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17 अक्टूबर से शुरू हो रहा शारदीय नवरात्र, बन रहा अद्भुत संयोग

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Published : Oct 15, 2020, 9:27 PM IST

Updated : Oct 15, 2020, 9:57 PM IST

शारदीय नवरात्र पर्व हिन्दू धर्म का एक प्रमुख त्योहार है. देवी शक्ति की उपासना का यह पर्व 17 अक्तूबर से शुरू हो रहा है. इस शारदीय नवरात्र में इस बार कुछ ऐसे अद्भुत संयोग भी बन रहे हैं, जो कई साल बाद देखने को मिलेंगे. इसे लेकर क्या कहते हैं ज्योतिषाचार्य जानिए.

शारदीय नवरात्र
शारदीय नवरात्र

वाराणसी : पूरे एक महीने तक अधिक मास में भगवान विष्णु की आराधना करने के बाद अब लोग शक्ति की उपासना करने के लिए तैयार हैं. 16 अक्टूबर को अधिक मास के खत्म होने के बाद 17 अक्टूबर से माता शक्ति की आराधना का पर्व नवरात्र शुरू हो रहा है. इस बार कोरोना की वजह से काफी बंदिशों के बीच भगवती की आराधना पूरी होगी, लेकिन इस शारदीय नवरात्र में इस बार कुछ ऐसे अद्भुत संयोग भी बन रहे हैं, जो कई साल बाद देखने को मिलेंगे. इसे लेकर क्या है ज्योतिषियों का कहना और कैसे करें मां की कलश स्थापना के साथ देवी की आराधना जानिए.

देवी शक्ति की उपास का पर्व.

हर दिन एक अलग योग
ज्योतिषाचार्य पंडित ऋषि द्विवेदी ने बताया कि नवरात्र के पहले दिन से लेकर अंतिम दिन तक इस बार कई अद्भुत संयोग बन रहे हैं. नवरात्र के पहले दिन 17 अक्टूबर को सर्वार्थ सिद्धि योग, दूसरे दिन 18 अक्टूबर को त्रिपुष्कर योग, तीसरे दिन 19 अक्टूबर को सर्वार्थ सिद्धि योग, चौथे और पांचवें दिन यानी 20 व 21 अक्टूबर को रवि योग और आठवें दिन यानी अष्टमी तिथि को पुनः सर्वार्थ सिद्धि योग मिल रहा है, जो नवरात्र में तंत्र साधना करने वालों के लिए दुर्लभ योग है. इस योग में रात्रि में तंत्र साधना करना विशेष फलदाई होगा और माता की विशेष अनुकंपा भी मिलेगी.

26 अक्टूबर को व्रत करने वाले करेंगे पारण
ज्योतिषाचार्य पंडित ऋषि द्विवेदी का कहना है कि 17 अक्टूबर से नवरात्र की शुरुआत होने जा रही है, जबकि 26 अक्टूबर को दशमी का पर्व मनाया जाएगा. इसके पहले 23-24 अक्टूबर की रात महानिशा पूजन संपन्न होगी और 24 को महाअष्टमी का व्रत रखा जाएगा. 25 अक्टूबर को 11:14 बजे दशमी तिथि लग जाएगी और उदया तिथि का मान करते हुए 26 अक्टूबर को नवरात्र की समाप्ति होगी.

चित्रा नक्षत्र की वजह से इस वक्त करना होगा कलश स्थापन
पंडित ऋषि द्विवेदी का कहना है कि 17 अक्टूबर यानी अश्विन शुक्ल प्रतिपदा के दिन चित्रा नक्षत्र मिल रहा है. धर्म शास्त्र में वर्णित है कि जब चित्रा या वैधृति नक्षत्र हो तब कलश स्थापना नहीं की जाती है. प्रतिपदा के साथ चित्रा का दुर्योग बनना सुबह के वक्त कलश स्थापना करने का शुभ मुहूर्त नहीं बता रहा है, लेकिन अभिजीत मुहूर्त की यदि बात की जाए तो 17 अक्टूबर को सुबह 11:38 से लेकर 12:23 बजे दोपहर तक शुभ अभिजीत मुहूर्त मिल रहा है, इस वक्त कलश स्थापन करना उपयुक्त होगा. यदि इस दौरान कोई कलश स्थापना नहीं कर पाता है, तो 2:20 बजे दिन में चित्रा नक्षत्र की समाप्ति के बाद कलश स्थापना की जा सकती है.

घोड़े पर मां का आगमन और भैंसे पर गमन
पंडित ऋषि द्विवेदी का कहना है कि नवरात्र में मां का आगमन और मां का गमन किस चीज पर हो रहा है, यह भी विशेष महत्व रखता है. इस बार माता का आगमन घोड़े पर और गमन भैंसे पर हो रहा है, जो धर्म शास्त्र में उपयुक्त नहीं माना जाता है. इसका फल आम जनमानस पर बेहतर नहीं होगा. देश पर विपत्ति, बड़े नेताओं को कष्ट रोग और असंतोष देश में व्याप्त होगा.

ऐसे करें कलश स्थापना
ज्योतिषाचार्य पंडित ऋषि द्विवेदी का कहना है की नवरात्र के प्रथम दिन कलश स्थापना करने की विधि सही होनी चाहिए. अभिजीत मुहूर्त से पहले घर के मुख्य द्वार पर और अपने पूजा स्थान पर आम की पत्ती उसे शुद्धीकरण कर इसे बांधा जाना चाहिए.

इसके बाद गणेश गौरी पूजन और कुबेर, इंद्र नवग्रह आदि देवताओं का पूजन किए जाने के बाद मां दुर्गा का आह्वान करना चाहिए. एक स्थान पर कलश स्थापना करने के साथ ही कलश के ऊपर नारियल और माता की अति प्रिय चुनरी चढ़ाई जाने के बाद उस कलश के आस-पास चारों ओर मिट्टी में जौं छोड़कर देवी आह्वान करने के साथ मां की आराधना करनी चाहिए.

कलश के पास ही लकड़ी के पटरी पर मां की प्रतिमा या मां की तस्वीर जो उपलब्ध हो उसको भी स्थापित करना चाहिए. मां को लाल गुड़हल का फूल अति प्रिय है और लाल चुनरी के साथ धूप दीप नैवेद्य से षोडशोपचार पूजन संपन्न कर मां दुर्गा का आह्वान कर कलश स्थापना का क्रम पूरा करना चाहिए.

भक्ति भाव के साथ आपको जो भी मंत्र आता हो दुर्गा चालीसा, दुर्गा सप्तशती या फिर देवी सूक्त के अलावा कोई भी मंत्र जो आपके लिए आसान हो उसका उच्चारण करते हुए मां की आराधना की जानी चाहिए.

वाराणसी : पूरे एक महीने तक अधिक मास में भगवान विष्णु की आराधना करने के बाद अब लोग शक्ति की उपासना करने के लिए तैयार हैं. 16 अक्टूबर को अधिक मास के खत्म होने के बाद 17 अक्टूबर से माता शक्ति की आराधना का पर्व नवरात्र शुरू हो रहा है. इस बार कोरोना की वजह से काफी बंदिशों के बीच भगवती की आराधना पूरी होगी, लेकिन इस शारदीय नवरात्र में इस बार कुछ ऐसे अद्भुत संयोग भी बन रहे हैं, जो कई साल बाद देखने को मिलेंगे. इसे लेकर क्या है ज्योतिषियों का कहना और कैसे करें मां की कलश स्थापना के साथ देवी की आराधना जानिए.

देवी शक्ति की उपास का पर्व.

हर दिन एक अलग योग
ज्योतिषाचार्य पंडित ऋषि द्विवेदी ने बताया कि नवरात्र के पहले दिन से लेकर अंतिम दिन तक इस बार कई अद्भुत संयोग बन रहे हैं. नवरात्र के पहले दिन 17 अक्टूबर को सर्वार्थ सिद्धि योग, दूसरे दिन 18 अक्टूबर को त्रिपुष्कर योग, तीसरे दिन 19 अक्टूबर को सर्वार्थ सिद्धि योग, चौथे और पांचवें दिन यानी 20 व 21 अक्टूबर को रवि योग और आठवें दिन यानी अष्टमी तिथि को पुनः सर्वार्थ सिद्धि योग मिल रहा है, जो नवरात्र में तंत्र साधना करने वालों के लिए दुर्लभ योग है. इस योग में रात्रि में तंत्र साधना करना विशेष फलदाई होगा और माता की विशेष अनुकंपा भी मिलेगी.

26 अक्टूबर को व्रत करने वाले करेंगे पारण
ज्योतिषाचार्य पंडित ऋषि द्विवेदी का कहना है कि 17 अक्टूबर से नवरात्र की शुरुआत होने जा रही है, जबकि 26 अक्टूबर को दशमी का पर्व मनाया जाएगा. इसके पहले 23-24 अक्टूबर की रात महानिशा पूजन संपन्न होगी और 24 को महाअष्टमी का व्रत रखा जाएगा. 25 अक्टूबर को 11:14 बजे दशमी तिथि लग जाएगी और उदया तिथि का मान करते हुए 26 अक्टूबर को नवरात्र की समाप्ति होगी.

चित्रा नक्षत्र की वजह से इस वक्त करना होगा कलश स्थापन
पंडित ऋषि द्विवेदी का कहना है कि 17 अक्टूबर यानी अश्विन शुक्ल प्रतिपदा के दिन चित्रा नक्षत्र मिल रहा है. धर्म शास्त्र में वर्णित है कि जब चित्रा या वैधृति नक्षत्र हो तब कलश स्थापना नहीं की जाती है. प्रतिपदा के साथ चित्रा का दुर्योग बनना सुबह के वक्त कलश स्थापना करने का शुभ मुहूर्त नहीं बता रहा है, लेकिन अभिजीत मुहूर्त की यदि बात की जाए तो 17 अक्टूबर को सुबह 11:38 से लेकर 12:23 बजे दोपहर तक शुभ अभिजीत मुहूर्त मिल रहा है, इस वक्त कलश स्थापन करना उपयुक्त होगा. यदि इस दौरान कोई कलश स्थापना नहीं कर पाता है, तो 2:20 बजे दिन में चित्रा नक्षत्र की समाप्ति के बाद कलश स्थापना की जा सकती है.

घोड़े पर मां का आगमन और भैंसे पर गमन
पंडित ऋषि द्विवेदी का कहना है कि नवरात्र में मां का आगमन और मां का गमन किस चीज पर हो रहा है, यह भी विशेष महत्व रखता है. इस बार माता का आगमन घोड़े पर और गमन भैंसे पर हो रहा है, जो धर्म शास्त्र में उपयुक्त नहीं माना जाता है. इसका फल आम जनमानस पर बेहतर नहीं होगा. देश पर विपत्ति, बड़े नेताओं को कष्ट रोग और असंतोष देश में व्याप्त होगा.

ऐसे करें कलश स्थापना
ज्योतिषाचार्य पंडित ऋषि द्विवेदी का कहना है की नवरात्र के प्रथम दिन कलश स्थापना करने की विधि सही होनी चाहिए. अभिजीत मुहूर्त से पहले घर के मुख्य द्वार पर और अपने पूजा स्थान पर आम की पत्ती उसे शुद्धीकरण कर इसे बांधा जाना चाहिए.

इसके बाद गणेश गौरी पूजन और कुबेर, इंद्र नवग्रह आदि देवताओं का पूजन किए जाने के बाद मां दुर्गा का आह्वान करना चाहिए. एक स्थान पर कलश स्थापना करने के साथ ही कलश के ऊपर नारियल और माता की अति प्रिय चुनरी चढ़ाई जाने के बाद उस कलश के आस-पास चारों ओर मिट्टी में जौं छोड़कर देवी आह्वान करने के साथ मां की आराधना करनी चाहिए.

कलश के पास ही लकड़ी के पटरी पर मां की प्रतिमा या मां की तस्वीर जो उपलब्ध हो उसको भी स्थापित करना चाहिए. मां को लाल गुड़हल का फूल अति प्रिय है और लाल चुनरी के साथ धूप दीप नैवेद्य से षोडशोपचार पूजन संपन्न कर मां दुर्गा का आह्वान कर कलश स्थापना का क्रम पूरा करना चाहिए.

भक्ति भाव के साथ आपको जो भी मंत्र आता हो दुर्गा चालीसा, दुर्गा सप्तशती या फिर देवी सूक्त के अलावा कोई भी मंत्र जो आपके लिए आसान हो उसका उच्चारण करते हुए मां की आराधना की जानी चाहिए.

Last Updated : Oct 15, 2020, 9:57 PM IST
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