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महिला दिवस विशेष : कहानी उस महिला की जिसकी लेखनी संताली भाषा में रोशनी भर रही है

दमयंती कहती हैं कि वह जिस समाज से आती हैं, बस वहां उन्हें संघर्ष करना पड़ा. वह कहती हैं कि संताली भाषा में पब्लिशर न होने की वजह से उन्हें परेशानियां झेलनी पड़ीं. जानें कौन हैं डॉक्टर दमयंती बेशरा...

डॉक्टर दमयंती बेशरा
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Published : Mar 2, 2020, 7:06 AM IST

Updated : Mar 3, 2020, 3:02 AM IST

भुवनेश्वर : महिला दिवस पर महिला सशक्तिकरण के लिए आवाज उठाने वाली डॉक्टर दमयंती बेशरा, वह महिला हैं, जिन्होंने संताली भाषा के साहित्य और शिक्षा में बहुत काम किया है. उनके अमूल्य योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें पद्म पुरस्कार के लिए चुना है.

दमयंती का जन्म 18 फरवरी 1962 को मयूरभंज जिले के बोबीजोडा में हुआ था. उनके पिता का नाम राजमल मांझी और माता का नाम पुंगी मांझी था. साल 1988 में वे गंगाधर हांसदा के साथ विवाह के बंधन में बंधी. साल 2009 में दमयंती बेशरा को उनकी रचना शाय साहेद के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया. साल 2011 से वे पहली महिला संताली मैगजीन 'करम डार' प्रकाशित कर रही हैं.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

ईटीवी भारत से खास बातचीत में दमयंती बेशरा ने अपने सफर, सफलता और महिलाओं के विषय पर खुलकर बात की. उन्होंने बताया कि 'पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने लिखना शुरू कर दिया था. नौकरी और शादी के बाद उनकी किताब प्रकाशित हुई'. दमयंती बताती हैं कि, 'उस वक्त संताली में लिखने वाली ज्यादा लेखिकाएं ज्यादा नहीं थीं, इसलिए उन्हें बहुत पसंद, सराहा और प्रोत्साहित किया'. वह कहती हैं कि 'यही वजह है कि वह यहां तक पहुंची'.

परिवार से मिला पूरा सपोर्ट
परिवार ने उन्हें कैसे सपोर्ट मिला इस पर भी दमयंती ने ईटीवी भारत से बात की. उन्होंने बताया कि 'उन्हें परिवार से पूरा सपोर्ट मिला. उनके माता-पिता ने पढ़ाई नहीं की थी लेकिन उन्हें बहुत पढ़ाया. नौकरी की छूट दी. शादी के बाद उन्हें पति और ससुराल का भरपूर सहयोग दिया. सास, ससुर और ननद उनके साथ हमेशा खड़े रहे. नौकरी के साथ काम करते वक्त भी परिवार साथ रहा. खाना बनाने से लेकर बच्चों को संभालने तक फैमिली उनके साथ खड़ रही'. दमयंती कहती है 'उनका परिवार और पति हमेशा उनके साथ खड़े रहे'.

पढ़ें- विशेष लेख : अपर्याप्त मुआवजे (क्षतिपूर्ति) के कारण आत्मविश्वास की कमी

संताली भाषा में पब्लिशर न होने से हुई परेशानी

  • दमयंती कहती हैं कि 'वह जिस समाज से आती हैं, बस वहां उन्हें संघर्ष करना पड़ा. वह कहती हैं कि संताली भाषा में पब्लिशर न होने की वजह से उन्हें परेशानियां झेलनी पड़ीं'.
  • वह कहती हैं कि 'घर, परिवार और काम महिलाओं को मैनेज करना पड़ता है. इसलिए एक्टिव रहें, अपना टाइम-टेबल सही से सेट करें'. उन्होंने बताया कि 'वह खुद समय बचाकर लिखने और पढ़ने का काम कर लेती हैं'.
  • दमयंती ने महिलाओं को खुद को अबला और दुर्बल नहीं समझने की बात कही है . उन्होंने कहा कि 'महिलाएं आत्मविश्वास के साथ काम करेंगी तो सफल होंगी. जो काम पुरुष कर सकते हैं, वह महिलाएं भी कर सकती हैं'. दमयंती ने कहा कि 'महिलाओं को पढ़ाई जरूर करनी चाहिए'.
  • आदिवासी महिलाओं की स्थिति पर ध्यान कैसे आकृष्ट हो इसे दमयंती ने बहुत मुश्किल सवाल बताया. वह कहती हैं कि 'लोगों की मानसिकता और उनकी सोच बदलनी होगी. आदिवासी महिलाओं को शिक्षित करके उनकी स्थिति बदली जा सकती है'.

भुवनेश्वर : महिला दिवस पर महिला सशक्तिकरण के लिए आवाज उठाने वाली डॉक्टर दमयंती बेशरा, वह महिला हैं, जिन्होंने संताली भाषा के साहित्य और शिक्षा में बहुत काम किया है. उनके अमूल्य योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें पद्म पुरस्कार के लिए चुना है.

दमयंती का जन्म 18 फरवरी 1962 को मयूरभंज जिले के बोबीजोडा में हुआ था. उनके पिता का नाम राजमल मांझी और माता का नाम पुंगी मांझी था. साल 1988 में वे गंगाधर हांसदा के साथ विवाह के बंधन में बंधी. साल 2009 में दमयंती बेशरा को उनकी रचना शाय साहेद के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया. साल 2011 से वे पहली महिला संताली मैगजीन 'करम डार' प्रकाशित कर रही हैं.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

ईटीवी भारत से खास बातचीत में दमयंती बेशरा ने अपने सफर, सफलता और महिलाओं के विषय पर खुलकर बात की. उन्होंने बताया कि 'पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने लिखना शुरू कर दिया था. नौकरी और शादी के बाद उनकी किताब प्रकाशित हुई'. दमयंती बताती हैं कि, 'उस वक्त संताली में लिखने वाली ज्यादा लेखिकाएं ज्यादा नहीं थीं, इसलिए उन्हें बहुत पसंद, सराहा और प्रोत्साहित किया'. वह कहती हैं कि 'यही वजह है कि वह यहां तक पहुंची'.

परिवार से मिला पूरा सपोर्ट
परिवार ने उन्हें कैसे सपोर्ट मिला इस पर भी दमयंती ने ईटीवी भारत से बात की. उन्होंने बताया कि 'उन्हें परिवार से पूरा सपोर्ट मिला. उनके माता-पिता ने पढ़ाई नहीं की थी लेकिन उन्हें बहुत पढ़ाया. नौकरी की छूट दी. शादी के बाद उन्हें पति और ससुराल का भरपूर सहयोग दिया. सास, ससुर और ननद उनके साथ हमेशा खड़े रहे. नौकरी के साथ काम करते वक्त भी परिवार साथ रहा. खाना बनाने से लेकर बच्चों को संभालने तक फैमिली उनके साथ खड़ रही'. दमयंती कहती है 'उनका परिवार और पति हमेशा उनके साथ खड़े रहे'.

पढ़ें- विशेष लेख : अपर्याप्त मुआवजे (क्षतिपूर्ति) के कारण आत्मविश्वास की कमी

संताली भाषा में पब्लिशर न होने से हुई परेशानी

  • दमयंती कहती हैं कि 'वह जिस समाज से आती हैं, बस वहां उन्हें संघर्ष करना पड़ा. वह कहती हैं कि संताली भाषा में पब्लिशर न होने की वजह से उन्हें परेशानियां झेलनी पड़ीं'.
  • वह कहती हैं कि 'घर, परिवार और काम महिलाओं को मैनेज करना पड़ता है. इसलिए एक्टिव रहें, अपना टाइम-टेबल सही से सेट करें'. उन्होंने बताया कि 'वह खुद समय बचाकर लिखने और पढ़ने का काम कर लेती हैं'.
  • दमयंती ने महिलाओं को खुद को अबला और दुर्बल नहीं समझने की बात कही है . उन्होंने कहा कि 'महिलाएं आत्मविश्वास के साथ काम करेंगी तो सफल होंगी. जो काम पुरुष कर सकते हैं, वह महिलाएं भी कर सकती हैं'. दमयंती ने कहा कि 'महिलाओं को पढ़ाई जरूर करनी चाहिए'.
  • आदिवासी महिलाओं की स्थिति पर ध्यान कैसे आकृष्ट हो इसे दमयंती ने बहुत मुश्किल सवाल बताया. वह कहती हैं कि 'लोगों की मानसिकता और उनकी सोच बदलनी होगी. आदिवासी महिलाओं को शिक्षित करके उनकी स्थिति बदली जा सकती है'.
Last Updated : Mar 3, 2020, 3:02 AM IST
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