मुंबई : शिवसेना ने अपने संवादकीय 'सामना' में भाजपा को लेकर किए कटाक्ष में कहा कि अयोध्या के राम मंदिर हेतु संक्रांति से चंदा का काम शुरू होने वाला है. 14 जनवरी अर्थात मकर संक्रांति से चार लाख से अधिक स्वयंसेवक 12 करोड़ परिवारों से संपर्क करेंगे. ये स्वयंसेवक हर गांव में जाएंगे. ऐसा विश्व हिंदू परिषद के चंपत राय ने कहा है.
शिवसेना ने संपादकीय में कहा कि चंपत राय श्रीराम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव हैं. अयोध्या में राम मंदिर बने, ऐसा स्पष्ट निर्देश सर्वोच्च न्यायालय ने दिया है. यह निर्णय सुनाने वाले मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई सेवानिवृत्ति के पश्चात राज्यसभा के सांसद बन गए.
सामना में शिवसेना ने कहा कि रंजन गोगोई ने अपने कार्यकाल के आखिरी दिनों में इस मामले की बड़ी तेजी से सुनवाई की और राम मंदिर को लेकर सकारात्मक निर्णय दिया. न्यायालय का निर्णय आते ही प्रधानमंत्री मोदी की उपस्थिति में मंदिर का भूमि पूजन भी हुआ. मंदिर का काम तेजी से चल रहा है अर्थात 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले तंबू में विराजमान रामलला मंदिर में विराजमान हो जाएंगे.
चंदे के लिए बनाई टोली
अब इस मंदिर निर्माण कार्य के लिए हर घर से चंदा इकट्ठा करनेवाली ‘टोली’ बनाई गई है, जोकि मजेदार है. 4 लाख स्वयंसेवक चंदे के लिए हर द्वार पर जाएंगे. ये स्वयंसेवक कौन हैं? उनकी नियुक्ति किसने की? मंदिर निर्माण का खर्च लगभग 300 करोड़ है. मुख्यमंत्री योगी ने राम मंदिर निर्माण की निधि की चिंता न करें, ऐसा कहा है.
मर्यादा पुरुषोत्तम राम का मंदिर देश की अस्मिता का मंदिर है और इसके लिए दुनिया भर के हिंदुत्ववादियों ने पहले ही खजाना खाली कर दिया है. इसलिए घर-घर जाकर दान इकट्ठा करने से क्या हासिल होगा? इस काम के लिए 4 लाख स्वयंसेवकों की नियुक्ति हुई होगी, तो उन स्वयंसेवकों का मुख्य संगठन कौन-सा है? यह स्पष्ट हो जाएगा तो अच्छा होगा.
चंदा इकट्ठा करने वाले स्वयंसेवक
चंदे के नाम पर ये 4 लाख स्वयंसेवक एकाध पार्टी के राजनीतिक प्रचारक के रूप में घर-घर जाने वाले होंगे, तो ये मंदिर के लिए अपना खून बहाने वालों की आत्मा का अपमान होगा मंदिर की लड़ाई राजनीतिक नहीं थी.
हालांकि, हमें इसका दुख नहीं है. शिवसेना ने राम मंदिर निर्माण के लिए एक करोड़ की निधि सबसे पहले रामलला के बैंक खाते में जमा की. इस काम के लिए अयोध्या में रामलला के नाम से बैंक खाता खोला गया है. उसमें दुनिया भर के रामभक्त खुले हाथों से मदद कर रहे हैं. मंदिर के लिए लगने वाली 300 करोड़ की निधि प्रभु श्रीराम के नाम पर बैंक खाते में जमा भी हो गई होगी.
बाबरी का गुंबद गिराने से लेकर अयोध्या में विश्व हिंदू परिषद द्वारा मंदिर की शिला हेतु कार्यशाला शुरू की गई थी और अब तक हजारों शिलाओं का निर्माण भी हो चुका है. उनके इस कार्य के लिए उनका जितना गुणगान किया जाए, उतना कम ही है.
मालिकाना हक का विषय बन रहा राम मंदिर
विश्व हिंदू परिषद के अशोक सिंघल और विनय कटियार आदि ने सबसे पहले अयोध्या में अपना तंबू ठोंका और लोगों को इकट्ठा किया. लालकृष्ण आडवाणी रथयात्रा शुरू करके इस आंदोलन को देश भर में ले गए. हिंदूहृदयसम्राट बालासाहेब ठाकरे की प्रेरणा से बाबरी की गुंबद पर हथौड़ा चला, यह इतिहास है. लेकिन आज अयोध्या का राम मंदिर मतलब मालिकाना हक का विषय बनता जा रहा है.
श्रीराम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट की स्थापना की गई है और उसमें संत-महात्माओं की नियुक्ति मोदी सरकार ने की हुई है. यह नियुक्तियां अपने-अपने लोगों की की गई हैं. इस पर टीका-टिप्पणी हुई. हम कहते हैं जो ट्रस्ट में शामिल हुए हैं, उन्हें मंदिर निर्माण का काम जल्दी से आगे बढ़ाना चाहिए और मंदिर का राजनीतिक मामला हमेशा के लिए समाप्त हो जाना चाहिए. पहले मंदिर वहीं बनाएंगे और अब मंदिर हमने ही बनाया, जैसे दावे-प्रतिदावे किसलिए? फिर कारसेवा में जो हजारों राम भक्तों ने बलिदान दिया, वे सारे लोग अयोध्या के मठ-मंदिरों में रोटी का प्रसाद खाने गए थे या सरयू नदी में सूर्य स्नान करने गए थे?
चंदे पर राजनीति
अयोध्या का भव्य राम मंदिर लोगों के चंदे से बनाएंगे, ऐसा कभी तय नहीं किया गया था. लेकिन लोगों से चंदा लेने का मामला साधारण नहीं है. यह मामला राजनीतिक है. राम अयोध्या के राजा थे. उनके मंदिर के लिए युद्ध हुआ. सैकड़ों कारसेवकों ने अपना खून बहाया, बलिदान दिया. उस अयोध्या के राम का मंदिर चंदे से बनाएंगे? मूलतः श्रीराम का भव्य मंदिर किसी राजनीतिक पार्टी के राजनीतिक लाभ के लिए नहीं बन रहा, बल्कि देश की हिंदू अस्मिता की पताका लहराने के लिए बनाया जा रहा है.
2024 का चुनाव प्रचार है उद्देश्य
4 लाख स्वयंसेवक मंदिर के चंदे के निमित्त संपर्क अभियान चलाने वाले हैं. यह संपर्क अभियान मतलब राम की आड़ में 2024 का चुनाव प्रचार है. राम के नाम का राजनीतिक प्रचार रुकना ही चाहिए. मंदिर निर्माण के पश्चात चुनाव प्रचार में राम नहीं, बल्कि विकास होना चाहिए. लेकिन ऐसा नहीं दिख रहा. वनवास समाप्त होने के बावजूद श्रीराम की अड़चन जारी है.