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ओडिशा से रहा है बापू का खास रिश्ता, जानें पूरी कहानी

आजादी के आंदोलन के दौरान गांधीजी ने देश के अलग-अलग हिस्सों का दौरा किया था. जहां-जहां भी बापू जाते थे, वे वहां के लोगों पर अमिट छाप छोड़ जाते थे. वहां के लोगों में राष्ट्रीयता की भावना घर कर जाती थी. ईटीवी भारत ऐसी ही जगहों से गांधी से जुड़ी कई यादें आपको प्रस्तुत कर रहा है. पेश है आज 45वीं कड़ी.

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Published : Oct 1, 2019, 7:03 AM IST

Updated : Oct 2, 2019, 5:05 PM IST

भारत के इतिहास में वर्ष 1930 का एक अलग ही महत्व है. दरअसल, इस साल गांधी ने दांडी के तटीय शहर में दमनकारी ब्रिटिश नमक कानून को तोड़ने का साहस दिखाया था. नतीजतन देशव्यापी आंदोलन शुरू हुआ.

ओडिशा के छोटे से हुम्मा गांव की बड़ी भूमिका
बापू के सत्याग्रह आंदोलन में ओडिशा के गंजम जिले के छोटे से गांव 'हुम्मा' ने बड़ी भूमिका निभाई थी.

एच.के. महताब ने किया आंदोलन का नेतृत्व
उत्कल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष एचके महताब के कुशल नेतृत्व में ओडिशा में नमक सत्याग्रह आंदोलन की शुरूआत की गई.

राज्य में प्रमुख था नमक उद्योग
ओडिशा में विशाल समुद्र तट के कारण नमक उद्योग ही उस वक्त यहां कृषि का एकमात्र सहायक था.

जब 1930 में बापू ने ओडिशा के समुद्री तट से शुरु किया 'नमक सत्याग्रह'

आंदोलन में हुए शामिल आम लोग
राष्ट्र के बाकी हिस्सों में आए आदोलंन के सैलाब के साथ ही हुम्मा के लोगों में भी क्रांति जागी और उन्होंने नमक कर का विरोध किया और इस देशव्यापि आंदोलन में शामिल हो गए.

ये भी देखें: कटनी के स्वदेशी विद्यालय में एक रात रुके थे बापू, शहर को दिया था बारडोली का खिताब

स्वयं हुम्मा पहुंचे बापू
इस दौरान बापू ने खुद गांव का दौरा किया और स्थानीय लोगों से बातचीत की और इस प्रकार ओडिशा में चल रहे आंदोलन में उबाल आया और इसकी रफ्तार और अधिक बढ़ गई.

इस बारे में पूर्व जिला संस्कृति अधिकारी कृष्णचंद्र निसांका ने कहा, 'गंजम ने स्वतंत्रता आंदोलन में अहम भूनिका निभाई थी. जब 1930 में महात्मा गांधी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन का आह्वान किया तो पूरे क्षेत्र के नमक किसानों ने समुद्र से नमक की खेती बंद कर दी और महात्मा गांधी के साथ इस आंदोलन में उनके साथ खड़े हो गए.'

1927 में बापू ने किया गंजम का दौरा
आपको बता दें, बापू ने इससे पहले दिसंबर 1927 में इस क्षेत्र का दौरा किया था.

रॉयल निवास में ठहरे कई स्वतंत्रता सैनानी
ओडिशा के रंभा के रॉयल निवास में गांधी सहित कई स्वतंत्रता सैनानी यहां ठहरे हैं. इतना ही नहीं बापू ने यहां की पर्यटक पुस्तिका पर अपने हस्ताक्षर की भी छाप छोड़ी है.

वहीं जानकार सुभाष पांडा ने कहा, 'रंभा रॉयल प्रेसीडेंसी ब्रिटिश अधिकारियों और कई स्वतंत्रता सेनानियों के ठहरने के लिए मशहूर थी. आंदोलन के दौरान गांधी, नेहरू, डॉ राधाकृष्णन और शास्त्री जैसे कई नेता यहां ठहर चुके हैं.'

ये भी देखें: वर्धा के सेवाग्राम में आज भी हैं गांधी के संदेश, युवा पीढ़ी के लिए बन रहा आकर्षण

उन्होंने कहा, 'गांधी 1927 में यहां आए थे और 1930 में उन्होंने रंभा रेलवे स्टेशन से हुम्मा तक बैठक में भाग लेने के लिए मार्च निकाला. ये प्रेसीडेंसी एक ऐतिहासिक स्थल है. जो ओडिशा प्रेसिडेंसी की स्वतंत्रता, ओडिया की सुरक्षा के इतिहास से समृद्ध है.'

उन्होंने कहा कि, 'लेकिन इस स्थल की न तो सरकार देखरेख कर रही है और न शाही परिवार इसके लिए कुछ करता है. हमें दुख है कि इस जगह को अब एक होटल बनाने के लिए लीज पर दे दिया गया है.'

भारत को आजाद कराने में नमक की अहम भूमिका
गौरतलब है कि वो नमक ही था, जिसने भारत को आजाद कराने में सबसे अहम भूमिका निभाई. उस वक्त गांधी ये बात समझ चुके थे कि नमक का ही कण-कण लोगों को एकजुट कर सकता है.

गांधी जानते थे कि नमक का हर व्यक्ति जाति, पंथ, धर्म, क्षेत्र, भाषा और आर्थिक स्थिति से परे होकर इसका सेवन करता है.

भारत के इतिहास में वर्ष 1930 का एक अलग ही महत्व है. दरअसल, इस साल गांधी ने दांडी के तटीय शहर में दमनकारी ब्रिटिश नमक कानून को तोड़ने का साहस दिखाया था. नतीजतन देशव्यापी आंदोलन शुरू हुआ.

ओडिशा के छोटे से हुम्मा गांव की बड़ी भूमिका
बापू के सत्याग्रह आंदोलन में ओडिशा के गंजम जिले के छोटे से गांव 'हुम्मा' ने बड़ी भूमिका निभाई थी.

एच.के. महताब ने किया आंदोलन का नेतृत्व
उत्कल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष एचके महताब के कुशल नेतृत्व में ओडिशा में नमक सत्याग्रह आंदोलन की शुरूआत की गई.

राज्य में प्रमुख था नमक उद्योग
ओडिशा में विशाल समुद्र तट के कारण नमक उद्योग ही उस वक्त यहां कृषि का एकमात्र सहायक था.

जब 1930 में बापू ने ओडिशा के समुद्री तट से शुरु किया 'नमक सत्याग्रह'

आंदोलन में हुए शामिल आम लोग
राष्ट्र के बाकी हिस्सों में आए आदोलंन के सैलाब के साथ ही हुम्मा के लोगों में भी क्रांति जागी और उन्होंने नमक कर का विरोध किया और इस देशव्यापि आंदोलन में शामिल हो गए.

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स्वयं हुम्मा पहुंचे बापू
इस दौरान बापू ने खुद गांव का दौरा किया और स्थानीय लोगों से बातचीत की और इस प्रकार ओडिशा में चल रहे आंदोलन में उबाल आया और इसकी रफ्तार और अधिक बढ़ गई.

इस बारे में पूर्व जिला संस्कृति अधिकारी कृष्णचंद्र निसांका ने कहा, 'गंजम ने स्वतंत्रता आंदोलन में अहम भूनिका निभाई थी. जब 1930 में महात्मा गांधी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन का आह्वान किया तो पूरे क्षेत्र के नमक किसानों ने समुद्र से नमक की खेती बंद कर दी और महात्मा गांधी के साथ इस आंदोलन में उनके साथ खड़े हो गए.'

1927 में बापू ने किया गंजम का दौरा
आपको बता दें, बापू ने इससे पहले दिसंबर 1927 में इस क्षेत्र का दौरा किया था.

रॉयल निवास में ठहरे कई स्वतंत्रता सैनानी
ओडिशा के रंभा के रॉयल निवास में गांधी सहित कई स्वतंत्रता सैनानी यहां ठहरे हैं. इतना ही नहीं बापू ने यहां की पर्यटक पुस्तिका पर अपने हस्ताक्षर की भी छाप छोड़ी है.

वहीं जानकार सुभाष पांडा ने कहा, 'रंभा रॉयल प्रेसीडेंसी ब्रिटिश अधिकारियों और कई स्वतंत्रता सेनानियों के ठहरने के लिए मशहूर थी. आंदोलन के दौरान गांधी, नेहरू, डॉ राधाकृष्णन और शास्त्री जैसे कई नेता यहां ठहर चुके हैं.'

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उन्होंने कहा, 'गांधी 1927 में यहां आए थे और 1930 में उन्होंने रंभा रेलवे स्टेशन से हुम्मा तक बैठक में भाग लेने के लिए मार्च निकाला. ये प्रेसीडेंसी एक ऐतिहासिक स्थल है. जो ओडिशा प्रेसिडेंसी की स्वतंत्रता, ओडिया की सुरक्षा के इतिहास से समृद्ध है.'

उन्होंने कहा कि, 'लेकिन इस स्थल की न तो सरकार देखरेख कर रही है और न शाही परिवार इसके लिए कुछ करता है. हमें दुख है कि इस जगह को अब एक होटल बनाने के लिए लीज पर दे दिया गया है.'

भारत को आजाद कराने में नमक की अहम भूमिका
गौरतलब है कि वो नमक ही था, जिसने भारत को आजाद कराने में सबसे अहम भूमिका निभाई. उस वक्त गांधी ये बात समझ चुके थे कि नमक का ही कण-कण लोगों को एकजुट कर सकता है.

गांधी जानते थे कि नमक का हर व्यक्ति जाति, पंथ, धर्म, क्षेत्र, भाषा और आर्थिक स्थिति से परे होकर इसका सेवन करता है.

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Last Updated : Oct 2, 2019, 5:05 PM IST
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