नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि देशभर में फर्जी बाबाओं द्वारा संचालित अवैध आश्रमों और रोहिणी इलाके में जेल जैसी अवस्था वाले आध्यात्मिक विद्यालय जैसे आश्रम से महिलाओं को छुड़ाने के लिये दायर याचिका पर गौर किया जाये.
प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूति ए एस बोपन्ना की पीठ ने मेहता से कहा, 'इस पर गौर करें, इसमें क्या किया जा सकता है. यह सभी को बदनाम करता है.'
पीठ ने इस मामले की वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिये सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता से कहा कि याचिका की प्रति मेहता को उपलब्ध करायी जाये. साथ ही पीठ ने इस मामले को दो सप्ताह बाद सुनवाई के लिये सूचीद्ध कर दिया.
यह याचिका दंपाला रामरेड्डी ने दायर की है. याचिकाकर्ता ने याचिका में दावा किया है कि अमेरिका की लोवा स्टेट यूनिवर्सिटी से उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाली उनकी बेटी जुलाई 2015 से जेल जैसी स्थिति वाले ‘आध्यामिक विद्यालय’ में रह रही है. इस विद्यालय की स्थापना कथित रूप से बलात्कार के एक आरोपी ने की है.
उन्होंने कहा कि इस आश्रम के संस्थापक को तीन साल पहले भगोड़ा घोषित कर दिया गया है और दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा गठित संयुक्त समिति ने वीरेन्द्र देव दीक्षित द्वारा संचालित इस आश्रम की दयनीय हालात का ब्योरा अपनी रिपोर्ट में दिया है.
याचिका के अनुसार अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने देश में 17 फर्जी बाबाओं की सूची जारी की है, जिसमें वीरेन्द्र देव दीक्षित का भी नाम शामिल है.
व्यक्तिगत रूप से पेश हुये रामरेड्डी ने आध्यात्मिक विद्यालय से उनकी पुत्री सहित 170 महिलाओं को उसी तरह से छुड़ाने का अनुरोध किया है, जैसे देश की जेलों के बंदियों के मामले में किया गया था.
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याचिका में फर्जी बाबाओं द्वारा संचालित इन 17 अवैध आश्रमों के खिलाफ कार्रवाई करने का अनुरोध करते हुये कहा गया है कि देश और राजधानी में स्थित इन फर्जी आश्रमों में हजारों अनुयायी रहते हैं और उनकी बेटी भी उन लोगों में से एक है जो इन फर्जी बाबाओं के चंगुल में फंसी हुयी है.
याचिका में कहा गया है कि प्रतिवादियों और सरकार की निष्क्रियता की वजह से ये फर्जी बाबा अवैध आश्रम चला रहे हैं और भोले भाले लोगों, विशेषकर महिलाओं, को अपने जाल में फंसा रहे हैं.