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छत्तीसगढ़ : राज्य स्थापना से लेकर अब तक साफ पानी के लिए तरस रहा परिवार

छत्तीसगढ़ के नारायणपुर विधानसभा क्षेत्र में पाडेरपानी गांव के 20 परिवार साफ पानी के लिए तरस रहे हैं. जंगल के बीच बसे इस गांव तक ईटीवी भारत पहुंचा. ग्रामीणों की परेशानियों से विधायक चंदन कश्यप को अवगत कराया गया. चंदन कश्यप ने वादा किया कि लॉकडाउन के बाद वहां प्राथमिकता के साथ सारी व्यवस्थाएं कराई जाएंगी.

NAT-HN-situation of Naxalite affected village in chhattisgarh-23-05-2020-CG-DESK
प्रतीकात्मक चित्र
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Published : May 24, 2020, 12:26 AM IST

जगदलपुर : उम्मीद, जद्दोजहद में इनकी जिंदगी बीत रही है. इंतजार इतना लंबा है कि सरकारें बदलीं, जनप्रतिनिधि बदले, लेकिन यहां के हालात जस के तस ही रहे. छत्तीसगढ़ के नारायणपुर विधानसभा क्षेत्र में पाडेरपानी गांव के 20 परिवार वर्षों से साफ पानी के लिए तरस रहे हैं. 19 साल के छत्तीसगढ़ में एक भी नेता और अधिकारी ऐसा नहीं मिला, जो उन्हें बाकी सुविधाएं छोड़िए, साफ पानी ही दिला पाता. ईटीवी भारत की टीम यहां पहुंची, तो हालात बेहद निराश करने वाले थे.

विधायक चंदन कश्यप ने कहा कि उन्हें इस बारे में जानकारी ईटीवी भारत के जरिए मिली है. चंदन कश्यप ने वादा किया कि लॉकडाउन के बाद वहां प्राथमिकता के साथ सारी व्यवस्थाएं कराई जाएंगी.

उन्होंने कहा कि उनका डेढ़ साल का कार्यकाल प्रदेश में हुए चुनाव में व्यस्त रहने के कारण बीत गया है. पिछले 3 महीनों से कोरोना महामारी की वजह से कोई काम नहीं हो पा रहा है. विधायक का कहना है कि जल्द ही पाडेरपानी पारा में नलकूप की स्वीकृति दे दी जाएगी.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

यहां के ग्रामीण पिछले कई सालों से सरकार से कुएं या बोरवेल जैसी सुविधा की मांग कर रहे हैं, लेकिन अब तक मांग पूरी नहीं हुई है. ऐसे में इनके पास नदी का दूषित पानी पीने के अलावा कोई रास्ता नहीं है. झिरिया का पानी पीने से कुछ ग्रामीण बीमार पड़ चुके हैं. वहीं कुछ गांववालों की डायरिया, मलेरिया जैसी गंभीर बीमारी से मौत भी हो चुकी है.

भाजपा हो या कांग्रेस सरकार दोनों ने बस्तर के विकास को लेकर बड़े-बड़े दावे किए हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही नजर आती है. पाडेरपानी पारा में लगभग 50 लोग रहते हैं, जो पिछले कई सालों से इसी तरह पानी के लिए तरस रहे हैं. कई जनप्रतिनिधियों को अपनी परेशानी की जानकारी भी दे चुके हैं, लेकिन अब तक कोई नेता इस गांव तक नहीं पहुंचा है. पिछली सरकार में नारायणपुर विधानसभा क्षेत्र से ही केदार कश्यप दो बार विधायक बने. प्रदेश मे पीएचई मंत्री भी रहे, लेकिन इन ग्रामीणों को शुद्ध पेयजल मुहैया नहीं करा सके.

पढ़ें: कोरोना पर उठाए गए कदमों की जानकारी देंगे सीएम भूपेश, रविवार को रेडियो पर होगा प्रसारण

थोड़ी दूर है सांसद का घर

साफ पेयजल के लिए तरसते इस गांव की दूरी जिला मुख्यालय से भले ही 90 किलोमीटर हो, लेकिन बस्तर सांसद दीपक बैज का निवास महज 50 किलोमीटर दूर है. फिर भी गांव में विकास की बात तो दूर, यहां के लोग झिरिया के दूषित पानी पर आश्रित हैं.

गर्मी में जीवन और मुश्किल

भीषण गर्मी में हालात और बदतर हो जाते हैं. गर्मी के दिनों में सुबह से तेज धूप हो जाती है और झिरिया का पानी भी सूख जाता है. ऐसे में इन ग्रामीणों को सुबह 4 बजे से 5 बजे के बीच पानी लेने पहुंचना पड़ता है. वरना पूरा दिन बिना पानी के गुजारना पड़ता है.

बरसात में भी परेशानी

ग्रामीणों ने बताया कि बरसात के दिनों में झिरिया के ऊपर नाला बहने लगता है, ऐसे में इन्हें इसके पानी से ही काम चलाना होता है. गंदे पानी से बीमारी का खतरा बढ़ जाता है, लेकिन कोई ध्यान देने वाला नहीं है.

जगदलपुर : उम्मीद, जद्दोजहद में इनकी जिंदगी बीत रही है. इंतजार इतना लंबा है कि सरकारें बदलीं, जनप्रतिनिधि बदले, लेकिन यहां के हालात जस के तस ही रहे. छत्तीसगढ़ के नारायणपुर विधानसभा क्षेत्र में पाडेरपानी गांव के 20 परिवार वर्षों से साफ पानी के लिए तरस रहे हैं. 19 साल के छत्तीसगढ़ में एक भी नेता और अधिकारी ऐसा नहीं मिला, जो उन्हें बाकी सुविधाएं छोड़िए, साफ पानी ही दिला पाता. ईटीवी भारत की टीम यहां पहुंची, तो हालात बेहद निराश करने वाले थे.

विधायक चंदन कश्यप ने कहा कि उन्हें इस बारे में जानकारी ईटीवी भारत के जरिए मिली है. चंदन कश्यप ने वादा किया कि लॉकडाउन के बाद वहां प्राथमिकता के साथ सारी व्यवस्थाएं कराई जाएंगी.

उन्होंने कहा कि उनका डेढ़ साल का कार्यकाल प्रदेश में हुए चुनाव में व्यस्त रहने के कारण बीत गया है. पिछले 3 महीनों से कोरोना महामारी की वजह से कोई काम नहीं हो पा रहा है. विधायक का कहना है कि जल्द ही पाडेरपानी पारा में नलकूप की स्वीकृति दे दी जाएगी.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

यहां के ग्रामीण पिछले कई सालों से सरकार से कुएं या बोरवेल जैसी सुविधा की मांग कर रहे हैं, लेकिन अब तक मांग पूरी नहीं हुई है. ऐसे में इनके पास नदी का दूषित पानी पीने के अलावा कोई रास्ता नहीं है. झिरिया का पानी पीने से कुछ ग्रामीण बीमार पड़ चुके हैं. वहीं कुछ गांववालों की डायरिया, मलेरिया जैसी गंभीर बीमारी से मौत भी हो चुकी है.

भाजपा हो या कांग्रेस सरकार दोनों ने बस्तर के विकास को लेकर बड़े-बड़े दावे किए हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही नजर आती है. पाडेरपानी पारा में लगभग 50 लोग रहते हैं, जो पिछले कई सालों से इसी तरह पानी के लिए तरस रहे हैं. कई जनप्रतिनिधियों को अपनी परेशानी की जानकारी भी दे चुके हैं, लेकिन अब तक कोई नेता इस गांव तक नहीं पहुंचा है. पिछली सरकार में नारायणपुर विधानसभा क्षेत्र से ही केदार कश्यप दो बार विधायक बने. प्रदेश मे पीएचई मंत्री भी रहे, लेकिन इन ग्रामीणों को शुद्ध पेयजल मुहैया नहीं करा सके.

पढ़ें: कोरोना पर उठाए गए कदमों की जानकारी देंगे सीएम भूपेश, रविवार को रेडियो पर होगा प्रसारण

थोड़ी दूर है सांसद का घर

साफ पेयजल के लिए तरसते इस गांव की दूरी जिला मुख्यालय से भले ही 90 किलोमीटर हो, लेकिन बस्तर सांसद दीपक बैज का निवास महज 50 किलोमीटर दूर है. फिर भी गांव में विकास की बात तो दूर, यहां के लोग झिरिया के दूषित पानी पर आश्रित हैं.

गर्मी में जीवन और मुश्किल

भीषण गर्मी में हालात और बदतर हो जाते हैं. गर्मी के दिनों में सुबह से तेज धूप हो जाती है और झिरिया का पानी भी सूख जाता है. ऐसे में इन ग्रामीणों को सुबह 4 बजे से 5 बजे के बीच पानी लेने पहुंचना पड़ता है. वरना पूरा दिन बिना पानी के गुजारना पड़ता है.

बरसात में भी परेशानी

ग्रामीणों ने बताया कि बरसात के दिनों में झिरिया के ऊपर नाला बहने लगता है, ऐसे में इन्हें इसके पानी से ही काम चलाना होता है. गंदे पानी से बीमारी का खतरा बढ़ जाता है, लेकिन कोई ध्यान देने वाला नहीं है.

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