रांची : पूरे देश में कारगिल फतह पर 26 जुलाई को विजय दिवस मनाया जाता है. कारगिल के कुछ ऐसे वीर थे जिन्होंने अपने बहादुरी, साहस और वीरता के बदौलत जीत दिलाई थी. कारगिल के वीरों में पलामू के जीएन पांडेय भी शामिल हैं. वीरता के कारण ही उन्हें सेवा मेडल मिला था. जीएन पांडेय कारगिल लड़ाई के दौरान सूबेदार मेजर थे. जीएन पांडेय के 105 एमएम तोप के इंचार्ज थे.
छुट्टी छोड़ लड़ाई में पंहुचे थे, सेना ने भेजा था टेलीग्राम
1999 में जब कारगिल की लड़ाई शुरू हुई थी तो, जीएन पांडेय अपने पैतृक घर पलामू के पांडु में थे. वे अपने करीबी रिश्तेदार को शादी विवाह की बातचीत कर रहे थे. इसी क्रम में उन्हें दो टेलीग्राम मिला, एक टेलीग्राम को वो देख नहीं पाए. जब दोबारा टेलीग्राम आया तो, उसमें उन्हें तुरंत दिल्ली में रिपोर्ट करने को कहा गया था.
उस दौरान तक उन्हें यह पता नही था कि युद्ध शुरू हो गई है. वे ट्रेन से दिल्ली पहुंचे फिर उसके बाद वे दिल्ली से विशेष विमान से कश्मीर पहुंचे. फिर उन्हें कारगिल की द्रास में भेजा गया.
हिम्मत और हौसलों से जीती जंग
जीएन पांडेय बताते हैं कि जब द्रास में थे तो, ओले की तरह गोली बारूद बरस रहे थे. उसके बाद वे साजो सामान लेकर तोरोलीन गए. वहां 19 दिनों तक रहे. तोरोलीन फतह के बाद वे वापस बेस पर लौट.
जीएन पांडेय बताते हैं कि जब 105 एमएम तोप के इंचार्ज थे, अपने खुद के जवानों को बचाते हुए दुश्मनों पर फायरिंग करना बड़ी चुनौती थी, तोप को सीधे खड़ा कर फायरिंग होती थी, कभी-कभी उलटने का डर लगता था, लेकिन जवानो में जोश और बहादुरी थी कि वे हर हाल में लड़ाई जितना चाहते थे.
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जीएन पांडेय को कई मेलड भी मिला
जीएन पांडेय कारगिल लड़ाई के दौरान 197 फील्ड रेजिमेंट में थे. 1973 में वे सेना में भर्ती हुए थे. सेना में सेवा के लिए उन्हें दर्जनों पुरस्कार मिले हैं. जीएन पांडेय ने ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए बताया कि जवान कभी मेडल के लिए लड़ाई नहीं लड़ता है, जवान देश के लिए लड़ाई लड़ता है, मेडल उसके हौसले को बढ़ाता है, युद्ध में सिपाही को सिर्फ देश और अपने देशवासियों की चिंता रहती है.
वो बताते हैं कि तोरोलीन पर कब्जा जरूरी था, कारगिल की लड़ाई में सबसे पहले तोरोलीन पर ही विजय पाया गया. उन्होंने बताया कि कारगिल की लड़ाई में जवानों ने हौसला और बहादुरी के साथ लड़ा और विजयी हुए.