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तेलंगाना सचिवालय भवन गिराने से जुड़ी याचिका पर सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट का इनकार - secretariat demolition in telangana

तेलंगाना सचिवालय भवन को लेकर दायर की गई याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करने से इनकार कर दिया है. शीर्ष अदालत ने कहा कि वह संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत इस मामले पर विचार नहीं कर सकती है.

SUPREME COURT
सुप्रीम कोर्ट
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Published : Jul 17, 2020, 3:37 PM IST

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने आज कांग्रेस नेता जीवन रेड्डी द्वारा दायर एक याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया. इन्होंने तेलंगाना में सचिवालय भवन को तोड़ने पर कोर्ट में चुनौती दी थी. न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय में वह हस्तक्षेप नहीं कर सकती है. न्यायमूर्ति भूषण ने कहा कि उच्च न्यायालय ने इस बात को रेखांकित किया था कि सचिवालय की इमारतों में कई कमियां हैं.

इससे पहले गुरुवार को तेलंगाना उच्च न्यायालय ने राज्य सचिवालय भवन को ध्वस्त किये जाने पर अस्थायी रोक की अवधि 17 जुलाई तक बढ़ा दी थी. मुख्य न्यायाधीश राघवेंद्र सिंह चौहान और न्यायमूर्ति बी विजयसेन रेड्डी की खंडपीठ ने यह फैसला किया था.

बता दें कि तेलंगाना सचिवालय भवन को ध्वस्त किए जाने से रोकने के लिए प्रोफेसर पी एल विश्वेश्वर राव और डॉ चेरूकु सुधाकर ने याचिका दायर की है. याचिकाकर्ताओं ने आरेाप लगाया है कि मौजूदा सचिवालय परिसर को ध्वस्त करने का कार्य समुचित कानूनी प्रक्रिया के बगैर किया जा रहा है.

आरोपों पर राज्य सरकार की सफाई

याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि मौजूदा ढांचे को ध्वस्त किया जाना महामारी के समय में एक मनमाना कार्य है और इससे आसपास के इलाके के पांच लाख लोग स्वच्छ हवा से वंचित हो जाएंगे. हालांकि, तेलंगाना के महाधिवक्ता ने अदालत से कहा कि राज्य सरकार ने भवन को ध्वस्त करने के लिए ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम से आवश्यक अनुमति ली है.

हाईकोर्ट के स्थगन आदेश

इस याचिका पर हाईकोर्ट ने विगत 10 जुलाई को भी सुनवाई की थी. कोर्ट ने सचिवालय भवन को ध्वस्त किये जाने पर 13 जुलाई तक के लिए स्थगन आदेश जारी किया था. बाद में कोर्ट ने इस मामले में स्थगन आदेश 15 जुलाई तक बढ़ा दिया था. कोर्ट ने सचिवालय भवन ध्वस्त किये जाने के मामले में केसी राव की सरकार को निर्देश जारी किया था. हाईकोर्ट ने राज्य मंत्रिमंडल का एक प्रस्ताव सीलबंद लिफाफे में सौंपने का निर्देश दिया था.

हाईकोर्ट ने केंद्र से भी मांगा जवाब

अदालत ने गुरुवार को स्थगन की अवधि बढ़ाते हुए केंद्र को इस बारे में जवाब सौंपने को कहा कि क्या सचिवालय परिसर को ध्वस्त करने के लिए पर्यावरण मंजूरी की जरूरत है? इसके बाद, 15 जुलाई को हाईकोर्ट ने सचिवालय भवन को गिराने को लेकर जारी स्थगन आदेश एक दिन के लिए बढ़ा दिया था.

क्या है पूरा मामला

गौरतलब है कि तेलंगाना सरकार नया सचिवालय भवन बनाने जा रही है, जो 25.5 एकड़ जमीन में बनेगा. करीब 10 लाख वर्ग फुट क्षेत्र में फैले इस भवन के निर्माण पर 1000 करोड़ रुपये खर्च होंगे.

इस सचिवालय की जगह नए सचिवालय परिसर के निर्माण को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं को तेलंगाना उच्च न्यायालय ने कुछ दिन पहले ही खारिज कर दिया, जिसके बाद इमारत को तोड़ने का काम शुरू हो गया. इसकी जगह पर एक अत्याधुनिक इमारत का निर्माण किया जाएगा. विपक्षी पार्टियों ने भी इस निर्माण का विरोध किया है.

पढ़ें : तेलंगाना में ऐतिहासिक सचिवालय को तोड़ने का काम शुरू

यह सचिवालय कई ऐतिहासिक पलों और कई सरकारों के बनने और गिरने का गवाह रहा है.

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने आज कांग्रेस नेता जीवन रेड्डी द्वारा दायर एक याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया. इन्होंने तेलंगाना में सचिवालय भवन को तोड़ने पर कोर्ट में चुनौती दी थी. न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय में वह हस्तक्षेप नहीं कर सकती है. न्यायमूर्ति भूषण ने कहा कि उच्च न्यायालय ने इस बात को रेखांकित किया था कि सचिवालय की इमारतों में कई कमियां हैं.

इससे पहले गुरुवार को तेलंगाना उच्च न्यायालय ने राज्य सचिवालय भवन को ध्वस्त किये जाने पर अस्थायी रोक की अवधि 17 जुलाई तक बढ़ा दी थी. मुख्य न्यायाधीश राघवेंद्र सिंह चौहान और न्यायमूर्ति बी विजयसेन रेड्डी की खंडपीठ ने यह फैसला किया था.

बता दें कि तेलंगाना सचिवालय भवन को ध्वस्त किए जाने से रोकने के लिए प्रोफेसर पी एल विश्वेश्वर राव और डॉ चेरूकु सुधाकर ने याचिका दायर की है. याचिकाकर्ताओं ने आरेाप लगाया है कि मौजूदा सचिवालय परिसर को ध्वस्त करने का कार्य समुचित कानूनी प्रक्रिया के बगैर किया जा रहा है.

आरोपों पर राज्य सरकार की सफाई

याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि मौजूदा ढांचे को ध्वस्त किया जाना महामारी के समय में एक मनमाना कार्य है और इससे आसपास के इलाके के पांच लाख लोग स्वच्छ हवा से वंचित हो जाएंगे. हालांकि, तेलंगाना के महाधिवक्ता ने अदालत से कहा कि राज्य सरकार ने भवन को ध्वस्त करने के लिए ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम से आवश्यक अनुमति ली है.

हाईकोर्ट के स्थगन आदेश

इस याचिका पर हाईकोर्ट ने विगत 10 जुलाई को भी सुनवाई की थी. कोर्ट ने सचिवालय भवन को ध्वस्त किये जाने पर 13 जुलाई तक के लिए स्थगन आदेश जारी किया था. बाद में कोर्ट ने इस मामले में स्थगन आदेश 15 जुलाई तक बढ़ा दिया था. कोर्ट ने सचिवालय भवन ध्वस्त किये जाने के मामले में केसी राव की सरकार को निर्देश जारी किया था. हाईकोर्ट ने राज्य मंत्रिमंडल का एक प्रस्ताव सीलबंद लिफाफे में सौंपने का निर्देश दिया था.

हाईकोर्ट ने केंद्र से भी मांगा जवाब

अदालत ने गुरुवार को स्थगन की अवधि बढ़ाते हुए केंद्र को इस बारे में जवाब सौंपने को कहा कि क्या सचिवालय परिसर को ध्वस्त करने के लिए पर्यावरण मंजूरी की जरूरत है? इसके बाद, 15 जुलाई को हाईकोर्ट ने सचिवालय भवन को गिराने को लेकर जारी स्थगन आदेश एक दिन के लिए बढ़ा दिया था.

क्या है पूरा मामला

गौरतलब है कि तेलंगाना सरकार नया सचिवालय भवन बनाने जा रही है, जो 25.5 एकड़ जमीन में बनेगा. करीब 10 लाख वर्ग फुट क्षेत्र में फैले इस भवन के निर्माण पर 1000 करोड़ रुपये खर्च होंगे.

इस सचिवालय की जगह नए सचिवालय परिसर के निर्माण को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं को तेलंगाना उच्च न्यायालय ने कुछ दिन पहले ही खारिज कर दिया, जिसके बाद इमारत को तोड़ने का काम शुरू हो गया. इसकी जगह पर एक अत्याधुनिक इमारत का निर्माण किया जाएगा. विपक्षी पार्टियों ने भी इस निर्माण का विरोध किया है.

पढ़ें : तेलंगाना में ऐतिहासिक सचिवालय को तोड़ने का काम शुरू

यह सचिवालय कई ऐतिहासिक पलों और कई सरकारों के बनने और गिरने का गवाह रहा है.

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