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टेस्ट क्रिकेट रेड बॉल से क्यों खेला जाता है ? जानिए सफेद और लाल गेंद के बीच का फर्क - Red ball in Test Cricket

Red ball use in Test Cricket : आमतौर पर टेस्ट क्रिकेट में लाल गेंद का उपयोग किया जाता है. तो जब सीमित ओवरों का क्रिकेट खेला जाता है तो टेस्ट क्रिकेट में सफेद गेंद का उपयोग क्यों नहीं किया जाता है. आज हम आपको इस बारे में बताने वाले हैं. पढ़िए पूरी खबर...

red and white ball difference
रविचंद्रन अश्विन और मोहम्मद शमी (IANS and ANI PHOTO)
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By ETV Bharat Sports Team

Published : Sep 24, 2024, 10:53 PM IST

नई दिल्ली: क्रिकेट आज दुनिया के सबसे लोकप्रिय खेलों में से एक है. आपको बता दें क्रिकेट के इतिहास में पहली बार टेस्ट क्रिकेट खेला गया था. क्रिकेट के इतिहास का पहला टेस्ट 1877 में इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के बीच खेला गया था. दशकों बाद जब वनडे क्रिकेट का आगमन हुआ तो सफेद गेंद का इस्तेमाल किया गया.

लंबे समय तक टेस्ट क्रिकेट लाल गेंद या लाल रंग की गेंदों से खेला जाता था. ऐसे में आम लोगों के मन में अक्सर यह सवाल उठता है कि टेस्ट क्रिकेट लाल गेंदों से क्यों खेला जाता है? केवल सीमित ओवरों का क्रिकेट ही सफेद गेंदों से क्यों खेला जाता है? आज हम आपको इसके ही बारे में बताने वाले हैं.

रेड-बॉल जल्दी पुरानी नहीं होती
कई कारणों से टेस्ट क्रिकेट में सफेद गेंदों की जगह लाल गेंदों का इस्तेमाल किया जाता है. इसका एक मुख्य कारण यह है कि रेड-बॉल जल्दी पुरानी नहीं होती. एक टेस्ट मैच में आमतौर पर एक दिन में 90 ओवर फेंके जाते हैं. ऐसे में सफेद गेंद की तुलना में लाल गेंद ज्यादा उपयुक्त होती है. लाल गेंद लगभग 70-80 ओवरों तक ठीक काम करती है. जो कि सफेद गेंद के मैदान में मुश्किल है. इसीलिए टेस्ट मैच में 80 ओवर के बाद पुरानी गेंद को नई गेंद से बदलने का नियम है.

भारत बनाम पाकिस्तान
भारत बनाम पाकिस्तान (IANS PHOTO)

अच्छी स्पिन और स्विंग देती है रेड बॉल
लाल गेंद में सफेद गेंद की तुलना में बेहतर स्पिन और स्विंग होती है. ऐसे में गेंदबाजी करने वाली टीम फायदे में रहती है. यदि टेस्ट मैच सफेद गेंद पर खेला जाता है, तो कम स्पिन और स्विंग के कारण बल्लेबाजों के लिए खेलना और रन बनाना आसान हो जाएगा. परिणामस्वरूप, प्रत्येक मैच में कई बड़े स्कोर बनेंगे. ऐसे में टेस्ट क्रिकेट का मजा नहीं रह जाएगा. इसके अलावा लाल गेंद पर सीम (लाइन) गेंदबाज को इसे बेहतर तरीके से पकड़ने और अधिक गति से गेंदबाजी करने में मदद करती है.

कोई रिवर्स स्विंग नहीं
लाल या रेड बॉल की अवधि लंबी होती है. इसीलिए यह आमतौर पर रिवर्स स्विंग नहीं करता है. सफेद गेंद के मामले में रिवर्स स्विंग अधिक होती है. वनडे और टी20 जैसे सीमित ओवर क्रिकेट में मैच की शुरुआत से ही रिवर्स स्विंग देखने को मिलती है. लेकिन टेस्ट क्रिकेट में ऐसा 40-50 ओवर के बाद दिखता है. परिणामस्वरूप, गेंद घिस जाने के बाद भी बल्लेबाजी करने वाली टीम को फायदा मिलता है. अगर टेस्ट क्रिकेट में लाल गेंद की जगह सफेद गेंद का इस्तेमाल किया जाए तो मैच की शुरुआत से ही रिवर्स स्विंग देखने को मिलेगी. बल्लेबाजों को शुरू से ही गेंद को समझने में परेशानी होगी.

रोहित शर्मा
रोहित शर्मा (IANS PHOTO)

दृश्यता (स्पष्ट रूप से दिखना)
टेस्ट क्रिकेट में लाल गेंदों के इस्तेमाल का एक और बड़ा कारण यह है कि टेस्ट मैच अक्सर दिन के दौरान खेले जाते हैं. हालांकि इन दिनों पिंक-बॉल टेस्ट आ गया है, लेकिन यह उतना प्रभावी नहीं रहा है. इसलिए दिन के दौरान लाल गेंद की दृश्यता सफेद गेंद की तुलना में अधिक होती है. बारिश में काफी देर तक खेलने के बाद भी बल्लेबाज या फील्डर को गेंद देखने में कोई परेशानी नहीं होती है.

ये खबर भी पढ़ें : ईरानी कप में कप्तानी करेंगे रुतुराज गायकवाड़, अजिंक्य रहाणे की टीम से होगा आमना-सामना

नई दिल्ली: क्रिकेट आज दुनिया के सबसे लोकप्रिय खेलों में से एक है. आपको बता दें क्रिकेट के इतिहास में पहली बार टेस्ट क्रिकेट खेला गया था. क्रिकेट के इतिहास का पहला टेस्ट 1877 में इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के बीच खेला गया था. दशकों बाद जब वनडे क्रिकेट का आगमन हुआ तो सफेद गेंद का इस्तेमाल किया गया.

लंबे समय तक टेस्ट क्रिकेट लाल गेंद या लाल रंग की गेंदों से खेला जाता था. ऐसे में आम लोगों के मन में अक्सर यह सवाल उठता है कि टेस्ट क्रिकेट लाल गेंदों से क्यों खेला जाता है? केवल सीमित ओवरों का क्रिकेट ही सफेद गेंदों से क्यों खेला जाता है? आज हम आपको इसके ही बारे में बताने वाले हैं.

रेड-बॉल जल्दी पुरानी नहीं होती
कई कारणों से टेस्ट क्रिकेट में सफेद गेंदों की जगह लाल गेंदों का इस्तेमाल किया जाता है. इसका एक मुख्य कारण यह है कि रेड-बॉल जल्दी पुरानी नहीं होती. एक टेस्ट मैच में आमतौर पर एक दिन में 90 ओवर फेंके जाते हैं. ऐसे में सफेद गेंद की तुलना में लाल गेंद ज्यादा उपयुक्त होती है. लाल गेंद लगभग 70-80 ओवरों तक ठीक काम करती है. जो कि सफेद गेंद के मैदान में मुश्किल है. इसीलिए टेस्ट मैच में 80 ओवर के बाद पुरानी गेंद को नई गेंद से बदलने का नियम है.

भारत बनाम पाकिस्तान
भारत बनाम पाकिस्तान (IANS PHOTO)

अच्छी स्पिन और स्विंग देती है रेड बॉल
लाल गेंद में सफेद गेंद की तुलना में बेहतर स्पिन और स्विंग होती है. ऐसे में गेंदबाजी करने वाली टीम फायदे में रहती है. यदि टेस्ट मैच सफेद गेंद पर खेला जाता है, तो कम स्पिन और स्विंग के कारण बल्लेबाजों के लिए खेलना और रन बनाना आसान हो जाएगा. परिणामस्वरूप, प्रत्येक मैच में कई बड़े स्कोर बनेंगे. ऐसे में टेस्ट क्रिकेट का मजा नहीं रह जाएगा. इसके अलावा लाल गेंद पर सीम (लाइन) गेंदबाज को इसे बेहतर तरीके से पकड़ने और अधिक गति से गेंदबाजी करने में मदद करती है.

कोई रिवर्स स्विंग नहीं
लाल या रेड बॉल की अवधि लंबी होती है. इसीलिए यह आमतौर पर रिवर्स स्विंग नहीं करता है. सफेद गेंद के मामले में रिवर्स स्विंग अधिक होती है. वनडे और टी20 जैसे सीमित ओवर क्रिकेट में मैच की शुरुआत से ही रिवर्स स्विंग देखने को मिलती है. लेकिन टेस्ट क्रिकेट में ऐसा 40-50 ओवर के बाद दिखता है. परिणामस्वरूप, गेंद घिस जाने के बाद भी बल्लेबाजी करने वाली टीम को फायदा मिलता है. अगर टेस्ट क्रिकेट में लाल गेंद की जगह सफेद गेंद का इस्तेमाल किया जाए तो मैच की शुरुआत से ही रिवर्स स्विंग देखने को मिलेगी. बल्लेबाजों को शुरू से ही गेंद को समझने में परेशानी होगी.

रोहित शर्मा
रोहित शर्मा (IANS PHOTO)

दृश्यता (स्पष्ट रूप से दिखना)
टेस्ट क्रिकेट में लाल गेंदों के इस्तेमाल का एक और बड़ा कारण यह है कि टेस्ट मैच अक्सर दिन के दौरान खेले जाते हैं. हालांकि इन दिनों पिंक-बॉल टेस्ट आ गया है, लेकिन यह उतना प्रभावी नहीं रहा है. इसलिए दिन के दौरान लाल गेंद की दृश्यता सफेद गेंद की तुलना में अधिक होती है. बारिश में काफी देर तक खेलने के बाद भी बल्लेबाज या फील्डर को गेंद देखने में कोई परेशानी नहीं होती है.

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