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घाटी में फोन, इंटरनेट सेवाएं ठप करने के आदेश गैरकानूनी : SC में दी गई दलील

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Published : Nov 5, 2019, 11:41 PM IST

जम्मू-कश्मीर में हुए संवैधानिक बदलावों से जुड़े मामले की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हो गई है. मंगलवार को सुनवाई के दौरान घाटी में संचार माध्यमों पर लगे प्रतिबंधों पर दलील दी गई. पढ़ें पूरी खबर...

फाइल फोटो

नई दिल्ली : जम्मू-कश्मीर से हटाये गये अनुच्छेद 370 को लेकर उच्चतम न्यायालय में दाखिल याचिका पर सुनवाई शुरू हुई. सुनवाई के दौरान कहा गया कि अनुच्छेद 370 के ज्यादातर प्रावधान रद्द करने के बाद जम्मू-कश्मीर में मोबाइल फोन, लैंडलाइन और इंटरनेट सेवाओं को बंद करने के आदेश और अधिसूचनाएं गैरकानूनी तथा असंवैधानिक हैं.

न्यायमूर्ति एन.वी. रमण, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति बी.आर. गवई की तीन सदस्यीय पीठ के समक्ष ये दलील दी गयी. दलील में कहा गया कि घाटी में 90 दिन बाद भी संचार सेवाएं - डेटा, इंटरनेट, प्री-पेड मोबाइल और एसएमएस- काम नहीं कर रही हैं और इससे मीडिया का काम प्रभावित हो रहा है.

कश्मीर टाइम्स की कार्यकारी संपादक अनुराधा भसीन की ओर से अधिवक्ता वृन्दा ग्रोवर ने कहा कि सरकार को संविधान के अनुच्छेद 19 में प्रदत्त अधिकारों पर उचित पाबंदी लगाने का अधिकार है. लेकिन वह इस अधिकार को पूरी तरह खत्म नहीं कर सकती. इस अखबार ने संचार सेवाओं पर लगे प्रतिबंध को शीर्ष अदालत में चुनौती दे रखी है.

ग्रोवर ने कहा, 'घाटी में चार अगस्त से संचार व्यवस्था पूरी तरह ठप है. इस न्यायालय को इसकी परख करनी होगी. हां, संविधान के अनुच्छेद 19 में प्रदत्त अधिकारों पर तर्कसंगत प्रतिबंध लगाया जा सकता है परंतु यह इस अधिकार को ही पूरी तरह खत्म नहीं कर सकता.'

उन्होंने दलील दी कि प्राधिकारियों का आदेश 3जी और 4जी की गति घटाने के बारे में था, लेकिन इंटरनेट सेवाएं तो पूरी तरह बंद हैं. कश्मीर जोन के पुलिस महानिरीक्षक के आदेशों में एक का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि यह पूरी तरह गैरकानूनी और असंवैधानिक है.

पढ़ें - कश्मीर मुद्दे पर PIL, सुप्रीम कोर्ट का सुनवाई टालने से इनकार

ग्रोवर ने कहा कि जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने अपने हलफनामे में कहा है कि राष्ट्रीय सुरक्षा और लोगों की जान की रक्षा के लिए कुछ उपाय किये गये थे. उन्होंने कहा कि प्रशासन ने दावा किया था कि इंटरनेट सेवाओं का राष्ट्र विरोधी तत्व दुरुपयोग कर सकते हैं परंतु उनके अपने आंकड़े ही बताते हैं कि आतंकी हिंसा कम हुई है.

शीर्ष अदालत ने 24 अक्ट्रबर को जम्मू-कश्मीर प्रशासन से जानना चाहा था कि घाटी में इंटरनेट सेवा बाधित रखने सहित इन प्रतिबंधों को कब तक जारी रखने की उसकी मंशा है. न्यायालय ने कहा था कि राष्ट्रहित में प्राधिकारी प्रतिबंध लगा सकते हैं, लेकिन समय-समय पर इनकी समीक्षा भी करनी होगी.

नई दिल्ली : जम्मू-कश्मीर से हटाये गये अनुच्छेद 370 को लेकर उच्चतम न्यायालय में दाखिल याचिका पर सुनवाई शुरू हुई. सुनवाई के दौरान कहा गया कि अनुच्छेद 370 के ज्यादातर प्रावधान रद्द करने के बाद जम्मू-कश्मीर में मोबाइल फोन, लैंडलाइन और इंटरनेट सेवाओं को बंद करने के आदेश और अधिसूचनाएं गैरकानूनी तथा असंवैधानिक हैं.

न्यायमूर्ति एन.वी. रमण, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति बी.आर. गवई की तीन सदस्यीय पीठ के समक्ष ये दलील दी गयी. दलील में कहा गया कि घाटी में 90 दिन बाद भी संचार सेवाएं - डेटा, इंटरनेट, प्री-पेड मोबाइल और एसएमएस- काम नहीं कर रही हैं और इससे मीडिया का काम प्रभावित हो रहा है.

कश्मीर टाइम्स की कार्यकारी संपादक अनुराधा भसीन की ओर से अधिवक्ता वृन्दा ग्रोवर ने कहा कि सरकार को संविधान के अनुच्छेद 19 में प्रदत्त अधिकारों पर उचित पाबंदी लगाने का अधिकार है. लेकिन वह इस अधिकार को पूरी तरह खत्म नहीं कर सकती. इस अखबार ने संचार सेवाओं पर लगे प्रतिबंध को शीर्ष अदालत में चुनौती दे रखी है.

ग्रोवर ने कहा, 'घाटी में चार अगस्त से संचार व्यवस्था पूरी तरह ठप है. इस न्यायालय को इसकी परख करनी होगी. हां, संविधान के अनुच्छेद 19 में प्रदत्त अधिकारों पर तर्कसंगत प्रतिबंध लगाया जा सकता है परंतु यह इस अधिकार को ही पूरी तरह खत्म नहीं कर सकता.'

उन्होंने दलील दी कि प्राधिकारियों का आदेश 3जी और 4जी की गति घटाने के बारे में था, लेकिन इंटरनेट सेवाएं तो पूरी तरह बंद हैं. कश्मीर जोन के पुलिस महानिरीक्षक के आदेशों में एक का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि यह पूरी तरह गैरकानूनी और असंवैधानिक है.

पढ़ें - कश्मीर मुद्दे पर PIL, सुप्रीम कोर्ट का सुनवाई टालने से इनकार

ग्रोवर ने कहा कि जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने अपने हलफनामे में कहा है कि राष्ट्रीय सुरक्षा और लोगों की जान की रक्षा के लिए कुछ उपाय किये गये थे. उन्होंने कहा कि प्रशासन ने दावा किया था कि इंटरनेट सेवाओं का राष्ट्र विरोधी तत्व दुरुपयोग कर सकते हैं परंतु उनके अपने आंकड़े ही बताते हैं कि आतंकी हिंसा कम हुई है.

शीर्ष अदालत ने 24 अक्ट्रबर को जम्मू-कश्मीर प्रशासन से जानना चाहा था कि घाटी में इंटरनेट सेवा बाधित रखने सहित इन प्रतिबंधों को कब तक जारी रखने की उसकी मंशा है. न्यायालय ने कहा था कि राष्ट्रहित में प्राधिकारी प्रतिबंध लगा सकते हैं, लेकिन समय-समय पर इनकी समीक्षा भी करनी होगी.

Intro:After hearing a petition filed by Enakshi Ganguli on children detention in Jammu and Kashmir after article 370 was abrogated, the Supreme Court bench led by Justice NV Ramana directed the Juvenile Justice Committee to submit a fresh report after going into the issue independently. The bench observed that the repprt doesn't indicate application of mind in respect to facts. It also observed that due to lack of time before, the committee possibly could not take the factual excercise. The court said that the matter will be considered after a fresh report has been filed.


Body:The Juvenile committee was asked by the apex court to submit the report earlier.

Advocate Huzefa Ahmedi appearing for Ganguli cited various media reports of children detention and also the committee's report. He said that children were detained under preventive detention which is not permissible under the Public Safety Act.

"There is pattern to this, why people get acquitted. There are botched investigations. We have to see the gravity of the offence and the severity of the punishment," observed Justice Ravindra Bhat.

Solicitor General Tushar Mehta, appearing for the government wanted the case to be disposed off here in the top court and be dealt in Jammu and Kashmir High Court as he claimed(Citing J&K CJ report) that the court was functioning normally there. Ahmedi countered and said that issues similar to Kashmir issues, on article 32, were dealt in the Supreme court itself then why this case should be disposed off.


Conclusion:The court will hear the matter again on 3rd Decemeber now.
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