हैदराबाद : संयुक्त राष्ट्र का मुख्य उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय शांति और स्थिरता को बनाए रखना है. यूएन चार्टर में निर्धारित इसके मूल चरित्र में अभी तक कोई बदलाव नहीं किया गया है. हालांकि, अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए इसके द्वारा उठाए गए ठोस कार्यों पर नजर डालें, तो पता चलता है कि इसके कार्यों में काफी बदलाव आया है.
1945 में जब संयुक्त राष्ट्र को स्थापित किया गया, तो इसके मुख्य कार्य:-
(i) अंतरराष्ट्रीय सामूहिक सुरक्षा प्रणाली स्थापित करके सुरक्षा परिषद द्वारा अनिवार्य प्रतिबंधों के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बनाए रखना.
(ii) अंतरराष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से मानव जाति के कल्याण को बढ़ावा देना और स्थायी शांति के लिए नींव रखना.
इसका आधार पूर्व में एक अंतरराष्ट्रीय सामूहिक सुरक्षा प्रणाली के रूप में कार्य करने वाले पांच स्थायी सदस्यों के बीच सहयोग करना था, जो द्वितीय विश्व युद्ध में मित्र देशों की शक्तियों के प्रमुख सदस्य थे, विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ. हालांकि यह प्रयास विफल हो गया, क्योंकि स्थायी सदस्य वीटो पॉवर का इस्तेमाल करके सुरक्षा परिषद को अनिवार्य प्रतिबंध लगाना से रोक रहे थे.
परिणामस्वरूप प्रमुख देशों के बीच सैन्य शक्ति के संतुलन से दुनिया के विभिन्न देशों की सुरक्षा संयुक्त राष्ट्र के बाहर ही निर्धारित हो गई, यह वास्तविकता आज भी उसी तरह से बनी हुई है. इस कारण यह विफल हो गया और अन्य कार्य जिनको यूएन चार्टर में उतनी प्राथमिकता से शामिल नहीं किए गए थे. उनमें समय के साथ काफी बदलाव देखने को मिला है.
ये कार्य हैं:-
(i) स्थानीय संघर्षों को बढ़ने से रोकना और शांतिपूर्ण समाधान को बढ़ावा देना.
(ii) अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने के लिए इस तरह के संघर्षों के खत्म करना.
शांति स्थापित करने के लिए चलाए गए ऑपरेशन का महत्व
शांति स्थापित करने वाले ऑपरेशन (Peace keeping operations) का यूएन चार्टर में स्पष्ट आधार नहीं है, लेकिन यह एक अवधारणा है कि यह कांगो और साइप्रस में संयुक्त राष्ट्र की सेनाओं और फिलिस्तीन में संयुक्त राष्ट्र के पर्यवेक्षी अभियानों के कश्मीर, लेबनान और पश्चिम इरियन में इसके कार्य को देखते हुए स्वीकृत कर ली गई है.
इस तरह के ऑपरेशन का उद्देश्य, सुरक्षा परिषद या महासभा के प्रस्तावों के अनुसार विवाद सुलझाना और पक्षकारों की सहमति के साथ शांति स्थापित करना है.
दूसरी ओर स्थानीय संघर्षों की लगातार घटना से यह स्पष्ट है कि विश्व शांति को केवल प्रमुख शक्तियों के बीच सैन्य शक्ति के संतुलन से आश्वासन नहीं दिया जा सकता है. इसके लिए संयुक्त राष्ट्र जैसी निहित संस्था कि जरूरत है.
अंतरराष्ट्रीय सहयोग का बढ़ावा देना का महत्व
संयुक्त राष्ट्र की विभिन्न एजेसियों द्वारा सदस्य देशों के बीच अंतरराष्ट्रीय सहयोग को साकार करने पर अधिक जोर दिया गया है, स्थापना के समय से ही संयुक्त राष्ट्र के सदस्य द्वारा के स्वैच्छिक सहयोग की परिकल्पना की गई थी.
मौजूदा समय में इसका महत्व और अधिक बढ़ गया है. यह मूल अपेक्षा के साथ लगभग अतुलनीय है, क्योंकि समस्याएं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहयोग और समायोजन के बिना हल नहीं हो सकती हैं. समस्याएं पश्चिम के बीच शीत युद्ध की समाप्ति के बाद, विज्ञान की तीव्र प्रगति, अंतरराष्ट्रीय संबंधों के विकास और विविधीकरण, प्रौद्योगिकी और वैशविक अर्थव्यवस्था के कारण और अधिक बढ़ गई हैं.
संयुक्त राष्ट्र के समक्ष लाई गई समस्याएं, जिन्हें संयुक्त राष्ट्र द्वारा अंतरराष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से निपटाया जा रहा है, वह बहुत विविध हैं, जिनमें विश्व शांति, हथियार के लिए तय सीमा, उपनिवेशों की मुक्ति, विकासशील देशों के लिए सहायता, मानव अधिकार, जनसंख्या, नशीले पदार्थ, संस्कृति, अपहरण, अंतरिक्ष, महासागर और पर्यावरण शामिल हैं.
यह कहना गलत नहीं है होगा कि यह समस्याएं मानव गतिविधियों के पूरे क्षेत्र को कवर करती हैं.
संयुक्त राष्ट्र इन सभी समस्याओं पर विचार करता है, शांति और आपसी सहमति के साथ इनको निपटाने के कोशिश करता है.
इस संदर्भ में विश्व शांति को बनाए रखने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने बेहद जरूरी है.
उत्तर-दक्षिण समस्या का महत्व, जो साल-दर-साल महत्त्वपूर्ण होता गया , इस संदर्भ में समझा जा सकता है कि इसे नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए कि अपने हितों को समायोजित कर के माध्यम अंतर्राष्ट्रीय एकजुटता की भावना को बढ़ावा दिया जा रहा है.