भोपाल : भाजपा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने चौथी बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. राजभवन में आयोजित समारोह में राज्यपाल लालजी टंडन ने चौहान को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई.
भाजपा प्रदेश मुख्यालय में यहां पार्टी विधायकों की बैठक में प्रदेशाध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा ने दल के नेता के चयन के लिए विधायकों को आमंत्रित किया. इस पर पूर्व नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने विधायक दल के नेता के रूप में चौहान के नाम का प्रस्तावित किया, जिसका सभी विधायकों ने समर्थन किया.
कमलनाथ द्वारा 20 मार्च को इस्तीफा सौंपे जाने के बाद से भाजपा में सरकार गठन की कवायद चल रही थी. पार्टी के निर्देश पर शाम छह बजे विधायक दल की बैठक हुई. इस बैठक में विधायकों से केंद्रीय पर्यवेक्षक के तौर पर विनय सहस्त्रबुद्धे व अरुण सिंह ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए चर्चा की. उसके बाद सर्वसम्मति से चौहान को नेता चुना गया.
शिवराज का अब तक राजनीतिक सफर
पांच मार्च 1959 को सीहोर जिले के जैत गांव में एक किसान प्रेम सिंह चौहान के घर जन्मे शिवराज सिंह चौहान में नेतृत्व के गुण बचपन में ही दिखने लगे थे, जब वह अपने खेतों में काम करने वाले मजदूरों के लिए पिता प्रेम सिंह से ही भिड़ गए थे. शिवराज सिंह चौहान के राजनीतिक सफर की शुरुआत संघ के मामूली कार्यकर्ता के तौर पर हुई थी. इमरजेंसी के दौर में जेल जाने से उनकी नेतृत्व क्षमता मजबूत हुई.
1975 में छात्र राजनीति से शुरुआत करने वाले शिवराज को 1990 में पहली बार भाजपा के टिकट पर सीहोर की बुधनी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने का मौका मिला. महज एक साल बाद पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी लोकसभा सीट विदिशा से शिवराज सिंह को उत्तराधिकारी बनाया. शिवराज सिंह चौहान के अब तक के राजनीतिक करियर की बात की जाए तो...
- 1990 में पहली बार विधायक बने.
- 1992 में पहली बार लोकसभा सांसद बने.
- शिवराज सिंह 2003 में भाजपा युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने.
- विदिशा लोकसभा सीट से लगातार पांच बार सांसद चुने गए.
- 29 नवंबर 2005 को पहली बार मध्य प्रदेश के सीएम पद की शपथ ली.
- 13 साल तक सूबे के मुख्यमंत्री रहे.
2018 में मुख्यमंत्री पद की कुर्सी छोड़ते वक्त उन्होंने कहा था कि, 'टाइगर जिंदा हैं, लौट कर जरुर आउंगा'.. अपनी कही हुई बात को सच साबित करते हुए शिवराज सिंह चौहान ने आज वापसी की. इसे शिवराज सिंह चौहान की राजनीतिक कुशलता ही मानी जाएगी कि, जब वह सीएम पद से हटे तो केंद्र में जा सकते थे, लेकिन सियासत के माहिर खिलाड़ी शिवराज प्रदेश की सियासी नब्ज को टटोलने में सफल रहे. वह शायद इस बात को समझ चुके थे कि प्रदेश की कमलनाथ सरकार कभी भी गिर सकती है. इसीलिए उन्होंने केंद्र में न जाकर कांग्रेस सरकार की नीतियों के खिलाफ प्रदेश में आंदोलन का झंडा बुलंद रखा, जिसका नतीजा आज सबके सामने है.
पिछले डेढ़ साल में शिवराज सिंह चौहान के राजनीतिक करियर में तमाम उतार-चढ़ाव आए, लेकिन उन्होंने राजनीति के दंगल में खुद को बनाए रखा. यही वजह है कि शिवराज सिंह आज एक बार फिर मध्य प्रदेश के सरताज बने.