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SC/ST मामले में निर्णय के खिलाफ पुनर्विचार याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में फैसला आज

सुप्रीम कोर्ट SC/ST कानून पर अपने फैसले पर पुनर्विचार करेगा. साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा था कि SC/ST एक्ट के तहत मिली सूचना पर तत्काल किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी नहीं की जाएगी लेकिन केंद्र सरकार ने कुछ दिन बाद ही इस फैसले के खिलाफ कानून बनाकर इसे कमजोर कर दिया था. जानें क्या है पूरा मामला...

सुप्रीम कोर्ट
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Published : Sep 13, 2019, 8:50 AM IST

Updated : Sep 30, 2019, 10:27 AM IST

नई दिल्लीः उच्चतम न्यायालय अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (SC/ST) कानून के तहत गिरफ्तारी के प्रावधानों पर फैसला सुनाएगा. न्यायालय ने SC/ST कानून पर मार्च ने फैसला दिया था. इसके बाद केंद्र ने इस पर पुनर्विचार याचिका दायर की थी. आज न्यायलय ने अपने फैसले पर केंद्र की पुनर्विचार याचिका को तीन सदस्यीय पीठ के पास भेजा दिया है.

न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति यू यू ललित की पीठ ने कहा कि मामले को सुनवाई के लिए अगले सप्ताह तीन सदस्यीय पीठ के समक्ष रखें. न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अगुवाई वाली पीठ इसका फैसला सुनाएगी.

शीर्ष अदालत ने केंद्र की इस याचिका पर एक मई को अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए टिप्पणी की थी कि देश में कानून को जाति तटस्थ और एकरूप होना चाहिए.

केंद्र ने दावा किया है कि मार्च 2018 में सुनाया गया पूरा फैसला समस्या खड़ी करने वाला है और न्यायालय को इसकी समीक्षा करनी चाहिए. इस फैसले का व्यापक विरोध हुआ था और देशभर में विभिन्न SC/ST संगठनों ने हिंसक प्रदर्शन किए थे. इसमें कई लोग हताहत हुए थे.

पिछले साल के फैसले का समर्थन कर रहे कुछ पक्षों ने कहा था कि केंद्र की याचिका निरर्थक हो गई है क्योंकि संसद पहले ही फैसले के प्रभाव को निष्प्रभावी बनाने के लिये अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) संशोधन अधिनियम 2018 पारित कर चुकी है.

उन्होंने मांग की कि जब तक न्यायालय केंद्र की पुनर्विचार याचिका पर फैसला नहीं सुनाता, तब तक संशोधन अधिनियम पर रोक लगाई जाए.

न्यायालय ने कहा था कि यदि फैसले में कुछ गलत हुआ है तो उसे पुनर्विचार याचिका में हमेशा सुधारा जा सकता है.

बता दें कि इससे पहले न्यायालय ने 30 जनवरी को अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति कानून में किये गये संशोधनों पर रोक लगाने से इंकार कर दिया था. संशोधनों के माध्यम से, इस कानून के तहत शिकायत होने पर आरोपी को अग्रिम जमानत नहीं देने का प्रावधान बहाल किया गया है.

शीर्ष अदालत ने सरकारी कर्मचारियों और निजी व्यक्तियों के खिलाफ SC/ST कानून के दुरुपयोग के मद्देनजर 20 मार्च, 2018 को अपने फैसले में कहा था कि इस कानून के तहत शिकायत मिलने पर तत्काल गिरफ्तारी नहीं की जायेगी.

पढ़ेंः अयोध्या केस का 23वां दिन : मुस्लिम पक्षों ने नमाज पर निर्मोही अखाड़े के दावे को खारिज किया

इस फैसले के बाद संसद ने पिछले साल नौ अगस्त को एक संशोधन विधयेक पारित करके न्यायालय की व्यवस्था को निष्प्रभावी बना दिया था.

नई दिल्लीः उच्चतम न्यायालय अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (SC/ST) कानून के तहत गिरफ्तारी के प्रावधानों पर फैसला सुनाएगा. न्यायालय ने SC/ST कानून पर मार्च ने फैसला दिया था. इसके बाद केंद्र ने इस पर पुनर्विचार याचिका दायर की थी. आज न्यायलय ने अपने फैसले पर केंद्र की पुनर्विचार याचिका को तीन सदस्यीय पीठ के पास भेजा दिया है.

न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति यू यू ललित की पीठ ने कहा कि मामले को सुनवाई के लिए अगले सप्ताह तीन सदस्यीय पीठ के समक्ष रखें. न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अगुवाई वाली पीठ इसका फैसला सुनाएगी.

शीर्ष अदालत ने केंद्र की इस याचिका पर एक मई को अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए टिप्पणी की थी कि देश में कानून को जाति तटस्थ और एकरूप होना चाहिए.

केंद्र ने दावा किया है कि मार्च 2018 में सुनाया गया पूरा फैसला समस्या खड़ी करने वाला है और न्यायालय को इसकी समीक्षा करनी चाहिए. इस फैसले का व्यापक विरोध हुआ था और देशभर में विभिन्न SC/ST संगठनों ने हिंसक प्रदर्शन किए थे. इसमें कई लोग हताहत हुए थे.

पिछले साल के फैसले का समर्थन कर रहे कुछ पक्षों ने कहा था कि केंद्र की याचिका निरर्थक हो गई है क्योंकि संसद पहले ही फैसले के प्रभाव को निष्प्रभावी बनाने के लिये अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) संशोधन अधिनियम 2018 पारित कर चुकी है.

उन्होंने मांग की कि जब तक न्यायालय केंद्र की पुनर्विचार याचिका पर फैसला नहीं सुनाता, तब तक संशोधन अधिनियम पर रोक लगाई जाए.

न्यायालय ने कहा था कि यदि फैसले में कुछ गलत हुआ है तो उसे पुनर्विचार याचिका में हमेशा सुधारा जा सकता है.

बता दें कि इससे पहले न्यायालय ने 30 जनवरी को अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति कानून में किये गये संशोधनों पर रोक लगाने से इंकार कर दिया था. संशोधनों के माध्यम से, इस कानून के तहत शिकायत होने पर आरोपी को अग्रिम जमानत नहीं देने का प्रावधान बहाल किया गया है.

शीर्ष अदालत ने सरकारी कर्मचारियों और निजी व्यक्तियों के खिलाफ SC/ST कानून के दुरुपयोग के मद्देनजर 20 मार्च, 2018 को अपने फैसले में कहा था कि इस कानून के तहत शिकायत मिलने पर तत्काल गिरफ्तारी नहीं की जायेगी.

पढ़ेंः अयोध्या केस का 23वां दिन : मुस्लिम पक्षों ने नमाज पर निर्मोही अखाड़े के दावे को खारिज किया

इस फैसले के बाद संसद ने पिछले साल नौ अगस्त को एक संशोधन विधयेक पारित करके न्यायालय की व्यवस्था को निष्प्रभावी बना दिया था.

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SC-SC/ST
SC verdict Friday on Centre's review plea of 2018 SC/ST Act judgement
         New Delhi, Sep 12 (PTI) The Supreme Court is scheduled Friday to pronounce verdict on the Centre's plea seeking review of its March 20, 2018 judgement which had virtually diluted provisions of arrest under the SC/ST Act.
         A bench headed by Justice Arun Mishra will pronounce the verdict.
         The top court had on May 1 reserved the judgement on the Centre's review plea while observing that laws in the country should be caste neutral and uniform.
         The Centre contended that the whole March 2018 verdict was "problematic" and it should be reviewed by the court.
         The verdict had led to massive outcry and violent protests by different SC/ST organisations across the country in which several people had died and many injured.
         Some of the parties supporting the last year verdict, had said that the Centre's review has become infructuous as Parliament has already passed the Scheduled Castes and the Scheduled Tribes (Prevention of Atrocities) Amendment Act, 2018 to neutralize the effects of the judgement.
         They sought a stay of the Amendment Act till the apex court gives the verdict on the review plea of Centre.
         The top court had said that if any wrong has been done in the judgement, then it can always be corrected in the review petition.
         On January 30, the apex court had refused to stay amendments to the SC/ST Act that restored the no anticipatory bail provision.
         Parliament on August 9 last year had passed a bill to overturn the apex court order relating to certain safeguards against arrest under the SC and ST law.
         On March 20, 2018, the apex court had taken note of the rampant misuse of the stringent SC/ST Act against government servants and private individuals and said there would be no immediate arrest on any complaint filed under the law.
         The top court had said that on "several occasions", innocent citizens were being termed as accused and public servants deterred from performing their duties, which was never the intention of the legislature while enacting the Scheduled Castes and the Scheduled Tribes (Prevention of Atrocities) Act.
         The apex court had said that there is no absolute bar against grant of anticipatory bail in cases under the Atrocities Act, if no prima facie case is made out or where the complaint is found to be prima facie mala fide.
         It had said that in view of the acknowledged abuse of law of arrest in cases under the Atrocities Act, arrest of a public servant can only be after approval of the appointing authority and of a non-public servant after approval by the Senior Superintendent of Police (SSP). PTI MNL ABA
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Last Updated : Sep 30, 2019, 10:27 AM IST
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