नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने कोविड-19 से संक्रमित होने की वजह से आईसीयू में भर्ती होने के आधार पर 1984 के सिख विरोधी दंगे के दोषी पूर्व विधाक महेन्द्र यादव की अंतरिम जमानत के आवेदन पर बुधवार को विचार करने से इनकार कर दिया.
न्यायमूर्ति इन्दिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति बी आर गवई की अवकाशकालीन पीठ ने वीडियो कांफ्रेन्सिंग के माध्यम से सुनवाई करते हुये कहा कि अंतरिम जमानत की अर्जी पर विचार नहीं किया जा सकता क्योंकि यादव के इलाज को लेकर परिवार को कोई शिकायत नहीं है.
पीठ ने कहा कि वैसे भी आईसीयू में परिवार का कोई भी सदस्य उनसे नहीं मिल सकता है जहां कोविड-19 के संक्रमण का उनका इलाज हो रहा है.
इस मामले में यादव के साथ ही कांग्रेस के पूर्व नेता सज्जन कुमार और पूर्व पार्षद बलवान खोखड़ इस समय उम्र कैद की सजा काट रहे हैं.
यादव के वकील ने पीठ से कहा कि दोषी 70 साल से अधिक उम्र का है और मंडोली जेल में 26 जून को उसके कोविड-19 के संक्रमण से ग्रस्त होने की पुष्टि हुयी है. उन्होंने कहा कि यादव की सेल में उसके साथ रहने वाले एक अन्य कैदी की हाल ही में मृत्यु हो गयी है.
पीठ ने कहा, 'हम नहीं समझते कि इलाज के बारे में किसी स्पष्ट आरोप या शिकायत के अभाव में हम इस याचिका पर विचार कर सकते हैं और नियमों का पालन तो करना ही होगा... कहीं भी रिश्तेदारों को मरीज के पास जाने की इजाजत नहीं होती है.'
दंगा पीड़ितों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एच एस फूलका ने यादव की अंतरिम जमानत की अर्जी का विरोध किया.
इससे पहले, 13 मई को शीर्ष अदालत ने पूर्व सांसद सज्जन कुमार की भी अंतरिम जमानत की अर्जी खारिज कर दी थी. कुमार भी अपने खराब स्वास्थ्य के आधार पर अंतरिम जमानत चाहते थे. न्यायालय ने मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट के अवलोकन के बाद कहा था कि उन्हें अस्पताल में दाखिल होने की आवश्यकता नहीं है.
कुमार की नियमित जमानत की याचिका अगस्त महीने में सूचीबद्ध है.
दिल्ली उच्च न्यायालय ने 17 दिसंबर,2018 को अपने फैसले में सज्जन कुमार को बरी करने का निचली अदालत का 2013 का फैसला पलटते हुये उन्हें उम्र कैद की सजा सुनायी थी. कुमार को यह सजा दक्षिण पश्चिम दिल्ली में पालम कालोनी के राज नगर पार्ट-I इलाके में एक और दो नवंबर, 1984 की रात पांच सिखों की हत्या करने और राज नगर पार्ट-II में एक गुरूद्वारा जलाने से संबंधित मामले में सुनायी गयी है.
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तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी की 31 अक्टूबर, 1984 को उनके ही अंगरक्षकों द्वारा गोली मार कर हत्या किये जाने के बाद दिल्ली सहित देश के अनेक हिस्सों में सिख विरोधी दंगे हुये थे.