शिमला: एक मुट्ठी अन्न-एक रोटी रोज, इस छोटे से मंत्र ने गरीबी व बीमारी से उपजे दुख और घर से बाहर दो रोटी की चिंता को बुरी तरह से पराजित कर दिया है. सेवाभाव की जीवंत मूर्ति सरबजीत के इस मंत्र ने भूख के दानव को धूल चटा दी है.
हिमाचल प्रदेश के एकमात्र रीजनल कैंसर अस्पताल में साधनहीन मरीजों का इलाज तो निशुल्क होता है, लेकिन उनके परिजनों के सामने शिमला में दो वक्त की रोटी का जुगाड़ मुश्किल हो जाता है. कैंसर मरीज के साथ यदि एक भी परिजन अस्पताल में हो तो एक दिन में रोटी व चाय का खर्च ही दो सौ रुपये पड़ता है. ऐसे में सरबजीत सिंह बॉबी की संस्था किसी मसीहा की तरह सामने आई.
गरीबी और बीमारी से उपजे दुख को पराजित करने महारत हासिल
कैंसर अस्पताल में मरीजों के परिजनों को निशुल्क चाय, बिस्किट व दो वक्त के भोजन का इंतजाम किया गया. सरबजीत मरीजों के परिजनों को चपाती उपलब्ध करवाना चाहते थे, लेकिन समय व जगह की दिक्कत सामने आ रही थी.
ऐसे में सरबजीत ने शिमला के एक मशहूर निजी स्कूल की मॉर्निंग असेंबली में बच्चों से आग्रह किया कि वे घर से अपने लंच के साथ एक रोटी उनकी संस्था को भी दान दें. बस फिर क्या था, 1800 छात्राओं वाले स्कूल के बच्चों ने सप्ताह में दो बार अपने लंच के साथ एकाधिक रोटी अतिरिक्त लानी शुरू कर दी.
सरबजीत सिंह बॉबी की मुहिम धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगी और देखते ही देखते 15 हजार बच्चों तक फैल गई. अब हर हफ्ते 20 हजार रोटियां स्कूली बच्चे घर से लाते हैं. सरबजीत ने इन रोटियों को गर्म व ताजा रखने के लिए आधुनिक मशीन खरीद ली. अब सप्ताह में दो बार मरीजों के परिजनों को गर्म-नर्म रोटियां भी परोसी जाती हैं.
शहर के कई स्कूली छात्रों के साथ कुछ स्वयंसेवी संस्थाएं भी चपातियां दान करती हैं. ऐसे में दाल,चावल,कढ़ी आदि के साथ रोटियां भी मिल रही हैं. सरबजीत सिंह की संस्था न केवल शिमला के कैंसर अस्पताल बल्कि प्रदेश के एकमात्र राज्य स्तरीय कमला नेहरू मातृ व शिशु कल्याण अस्तपाल में भी निशुल्क लंगर चलाते हैं.
दो साल पूरे कर रहा भूखे पेट भरने का मिशन
सरबजीत सिंह बॉबी ने अक्टूबर 2014 में महज चाय-बिस्किट व खिचड़ी से इस सेवा मिशन की शुरुआत की थी. शिमला स्थित रीजनल कैंसर अस्पताल में बड़ी संख्या में प्रदेश भर से मरीज आते हैं. ग्रामीण व दुर्गम इलाकों से इलाज के लिए आए मरीजों के परिजन रोज-रोज शिमला में भोजन का खर्च वहन नहीं कर सकते. अधिकांश मरीज गरीब परिवारों से होते हैं. सरबजीत सिंह ने गरीब लोगों का यह दुख देखा नहीं गया. वे रक्तदान व अन्य सामाजिक कार्यों के तौर पर पहले से ही समाजसेवा से जुड़े थे। उन्होंने इन गरीबों की भूख मिटाने के लिए कोशिश शुरू की.
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एक मुट्ठी अन्न मुहिम से सभी स्कूलों को जोड़ना है मकसद
सरबजीत का मकसद शिमला के सभी स्कूलों को इस मिशन से जोड़ना है. यही नहीं, सोशल मीडिया के जरिए सरबजीत की मुहिम देश भर में पहुंची है. उनके सेवाकार्यों से प्रभावित पंजाब व हरियाणा से आए सैलानी कई दफा कैंसर अस्तपाल आकर मदद करते हैं. कोई-कोई तो भारी मात्रा में चावल, दाल दे जाते हैं. लंगर के लिए बासमती चावल व पैकेटबंद साफ-सुथरी दालें ही स्वीकार की जाती हैं.
लंबी लिस्ट है सरबजीत के सेवाकार्यों की
सरबजीत सिंह की संस्था साल में तीस से अधिक रक्तदान शिविर आयोजित करती है. इसके अलावा वे एक डेड बॉडी वैन भी संचालित करते हैं. यदि किसी की शिमला के किसी अस्पताल में मौत हो जाती है और परिजनों के पास पार्थिव शरीर को घर तक ले जाने का साधन न हो तो सरबजीत खुद डेड बॉडी वैन चलाकर पार्थिव देह को घर तक पहुंचाते हैं. मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह से लेकर अन्य राजनेता भी सरबजीत के सेवाकार्यों के मुरीद हैं.
सरबजीत सिंह गुरु साहिबों की शिक्षा को सर्वोपरि मानते हैं. यही वजह है कि मानव सेवा के क्षेत्र में ग्रंथ साहिब की शिक्षाओं को सर्वोपरि मानते हुए समाजसेवा कर रहे हैं. जिस तरह ग्रंथ साहिब का उपदेश हर वर्ण के लिए साझा है, उसी तरह सरबजीत सिंह की संस्था का लंगर भी समाज के सभी वर्गों के लिए है.
हर शाम को सरबजीत अपने परिजनों के साथ लंगर स्थल पर आते हैं और ईश्वर की प्रार्थना के बाद लंगर बंटना शुरू हो जाता है. पंक्तियों में बैठकर भरपेट भोजन करते लोगों को देखकर ईश्वर भी सरबजीत को आशीष देते प्रतीत होते हैं.