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लॉकडाउन : सुनिए यमुना खादर में रह रहे पाकिस्तान से आए शरणार्थियों का दर्द

नॉर्थ-वेस्ट दिल्ली के यमुना खादर इलाके में रह रहे पाकिस्तानी हिन्दू शरणार्थियों को इस लॉकडाउन में काफी मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है. सिर्फ लॉकडाउन में ही नहीं बल्कि वैसे भी वो मूलभूत सुविधाओं के अभाव में जीने को मजबूर हैं, देखिए ईटीवी भारत की ग्राउंड रिपोर्ट.

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Published : Apr 29, 2020, 8:00 PM IST

पाकिस्तान से आए शरणार्थियों का दर्द
पाकिस्तान से आए शरणार्थियों का दर्द

नई दिल्ली : लॉकडाउन के दौर में मूलभूत सुविधाओं के अभाव से कुतुबमीनार से दोगुनी ऊंची बनी सिग्नेचर ब्रिज के आसपास के इलाकों के लोग कांप उठे हैं. यमुना नदी के किनारे रहने वाले लोगों की हालत ऐसी है कि सुनकर आप भी सोचने को मजबूर हो जाएं.

ईटीवी भारत की टीम जब यमुना खादर के इस इलाके में पहुंची तो पाकिस्तान से आई एक महिला शरणार्थी ने कहा अगर यहां से बाहर निकल गई तो ठीक वरना यहीं पड़ी रहूंगी, क्या कर सकती हूं. यह हालत पाकिस्तान से आए उन हिन्दू शरणार्थियों की है जिन पर सियासत भी खूब हुई.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट.

मूलभूत सुविधाओं के अभाव में कट रही जिंदगी
नदी किनारे डरावने जंगलों में एक रात गुजारना भी काफी भयावह है लेकिन यहां रहने वाले लोग इसके आदी हो चुके हैं. यहां तक की बच्चे जो जमीन पर लेटते हैं, खेलते हैं और फिर उसी जंगल में उनका दिन-रात कट रहा है. शंकर लाल बताते हैं कि सांप का डर है, बारिश में इलाका डूब जाता है लेकिन फिर भी अभी करीब 300 लोग यहां रहते हैं.

न बिजली, न पानी और न खाने का साधन है. निजी संस्थाओं की मदद से लॉकडाउन के दौर में गुजर-बसर हो रहा है. ऐसे में सरकार से इनकी यही मांग है कि उन्हें मूलभूत सुविधाएं और नागरिकता दोनों दी जाएं.

सरकार पर लगाए गंभीर आरोप
शरणार्थी शंकरलाल ने बताया कि पाकिस्तान से आए हुए यहां पर करीब 2 महीने हो गए, इसके अलावा 90 परिवार यहां पहले से रह रहे हैं. लेकिन सरकार की ओर से इनके लिए कोई इंतजाम नहीं किया गया है. नदी किनारे होते हुए भी इनके पास पीने का पानी नहीं है. हफ्ते में एक बार पानी का टैंकर आता है.

लॉकडाउन के दौरान स्थानीय विधायक से लेकर निगम पार्षद तक किसी ने हमारी सुध नहीं ली. रात में जंगली जीव-जंतुओं का डर है तो वहीं जहरीली कीट-पतंग भी नुकसान पहुंचाते हैं. हालत यह है कि दवा लेने भी कोसों दूर जाना पड़ता है.

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नई दिल्ली : लॉकडाउन के दौर में मूलभूत सुविधाओं के अभाव से कुतुबमीनार से दोगुनी ऊंची बनी सिग्नेचर ब्रिज के आसपास के इलाकों के लोग कांप उठे हैं. यमुना नदी के किनारे रहने वाले लोगों की हालत ऐसी है कि सुनकर आप भी सोचने को मजबूर हो जाएं.

ईटीवी भारत की टीम जब यमुना खादर के इस इलाके में पहुंची तो पाकिस्तान से आई एक महिला शरणार्थी ने कहा अगर यहां से बाहर निकल गई तो ठीक वरना यहीं पड़ी रहूंगी, क्या कर सकती हूं. यह हालत पाकिस्तान से आए उन हिन्दू शरणार्थियों की है जिन पर सियासत भी खूब हुई.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट.

मूलभूत सुविधाओं के अभाव में कट रही जिंदगी
नदी किनारे डरावने जंगलों में एक रात गुजारना भी काफी भयावह है लेकिन यहां रहने वाले लोग इसके आदी हो चुके हैं. यहां तक की बच्चे जो जमीन पर लेटते हैं, खेलते हैं और फिर उसी जंगल में उनका दिन-रात कट रहा है. शंकर लाल बताते हैं कि सांप का डर है, बारिश में इलाका डूब जाता है लेकिन फिर भी अभी करीब 300 लोग यहां रहते हैं.

न बिजली, न पानी और न खाने का साधन है. निजी संस्थाओं की मदद से लॉकडाउन के दौर में गुजर-बसर हो रहा है. ऐसे में सरकार से इनकी यही मांग है कि उन्हें मूलभूत सुविधाएं और नागरिकता दोनों दी जाएं.

सरकार पर लगाए गंभीर आरोप
शरणार्थी शंकरलाल ने बताया कि पाकिस्तान से आए हुए यहां पर करीब 2 महीने हो गए, इसके अलावा 90 परिवार यहां पहले से रह रहे हैं. लेकिन सरकार की ओर से इनके लिए कोई इंतजाम नहीं किया गया है. नदी किनारे होते हुए भी इनके पास पीने का पानी नहीं है. हफ्ते में एक बार पानी का टैंकर आता है.

लॉकडाउन के दौरान स्थानीय विधायक से लेकर निगम पार्षद तक किसी ने हमारी सुध नहीं ली. रात में जंगली जीव-जंतुओं का डर है तो वहीं जहरीली कीट-पतंग भी नुकसान पहुंचाते हैं. हालत यह है कि दवा लेने भी कोसों दूर जाना पड़ता है.

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