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छत्तीसगढ़ : गड्ढों में भरा बरसाती पानी पीने को मजबूर हैं ग्रामीण

छत्तीसगढ़ में कोरबा के ग्राम पंचायत चिर्रा में लोग कई सालों के बाद भी साफ पेयजल के लिए तरस रहे हैं. ग्रामीण यहां बारिश के दौरान गड्ढों में भरा पानी पीने के लिए मजबूर हैं. कई बार जिम्मेदारों को इसकी जानकारी दी गई, लेकिन किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया.

facing water problem
गड्ढों का पानी पीने को मजबूर
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Published : Jul 4, 2020, 5:00 PM IST

रायपुर : एक तरफ पूरी दुनिया कोविड-19 महामारी से बचने के लिए साफ-सफाई का पूरा ख्याल रख रही है. स्वास्थ्य विभाग सेनिटाइजेशन के लिए हर रोज गाइडलाइन जारी करता है, वहीं दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ में एक गांव के लोग सेनिटाइजर क्या, साफ पानी के लिए भी तरस रहे हैं. जिले की चिर्रा ग्राम पंचायत में ग्रामीणों के पास पीने के लिए साफ पानी का कोई साधन नहीं है. गांव वाले कई किलोमीटर चलकर जाते हैं, तब पीने का पानी नसीब होता है. बारिश के दिन में हालत और बदतर हो जाते हैं. लोग गड्ढे में भरा पानी के लिए मजबूर हो जाते हैं.

ग्राम पंचायत चिर्रा कोरबा जिला मुख्यालय से महज 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. इस पंचायत के गठन से पहले ही यहां के लोग पानी की परेशानी से जूझ रहे हैं. जो नलकूप खोदे गए थे, उसमें से लाल रंग का पानी निकलता है. भू-जलस्तर भी काफी गिर चुका है. ग्रामीणों के मुताबिक यहां साफ पानी का कोई स्रोत नहीं है. वह बरसों से इसी तरह इधर-उधर से पानी लाकर अपना जीवन काट रहे हैं.

गड्ढों में भरा पानी पीने को मजबूर चिर्रा गांव के बाशिंदे.

कई सालों से कर रहे पानी की मांग
कोरोना काल में खुद को सुरक्षित रखने और साफ खाना-पानी लेने की हिदायत दी जा रही है, वहीं चिर्रा के ग्रामीणों के प्रति शासन-प्रशासन लापरवाह है. लगातार कई सालों से मांग करने के बावजूद इन्हें आज तक साफ पानी पीने का सुख नहीं मिल सका.

गंदा पानी पीने के लिए मजबूर ग्रामीण
ग्रामीणों ने बताया कि भूमिगत जल के दो स्रोत उनके गांव में मौजूद हैं. सुबह और शाम गांव की महिलाएं इन दो जल स्रोतों पर इकट्ठा होती हैं. अपने परिवार की जरूरत के लिए वे यहीं से पानी घर ले जाती हैं. उनका कहना है कि यह पानी पीने के लिए साफ नहीं है. इसे सिर्फ निस्तारी के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन जब कोई सहारा नहीं मिलता, तब वे इसी से अपनी प्यास बुझाते हैं.

पढ़ें-मामूली बारिश से पटना में जलजमाव, राजधानी में फिर आ सकती है बाढ़

जिम्मेदारों ने नहीं ली सुध
ग्रामीण बताते हैं कि उन्हें पानी लाने के लिए कई किलोमीटर दूर जाना पड़ता है. वह पथरीले रास्तों से होकर पानी लेने जाते हैं. कई बार लोग गंदे पानी की वजह से बीमार भी पड़ चुके हैं, फिर भी इस ओर आज तक किसी ने ध्यान नहीं दिया. कई बार जनप्रतिनिधियों को भी इस परेशानी से रू-ब-रू कराया गया है, लेकिन कोई यहां झांकने भी नहीं पहुंचा. वहीं ग्रामीणों को अब भी उम्मीद है कि शासन-प्रशासन इस तरफ जल्द ध्यान देगा और उन्हें साफ पानी पीने को मिलेगा.

पढ़ें- असम : ब्रह्मपुत्र के जलस्तर में बढ़ोतरी, खतरे के निशान के पास पहुंचा पानी

आश्चर्य की बात है कि नेता-मंत्री चुनाव के समय वनांचलों के लोगों से बड़े-बड़े विकास के वादे करते हैं, ग्रामीण अंचलों से वोट लेते हैं, इसके बावजूद कई इलाके ऐसे हैं, जो आज भी विकास का मुंह ताक रहे हैं. जहां के लोग सिर्फ मजबूरी के साए में अपनी जिंदगी काट रहे हैं.

रायपुर : एक तरफ पूरी दुनिया कोविड-19 महामारी से बचने के लिए साफ-सफाई का पूरा ख्याल रख रही है. स्वास्थ्य विभाग सेनिटाइजेशन के लिए हर रोज गाइडलाइन जारी करता है, वहीं दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ में एक गांव के लोग सेनिटाइजर क्या, साफ पानी के लिए भी तरस रहे हैं. जिले की चिर्रा ग्राम पंचायत में ग्रामीणों के पास पीने के लिए साफ पानी का कोई साधन नहीं है. गांव वाले कई किलोमीटर चलकर जाते हैं, तब पीने का पानी नसीब होता है. बारिश के दिन में हालत और बदतर हो जाते हैं. लोग गड्ढे में भरा पानी के लिए मजबूर हो जाते हैं.

ग्राम पंचायत चिर्रा कोरबा जिला मुख्यालय से महज 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. इस पंचायत के गठन से पहले ही यहां के लोग पानी की परेशानी से जूझ रहे हैं. जो नलकूप खोदे गए थे, उसमें से लाल रंग का पानी निकलता है. भू-जलस्तर भी काफी गिर चुका है. ग्रामीणों के मुताबिक यहां साफ पानी का कोई स्रोत नहीं है. वह बरसों से इसी तरह इधर-उधर से पानी लाकर अपना जीवन काट रहे हैं.

गड्ढों में भरा पानी पीने को मजबूर चिर्रा गांव के बाशिंदे.

कई सालों से कर रहे पानी की मांग
कोरोना काल में खुद को सुरक्षित रखने और साफ खाना-पानी लेने की हिदायत दी जा रही है, वहीं चिर्रा के ग्रामीणों के प्रति शासन-प्रशासन लापरवाह है. लगातार कई सालों से मांग करने के बावजूद इन्हें आज तक साफ पानी पीने का सुख नहीं मिल सका.

गंदा पानी पीने के लिए मजबूर ग्रामीण
ग्रामीणों ने बताया कि भूमिगत जल के दो स्रोत उनके गांव में मौजूद हैं. सुबह और शाम गांव की महिलाएं इन दो जल स्रोतों पर इकट्ठा होती हैं. अपने परिवार की जरूरत के लिए वे यहीं से पानी घर ले जाती हैं. उनका कहना है कि यह पानी पीने के लिए साफ नहीं है. इसे सिर्फ निस्तारी के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन जब कोई सहारा नहीं मिलता, तब वे इसी से अपनी प्यास बुझाते हैं.

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जिम्मेदारों ने नहीं ली सुध
ग्रामीण बताते हैं कि उन्हें पानी लाने के लिए कई किलोमीटर दूर जाना पड़ता है. वह पथरीले रास्तों से होकर पानी लेने जाते हैं. कई बार लोग गंदे पानी की वजह से बीमार भी पड़ चुके हैं, फिर भी इस ओर आज तक किसी ने ध्यान नहीं दिया. कई बार जनप्रतिनिधियों को भी इस परेशानी से रू-ब-रू कराया गया है, लेकिन कोई यहां झांकने भी नहीं पहुंचा. वहीं ग्रामीणों को अब भी उम्मीद है कि शासन-प्रशासन इस तरफ जल्द ध्यान देगा और उन्हें साफ पानी पीने को मिलेगा.

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आश्चर्य की बात है कि नेता-मंत्री चुनाव के समय वनांचलों के लोगों से बड़े-बड़े विकास के वादे करते हैं, ग्रामीण अंचलों से वोट लेते हैं, इसके बावजूद कई इलाके ऐसे हैं, जो आज भी विकास का मुंह ताक रहे हैं. जहां के लोग सिर्फ मजबूरी के साए में अपनी जिंदगी काट रहे हैं.

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