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कारगिल युद्ध के 21 साल: हम भूल गए शहीद के परिवारों से किए वादे?

कारगिल की जंग में बिहार के 18 सपूतों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी थी, लेकिन उनके परिजन आज भी सरकार की उपेक्षा का शिकार हो रहे हैं. सरकार ने इन शहीदों के परिवारों से कई वादे किए थे, लेकिन उन्हें अब तक पूरा नहीं किया जा सका है. पढ़ें पूरी खबर...

Martyred soldiers of Bihar in Kargil war
कारगिल युद्ध में बिहार के शहीद जवान
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Published : Jul 26, 2020, 5:08 PM IST

पटना : कारगिल की लड़ाई में पाकिस्तानी घुसपैठ से अपने अदम्य साहस के बल पर लड़ने वाले शूरवीरों में बिहार के कई सपूत भी शामिल थे. जिन्होंने मां भारती के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान देकर अपनी मातृभूमि की रक्षा का फर्ज अदा किया. ऑपरेशन विजय के तहत 60 दिनों तक चली जंग में बिहार रेजिमेंट के सैनिकों ने भी दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए थे. सरकार ने शहीदों के परिवार से कई प्रकार के वादे किए थे, जिसे अब तक पूरा नहीं किया गया है.

मुजफ्फरपुर के शहीद सुनील कुमार
आज से ठीक 21 साल पहले 26 जुलाई को कारगिल फतह कर सैनिकों ने तिरंगा लहराया था. कारगिल युद्ध में बिहार में पले-बढ़े 18 वीर जवानों ने सर्वोच्च बलिदान देकर अहम भूमिका निभाई थी. इन महावीर योद्धाओं में एक नाम मुजफ्फरपुर के मड़वन प्रखंड के फंदा निवासी नायक शहीद सुनील कुमार का भी है. जिन्होंने कारगिल विजय में अहम भूमिका निभाई थी.

मुजफ्फरपुर के शहीद सुनील कुमार का परिवार

पूरा नहीं किया गया वादा
शहीद के पिता ने कहा कि शहादत दिवस के मौके पर भी शहीद के समाधि पर कोई सरकारी अधिकारी या जनप्रतिनिधि नहीं आते हैं. देश की रक्षा करते जांबाज जवान अपने प्राणों का बलिदान दे देते हैं. ऐसे में सरकार तमाम वादे तो करती है, लेकिन उन्हें पूरा करने में वह ऊर्जा नहीं दिखाती, जो शहीद जवानों के परिजनों को थोड़ी राहत दे सकें.

पढ़ें - सेना ने कारगिल में समाप्त कर दिए पाकिस्तानी घुसपैठ वाले रास्ते

चित्तौड़ गांव के शहीद जवान रम्भु सिंह
सिवान जिले के अंदर प्रखंड स्थित चित्तौड़ गांव की कहानी भी किसी वीर गाथा से कम नहीं है. यहां के शहीद जवान रम्भु सिंह ने कारगिल युद्ध में मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राण को न्यौछावर कर दिया था. शहीद जवान रम्भु सिंह का जन्म 16 मार्च 1972 में हुआ था. उन्होंने ऑपरेशन विजय में अहम भूमिका निभाई था. 20 जून 1999 को दुश्मनों से लड़ते हुए वह वीरगति को प्राप्त हो गए.

शहीद जवान रम्भु सिंह के गांव की स्थिति

अब तक नहीं सुधरी गांव की स्थिति
शहीद के गांव में उनकी प्रतिमा लगा दी गई और वहां के विद्यालय का नाम उनके नाम पर रख दिया गया. लेकिन गांव में सड़कें आज तक नहीं बन पाई हैं. लोगों को कच्ची सड़कों से आना जाना पड़ता है. साथ ही बरसात में यहां जल-जमाव की समस्या भी उत्पन्न हो जाती है. शहीद रम्भु सिंह के घर में भी पानी घुस जाता है. गांव में स्थित स्कूल का नाम जवान रम्भु सिंह के नाम पर कर दिया गया. लेकिन स्कूल की स्थिति आज तक नहीं सुधरी. आज भी बच्चे यहां बैठने के लिए घर से बोरा लेकर आते हैं. वहीं, मिड डे मील भी कभी-कभी ही मिलता है. इसके साथ ही टीचर भी हमेशा लेट से आते हैं.

पढ़ें - कारगिल युद्ध में शहीद होने वाले 52 वीरों ने जब दुश्मन फौज के सामने दिखाया था कौशल

नालंदा के शहीद जवान हरदेव प्रसाद
कारगिल के शहीद जवानों में नालंदा जिले के एकंगर सराय प्रखंड स्थित कुकुरवर गांव निवासी जवान हरदेव प्रसाद का नाम शामिल है. जिन्होंने दुश्मनों से लड़ते हुए देश की रक्षा के लिए अपनी जान न्यौछावर कर दी थी, लेकिन उनका गांव आज भी विकास की रोशनी से कोसों दूर है.

नालंदा के शहीद जवान हरदेव प्रसाद के परिवार की स्थिति

नहीं लगाई गई शहीद की प्रतिमा
उस समय तत्कालीन मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने शहीद जवान हरदेव के परिजनों को राज्य सरकार की ओर से 10 लाख का मुआवजा और पत्नी मुन्नी देवी को एक सरकारी नौकरी दी थी. सेना के अधिकारी ने शहीद के भाई को सेना में नौकरी देने की बात कही थी. वहीं, गांव के विकास के लिए कई बड़े-बड़े वादे किए गए थे. जिसमें गांव को आदर्श गांव बनाने, स्कूल खोलने, सामुदायिक भवन बनाने, आदमकद प्रतिमा लगाने की बात कही गई थी, लेकिन आज तक उन सभी वादों में एक भी पूरा नहीं हो सका. शहीद की प्रतिमा भी नहीं लगाई गई. शहीद हरदेव के भाई आज भी खेती कर अपना व परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं.

पढ़ें - अर्जुन राम की शौर्य गाथा, जिनके साहस के सामने घुटने टेक दिए थे दुश्मन

इन गांवों के विकास से आप पता लगा सकते हैं कि अपने देश के लिए जान न्यौछावर करने वाले जवानों पर सरकार कितना ध्यान देती है. यह सरकार की अनदेखी है, ऐसे कई शहीदों के परिवार हैं जिनके पास अब तक सरकार की ओर से किसी प्रकार की मदद नहीं पहुंच पाई है. कई वादे किए गए और भरोसा दिलाया गया, लेकिन इसके बाद भी इन शहीदों के गांवों के हालात ठीक नहीं हो पाए.

पटना : कारगिल की लड़ाई में पाकिस्तानी घुसपैठ से अपने अदम्य साहस के बल पर लड़ने वाले शूरवीरों में बिहार के कई सपूत भी शामिल थे. जिन्होंने मां भारती के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान देकर अपनी मातृभूमि की रक्षा का फर्ज अदा किया. ऑपरेशन विजय के तहत 60 दिनों तक चली जंग में बिहार रेजिमेंट के सैनिकों ने भी दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए थे. सरकार ने शहीदों के परिवार से कई प्रकार के वादे किए थे, जिसे अब तक पूरा नहीं किया गया है.

मुजफ्फरपुर के शहीद सुनील कुमार
आज से ठीक 21 साल पहले 26 जुलाई को कारगिल फतह कर सैनिकों ने तिरंगा लहराया था. कारगिल युद्ध में बिहार में पले-बढ़े 18 वीर जवानों ने सर्वोच्च बलिदान देकर अहम भूमिका निभाई थी. इन महावीर योद्धाओं में एक नाम मुजफ्फरपुर के मड़वन प्रखंड के फंदा निवासी नायक शहीद सुनील कुमार का भी है. जिन्होंने कारगिल विजय में अहम भूमिका निभाई थी.

मुजफ्फरपुर के शहीद सुनील कुमार का परिवार

पूरा नहीं किया गया वादा
शहीद के पिता ने कहा कि शहादत दिवस के मौके पर भी शहीद के समाधि पर कोई सरकारी अधिकारी या जनप्रतिनिधि नहीं आते हैं. देश की रक्षा करते जांबाज जवान अपने प्राणों का बलिदान दे देते हैं. ऐसे में सरकार तमाम वादे तो करती है, लेकिन उन्हें पूरा करने में वह ऊर्जा नहीं दिखाती, जो शहीद जवानों के परिजनों को थोड़ी राहत दे सकें.

पढ़ें - सेना ने कारगिल में समाप्त कर दिए पाकिस्तानी घुसपैठ वाले रास्ते

चित्तौड़ गांव के शहीद जवान रम्भु सिंह
सिवान जिले के अंदर प्रखंड स्थित चित्तौड़ गांव की कहानी भी किसी वीर गाथा से कम नहीं है. यहां के शहीद जवान रम्भु सिंह ने कारगिल युद्ध में मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राण को न्यौछावर कर दिया था. शहीद जवान रम्भु सिंह का जन्म 16 मार्च 1972 में हुआ था. उन्होंने ऑपरेशन विजय में अहम भूमिका निभाई था. 20 जून 1999 को दुश्मनों से लड़ते हुए वह वीरगति को प्राप्त हो गए.

शहीद जवान रम्भु सिंह के गांव की स्थिति

अब तक नहीं सुधरी गांव की स्थिति
शहीद के गांव में उनकी प्रतिमा लगा दी गई और वहां के विद्यालय का नाम उनके नाम पर रख दिया गया. लेकिन गांव में सड़कें आज तक नहीं बन पाई हैं. लोगों को कच्ची सड़कों से आना जाना पड़ता है. साथ ही बरसात में यहां जल-जमाव की समस्या भी उत्पन्न हो जाती है. शहीद रम्भु सिंह के घर में भी पानी घुस जाता है. गांव में स्थित स्कूल का नाम जवान रम्भु सिंह के नाम पर कर दिया गया. लेकिन स्कूल की स्थिति आज तक नहीं सुधरी. आज भी बच्चे यहां बैठने के लिए घर से बोरा लेकर आते हैं. वहीं, मिड डे मील भी कभी-कभी ही मिलता है. इसके साथ ही टीचर भी हमेशा लेट से आते हैं.

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नालंदा के शहीद जवान हरदेव प्रसाद
कारगिल के शहीद जवानों में नालंदा जिले के एकंगर सराय प्रखंड स्थित कुकुरवर गांव निवासी जवान हरदेव प्रसाद का नाम शामिल है. जिन्होंने दुश्मनों से लड़ते हुए देश की रक्षा के लिए अपनी जान न्यौछावर कर दी थी, लेकिन उनका गांव आज भी विकास की रोशनी से कोसों दूर है.

नालंदा के शहीद जवान हरदेव प्रसाद के परिवार की स्थिति

नहीं लगाई गई शहीद की प्रतिमा
उस समय तत्कालीन मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने शहीद जवान हरदेव के परिजनों को राज्य सरकार की ओर से 10 लाख का मुआवजा और पत्नी मुन्नी देवी को एक सरकारी नौकरी दी थी. सेना के अधिकारी ने शहीद के भाई को सेना में नौकरी देने की बात कही थी. वहीं, गांव के विकास के लिए कई बड़े-बड़े वादे किए गए थे. जिसमें गांव को आदर्श गांव बनाने, स्कूल खोलने, सामुदायिक भवन बनाने, आदमकद प्रतिमा लगाने की बात कही गई थी, लेकिन आज तक उन सभी वादों में एक भी पूरा नहीं हो सका. शहीद की प्रतिमा भी नहीं लगाई गई. शहीद हरदेव के भाई आज भी खेती कर अपना व परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं.

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इन गांवों के विकास से आप पता लगा सकते हैं कि अपने देश के लिए जान न्यौछावर करने वाले जवानों पर सरकार कितना ध्यान देती है. यह सरकार की अनदेखी है, ऐसे कई शहीदों के परिवार हैं जिनके पास अब तक सरकार की ओर से किसी प्रकार की मदद नहीं पहुंच पाई है. कई वादे किए गए और भरोसा दिलाया गया, लेकिन इसके बाद भी इन शहीदों के गांवों के हालात ठीक नहीं हो पाए.

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