नई दिल्ली: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में भारत ने भले ही जम्मू-कश्मीर के मुद्दे का अंतर्राष्ट्रीयकरण करने के पाकिस्तान और चीन के प्रयासों को खारिज कर दिया है, बावजूद उसके कांग्रेस लगातार भाजपा पर निशाना साधती नजर आ रही है. कांग्रेस ने शनिवार को कहा कि जम्मू-कश्मीर में स्थिति बद से बदतर होती जाएगी.
असम प्रदेश कांग्रेस कमेटी (APCC) के अध्यक्ष रिपुन बोरा ने इस बारे में ईटीवी भारत से बातचीत की. उन्होंने कहा, 'सरकार को जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रीय राजनीतिक दलों, सामाजिक संगठनों, नागरिक समाज संगठनों सहित सभी हितधारकों से परामर्श करना चाहिए था.'
APCC के अध्यक्ष बोरा ने कहा कि केंद्र में वर्तमान सरकार के पास बहुमत है इसलिए वे अपने ही मुताबिक फैसले पर फैसला ले रहे हैं.
उन्होंने कहा, 'हाल के घटनाक्रम जम्मू-कश्मीर में स्थिति को और भड़का सकते हैं.'
बता दें, संयुक्त राष्ट्र के अंदर जम्मू-कश्मीर के मुद्दे को उठाकर इस पूरे मामले को अंतरराष्ट्रीय रूप देने की चीन और पाकिस्तान की नापाक साजिश को शुक्रवार को भारत ने अपने दमदार तर्कों और सबूतों से खारिज कर दिया. भारत की फील्डिंग इतनी शानदार रही कि रूस ने संयुक्त राष्ट्र की 'बंद कमरे' में बैठक शुरू होने से पहले ही जम्मू-कश्मीर को भारत-पाकिस्तान का द्विपक्षीय मसला बता दिया.
पढ़ें: कश्मीर मुद्दा : UNSC में भारत का दो टूक जवाब, कहा- ये हमारा आंतरिक मुद्दा
वहीं रूस ने एक बार फिर भारत से दोस्ती निभाते हुए कहा कि यह अंतरराष्ट्रीय नहीं बल्कि दोनों देशों के बीच का मामला है.
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि सैयद अकबरुद्दीन ने कहा कि अनुच्छेद 370 भारत का आंतरिक मसला है. इसमें बाहरी लोगों की जरूरत नहीं है. जम्मू-कश्मीर के सामाजिक और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए भारत ने यह फैसला लिया है.
उन्होंने कहा कि सरकार धीरे-धीरे पाबंदियां कश्मीर से हटा रही है. अकबरुद्दीन ने कहा कि पाकिस्तान जिहाद की बात कर हिंसा फैला रहा है. हम अपनी नीति पर हमेशा की तरह कायम हैं. हिंसा किसी भी समस्या का हल नहीं है. उन्होंने कहा कि बातचीत से पहले पाकिस्तान को आतंकवाद को रोकना होगा.
दरअसल, हाल ही में जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद से पाकिस्तान बौखलाया हुआ है. कश्मीर मुद्दा उसके गले की हड्डी बन गया है. अंतरराष्ट्रीय मंच पर उसने यह मुद्दा काफी बार उठाया, लेकिन उसकी एक भी दलील काम नहीं आई. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के लगभग सभी देशों (चीन को छोड़कर) ने उसे उलटे पांव लौटा दिया. उसका इस मुद्दे पर सिर्फ चीन ही साथ दे रहा है.