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उच्चतम न्यायालय ने उत्तराखंड के वकीलों की हड़ताल को अवैध करार दिया - नुकसान का आकलन

उत्तराखंड की तीन जिला अदालतों में वकीलों द्वारा की जा रही हड़ताल को लेकर पीठ ने कहा कि कमजोर एवं तुच्छ आधारों पर की जा रही वकीलों की हड़ताल अवमानना के बराबर है. जानें हड़ताल को लेकर और क्या कुछ कहा कोर्ट ने ...

SC-OVER-ILLEGAL LAWYERS STRIKE
न्यायालय ने उत्तराखंड की जिला अदालतों में प्रत्येक शनिवार होने वाली वकीलों की हड़ताल को अवैध बताया
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Published : Feb 28, 2020, 3:52 PM IST

Updated : Mar 2, 2020, 8:58 PM IST

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने उत्तराखंड की तीन जिला अदालतों में बीते 35 वर्ष से प्रत्येक शनिवार को वकीलों द्वारा की जा रही हड़ताल को गैरकानूनी ठहराया है.

न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति एमआर शाह की पीठ ने कहा कि कमजोर एवं तुच्छ आधारों पर की जा रही वकीलों की हड़ताल अवमानना के बराबर है.

न्यायालय ने इस संबंध में बार काउंसिल ऑफ इंडिया और उत्तराखंड बार काउंसिल को नोटिस जारी किया.

शीर्ष अदालत ने बीते 35 वर्ष में प्रत्येक कामकाजी शनिवार को इस तरह का मजाक करने और पाकिस्तान के स्कूल में बम विस्फोट तथा नेपाल में भूकंप जैसे तुच्छ कारणों को लेकर हड़ताल बुलाने के लिए वकीलों को 21 फरवरी को फटकार लगाई थी.

पढ़ें : सरकार की कर्मचारियों को चेतावनी, हड़ताल पर गए तो नतीजा भुगतने को तैयार रहें

यह मामला शीर्ष अदालत के संज्ञान में तब आया था, जब वह उत्तराखंड उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी. उच्च न्यायालय ने देहरादून और हरिद्वार तथा उधम सिंह नगर के कई हिस्सों में वकीलों द्वारा प्रत्येक शनिवार को अदालती काम-काज का बहिष्कार करने या हड़ताल करने को 'गैरकानूनी' ठहराया था.

अपने 25 सितंबर, 2019 के फैसले में उच्च न्यायालय ने विधि आयोग की 266वीं रिपोर्ट का संदर्भ दिया था, जिसने वकीलों द्वारा बुलाई गई हड़तालों से कामकाजी दिन के नुकसान का आकलन किया था और राय दी थी कि इससे अदालतों की कार्य-पद्धति प्रभावित होती है और लंबित मामलों की संख्या बढ़ती जाती है.

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने उत्तराखंड की तीन जिला अदालतों में बीते 35 वर्ष से प्रत्येक शनिवार को वकीलों द्वारा की जा रही हड़ताल को गैरकानूनी ठहराया है.

न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति एमआर शाह की पीठ ने कहा कि कमजोर एवं तुच्छ आधारों पर की जा रही वकीलों की हड़ताल अवमानना के बराबर है.

न्यायालय ने इस संबंध में बार काउंसिल ऑफ इंडिया और उत्तराखंड बार काउंसिल को नोटिस जारी किया.

शीर्ष अदालत ने बीते 35 वर्ष में प्रत्येक कामकाजी शनिवार को इस तरह का मजाक करने और पाकिस्तान के स्कूल में बम विस्फोट तथा नेपाल में भूकंप जैसे तुच्छ कारणों को लेकर हड़ताल बुलाने के लिए वकीलों को 21 फरवरी को फटकार लगाई थी.

पढ़ें : सरकार की कर्मचारियों को चेतावनी, हड़ताल पर गए तो नतीजा भुगतने को तैयार रहें

यह मामला शीर्ष अदालत के संज्ञान में तब आया था, जब वह उत्तराखंड उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी. उच्च न्यायालय ने देहरादून और हरिद्वार तथा उधम सिंह नगर के कई हिस्सों में वकीलों द्वारा प्रत्येक शनिवार को अदालती काम-काज का बहिष्कार करने या हड़ताल करने को 'गैरकानूनी' ठहराया था.

अपने 25 सितंबर, 2019 के फैसले में उच्च न्यायालय ने विधि आयोग की 266वीं रिपोर्ट का संदर्भ दिया था, जिसने वकीलों द्वारा बुलाई गई हड़तालों से कामकाजी दिन के नुकसान का आकलन किया था और राय दी थी कि इससे अदालतों की कार्य-पद्धति प्रभावित होती है और लंबित मामलों की संख्या बढ़ती जाती है.

Last Updated : Mar 2, 2020, 8:58 PM IST
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