नई दिल्ली : 26 जुलाई 1999 के दिन भारतीय सेना ने कारगिल युद्ध के दौरान चलाए गए 'ऑपरेशन विजय' को सफलतापूर्वक अंजाम देकर भारत भूमि को घुसपैठियों के चंगुल से मुक्त कराया. 26 जुलाई को हर साल कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है. ऐसे ही शहीद गुरबख्श सिंह लाडी की शौर्य गाथा नौजवानों के लिए प्रेरणादायक है. शहीद गुरबख्श सिंह लाडी के पिता अजीत सिंह ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की और कुछ यादें साझा कीं.
शहीद गुरबख्श सिंह लाडी के पिता अजीत सिंह ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में बताया कि उन्होंने अपने बेटे को अपने जीवन से कभी अलग नहीं होने दिया है. उन्होंने कहा कि बेटे का शरीर जरूर चला गया, लेकिन उसके विचार और देश प्रेम हमेशा हमारे साथ जीवंत है. उन्हें अपने बेटे की शहादत पर गर्व है.
कौन थे गुरबख्श सिंह लाडी
शहीद गुरबख्श सिंह लाडी पंजाब के अमलोह भदलथुहा गांव के निवासी थे. गुरबख्श सिंह लाडी 19 साल की उम्र में भारतीय सेना में भर्ती हुए थे और वह 21 साल की उम्र में कारगिल में शहीद हो गए.
गुरबख्श सिंह लाडी के पिता अजीत सिंह ने कहा कि वह जहां भी जाते हैं, हर कोई उन्हें शहीद का पिता कहकर उसका सम्मान करता है. आपको बता दें कि पंजाब के भलदथुहा में अमलोह-नाभा रोड पर शहीद गुरबख्श सिंह लाडी की प्रतिमा लगाई गई है. अजीत सिंह रोज सुबह और शाम वहां जाकर घी के दीपक जलाते हैं और प्रतिमा को साफ करते हैं.
उन्होंने बताया कि लाडी को बचपन से ही सेना में शामिल होने का बहुत शौक था. बातचीत में अजीत सिंह ने बताया कि उन्हें सरकार से पूरा सम्मान मिलता है और उनकी सरकार से कोई मांग नहीं है. 15 अगस्त को सैन्य नायक आते हैं और मूर्ति के पास तिरंगा लहराते हैं और बेटे की शहादत को श्रद्धांजलि देते हैं.
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वहीं गांव के सरपंच जोगा सिंह ने कहा कि गुरबख्श सिंह लाडी अपने परिवार के इकलौते बेटे थे. परिवार को कई गुना नुकसान हुआ था, लेकिन गुरबख्श सिंह लाडी की शहादत देश और गांव के लिए गौरव की बात है.