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दिल्ली हिंसा मामला : छह और आरोपियों की जमानत याचिकाएं मंजूर - जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष

दिल्ली हिंसा मामले में छह और मुस्लिम आरोपियों की जमानत याचिकाएं मंजूर हो गई हैं. जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना सैयद अरशद मदनी ने इन सभी लोगों की जमानत याचिकाओं को स्वीकार करने पर संतोष व्यक्त करते हुए कहा कि केवल उन्हें जमानत पर रिहा करना हमारा उद्देश्य नहीं था, हम उन लोगों के लिए न्याय चाहते हैं, जिन्हें दंगों के आरोप में जबरन गिरफ्तार किया गया है. उन्हें सम्मान के साथ रिहा करना चाहिए.

मौलाना सैयद अरशद मदनी
मौलाना सैयद अरशद मदनी
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Published : Oct 23, 2020, 11:33 PM IST

नई दिल्ली : जमीयत उलमा-ए-हिंद के प्रयासों के परिणामस्वरूप दिल्ली हिंसा मामले में छह और आरोपियों की जमानत याचिकाएं मंजूर हो गई हैं. पिछले दो दिनों में कड़कड़डूमा सत्र न्यायालय ने दिल्ली दंगा मामले में गिरफ्तार किए गए शादाब अहमद, राशिद सैफी, शाह आलम, मोहम्मद आबिद, अरशद कय्यूम और शाह आलम को सशर्त जमानत दी है.

अब तक जमीयत उलमा-ए-हिंद के माध्यम से दायर 16 जमानत याचिकाओं को दिल्ली उच्च न्यायालय और सत्र न्यायालय द्वारा स्वीकार किया जा चुका है.

गौरतलब है कि जमीयत उलमा-ए-हिंद दिल्ली दंगों के आरोप में गिरफ्तार किए गए सैकड़ों मुसलमानों का केस लड़ रहा है. जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी के विशेष निर्देश पर सत्र न्यायालय से लेकर दिल्ली उच्च न्यायालय तक आरोपियों की रिहाई के लिए कानूनी प्रयास किए जा रहे हैं.

शादाब अहमद, राशिद सैफी, शाह आलम और मोहम्मद आबिद को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव ने 25,000 रुपये के निजी मुचलके पर जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया है.

सरकारी वकील ने जमानत पर अभियुक्तों की रिहाई का विरोध किया और अदालत से कहा कि जमानत पर अभियुक्तों की रिहाई शांति प्रक्रिया को बाधित कर सकती है, लेकिन अदालत ने बचाव पक्ष के वकीलों की दलीलों से सहमति व्यक्त की और अभियुक्त को जमानत दे दी.

जमीयत उलेमा-ए-हिंद के वकील एडवोकेट जहीरूद्दीन बाबर चौहान और उनके सहायक एडवोकेट दिनेश आरोपियों की ओर से पेश हुए. उन्होंने अदालत को बताया कि मामले में पुलिस द्वारा चार आरोप पत्र दायर किए गए थे और उनके खिलाफ कोई प्रत्यक्ष सबूत नहीं था. आरोपियों को इसलिए जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए.

उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 147, 148, 149, 436, 427 और PDPP अधिनियम की धारा 3, 4 के तहत मामला दर्ज किया गया था और आरोपी तीन महीने से अधिक समय से जेल में बंद हैं.

जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना सैयद अरशद मदनी ने इन सभी लोगों की जमानत याचिकाओं को स्वीकार करने पर संतोष व्यक्त करते हुए कहा कि केवल उन्हें जमानत पर रिहा करना हमारा उद्देश्य नहीं था, हम उन लोगों के लिए न्याय चाहते हैं, जिनको दिल्ली दंगों के आरोप में जबरन गिरफ्तार किया गया है. उन्हें सम्मान के साथ रिहा करना चाहिए.

उन्होंने कहा कि दिल्ली हिंसा के बारे में सभी तथ्य कुछ अखबारों में प्रकाश में आए कि कैसे साजिश रची गई थी. इसमें कौन शामिल था और कैसे दंगों में एक विशेष समुदाय को निशाना बनाने और उनकी संपत्ति को नष्ट करने की योजना बनाई गई थी. दुर्भाग्य से दिल्ली पुलिस ने जांच के नाम पर उन लोगों पर मुकदमा चलाया, जो दंगों के पीड़ित थे.

पढ़ें - इशरत मामला : आरोपमुक्ति का आग्रह करने वाली याचिकाएं खारिज

उन्होंने आगे कहा कि जमीयत उलमा-ए-हिंद की कानूनी सहायता का वास्तविक उद्देश्य सभी निर्दोष लोगों को हरसंभव तरीके से कानूनी सहायता प्रदान करना है. सरकारी वकील के कड़े विरोध के बावजूद महीनों से जेल में बंद लोगों की जमानत याचिका स्वीकार की जा रही है.

उन्होंने आगे कहा कि जमीयत उलमा-ए-हिंद, पिछले सत्तर वर्षों से धर्म के आधार पर हिंसा, अत्याचार और दंगों के खिलाफ एक सख्त कानून की मांग कर रहा है, जिसमें जिला प्रशासन को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए.

अंत में उन्होंने कहा कि देश में स्थिति निस्संदेह निराशाजनक और खतरनाक है, लेकिन हमें निराश होने की आवश्यकता नहीं है. क्योंकि सभी साजिशों के बावजूद देश के अधिकांश लोग सांप्रदायिकता के खिलाफ हैं.

दूसरी ओर, जमीयत उलमा-ए-हिंद के मौलाना कारी मोहम्मद उस्मान मंसूरपुरी ने शुक्रवार को पूर्वोत्तर दिल्ली में दंगा पीड़ितों को नवनिर्मित मकानों की चाबी सौंपी.

नई दिल्ली : जमीयत उलमा-ए-हिंद के प्रयासों के परिणामस्वरूप दिल्ली हिंसा मामले में छह और आरोपियों की जमानत याचिकाएं मंजूर हो गई हैं. पिछले दो दिनों में कड़कड़डूमा सत्र न्यायालय ने दिल्ली दंगा मामले में गिरफ्तार किए गए शादाब अहमद, राशिद सैफी, शाह आलम, मोहम्मद आबिद, अरशद कय्यूम और शाह आलम को सशर्त जमानत दी है.

अब तक जमीयत उलमा-ए-हिंद के माध्यम से दायर 16 जमानत याचिकाओं को दिल्ली उच्च न्यायालय और सत्र न्यायालय द्वारा स्वीकार किया जा चुका है.

गौरतलब है कि जमीयत उलमा-ए-हिंद दिल्ली दंगों के आरोप में गिरफ्तार किए गए सैकड़ों मुसलमानों का केस लड़ रहा है. जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी के विशेष निर्देश पर सत्र न्यायालय से लेकर दिल्ली उच्च न्यायालय तक आरोपियों की रिहाई के लिए कानूनी प्रयास किए जा रहे हैं.

शादाब अहमद, राशिद सैफी, शाह आलम और मोहम्मद आबिद को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव ने 25,000 रुपये के निजी मुचलके पर जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया है.

सरकारी वकील ने जमानत पर अभियुक्तों की रिहाई का विरोध किया और अदालत से कहा कि जमानत पर अभियुक्तों की रिहाई शांति प्रक्रिया को बाधित कर सकती है, लेकिन अदालत ने बचाव पक्ष के वकीलों की दलीलों से सहमति व्यक्त की और अभियुक्त को जमानत दे दी.

जमीयत उलेमा-ए-हिंद के वकील एडवोकेट जहीरूद्दीन बाबर चौहान और उनके सहायक एडवोकेट दिनेश आरोपियों की ओर से पेश हुए. उन्होंने अदालत को बताया कि मामले में पुलिस द्वारा चार आरोप पत्र दायर किए गए थे और उनके खिलाफ कोई प्रत्यक्ष सबूत नहीं था. आरोपियों को इसलिए जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए.

उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 147, 148, 149, 436, 427 और PDPP अधिनियम की धारा 3, 4 के तहत मामला दर्ज किया गया था और आरोपी तीन महीने से अधिक समय से जेल में बंद हैं.

जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना सैयद अरशद मदनी ने इन सभी लोगों की जमानत याचिकाओं को स्वीकार करने पर संतोष व्यक्त करते हुए कहा कि केवल उन्हें जमानत पर रिहा करना हमारा उद्देश्य नहीं था, हम उन लोगों के लिए न्याय चाहते हैं, जिनको दिल्ली दंगों के आरोप में जबरन गिरफ्तार किया गया है. उन्हें सम्मान के साथ रिहा करना चाहिए.

उन्होंने कहा कि दिल्ली हिंसा के बारे में सभी तथ्य कुछ अखबारों में प्रकाश में आए कि कैसे साजिश रची गई थी. इसमें कौन शामिल था और कैसे दंगों में एक विशेष समुदाय को निशाना बनाने और उनकी संपत्ति को नष्ट करने की योजना बनाई गई थी. दुर्भाग्य से दिल्ली पुलिस ने जांच के नाम पर उन लोगों पर मुकदमा चलाया, जो दंगों के पीड़ित थे.

पढ़ें - इशरत मामला : आरोपमुक्ति का आग्रह करने वाली याचिकाएं खारिज

उन्होंने आगे कहा कि जमीयत उलमा-ए-हिंद की कानूनी सहायता का वास्तविक उद्देश्य सभी निर्दोष लोगों को हरसंभव तरीके से कानूनी सहायता प्रदान करना है. सरकारी वकील के कड़े विरोध के बावजूद महीनों से जेल में बंद लोगों की जमानत याचिका स्वीकार की जा रही है.

उन्होंने आगे कहा कि जमीयत उलमा-ए-हिंद, पिछले सत्तर वर्षों से धर्म के आधार पर हिंसा, अत्याचार और दंगों के खिलाफ एक सख्त कानून की मांग कर रहा है, जिसमें जिला प्रशासन को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए.

अंत में उन्होंने कहा कि देश में स्थिति निस्संदेह निराशाजनक और खतरनाक है, लेकिन हमें निराश होने की आवश्यकता नहीं है. क्योंकि सभी साजिशों के बावजूद देश के अधिकांश लोग सांप्रदायिकता के खिलाफ हैं.

दूसरी ओर, जमीयत उलमा-ए-हिंद के मौलाना कारी मोहम्मद उस्मान मंसूरपुरी ने शुक्रवार को पूर्वोत्तर दिल्ली में दंगा पीड़ितों को नवनिर्मित मकानों की चाबी सौंपी.

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