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देवघर: बाबा धाम की युगों पुरानी परंपरा, इस साल नहीं लगेगा सावन मेला

देवघर के बाबा धाम में इस साल सावन मेला नहीं लगेगा. भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में एक मनोकामना ज्योतिर्लिंग देवघर में है. यह एक मात्र ऐसा तीर्थ हैं जहां ज्योर्तिलिंग और शक्तिपीठ एक ही जगह है. यह पहला मौका होगा जब सावन में यहां मेला नहीं लगेगा. पढ़ें पूरी खबर....

Deoghar Baba dham story
बाबा धाम की युगों पुरानी परंपरा
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Published : Jun 30, 2020, 3:46 PM IST

देवघरः कोरोना वायरस के संकट काल में झारखंड के बाबा धाम की युगों पुरानी परंपरा टूटने की कगार पर है. देवघर में एक महीने तक चलने वाले सावन मेला 2020 के आयोजन को लेकर झारखंड सरकार ने इंकार कर दिया है. सावन में लगभग 40 से 50 लाख शिवभक्त देश-विदेश से देवघर पहुंचते हैं. 6 जुलाई से सावन शुरू हो रहा है, लेकिन अब तक मंदिर के कपाट नहीं खोले गए हैं. सामान्य तौर पर मेले की तैयारियां 2 महीने पहले शुरू हो जाती हैं, लेकिन इस साल ऐसी कोई तैयारी नहीं दिख रही.

बाबा धाम का उल्लेख पुराणों में भी है और यहां पूजा अनवरत चलती आ रही है. यह पहला मौका होगा जब सावन में यहां मेला नहीं लगेगा. मुगल और अंग्रेजी शासनकाल में भी यहां पूजा पर रोक नहीं लगी थी. इसके साथ ही कॉलरा, प्लेग और स्पैनिश फ्लू जैसी महामारी के समय भी मंदिर बंद नहीं किया गया था. यदि इस साल भगवान शिव के दर्शन के लिए मंदिर नहीं खोला गया और सावन मेला नहीं आयोजित हुआ तो यह अनगिनत शिवभक्तों की धार्मिक भावनाओं को आहत करेगा. धार्मिक रीति-रिवाजों के अनुसार बाबा धाम में पूजा पद्धति निर्धारित करने का अधिकार पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद को है.

देखिए बाबा धाम का महत्व

क्यों खास है देवघर का बाबा धाम
भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में एक देवघर में स्थापित है. इस लिंग को मनोकामना ज्योतिर्लिंग के रूप में जाना जाता है और इसकी स्थापना रावण ने की थी. यह एक मात्र ऐसा तीर्थ हैं जहां ज्योर्तिलिंग और शक्तिपीठ एक ही जगह है. मान्यता है कि यहां पहले सती का हृदय गिरा था और फिर त्रेतायुग में शिवलिंग की स्थापना की गई. इस वजह से इसे शिव-शक्ति का मिलन स्थल भी कहा जाता है. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार रावण ने भगवान शिव की कठिन तपस्या कर उन्हें लंका ले जाने का वर मांगा, शिव साथ जाने को तैयार हो गए, लेकिन यह शर्त रखी कि उनके शिवलिंग को जिस जगह जमीन पर रखा जाएगा, वह वहीं स्थापित हो जाएंगे.

Deoghar Baba dham story
भगवान शिव ने मनोकामना ज्योर्तिलिंग रावण को दिया

रावण शिवलिंग को लंका ले जा रहे थे, इसी दौरान देवताओं ने हरला जोरी नाम के स्थान पर रावण को तीव्र लघुशंका का एहसास करा दिया. ठीक उसी समय भगवान विष्णु एक चरवाहे के रूप लेकर वहां पहुंच गए. रावण शिवलिंग चरवाहे को देकर लघुशंका करने चला गया. पौराणिक कथाओं के अनुसार वरुण देवता रावण के उदर में थे इसलिए सात दिन और सात रात तक लघुशंका होती रही और यहां एक नदी बन गई. चरवाहे के रूप में आए भगवान विष्णु ने शिवलिंग को वहीं जमीन पर रख दिया. यह जगह ही रावणेश्वर बैद्यनाथ यानी बाबा धाम के नाम से प्रसिद्ध है. कालांतर में यहां मंदिर की स्थापना की गई. कहा जाता है कि 1,596 में बैजू नाम के व्यक्ति को शिवलिंग दिखा, जिसके बाद यहां लोग पूजा-अर्चना के लिए आने लगें. बाबा धाम मंदिर प्रांगण में अब 24 देवी-देवताओं के 22 मंदिर हैं.

Deoghar Baba dham story
रावण ने की भगवान शिव की तपस्या

बाबा धाम के बाद बासुकीनाथ के दर्शन
देवघर में भगवान शिव पर गंगाजल चढ़ाने के बाद दुमका के बासुकीनाथ मंदिर में भी चल चढ़ाने की परंपरा है. मान्यताओं के अनुसार बाबा धाम भगवान शिव का दीवानी दरबार है, यहां भक्तों की कामना जरूर पूरी होती है. देवघर से करीब 45 किलोमीटर दूर दुमका के बासुकीनाथ मंदिर में भगवान का फौजदारी दरबार है और यहां इससे संबंधित मनोकामनाओं की सुनवाई होती है.

Deoghar Baba dham story
रावण की तपस्या से प्रसन्न शिव

कांवर और बम की महिमा
सुल्तानगंज में बाबा अजगैबीनाथ की पूजा के बाद देवघर के बाबधाम पहुंचने का रास्ता 117 किलोमीटर लंबा है. इस यात्रा पर निकले शिवभक्तों को बम के नाम से संबोधित किया जाता है और इनका एक ही नारा होता है-बोल बम. शिवभक्त गंगा जल को दो पात्रों में लेकर एक बहंगी में रख लेते हैं जिसे कांवर कहा जाता है और कांवर लेकर चलने वाले शिवभक्त कांवरिये कहलाते हैं.

Deoghar Baba dham story
चरवाहे को शिवलिंग देता रावण

इस यात्रा को कांवरिये पैदल पूरा करते हैं. इस दौरान वह रात्रि में पड़ावों पर विश्राम भी करते हैं. इसमें कांवरियों का एक वर्ग डाक बम कहलाता है, जो सुल्तानगंज से सीधे देवघर पहुंचते हैं, यह रास्ते में कहीं रुकते नहीं और न ही विश्राम करते हैं. बिना रुके, बिना थके डाक बम 24 घंटे के अंदर दिन-रात चलकर भगवान भोलेनाथ के दर्शन करते हैं. डंडी बम की यात्रा सबसे कठिन होती है. डंडी बम सुल्तानगंज से जल भरने के बाद रास्तेभर दंडवत होते हुए बाबा धाम पहुंचते हैं. इनका हठ योग और पराकाष्ठा देखते बनती है. डंडी बम को बाबा धाम पहुंचने में लगभग एक महीने लग जाते हैं. इस दौरान फलाहार के बावजूद इनकी आस्था निराली होती है. इनका कष्ट, इनकी इच्छा और दवा सिर्फ भगवान शिव के दर्शन का अभिलाषी होता है. कुछ शिवभक्त सुल्तानगंज की जगह शिवगंगा से दंडवत देते हुए बाबा धाम पहुंचते हैं, इन्हें भी डंडी बम कहा जाता है.

ये भी पढ़ें- वित्तीय संकट से जूझ रहा दुनिया का सबसे अमीर तीर्थस्थल

अजब अनूठी परंपरा
बाबा धाम को लेकर कई अनूठी मान्यताएं हैं. यहां शिवलिंग पर श्रृंगार पूजा में सजने वाला पुष्प नागमुकुट जेल में कैदियों के द्वारा तैयार किया जाता है. बाबा धाम परिसर में शिव और शक्ति के मंदिरों की चोटियों को एक दूसरे से जोड़ा गया है, यह शिव-शक्ति के गठबंधन का प्रतीक है. इसी परिसर के गौरी-शंकर मंदिर में पूजा करने की मनाही है. यहां हमेशा ताला जड़ा रहता है. मान्यता है कि यह भगवान का निजी कक्ष है. इसी तरह पूरे देश के मंदिरों में सिर्फ बाबा धाम मंदिर में ही पंचशूल लगा है. देवघर पहुंचने वाले शिवभक्त प्रसाद के रूप में पेड़ा चढ़ाते हैं. यहां के पेड़े का स्वाद अनूठा है. हर शिवभक्त अपने सामर्थ्य के अनुसार पेड़ा जरूरत खरीदते हैं. बाबा धाम की महिमा अपरंपार है, यहां पड़ोसी राज्यों के अलावा देश-दुनिया के भक्तों का भी बड़ी संख्या में आते हैं.

देवघरः कोरोना वायरस के संकट काल में झारखंड के बाबा धाम की युगों पुरानी परंपरा टूटने की कगार पर है. देवघर में एक महीने तक चलने वाले सावन मेला 2020 के आयोजन को लेकर झारखंड सरकार ने इंकार कर दिया है. सावन में लगभग 40 से 50 लाख शिवभक्त देश-विदेश से देवघर पहुंचते हैं. 6 जुलाई से सावन शुरू हो रहा है, लेकिन अब तक मंदिर के कपाट नहीं खोले गए हैं. सामान्य तौर पर मेले की तैयारियां 2 महीने पहले शुरू हो जाती हैं, लेकिन इस साल ऐसी कोई तैयारी नहीं दिख रही.

बाबा धाम का उल्लेख पुराणों में भी है और यहां पूजा अनवरत चलती आ रही है. यह पहला मौका होगा जब सावन में यहां मेला नहीं लगेगा. मुगल और अंग्रेजी शासनकाल में भी यहां पूजा पर रोक नहीं लगी थी. इसके साथ ही कॉलरा, प्लेग और स्पैनिश फ्लू जैसी महामारी के समय भी मंदिर बंद नहीं किया गया था. यदि इस साल भगवान शिव के दर्शन के लिए मंदिर नहीं खोला गया और सावन मेला नहीं आयोजित हुआ तो यह अनगिनत शिवभक्तों की धार्मिक भावनाओं को आहत करेगा. धार्मिक रीति-रिवाजों के अनुसार बाबा धाम में पूजा पद्धति निर्धारित करने का अधिकार पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद को है.

देखिए बाबा धाम का महत्व

क्यों खास है देवघर का बाबा धाम
भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में एक देवघर में स्थापित है. इस लिंग को मनोकामना ज्योतिर्लिंग के रूप में जाना जाता है और इसकी स्थापना रावण ने की थी. यह एक मात्र ऐसा तीर्थ हैं जहां ज्योर्तिलिंग और शक्तिपीठ एक ही जगह है. मान्यता है कि यहां पहले सती का हृदय गिरा था और फिर त्रेतायुग में शिवलिंग की स्थापना की गई. इस वजह से इसे शिव-शक्ति का मिलन स्थल भी कहा जाता है. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार रावण ने भगवान शिव की कठिन तपस्या कर उन्हें लंका ले जाने का वर मांगा, शिव साथ जाने को तैयार हो गए, लेकिन यह शर्त रखी कि उनके शिवलिंग को जिस जगह जमीन पर रखा जाएगा, वह वहीं स्थापित हो जाएंगे.

Deoghar Baba dham story
भगवान शिव ने मनोकामना ज्योर्तिलिंग रावण को दिया

रावण शिवलिंग को लंका ले जा रहे थे, इसी दौरान देवताओं ने हरला जोरी नाम के स्थान पर रावण को तीव्र लघुशंका का एहसास करा दिया. ठीक उसी समय भगवान विष्णु एक चरवाहे के रूप लेकर वहां पहुंच गए. रावण शिवलिंग चरवाहे को देकर लघुशंका करने चला गया. पौराणिक कथाओं के अनुसार वरुण देवता रावण के उदर में थे इसलिए सात दिन और सात रात तक लघुशंका होती रही और यहां एक नदी बन गई. चरवाहे के रूप में आए भगवान विष्णु ने शिवलिंग को वहीं जमीन पर रख दिया. यह जगह ही रावणेश्वर बैद्यनाथ यानी बाबा धाम के नाम से प्रसिद्ध है. कालांतर में यहां मंदिर की स्थापना की गई. कहा जाता है कि 1,596 में बैजू नाम के व्यक्ति को शिवलिंग दिखा, जिसके बाद यहां लोग पूजा-अर्चना के लिए आने लगें. बाबा धाम मंदिर प्रांगण में अब 24 देवी-देवताओं के 22 मंदिर हैं.

Deoghar Baba dham story
रावण ने की भगवान शिव की तपस्या

बाबा धाम के बाद बासुकीनाथ के दर्शन
देवघर में भगवान शिव पर गंगाजल चढ़ाने के बाद दुमका के बासुकीनाथ मंदिर में भी चल चढ़ाने की परंपरा है. मान्यताओं के अनुसार बाबा धाम भगवान शिव का दीवानी दरबार है, यहां भक्तों की कामना जरूर पूरी होती है. देवघर से करीब 45 किलोमीटर दूर दुमका के बासुकीनाथ मंदिर में भगवान का फौजदारी दरबार है और यहां इससे संबंधित मनोकामनाओं की सुनवाई होती है.

Deoghar Baba dham story
रावण की तपस्या से प्रसन्न शिव

कांवर और बम की महिमा
सुल्तानगंज में बाबा अजगैबीनाथ की पूजा के बाद देवघर के बाबधाम पहुंचने का रास्ता 117 किलोमीटर लंबा है. इस यात्रा पर निकले शिवभक्तों को बम के नाम से संबोधित किया जाता है और इनका एक ही नारा होता है-बोल बम. शिवभक्त गंगा जल को दो पात्रों में लेकर एक बहंगी में रख लेते हैं जिसे कांवर कहा जाता है और कांवर लेकर चलने वाले शिवभक्त कांवरिये कहलाते हैं.

Deoghar Baba dham story
चरवाहे को शिवलिंग देता रावण

इस यात्रा को कांवरिये पैदल पूरा करते हैं. इस दौरान वह रात्रि में पड़ावों पर विश्राम भी करते हैं. इसमें कांवरियों का एक वर्ग डाक बम कहलाता है, जो सुल्तानगंज से सीधे देवघर पहुंचते हैं, यह रास्ते में कहीं रुकते नहीं और न ही विश्राम करते हैं. बिना रुके, बिना थके डाक बम 24 घंटे के अंदर दिन-रात चलकर भगवान भोलेनाथ के दर्शन करते हैं. डंडी बम की यात्रा सबसे कठिन होती है. डंडी बम सुल्तानगंज से जल भरने के बाद रास्तेभर दंडवत होते हुए बाबा धाम पहुंचते हैं. इनका हठ योग और पराकाष्ठा देखते बनती है. डंडी बम को बाबा धाम पहुंचने में लगभग एक महीने लग जाते हैं. इस दौरान फलाहार के बावजूद इनकी आस्था निराली होती है. इनका कष्ट, इनकी इच्छा और दवा सिर्फ भगवान शिव के दर्शन का अभिलाषी होता है. कुछ शिवभक्त सुल्तानगंज की जगह शिवगंगा से दंडवत देते हुए बाबा धाम पहुंचते हैं, इन्हें भी डंडी बम कहा जाता है.

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अजब अनूठी परंपरा
बाबा धाम को लेकर कई अनूठी मान्यताएं हैं. यहां शिवलिंग पर श्रृंगार पूजा में सजने वाला पुष्प नागमुकुट जेल में कैदियों के द्वारा तैयार किया जाता है. बाबा धाम परिसर में शिव और शक्ति के मंदिरों की चोटियों को एक दूसरे से जोड़ा गया है, यह शिव-शक्ति के गठबंधन का प्रतीक है. इसी परिसर के गौरी-शंकर मंदिर में पूजा करने की मनाही है. यहां हमेशा ताला जड़ा रहता है. मान्यता है कि यह भगवान का निजी कक्ष है. इसी तरह पूरे देश के मंदिरों में सिर्फ बाबा धाम मंदिर में ही पंचशूल लगा है. देवघर पहुंचने वाले शिवभक्त प्रसाद के रूप में पेड़ा चढ़ाते हैं. यहां के पेड़े का स्वाद अनूठा है. हर शिवभक्त अपने सामर्थ्य के अनुसार पेड़ा जरूरत खरीदते हैं. बाबा धाम की महिमा अपरंपार है, यहां पड़ोसी राज्यों के अलावा देश-दुनिया के भक्तों का भी बड़ी संख्या में आते हैं.

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