नई दिल्ली : सेंट्रल विस्टा योजना को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल काम रोकने से इनकार कर दिया है. कोर्ट का कहना है कि फिलहाल काम नहीं रुकेगा. इसके साथ ही कोर्ट ने केंद्र को जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है.
उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि राष्ट्रपति भवन से इंडिया गेट के बीच करीब तीन किलोमीटर के क्षेत्र में सेंट्रल विस्टा परियोजना के लिए प्राधिकारियों द्वारा जमीनी स्तर पर किया गया कोई भी बदलाव उनके अपने जोखिम पर होगा. शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि इस परियोजना का भाग्य उसके फैसले पर निर्भर करेगा.
न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की.
दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि केन्द्र सरकार की सेंट्रल विस्टा परियोजना की अनुमति देने के लिए मास्टर प्लान में किसी प्रकार के बदलाव को अधिसूचित करने से पहले, दिल्ली विकास प्राधिकरण के लिए उसे इसकी जानकारी देने की आवश्यकता नहीं है.
पीठ ने कहा, 'जमीनी स्तर पर किसी भी प्रकार का बदलाव वह अपने जोखिम पर करेंगे.' इस याचिका पर सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि यह परियोजना कोई एक सप्ताह के भीतर पूरी नहीं हो रही है. इसमें बदलाव प्राधिकारी अपने जोखिम पर करेंगे.
याचिकाकर्ता की दलील थी कि परियोजना के लिए किसी भी स्थिति में जमीनी स्तर पर कोई बदलाव नहीं होना चाहिए क्योंकि इसके दायरे में आने वाले क्षेत्र में राष्ट्रीय धरोहर के अनेक स्मारक हैं जिन्हें हटाया जा सकता है. याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने पीठ को सूचित किया कि अभी तक भू-उपयोग में बदलाव और परियोजना के लिए पर्यावरण की मंजूरी के बारे में दो अधिसूचनाएं जारी की जा चुकी हैं.
केन्द्र की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इस परियोजना के लिए आवश्यक मंजूरी देने में किसी भी मानदंड का उल्लंघन नहीं किया गया है.
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पीठ ने कहा कि इस मामले की सुनवाई अब सात जुलाई को की जाएगी. शीर्ष अदालत ने मामले को सूचीबद्ध कर याचिकाकर्ता को अपनी याचिका में संशोधन कर, प्राधिकारियों द्वारा इस परियोजना के लिए हाल में लिए गए फैसलों को चुनौती देने की अनुमति प्रदान कर दी.
हेगड़े ने पीठ से कहा कि इस मामले की सुनवाई की अगली तारीख तक इस परियोजना के लिए कोई नयी मंजूरी नहीं दी जानी चाहिए क्योंकि ऐसी सभी स्वीकृतियों को भी चुनौती दी जाएगी.
पीठ ने याचिकाकर्ता से कहा कि वह 23 जून तक अपने कथनों और दस्तोवजों का संकलन दाखिल करे, जबकि केन्द्र को इस पर तीन जुलाई तक इनका जवाब देने का निर्देश दिया गया है.
उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने 28 फरवरी को एकल न्यायाधीश के आदेश पर रोक लगा दी थी. एकल न्यायाधीश ने डीडीए से कहा था कि केन्द्र की इस महत्वाकांक्षी परियोजना के लिए मास्टर प्लान में किसी भी प्रकार का बदलाव करने से पहले उसे अदालत के पास आना होगा.
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इससे पहले विगत अप्रैल माह में भी सुप्रीम कोर्ट ने सेंट्रल विस्टा परियोजना पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था. प्रधान न्यायाधीश एस.ए. बोबडे की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा था,'कोविड-19 के समय में कोई भी कुछ नहीं करने जा रहा है. कोई जल्दी नहीं है.'
क्या है सेंट्रल विस्टा परियोजना
बता दें कि इस परियोजना के दायरे में अनेक नई सरकारी इमारतें और नए संसद भवन का निर्माण प्रस्तावित है. सेंट्रल विस्टा परियोजना का उद्देश्य रायसीना हिल्स पर पुरानी इमारतों की मरम्मत करना है. राष्ट्रपति भवन से इंडिया गेट तक की इस परियोजना को पूरा करने की समयसीमा नवंबर 2021 है. वहीं संसद भवन के पुनर्निमाण को मार्च 2022 तक और आम केंद्रीय सचिवालय में मार्च 2024 तक यह काम पूरा होना है.
इस परियोजना के अलावा आम सचिवालय भवनों को बेहतर बनाना, पुराने संसद भवन का नवीनीकरण करना, सांसदों की आवश्यकता के लिए नई जगह बनाना और संपूर्ण मास्टर प्लान को संशोधित करके पूरे केंद्रीय विस्टा क्षेत्र को बेहतर करना है.
परियोजना से जुड़े अधिकारियों के मुताबिक, ' वर्तमान संसद भवन में जगह की कमी है. वहीं भारत और विदेश से आगंतुक केंद्रीय विस्टा आते रहते हैं और इसकी सुंदरता को सुधारने के लिए इसे विश्व स्तरीय पर्यटक आकर्षण बिंदु बनाने की तत्काल आवश्यकता है.'
अधिकारियों की दलील है कि रायसीना हिल्स और राजपथ से सटे संसद भवन की 100 वर्षों से अधिक पुरानी इमारतों के, पुर्ननिर्माण की आवश्यकता अब कई गुना बढ़ गई है.
विस्टा के साथ जुड़े लोगों का कहना है कि पहले बनाई गई इन इमारतों में पर्याप्त स्थान, सुविधाएं और आराम और बहुत सी सुख सुविधाओं की कमी है.