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शाहीन बाग मामला : विरोध-प्रदर्शन के अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला सुरक्षित

दिल्ली के शाहीन बाग में तीन महीने से अधिक समय तक सड़क बाधित होने के बाद सुप्रीम कोर्ट में इस संबंध में याचिकाएं दायर की गई थी. शीर्ष अदालत में दायर कई याचिकाओं की सुनवाई एक साथ की गई. इन पर कई दौर की सुनवाई के बाद आज सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया. विरोध प्रदर्शन को लेकर खड़े हुए सवाल के बीच नागरिकों के अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला सुनाएगी.

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Published : Sep 21, 2020, 2:18 PM IST

Updated : Sep 21, 2020, 5:46 PM IST

verdict on right to protest
विरोध के अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली : नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के खिलाफ देश के अलग-अलग हिस्सों में लंबे समय तक विरोध प्रदर्शन हुए थे. इनमें से एक जगह दिल्ली का शाहीन बाग भी है. शाहीन बाग में सीएए के खिलाफ हुए विरोध-प्रदर्शन के दौरान सड़क बाधित हो गई थी. इसके बाद नागरिकों के विरोध-प्रदर्शन का अधिकार सवालों के घेरे में आ गया था. दिलचस्प है कि आज लगभग सात महीनों के बाद यह याचिका अदालत में लिस्ट की गई. ऐसे में अब सुप्रीम कोर्ट कभी भी फैसला सुना सकती है.

दरअसल, विरोध-प्रदर्शन करने को लेकर नागरिक अधिकारों की विवेचना की मांग के संबंध में सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गई थीं. अदालत ने इन याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है.

न्यायमूर्ति संजय किशन कौल ने आज फैसला सुरक्षित रखने के पहले टिप्पणी की. उन्होंने कहा कि लोगों की आवाजाही और विरोध-प्रदर्शन को लेकर नागरिकों के करने के अधिकार को संतुलित करने की आवश्यकता है.

शीर्ष अदालत ने प्रदर्शनकारियों को शाहीन बाग में विरोध प्रदर्शन वाले स्थान से हटाने की याचिका का निपटारा कर दिया, क्योंकि जगह पहले ही खाली हो चुका है.

अदालत में मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि हमें विरोध करने का पूरा और असीमित (absolute) अधिकार है. हालांकि, केंद्र और सुप्रीम कोर्ट दोनों इस तर्क से सहमत नहीं हुए. याचिकाकर्ता ने कहा कि इस संबंध में एक यूनिवर्सल नीति बनाई जाए, जिस पर अदालत ने कहा कि यह कठिन है.

याचिकाकर्ताओं ने कहा कि विरोध प्रदर्शन को दबाने के लिए सरकार ने प्रशासन का गलत उपयोग किया है. उन्होंने सवाल किया कि एक विशेष समूह के लोगों ने विरोध स्थल पर जाकर एक अलग माहौल क्यों बनाया ?

याचिकर्ताओं की दलीलों पर केंद्र ने कहा कि नागरिक प्रदर्शन करने के पूर्ण अधिकार (absolute right) का दावा नहीं कर सकते. विरोध के दौरान सड़कों पर वाहनों की आवाजाही को बाधित नहीं किया जा सकता, जिससे आम लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़े. हालांकि, केंद्र ने यह भी कहा कि लोगों को शांतिपूर्ण तरीके से विरोध-प्रदर्शन करने का अधिकार है.

गौरतलब है कि नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ दिल्ली के शाहीन बाग में प्रदर्शनकारियों ने कई महीनों तक विरोध प्रदर्शन किया था. हालांकि, कोरोना महामारी के चलते शाहीन बाग में प्रदर्शन स्थल को खाली कर दिया गया था. 24 मार्च की सुबह शाहीन बाग को खाली करा दिया गया था. पुलिस ने यह कार्रवाई धरने के 101वें दिन की थी. यह स्थान देश में नागरिकता कानून के खिलाफ विरोध का केंद्र के रूप में मशहूर हो गया था.

यह भी पढ़ें- शाहीन बाग का खाली होना किसी की 'जीत या हार' नहीं : वार्ताकार

शाहीन बाग के आस-पास रहने वाले लोगों के अलावा कई अन्य लोग भी नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में लगातार विरोध-प्रदर्शन करते रहे थे. इसी दौरान हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान कई बार भड़काऊ बयानबाजी भी देखने को मिली थी.

बता दें कि केंद्र सरकार ने संसद से विधेयक पारित होने के बाद नागरिकता देने के प्रावधानों में बदलाव किए हैं. बदले हुए कानून के तहत बांग्लादेश अफगानिस्तान, पाकिस्तान से आए हिंदू सिख बौद्ध, जैन और ईसाई धर्म के प्रवासियों के लिए नागरिकता के नियमों को आसान बनाया गया है.

कानून का विरोध कर रहे लोगों का कहना है कि इसके आधार पर धर्म आधारित भेदभाव किए जाने की आशंका है. हालांकि, केंद्र सरकार ने इस कानून को बार-बार सफाई दी है कि यह कानून नागरिकता देने के लिए है न कि किसी की नागरिकता छीनने के लिए.

नई दिल्ली : नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के खिलाफ देश के अलग-अलग हिस्सों में लंबे समय तक विरोध प्रदर्शन हुए थे. इनमें से एक जगह दिल्ली का शाहीन बाग भी है. शाहीन बाग में सीएए के खिलाफ हुए विरोध-प्रदर्शन के दौरान सड़क बाधित हो गई थी. इसके बाद नागरिकों के विरोध-प्रदर्शन का अधिकार सवालों के घेरे में आ गया था. दिलचस्प है कि आज लगभग सात महीनों के बाद यह याचिका अदालत में लिस्ट की गई. ऐसे में अब सुप्रीम कोर्ट कभी भी फैसला सुना सकती है.

दरअसल, विरोध-प्रदर्शन करने को लेकर नागरिक अधिकारों की विवेचना की मांग के संबंध में सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गई थीं. अदालत ने इन याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है.

न्यायमूर्ति संजय किशन कौल ने आज फैसला सुरक्षित रखने के पहले टिप्पणी की. उन्होंने कहा कि लोगों की आवाजाही और विरोध-प्रदर्शन को लेकर नागरिकों के करने के अधिकार को संतुलित करने की आवश्यकता है.

शीर्ष अदालत ने प्रदर्शनकारियों को शाहीन बाग में विरोध प्रदर्शन वाले स्थान से हटाने की याचिका का निपटारा कर दिया, क्योंकि जगह पहले ही खाली हो चुका है.

अदालत में मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि हमें विरोध करने का पूरा और असीमित (absolute) अधिकार है. हालांकि, केंद्र और सुप्रीम कोर्ट दोनों इस तर्क से सहमत नहीं हुए. याचिकाकर्ता ने कहा कि इस संबंध में एक यूनिवर्सल नीति बनाई जाए, जिस पर अदालत ने कहा कि यह कठिन है.

याचिकाकर्ताओं ने कहा कि विरोध प्रदर्शन को दबाने के लिए सरकार ने प्रशासन का गलत उपयोग किया है. उन्होंने सवाल किया कि एक विशेष समूह के लोगों ने विरोध स्थल पर जाकर एक अलग माहौल क्यों बनाया ?

याचिकर्ताओं की दलीलों पर केंद्र ने कहा कि नागरिक प्रदर्शन करने के पूर्ण अधिकार (absolute right) का दावा नहीं कर सकते. विरोध के दौरान सड़कों पर वाहनों की आवाजाही को बाधित नहीं किया जा सकता, जिससे आम लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़े. हालांकि, केंद्र ने यह भी कहा कि लोगों को शांतिपूर्ण तरीके से विरोध-प्रदर्शन करने का अधिकार है.

गौरतलब है कि नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ दिल्ली के शाहीन बाग में प्रदर्शनकारियों ने कई महीनों तक विरोध प्रदर्शन किया था. हालांकि, कोरोना महामारी के चलते शाहीन बाग में प्रदर्शन स्थल को खाली कर दिया गया था. 24 मार्च की सुबह शाहीन बाग को खाली करा दिया गया था. पुलिस ने यह कार्रवाई धरने के 101वें दिन की थी. यह स्थान देश में नागरिकता कानून के खिलाफ विरोध का केंद्र के रूप में मशहूर हो गया था.

यह भी पढ़ें- शाहीन बाग का खाली होना किसी की 'जीत या हार' नहीं : वार्ताकार

शाहीन बाग के आस-पास रहने वाले लोगों के अलावा कई अन्य लोग भी नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में लगातार विरोध-प्रदर्शन करते रहे थे. इसी दौरान हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान कई बार भड़काऊ बयानबाजी भी देखने को मिली थी.

बता दें कि केंद्र सरकार ने संसद से विधेयक पारित होने के बाद नागरिकता देने के प्रावधानों में बदलाव किए हैं. बदले हुए कानून के तहत बांग्लादेश अफगानिस्तान, पाकिस्तान से आए हिंदू सिख बौद्ध, जैन और ईसाई धर्म के प्रवासियों के लिए नागरिकता के नियमों को आसान बनाया गया है.

कानून का विरोध कर रहे लोगों का कहना है कि इसके आधार पर धर्म आधारित भेदभाव किए जाने की आशंका है. हालांकि, केंद्र सरकार ने इस कानून को बार-बार सफाई दी है कि यह कानून नागरिकता देने के लिए है न कि किसी की नागरिकता छीनने के लिए.

Last Updated : Sep 21, 2020, 5:46 PM IST
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