नई दिल्ली : जम्मू-कश्मीर से हटाये गये अनुच्छेद 370 को लेकर उच्चतम न्यायालय में दाखिल याचिका पर सुनवाई शुरू हुई. सुनवाई के दौरान कहा गया कि अनुच्छेद 370 के ज्यादातर प्रावधान रद्द करने के बाद जम्मू-कश्मीर में मोबाइल फोन, लैंडलाइन और इंटरनेट सेवाओं को बंद करने के आदेश और अधिसूचनाएं गैरकानूनी तथा असंवैधानिक हैं.
न्यायमूर्ति एन.वी. रमण, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति बी.आर. गवई की तीन सदस्यीय पीठ के समक्ष ये दलील दी गयी. दलील में कहा गया कि घाटी में 90 दिन बाद भी संचार सेवाएं - डेटा, इंटरनेट, प्री-पेड मोबाइल और एसएमएस- काम नहीं कर रही हैं और इससे मीडिया का काम प्रभावित हो रहा है.
कश्मीर टाइम्स की कार्यकारी संपादक अनुराधा भसीन की ओर से अधिवक्ता वृन्दा ग्रोवर ने कहा कि सरकार को संविधान के अनुच्छेद 19 में प्रदत्त अधिकारों पर उचित पाबंदी लगाने का अधिकार है. लेकिन वह इस अधिकार को पूरी तरह खत्म नहीं कर सकती. इस अखबार ने संचार सेवाओं पर लगे प्रतिबंध को शीर्ष अदालत में चुनौती दे रखी है.
ग्रोवर ने कहा, 'घाटी में चार अगस्त से संचार व्यवस्था पूरी तरह ठप है. इस न्यायालय को इसकी परख करनी होगी. हां, संविधान के अनुच्छेद 19 में प्रदत्त अधिकारों पर तर्कसंगत प्रतिबंध लगाया जा सकता है परंतु यह इस अधिकार को ही पूरी तरह खत्म नहीं कर सकता.'
उन्होंने दलील दी कि प्राधिकारियों का आदेश 3जी और 4जी की गति घटाने के बारे में था, लेकिन इंटरनेट सेवाएं तो पूरी तरह बंद हैं. कश्मीर जोन के पुलिस महानिरीक्षक के आदेशों में एक का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि यह पूरी तरह गैरकानूनी और असंवैधानिक है.
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ग्रोवर ने कहा कि जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने अपने हलफनामे में कहा है कि राष्ट्रीय सुरक्षा और लोगों की जान की रक्षा के लिए कुछ उपाय किये गये थे. उन्होंने कहा कि प्रशासन ने दावा किया था कि इंटरनेट सेवाओं का राष्ट्र विरोधी तत्व दुरुपयोग कर सकते हैं परंतु उनके अपने आंकड़े ही बताते हैं कि आतंकी हिंसा कम हुई है.
शीर्ष अदालत ने 24 अक्ट्रबर को जम्मू-कश्मीर प्रशासन से जानना चाहा था कि घाटी में इंटरनेट सेवा बाधित रखने सहित इन प्रतिबंधों को कब तक जारी रखने की उसकी मंशा है. न्यायालय ने कहा था कि राष्ट्रहित में प्राधिकारी प्रतिबंध लगा सकते हैं, लेकिन समय-समय पर इनकी समीक्षा भी करनी होगी.