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कश्मीर में पाबंदी : SC ने आजाद से पूछा - क्या अधिकारी दंगा होने का इंतजार करते

उच्चतम न्यायालय ने जम्मू कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा समाप्त करने के बाद घाटी में लगाये गये अनेक प्रतिबंधों पर आपत्ति जताने वाले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद से सवाल किये और जानना चाहा कि क्या प्राधिकारियों को दंगा होने का इंतजार करना चाहिए था. इस तरह के मामले में ऐसी आशंका क्यों नहीं हो सकती कि पूरा क्षेत्र या स्थान अशांत हो सकता है? पढ़ें पूरा विवरण...

उच्चतम न्यायालय
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Published : Nov 7, 2019, 10:01 PM IST

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा समाप्त करने के बाद राज्य में लगाये गये अनेक प्रतिबंधों को लेकर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद से सवाल किये और जानना चाहा कि क्या प्राधिकारियों को दंगा होने का इंतजार करना चाहिए था.

न्यायमूर्ति एन.वी.रमण, न्यायमूर्ति आर. सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति बी.आर. गवई की तीन सदस्यीय पीठ ने आजाद के पार्टी सहयोगी तथा वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल से सवाल किया कि इस तरह के मामले में ऐसी आशंका क्यों नहीं हो सकती कि पूरा क्षेत्र या स्थान अशांत हो सकता है?

सिब्बल जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद की याचिका पर उनकी ओर से बहस कर रहे थे. उन्होंने दलील दी थी कि प्राधिकारियों द्वारा संचार और परिवहन व्यवस्था सहित अनेक पाबंदियां लगाना अधिकारों का आभासी इस्तेमाल था.

सिब्बल ने कहा कि सार्वजनिक सद्भाव को किसी प्रकार के खतरे की आशंका के बारे में उचित सामग्री के बगैर ही प्राधिकारी इस तरह की पाबंदियां नहीं लगा सकते.

उन्होंने सवाल किया कि सरकार यह कैसे मान सकती है कि सारी आबादी उसके खिलाफ होगी और इससे कानून व्यवस्था की समस्या पैदा होगी.

पढ़ें : तीव्र हो सकता है चक्रवात 'बुलबुल', बंगाल की तरफ बढ़ने की आशंका

सिब्बल ने कहा, 'घाटी के दस जिलों में 70 लाख की आबादी को इस तरह से पंगु बनाना क्या जरूरी था? उन्हें ऐसा करने के समर्थन में सामग्री दिखानी होगी. इस मामले में हम जम्मू-कश्मीर की जनता के अधिकारों की बात नहीं कर रहे हैं. हम भारत के लोगों के अधिकारों के बारे में बात कर रहे हैं.'

इस पर पीठ ने सवाल किया, 'क्या उन्हें दंगा होने का इंतजार करना चाहिए था?'

इसके जवाब में सिब्बल ने कहा, 'वे यह कैसे मान सकते हैं कि दंगे होंगे? यह दर्शाता है कि उनके दिमागों में एक धारणा है और उनके पास कोई तथ्य नहीं है. उनके पास ऐसा कहने के लिए खुफिया जानकारी हो सकती है.'

उनका तर्क था कि शासन के पास व्यापक अधिकार होते हैं और यदि हालात का तकाजा होता तो प्राधिकारी धारा 144 लगा सकते थे. उन्होंने कहा कि शासन का यह परम कर्तव्य है कि वह नागरिकों के अधिकारों की रक्षा ही नहीं करे बल्कि जरूरतमंदों की मदद भी करे.

सिब्बल ने कहा, 'जम्मू-कश्मीर में जो कुछ हो रहा है, उसके बारे में भारत की जनता को जानने का अधिकार है. सरकार यह नहीं कह सकती कि एक जिले में रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति शांति भंग कर सकता है.'

उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधान खत्म करने से एक दिन पहले चार अगस्त को कई तरह के प्रतिबंध लगाने के आदेश दिये गये थे. उन्होंने कहा कि आप यह कैसे मान सकते हैं कि पूरी आबादी ही इसके खिलाफ होगी और इसका क्या आधार है?

इस पर पीठ ने सिब्बल से कहा, 'यदि ऐसा है तो किसी भी स्थान पर धारा 144 नहीं लगायी जा सकती. पीठ ने यह भी कहा कि कुछ परिस्थितियों में किसी क्षेत्र में कर्फ्यू लगाये जाने पर भी तो कुछ लोगों को परेशानी हो सकती है.

आजाद की याचिका पर गुरुवार को लगातार दूसरे दिन सिब्बल की बहस अधूरी रही. वह अब 14 नवम्बर को आगे बहस करेंगे.

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा समाप्त करने के बाद राज्य में लगाये गये अनेक प्रतिबंधों को लेकर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद से सवाल किये और जानना चाहा कि क्या प्राधिकारियों को दंगा होने का इंतजार करना चाहिए था.

न्यायमूर्ति एन.वी.रमण, न्यायमूर्ति आर. सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति बी.आर. गवई की तीन सदस्यीय पीठ ने आजाद के पार्टी सहयोगी तथा वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल से सवाल किया कि इस तरह के मामले में ऐसी आशंका क्यों नहीं हो सकती कि पूरा क्षेत्र या स्थान अशांत हो सकता है?

सिब्बल जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद की याचिका पर उनकी ओर से बहस कर रहे थे. उन्होंने दलील दी थी कि प्राधिकारियों द्वारा संचार और परिवहन व्यवस्था सहित अनेक पाबंदियां लगाना अधिकारों का आभासी इस्तेमाल था.

सिब्बल ने कहा कि सार्वजनिक सद्भाव को किसी प्रकार के खतरे की आशंका के बारे में उचित सामग्री के बगैर ही प्राधिकारी इस तरह की पाबंदियां नहीं लगा सकते.

उन्होंने सवाल किया कि सरकार यह कैसे मान सकती है कि सारी आबादी उसके खिलाफ होगी और इससे कानून व्यवस्था की समस्या पैदा होगी.

पढ़ें : तीव्र हो सकता है चक्रवात 'बुलबुल', बंगाल की तरफ बढ़ने की आशंका

सिब्बल ने कहा, 'घाटी के दस जिलों में 70 लाख की आबादी को इस तरह से पंगु बनाना क्या जरूरी था? उन्हें ऐसा करने के समर्थन में सामग्री दिखानी होगी. इस मामले में हम जम्मू-कश्मीर की जनता के अधिकारों की बात नहीं कर रहे हैं. हम भारत के लोगों के अधिकारों के बारे में बात कर रहे हैं.'

इस पर पीठ ने सवाल किया, 'क्या उन्हें दंगा होने का इंतजार करना चाहिए था?'

इसके जवाब में सिब्बल ने कहा, 'वे यह कैसे मान सकते हैं कि दंगे होंगे? यह दर्शाता है कि उनके दिमागों में एक धारणा है और उनके पास कोई तथ्य नहीं है. उनके पास ऐसा कहने के लिए खुफिया जानकारी हो सकती है.'

उनका तर्क था कि शासन के पास व्यापक अधिकार होते हैं और यदि हालात का तकाजा होता तो प्राधिकारी धारा 144 लगा सकते थे. उन्होंने कहा कि शासन का यह परम कर्तव्य है कि वह नागरिकों के अधिकारों की रक्षा ही नहीं करे बल्कि जरूरतमंदों की मदद भी करे.

सिब्बल ने कहा, 'जम्मू-कश्मीर में जो कुछ हो रहा है, उसके बारे में भारत की जनता को जानने का अधिकार है. सरकार यह नहीं कह सकती कि एक जिले में रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति शांति भंग कर सकता है.'

उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधान खत्म करने से एक दिन पहले चार अगस्त को कई तरह के प्रतिबंध लगाने के आदेश दिये गये थे. उन्होंने कहा कि आप यह कैसे मान सकते हैं कि पूरी आबादी ही इसके खिलाफ होगी और इसका क्या आधार है?

इस पर पीठ ने सिब्बल से कहा, 'यदि ऐसा है तो किसी भी स्थान पर धारा 144 नहीं लगायी जा सकती. पीठ ने यह भी कहा कि कुछ परिस्थितियों में किसी क्षेत्र में कर्फ्यू लगाये जाने पर भी तो कुछ लोगों को परेशानी हो सकती है.

आजाद की याचिका पर गुरुवार को लगातार दूसरे दिन सिब्बल की बहस अधूरी रही. वह अब 14 नवम्बर को आगे बहस करेंगे.

Intro:Senior advocate, Kapil Sibal, appearing for Ghulam Nabi Azad in a petition filed challenging the communication blockade in Kashmir, argued that a state can not exercise its power if it can not perform its duty. He said it was in minds of the government that riots will take place if 370 is abrogated, there were no materials and facts on which the decision was taken, it was just apprehnsions. "By your own act you have created a problem", added Sibal.


Body:The Supreme court bench led by Justice NV Ramana enquired Sibal on what kind of material can such decision be taken, to which Sibal said that there are intelligence inputs, cross border terrorism threat based on which blocakade should have been imposed.

"Sibal there can not be a doubt that there will be some problems in such situations.Some will suffer and there is no doubt to it", said Justice Subhash Reddy.

Sibal said that the bench should consider that it is the state's duty to protect the fundamental rights of the people. People have contracts, they have to supply goods and services, people have taken loan, there are farmers, orchard growers who are being affected by communicatiom shut down, added Sibal. "You tried to protect me but you never protected me", remarked Sibal.

Explaining how the state could have performed its duty, Sibal said that Azaad should have been allowed to go to J&K and police could have escorted him. If the governanment had to take a step for 7 million people then it should have prepared for it.


Conclusion:Supreme court is hearing a bunch of petitions challenging the communication blockade in Kashmir after Article 370 was abrogated. The hearing will continue tommorow.
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