखा, उसने बिना किसी चेतावनी के गोली चलाने का हुक्म दे दिया.एक रिपोर्ट के अनुसार 1650 चक्र गोलियां चलाई गईं. खुद अंग्रेजी हुकूमत के मुताबिक 379 लोग मारे गए. 1200 से अधिक घायल हुए. वैसे, आम लोगों के मुताबिक मरने वालों की संख्या काफी अधिक थी.आज भी यहां गोलियों के निशान देखे जा सकते हैं. जर्रे-जर्रे पर मानवता के संघर्ष की अमर कहानी लिखी हुई है. गुरुदेव रविन्द्र नाथ टैगोर ने इस घटना से आहत होकर नाईटहुड का खिताब लौटा दिया था.आपको यकीन नहीं होगा, इस मामले की सुनवाई के लिए बनाई गई हंटर कमेटी के सामने कर्नल जॉनसन ने ये तक कह दिया था कि हमें दोबारा मौका मिला, तो ऐसा फिर करेंगे.गांधीजी इससे काफी व्यथित हो गए थे. तब कांग्रेस ने इस कमेटी का बहिष्कार करने का निर्णय लिया और अपनी ओर से कमेटी बनाई. इस कमेटी के अध्यक्ष प. मदन मोहन मालवीय थे. गांधी जी के अलावा मोतीलाल नेहरू, सीआर दास, अब्बास सैयद और एमआर जयकर कमिटी के अन्य सदस्य थे.गांधी जी ने इस घटना के बाद अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग आंदोलन चलाने का बड़ा और ऐतिहासिक फैसला लिया.नरसंहार के 100 साल बाद आज जलियांवाला बाग में अमर शहीदों का एक स्मारक है. इस पर उनके नाम अंकित हैं. आजादी के लिए उनके बलिदान को आज भी लोग वैसे ही याद करते हैं.ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ ने 1997 में शहीदों को श्रद्धांजलि दी थी. 2013 में तत्कालीन ब्रिटिश पीएम डेविड कैमरन ने दौरा किया था. इसे शर्मनाक घटना बताया था.हाल ही में प्रधानमंत्री टेरीजा मे ने भी ब्रिटेन की संसद में जलियांवाला बाग की घटना पर अफसोस जाहिर किया है.

नई दिल्ली: पंजाब, पांच नदियों से घिरा प्रदेश है. इस प्रदेश ने महान गुरुओं को जन्म दिया. इसी राज्य का एक शहर है अमृतसर, जहां से थोड़ी ही दूर पर एक जगह है, जलियांवाला बाग.

तारीख 3 अप्रैल, 1919 थी, बैसाखी का दिन. इस दिन खुशहाली और हरियाली का जश्‍न चारों ओर मनाया जा रहा था. बच्चे-युवा-बुजुर्ग सब एक साथ एक सभा में भाग लेने आए थे.

देखें जलियांवाला बाग की कहानी.
तभी चारों ओर से ...धांय..धांय...धांय...की आवाज आने लगी और फिर चारों ओर चीख पुकार मच गई. जिधर देखो, उधर खून ही खून, लाशें ही लाशें. हजारों लोग घायल हो गए. किसी को कुछ नहीं पता चला. आखिर ये क्या हो गया, उनकी क्या खता थी. कोई तो बताता कि तुमने ये जुर्म किया है.अंग्रेजों का क्रूर और अमानवीय शासन पूरे देश पर जुल्म ढा रहा था. बिना किसी वार्निंग के ही फायरिंग की इजाजत दे दी गई थी.इस घटना ने पूरे देश को स्तब्ध कर दिया था.दरअसल, 1919 में अंग्रेजी हुकूमत ने रॉलेट एक्ट पारित किया था. इसके तहत किसी भी हिंदुस्तानी को अंग्रेज सरकार गिरफ्तार कर सकती थी. यह सचमुच बहुत ही भयानक था.इस कानून का विरोध करने के लिए महात्मा गांधी ने आवाज उठाई. उन्होंने लोगों से शांति पूर्वक विरोध करने को कहा.छह अप्रैल 1919 को राष्ट्रीय अपमान विरोध दिवस मनाया गया. अंग्रेजों ने इसका दमन करने के लिए पंजाब के अलग-अलग हिस्सों में हिंसा का सहारा लिया.डॉ सतपाल और डा किचलू, उनके निशाने पर थे. इन दोनों नेताओं को शहर से निकाला दे दिया गया.आम सभाओं पर रोक थी. कर्फ्यू लगा दिया गया, लेकिन आम जनता को इस प्रतिबंध के बारे में विशेष जानकारी नहीं थी.इस समय यहां की जिम्मेवारी जनरल डायर को दे दी गई थी. 13 अप्रैल, 1919 को शांतिपूर्वक सभा का आयोजन किया जा रहा था. जगह जलियांवाला बाग.हजारों लोग मैदान में जमा थे. वे लोग शांतिपूर्वक अंग्रेजो का विरोध करने के लिए एकत्रित हुए थे. बैसाखी का दिन था, इसलिए वहां काफी संख्या में बच्चे और महिलाएं भी मौजूद थीं.तभी जनरल डायर का राक्षसी चेहरा सामने दिखा, उसने बिना किसी चेतावनी के गोली चलाने का हुक्म दे दिया.एक रिपोर्ट के अनुसार 1650 चक्र गोलियां चलाई गईं. खुद अंग्रेजी हुकूमत के मुताबिक 379 लोग मारे गए. 1200 से अधिक घायल हुए. वैसे, आम लोगों के मुताबिक मरने वालों की संख्या काफी अधिक थी.आज भी यहां गोलियों के निशान देखे जा सकते हैं. जर्रे-जर्रे पर मानवता के संघर्ष की अमर कहानी लिखी हुई है. गुरुदेव रविन्द्र नाथ टैगोर ने इस घटना से आहत होकर नाईटहुड का खिताब लौटा दिया था.आपको यकीन नहीं होगा, इस मामले की सुनवाई के लिए बनाई गई हंटर कमेटी के सामने कर्नल जॉनसन ने ये तक कह दिया था कि हमें दोबारा मौका मिला, तो ऐसा फिर करेंगे.गांधीजी इससे काफी व्यथित हो गए थे. तब कांग्रेस ने इस कमेटी का बहिष्कार करने का निर्णय लिया और अपनी ओर से कमेटी बनाई. इस कमेटी के अध्यक्ष प. मदन मोहन मालवीय थे. गांधी जी के अलावा मोतीलाल नेहरू, सीआर दास, अब्बास सैयद और एमआर जयकर कमिटी के अन्य सदस्य थे.गांधी जी ने इस घटना के बाद अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग आंदोलन चलाने का बड़ा और ऐतिहासिक फैसला लिया.नरसंहार के 100 साल बाद आज जलियांवाला बाग में अमर शहीदों का एक स्मारक है. इस पर उनके नाम अंकित हैं. आजादी के लिए उनके बलिदान को आज भी लोग वैसे ही याद करते हैं.ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ ने 1997 में शहीदों को श्रद्धांजलि दी थी. 2013 में तत्कालीन ब्रिटिश पीएम डेविड कैमरन ने दौरा किया था. इसे शर्मनाक घटना बताया था.हाल ही में प्रधानमंत्री टेरीजा मे ने भी ब्रिटेन की संसद में जलियांवाला बाग की घटना पर अफसोस जाहिर किया है.
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Last Updated : Apr 13, 2019, 12:12 PM IST
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