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ग्रामीण अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करना आर्थिक विकास की कुंजी है - बाजारों

भारत में ग्रामीण विकास की दर कई कारणों से नीचे की ओर गिर रही है, यह सभी करक एक दूसरे से जुड़े हुए हैं. सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण कारण है, वास्तविक ग्रामीण मजदूरी वृद्धि में गिरावट. इसके अलावा, पिछले वर्षों में ग्रामीण आय में गतिहीनता आई है और ग्रामीण हिस्सों में नौकरियों की कमी आई है. पढ़ें गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर डॉ. महेंद्र बाबू कुरुवा के विचार...

ग्रामीण अर्थव्यवस्था
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Published : Nov 10, 2019, 3:30 PM IST

31 अक्टूबर 2019, को प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में ख़ुशी की लहर दौड़ गयी जब भारत का सेंसेक्स अपने जीवनकाल के सबके ऊंचे शिखर 40,390 अंकों पर जा पहुंचा. यह पल एक तरफ जहां निवेशकों के लिए यादगार बन गया, वहीं दूसरी ओर अर्थव्यस्था का दूसरा पहलू भी है जो अपनी ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए व्याकुल है. हालाँकि मीडिया की मुख्यधारा ने इस बाज़ार के समागमन के जश्न में एक अहम पहलू को पूरी तरह से नजरअंदाज़ कर दिया है. 30 अक्टूबर 2019 को, भारत के प्रमुख वित्तीय सेवा समूहों में से एक, जेएम फाइनेंशियल ने भारत के 13 राज्यों में किए गए अपने शोध के आधार पर एक रिपोर्ट जारी की थी. यह पाया गया है कि देश में कृषि आय की वृद्धि कम खाद्य कीमतों से प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुई है और इससे आने वाले समय में किसानों की आय दोगुनी करने का काम कठिन हो जाएगा. इस रिपोर्ट के जारी होने से कुछ दिन पहले, यह पाया गया कि देश के तेज़ी से बिकने वाली उपभोक्ता वस्तुएं (एफ़एमसीजी) का बाजार सितंबर की तिमाही के दौरान धीमा हो गया, ग्रामीण भारत में आयतन वृद्धि एक साल पहले 16 प्रतिशत से गिरकर 2 प्रतिशत तक आ गई. पिछले सात वर्षों में पहली बार, एफ़एमसीजी की ग्रामीण विकास की दर शहरी विकास से नीचे चली गई है.

जब इन दोनों ख़बरों को हम साथ में देखते हैं, तो देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति में गहरी नीतिगत अंतर्दृष्टि मिलती और हालात की गंभीरता साफ़ नज़र आने लगती है. पहला पहलू ग्रामीण आय के प्रति सावधान करता है और दूसरा पहलू पहले से ही बिगड़ती ग्रामीण मांग को सामने लाता है, जिसका ग्रामीण आय और ग्रामीण विकास के साथ सीधा संबंध है. इस तथ्य को देखते हुए, इस समय यह कहना बहुत ही प्रासंगिक हो जाता है, कि देश एक आर्थिक मंदी का सामना कर रहा है और जब भी भूत में इस तरह की स्थिति का सामना करना पड़ा है, तो हमेशा ग्रामीण भारत था जो बचाव में आया, अधिक खर्च करके और पुनरुद्धार में मदद करता हुआ. वास्तव में पिछले दस वर्षों में, देश में ब्रांडेड दैनिक जरूरतों की बिक्री काफी हद तक ग्रामीण भारत की वजह से पनपी है, जिसमें 80 करोड़ से अधिक की आबादी है, और देश में एफएमसीजी की कुल बिक्री का 36 प्रतिशत हिस्सा है. यह ग्रामीण मांग के महत्व और देश के समग्र आर्थिक विकास में इसके योगदान को दर्शाता है. यह इस संदर्भ में है कि भारत में ग्रामीण विकास की गतिशीलता को समझना उचित है. साथ ही, गिरते ग्रामीण विकास के अंतर्निहित कारणों को समझना और आगे का रास्ता तलाशना होगा.

क्या है जो ग्रामीण विकास को नीचे की ओर धकेल रहा है?
भारत में ग्रामीण विकास की दर कई कारणों से नीचे की ओर गिर रही है, यह सभी करक एक दूसरे से जुड़े हुए हैं. सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण कारण है, वास्तविक ग्रामीण मजदूरी वृद्धि में गिरावट. इसके अलावा, पिछले वर्षों में ग्रामीण आय में गतिहीनता आई है और ग्रामीण हिस्सों में नौकरियों की कमी आई है. साथ ही, अनियमित वर्षा वितरण ने स्थिति को और खराब कर दिया है, जिससे ग्रामीण आय और घट गई है. आय में गिरावट के कारण अंततः घटती खपत और कम माँग के कारण ऐसा हुआ है.

आपूर्ति की ओर नज़र डालें तो, ग्रामीण क्षेत्रों में व्यापारियों और कृषकों द्वारा तरलता की कमी का सामना किया जा रहा है. हालांकि भारतीय रिजर्व बैंक ने नीतिगत दरों को पर्याप्त रूप से कम कर दिया है, लेकिन कम उधार दरों के लाभों को बैंकों द्वारा जनता को हस्तांतरित नहीं किया जा रहा है, जिससे वृद्धि की संभावनाएं कम हो गई हैं. उदाहरण के तौर पर, देश के बैंकों की ऋण की वृद्धि 8.8 प्रतिशत है, जो पिछले दो वर्षों में सबसे कम है.

यहां तक कि गैर-बैंक वित्तीय कंपनियां (एनबीएफ़सी) ग्रामीण क्षेत्रों और अनौपचारिक क्षेत्र को उधार देने के लिए पर्याप्त रूप से सतर्क हैं, खासकर इन्फ्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेज (IL&FS) की बर्बाद होने के बाद. इन हालातों से किसानों, कंपनियों और व्यापारियों के नकदी प्रवाह पर गंभीर प्रभाव पड़ा. सामान्य तौर पर, शहरी क्षेत्रों के सापेक्ष ऐसी परिस्थितियों में ग्रामीण क्षेत्र अधिक प्रभावित हुए. जबकि शहरी बाजारों में कई स्रोतों द्वारा धन तक ज्यादा पहुंच होगी, ग्रामीण बाजार अपने व्यवसाय के विस्तार के लिए धन की पहुंच होने और गैर-उपलब्धता के हाथों विवश हैं. इसने गिरती मांग के अलावा ग्रामीण बाजारों पर भी दबाव बना दिया था. इसके परिणामस्वरूप, देश पिछले सात वर्षों में पहली बार शहरी बाजारों की तुलना में ग्रामीण बाजारों का धीमा विस्तार और विकास देखा जा रहा है.

ग्रामीण विकास को पुनर्जीवित करना
जब यह ग्रामीण विकास का मुद्दे सामने आता है, तो निश्चित रूप से यह कृषि से संबंधित मुद्दों को सामने ला खड़ा करता है. यह इस तथ्य के कारण है कि देश की 61 प्रतिशत आबादी ग्रामीण है और देश का लगभग 50 प्रतिशत कार्यबल कृषि और संबंधित गतिविधियों पर निर्भर है. इसलिए ग्रामीण विकास की समस्या का समाधान कृषि से संबंधित मुद्दों को संबोधित करके ही निकाला जा सकता है. ग्रामीण विकास को पुनर्जीवित करने की चुनौती का सामना करने के लिए, आपूर्ति और मांग के मुद्दों को सुलझाने पर ध्यान देने की आवश्यकता है. जहां तक आपूर्ति का सवाल है, ग्रामीण क्षेत्रों में तरलता की कमी कि समस्या को दूर करने के लिए सरकार की ज़िम्मेदारी है कि वह बैंकों को आश्वस्त करे कि बैंकों द्वारा ग्रामीण भारत को व्यापार और कृषि के उद्देश्यों के लिए कम ब्याज दरों के लाभों को हस्तांतरित किया जाये. इससे आपूर्ति श्रृंखला को पुनर्जीवित करने और वितरण जाल में आई समस्याओं को हल करने में मदद मिलेगी जो धन की कमी के कारण विकृत हो गए थे.

मांग को बेहतर बनाने के लिए, पहली प्राथमिकता होनी चाहिए पहले चरण में ग्रामीण मांग में आई गिरावट की रोकथाम करना और फिर इसे सुधारने का प्रयास करना. सामान्य तौर पर जब मांग को पुनर्जीवित करने की बात आती है, तो एक सरल समाधान सामने रखा जाता है और जो आमतौर पर विकासवादी अर्थशास्त्रियों द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी व्यय को बढ़ाने के लिए दिया गया, जिससे ग्रामीण आय में वृद्धि होगी और वहां मांग बढ़ेगी. हालाँकि यह ध्यान में रखना उचित है कि आज देश जिस ग्रामीण मंदी का सामना कर रहा है, वह पीएम-किसान और ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रम जैसी आय सहायता योजनाओं के माध्यम से लगभग 1.5 खरब रुपये के भारी खर्च के बावजूद है. इसका मतलब यह हरगिज़ नहीं है कि इन कार्यक्रमों को बंद कर देना चाहिए. यहाँ ये सुझाव देने कि मंशा है कि सिर्फ सरकारी खर्च बढ़ाने से समस्या का समाधान नहीं होगा इन प्रयासों के साथ-साथ इस मोर्चे पर और बहुत कुछ करने की जरूरत है, ताकि सतत दीर्घकालिक समाधान हो सके.

इस संदर्भ में, केंद्र और राज्यों के स्तर पर सरकारों को संरचनात्मक और संस्थागत दोनों चुनौतियों का समाधान करने के लिए कदम उठाने की आवश्यकता है जो भारत के कृषि क्षेत्र को चुनौती दे रहे हैं, जिस पर ग्रामीण अर्थव्यवस्था का अधिकांश भाग निर्भर है. यह इस संदर्भ में है कि कृषि उत्पादकता में सुधार लाना आवश्यक है और कृषि प्रौद्योगिकी में निवेश आकर्षित करने के लिए धन आवंटन और निवेश को सब्सिडी द्वारा सहायता देकर प्रोत्साहित करना उचित होगा. एक ओर, कृषि अवसंरचना और खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों में निवेश किए जाने की आवश्यकता है जो कि स्थायी रूप से ग्रामीण आय में सुधार कर सकते हैं और इन क्षेत्रों में युवाओं को ज्यादा रोजगार भी प्रदान कर सकते हैं. दूसरी ओर भारत के ग्रामीण उत्पादों की पहुँच के दायरे को व्यापक बनाने की आवश्यकता है, और इस क्षेत्र में ग्रामीण निर्यात को बढ़ावा देने और निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए धन आवंटन की आवश्यकता है.

इन प्रयासों के अलावा, कृषि बाजारों में सुधार करने और मूल्य विकृतियों पर अंकुश लगाने और किसानों को उचित मूल्य सुनिश्चित करने की आवश्यकता है. इन सभी प्रयासों को समयबद्ध लक्ष्यों के साथ एक साथ करने की आवश्यकता है. एक अन्य प्रासंगिक पहलू यह है कि सिर्फ किसानों की आय को दोगुना करना उनकी समस्याओं को दूर करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा, निवेश कि लागत एक घातीय दरों पर बढ़ रही है और वो भी लाभप्रद कीमतों की अनुपस्थिति में. इस समस्या को हल करने के लिए उत्पादकता के सुधार के उद्देश्य से निवेश किए जाने और ग्रामीण परिवारों की क्रय शक्ति बढ़ाने के लिए निवेश की लागत को कम करने की आवश्यकता है. इससे खपत बढ़ेगी और ग्रामीण मांग भी, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार होगा. इस प्रकार ग्रामीण अर्थव्यवस्था भारत की आर्थिक विकास की कुंजी है. इस समय सभी की जरूरत है कि इस मोर्चे पर ठोस परिणाम हासिल करने के लिए एक मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति हो. इस मोर्चे पर ठोस परिणाम हासिल करने के लिए इस समय सबसे ज्यादा जरूरत है एक मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति की.


(डॉ. महेंद्र बाबू कुरुवा- लेखक एक सहायक प्रोफेसर हैं, व्यवसाय प्रबंधन विभाग, एह.एन.बी. गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय, उत्तराखंड)

31 अक्टूबर 2019, को प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में ख़ुशी की लहर दौड़ गयी जब भारत का सेंसेक्स अपने जीवनकाल के सबके ऊंचे शिखर 40,390 अंकों पर जा पहुंचा. यह पल एक तरफ जहां निवेशकों के लिए यादगार बन गया, वहीं दूसरी ओर अर्थव्यस्था का दूसरा पहलू भी है जो अपनी ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए व्याकुल है. हालाँकि मीडिया की मुख्यधारा ने इस बाज़ार के समागमन के जश्न में एक अहम पहलू को पूरी तरह से नजरअंदाज़ कर दिया है. 30 अक्टूबर 2019 को, भारत के प्रमुख वित्तीय सेवा समूहों में से एक, जेएम फाइनेंशियल ने भारत के 13 राज्यों में किए गए अपने शोध के आधार पर एक रिपोर्ट जारी की थी. यह पाया गया है कि देश में कृषि आय की वृद्धि कम खाद्य कीमतों से प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुई है और इससे आने वाले समय में किसानों की आय दोगुनी करने का काम कठिन हो जाएगा. इस रिपोर्ट के जारी होने से कुछ दिन पहले, यह पाया गया कि देश के तेज़ी से बिकने वाली उपभोक्ता वस्तुएं (एफ़एमसीजी) का बाजार सितंबर की तिमाही के दौरान धीमा हो गया, ग्रामीण भारत में आयतन वृद्धि एक साल पहले 16 प्रतिशत से गिरकर 2 प्रतिशत तक आ गई. पिछले सात वर्षों में पहली बार, एफ़एमसीजी की ग्रामीण विकास की दर शहरी विकास से नीचे चली गई है.

जब इन दोनों ख़बरों को हम साथ में देखते हैं, तो देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति में गहरी नीतिगत अंतर्दृष्टि मिलती और हालात की गंभीरता साफ़ नज़र आने लगती है. पहला पहलू ग्रामीण आय के प्रति सावधान करता है और दूसरा पहलू पहले से ही बिगड़ती ग्रामीण मांग को सामने लाता है, जिसका ग्रामीण आय और ग्रामीण विकास के साथ सीधा संबंध है. इस तथ्य को देखते हुए, इस समय यह कहना बहुत ही प्रासंगिक हो जाता है, कि देश एक आर्थिक मंदी का सामना कर रहा है और जब भी भूत में इस तरह की स्थिति का सामना करना पड़ा है, तो हमेशा ग्रामीण भारत था जो बचाव में आया, अधिक खर्च करके और पुनरुद्धार में मदद करता हुआ. वास्तव में पिछले दस वर्षों में, देश में ब्रांडेड दैनिक जरूरतों की बिक्री काफी हद तक ग्रामीण भारत की वजह से पनपी है, जिसमें 80 करोड़ से अधिक की आबादी है, और देश में एफएमसीजी की कुल बिक्री का 36 प्रतिशत हिस्सा है. यह ग्रामीण मांग के महत्व और देश के समग्र आर्थिक विकास में इसके योगदान को दर्शाता है. यह इस संदर्भ में है कि भारत में ग्रामीण विकास की गतिशीलता को समझना उचित है. साथ ही, गिरते ग्रामीण विकास के अंतर्निहित कारणों को समझना और आगे का रास्ता तलाशना होगा.

क्या है जो ग्रामीण विकास को नीचे की ओर धकेल रहा है?
भारत में ग्रामीण विकास की दर कई कारणों से नीचे की ओर गिर रही है, यह सभी करक एक दूसरे से जुड़े हुए हैं. सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण कारण है, वास्तविक ग्रामीण मजदूरी वृद्धि में गिरावट. इसके अलावा, पिछले वर्षों में ग्रामीण आय में गतिहीनता आई है और ग्रामीण हिस्सों में नौकरियों की कमी आई है. साथ ही, अनियमित वर्षा वितरण ने स्थिति को और खराब कर दिया है, जिससे ग्रामीण आय और घट गई है. आय में गिरावट के कारण अंततः घटती खपत और कम माँग के कारण ऐसा हुआ है.

आपूर्ति की ओर नज़र डालें तो, ग्रामीण क्षेत्रों में व्यापारियों और कृषकों द्वारा तरलता की कमी का सामना किया जा रहा है. हालांकि भारतीय रिजर्व बैंक ने नीतिगत दरों को पर्याप्त रूप से कम कर दिया है, लेकिन कम उधार दरों के लाभों को बैंकों द्वारा जनता को हस्तांतरित नहीं किया जा रहा है, जिससे वृद्धि की संभावनाएं कम हो गई हैं. उदाहरण के तौर पर, देश के बैंकों की ऋण की वृद्धि 8.8 प्रतिशत है, जो पिछले दो वर्षों में सबसे कम है.

यहां तक कि गैर-बैंक वित्तीय कंपनियां (एनबीएफ़सी) ग्रामीण क्षेत्रों और अनौपचारिक क्षेत्र को उधार देने के लिए पर्याप्त रूप से सतर्क हैं, खासकर इन्फ्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेज (IL&FS) की बर्बाद होने के बाद. इन हालातों से किसानों, कंपनियों और व्यापारियों के नकदी प्रवाह पर गंभीर प्रभाव पड़ा. सामान्य तौर पर, शहरी क्षेत्रों के सापेक्ष ऐसी परिस्थितियों में ग्रामीण क्षेत्र अधिक प्रभावित हुए. जबकि शहरी बाजारों में कई स्रोतों द्वारा धन तक ज्यादा पहुंच होगी, ग्रामीण बाजार अपने व्यवसाय के विस्तार के लिए धन की पहुंच होने और गैर-उपलब्धता के हाथों विवश हैं. इसने गिरती मांग के अलावा ग्रामीण बाजारों पर भी दबाव बना दिया था. इसके परिणामस्वरूप, देश पिछले सात वर्षों में पहली बार शहरी बाजारों की तुलना में ग्रामीण बाजारों का धीमा विस्तार और विकास देखा जा रहा है.

ग्रामीण विकास को पुनर्जीवित करना
जब यह ग्रामीण विकास का मुद्दे सामने आता है, तो निश्चित रूप से यह कृषि से संबंधित मुद्दों को सामने ला खड़ा करता है. यह इस तथ्य के कारण है कि देश की 61 प्रतिशत आबादी ग्रामीण है और देश का लगभग 50 प्रतिशत कार्यबल कृषि और संबंधित गतिविधियों पर निर्भर है. इसलिए ग्रामीण विकास की समस्या का समाधान कृषि से संबंधित मुद्दों को संबोधित करके ही निकाला जा सकता है. ग्रामीण विकास को पुनर्जीवित करने की चुनौती का सामना करने के लिए, आपूर्ति और मांग के मुद्दों को सुलझाने पर ध्यान देने की आवश्यकता है. जहां तक आपूर्ति का सवाल है, ग्रामीण क्षेत्रों में तरलता की कमी कि समस्या को दूर करने के लिए सरकार की ज़िम्मेदारी है कि वह बैंकों को आश्वस्त करे कि बैंकों द्वारा ग्रामीण भारत को व्यापार और कृषि के उद्देश्यों के लिए कम ब्याज दरों के लाभों को हस्तांतरित किया जाये. इससे आपूर्ति श्रृंखला को पुनर्जीवित करने और वितरण जाल में आई समस्याओं को हल करने में मदद मिलेगी जो धन की कमी के कारण विकृत हो गए थे.

मांग को बेहतर बनाने के लिए, पहली प्राथमिकता होनी चाहिए पहले चरण में ग्रामीण मांग में आई गिरावट की रोकथाम करना और फिर इसे सुधारने का प्रयास करना. सामान्य तौर पर जब मांग को पुनर्जीवित करने की बात आती है, तो एक सरल समाधान सामने रखा जाता है और जो आमतौर पर विकासवादी अर्थशास्त्रियों द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी व्यय को बढ़ाने के लिए दिया गया, जिससे ग्रामीण आय में वृद्धि होगी और वहां मांग बढ़ेगी. हालाँकि यह ध्यान में रखना उचित है कि आज देश जिस ग्रामीण मंदी का सामना कर रहा है, वह पीएम-किसान और ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रम जैसी आय सहायता योजनाओं के माध्यम से लगभग 1.5 खरब रुपये के भारी खर्च के बावजूद है. इसका मतलब यह हरगिज़ नहीं है कि इन कार्यक्रमों को बंद कर देना चाहिए. यहाँ ये सुझाव देने कि मंशा है कि सिर्फ सरकारी खर्च बढ़ाने से समस्या का समाधान नहीं होगा इन प्रयासों के साथ-साथ इस मोर्चे पर और बहुत कुछ करने की जरूरत है, ताकि सतत दीर्घकालिक समाधान हो सके.

इस संदर्भ में, केंद्र और राज्यों के स्तर पर सरकारों को संरचनात्मक और संस्थागत दोनों चुनौतियों का समाधान करने के लिए कदम उठाने की आवश्यकता है जो भारत के कृषि क्षेत्र को चुनौती दे रहे हैं, जिस पर ग्रामीण अर्थव्यवस्था का अधिकांश भाग निर्भर है. यह इस संदर्भ में है कि कृषि उत्पादकता में सुधार लाना आवश्यक है और कृषि प्रौद्योगिकी में निवेश आकर्षित करने के लिए धन आवंटन और निवेश को सब्सिडी द्वारा सहायता देकर प्रोत्साहित करना उचित होगा. एक ओर, कृषि अवसंरचना और खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों में निवेश किए जाने की आवश्यकता है जो कि स्थायी रूप से ग्रामीण आय में सुधार कर सकते हैं और इन क्षेत्रों में युवाओं को ज्यादा रोजगार भी प्रदान कर सकते हैं. दूसरी ओर भारत के ग्रामीण उत्पादों की पहुँच के दायरे को व्यापक बनाने की आवश्यकता है, और इस क्षेत्र में ग्रामीण निर्यात को बढ़ावा देने और निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए धन आवंटन की आवश्यकता है.

इन प्रयासों के अलावा, कृषि बाजारों में सुधार करने और मूल्य विकृतियों पर अंकुश लगाने और किसानों को उचित मूल्य सुनिश्चित करने की आवश्यकता है. इन सभी प्रयासों को समयबद्ध लक्ष्यों के साथ एक साथ करने की आवश्यकता है. एक अन्य प्रासंगिक पहलू यह है कि सिर्फ किसानों की आय को दोगुना करना उनकी समस्याओं को दूर करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा, निवेश कि लागत एक घातीय दरों पर बढ़ रही है और वो भी लाभप्रद कीमतों की अनुपस्थिति में. इस समस्या को हल करने के लिए उत्पादकता के सुधार के उद्देश्य से निवेश किए जाने और ग्रामीण परिवारों की क्रय शक्ति बढ़ाने के लिए निवेश की लागत को कम करने की आवश्यकता है. इससे खपत बढ़ेगी और ग्रामीण मांग भी, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार होगा. इस प्रकार ग्रामीण अर्थव्यवस्था भारत की आर्थिक विकास की कुंजी है. इस समय सभी की जरूरत है कि इस मोर्चे पर ठोस परिणाम हासिल करने के लिए एक मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति हो. इस मोर्चे पर ठोस परिणाम हासिल करने के लिए इस समय सबसे ज्यादा जरूरत है एक मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति की.


(डॉ. महेंद्र बाबू कुरुवा- लेखक एक सहायक प्रोफेसर हैं, व्यवसाय प्रबंधन विभाग, एह.एन.बी. गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय, उत्तराखंड)

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