ETV Bharat / bharat

बिहार विधानसभा चुनाव : अलौली विधानसभा में सहानुभूति करेगी काम ?

बिहार के अलौली विधानसभा क्षेत्र का एक छोटे सा गांव है शहरबन्नी. इस गांव की एक पहचान दिवंगत केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान से भी है. पासवान का जन्म एक गरीब दलित परिवार में हुआ. जिला मुख्यालय खगड़िया से 36 किलोमीटर दूर शहरबन्नी गांव स्थित है. गांव के विकास की बात होती है तो ग्रामीण कोसी नदी पर पुल के निर्माण का श्रेय राम विलास पासवान को देते हैं. पासवान की मौत के बाद गांव में सहानुभूति की लहर है.

Ram Vilas Paswan
राम विलास पासवान
author img

By

Published : Oct 21, 2020, 6:04 AM IST

खगड़िया : जिला मुख्यालय खगड़िया से 36 किलोमीटर दूर स्थित है शहरबन्नी गांव. इस गांव में बाइक और कार से पहुंचने में करीब डेढ़ घंटे लग जाते हैं. जब बड़ी गाड़ियां मुख्यालय से शहरबन्नी की ओर जाती हैं तो स्थानीय पूछते हैं, 'स्टेपनी है कि नहीं, यहां टायर खूब पंक्चर होता है.' हर बार चुनाव में यह गांव चर्चा में आता है. इस बार राम विलास पासवान की मृत्‍यु के कारण चर्चा में है. हालांकि, पासवान की मौत के बाद उनके पार्थिव शरीर को गांव नहीं ले जाया गया. उनकी पहली पत्‍नी के मुताबिक 2015 में पिता के श्राद्ध कर्म में राम विलास पासवान शहरबन्नी आए थे. वह उनकी आखिरी गांव की यात्रा थी.

अलौली विधानसभा से रिपोर्ट

बहुत संभल कर बोलते हैं ग्रामीण

राम विलास पासवान के भाई राम चंद्र पासवान और पशुपति पारस ने भी राजनीति में अहम ओहदों पर होते हुए गांव के विकास पर ध्‍यान दिया. अब परिवार में उनके बाद की पीढ़ी चिराग पासवान और राम चंद्र के बेटे प्रिंस राज राजनीति में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं. गांव के लोग विकास की चाहत रखते हैं और गांव के विकास से पूरी तरह संतुष्ट भी नहीं हैं. चुनाव के वक्त मीडिया के कैमरे शहरबन्नी में दिख जाते है. ऐसे में जब ग्रामीणों से सवाल होता है तो वे बहुत संभल कर बोलते हैं. जब गांव के विकास की बात होती है तो ग्रामीण कोसी नदी पर पुल के निर्माण का श्रेय राम विलास पासवान को देते हैं.


"शहरबन्नी गांव, जिले का सर्वाधिक पिछड़ा हुला इलाका माना जाता था. यही वजह रही जब से रामविलास पासवान केंद्र में मंत्री बने वो लगातार गांव के विकास के लिए प्रयास करते रहे. इस इलाके को जोड़ने के लिए कोसी नदी पर पुल का निर्माण हुआ, साथ ही सड़कों का निर्माण कर जिला मुख्यालय से गांव को जोड़ा."- ग्रामीण, शहरबन्नी


''रामविलास पासवान का जन्म ही इस इलाके के उद्धार के लिए हुआ था. हम कभी जिला मुख्यालय से नहीं जुड़ पाते और न देश-विदेश में शहरबन्नी की चर्चा होती. जिस भी मंत्रालय में वो रहे, इस गांव के लिए हमेशा काम किया.''- धर्मदेव चौधरी, ग्रामीण, शहरबन्नी


''जिस वक्त पढ़ाई के लिए राम विलास पासवान खगड़िया जाते थे, उन्हें 18 किलोमीटर पैदल और दो नदी पार करना पड़ता था. उस तकलीफ को सोच कर भी रूह कांप उठता हैं.''- नरसिंह पासवान, राम विलास पासवान के पड़ोसी

तीन भाई और दो बहनों में राम विलास थे सबसे बड़े

जिला मुख्यालय से करीब 36 किलोमीटर दूर अलौली प्रखंड के एक छोटे से गांव शहरबन्नी में राम विलास पासवान का जन्म एक गरीब दलित परिवार में हुआ. पिता जामुन दास और मां का नाम सिया देवी था. तीन भाई और दो बहनों में राम विलास पासवान सबसे बड़े थे. शहरबन्नी गांव खगड़िया जिले का आखिरी गांव है. सहरसा, दरभंगा और समस्तीपुर जिले की सीमाएं इस गांव से सटी हुईं हैं. उस वक्त शहरबन्नी से अलौली प्रखंड मुख्यालय आने के लिए भी कोसी सहित दो नदियों को पार करना होता था. न गांव में स्कूल था और न सड़कें. यातायात के साधन के अभाव के कारण ग्रामीणों को चाहे अलौली प्रखंड मुख्यालय जाना हो या 18 किलोमीटर दूर खगड़िया जिला मुख्यालय, वहां पहुंचने का एक ही जरिया था, नाव से नदी पार कर पैदल यात्रा करना.

कोसी नदी पर पुल का निर्माण कराया

शहरबन्नी गांव जिले का सर्वाधिक पिछड़ा इलाका माना जाता था. यही वजह रही जब से रामविलास पासवान केंद्र में मंत्री बने, वो लगातार इस इलाके के विकास के लिए प्रयास करते रहे. इस इलाके को जोड़ने के लिए कोसी नदी पर पुल का निर्माण हुआ. साथ ही सड़कों का निर्माण कर जिला मुख्यालय से गांव को जोड़ा गया. खगड़िया से कुशेश्वरस्थान को जोड़ने वाली रेल परियोजना पूर्ण होने के कगार पर है, जो शहरबन्नी गांव होकर गुजरी है.

पड़ोस की भाभी जिक्र सुनते ही फफकने लगीं

रामविलास पासवान को करीब से जानने वाली उनकी पड़ोस की भाभी राम विलास का जिक्र सुनते ही फफकने लगतीं हैं. वो कहती हैं कि राम विलास देवता थे. वे अपने भाइयों और ग्रामीणों को बहुत चाहते थे. यही वजह है कि उन्होंने भाइयों को भी मुकाम पर पहुचाया और गांव के विकास के लिए वो सब कुछ किया, जो वो कर सकते थे. वे कहती हैं कि अगर पासवान न होते तो यहां के लोग आज भी पगडंडियों पर ही चलते नजर आते.

दोस्तों के चंदे पर चुनाव लड़ जीते पासवान

अलौली विधानसभा के लिए हुए उपचुनाव में 1969 में पहली बार राम विलास पासवान अपने दोस्तों व करीबियों के इकट्ठा किए गए पैसे से चुनाव लड़े और जीते. इसके बाद उन्होंने मुड़कर पीछे नहीं देखा. वे हाजीपुर से रिकॉर्ड मतों से सांसद चुने गए. अलौली विधानसभा सुरक्षित विधानसभा है. क्षेत्र में ज्यादातर मुसहर जाति के लोग हैं. वहीं अन्य महादलित जाति भी काफी संख्या में हैं.

सीट पर एलजेपी या पासवान परिवार की मजबूत पकड़

2015 के चुनाव में राजद के चंदन राम ने एलजेपी के पशुपति पारस को 24 हजार से ज्यादा मतों के अंतर से परास्त किया था. पशुपति पारस यहां 35 वर्षों तक विधायक रहे हैं. कमोवेश राम विलास पासवान के कारण इस सीट पर एलजेपी या पासवान परिवार की मजबूत पकड़ दशकों से बनी हुई है. इस बार भी जदयू के बागी पूर्व विधायक रामचन्द्र सदा को एलजेपी ने टिकट दिया है. वहीं, राजद ने रामवृक्ष सदा को टिकट दिया है. जबकि जदयू ने इस सीट पर साधना सदा पर अपना भरोसा जताया है. इधर, पप्पू यादव ने नक्सलियों के पूर्व जोनल कमांडर बोढन सदा को चुनाव मैदान में उतारा है. अब ये देखना दिलचस्प होगा कि राम विलास पासवान की मौत के बाद सहानुभूति की लहर का फायदा एलजेपी प्रत्याशी को मिल पाता है या नहीं.

इस विधानसभा में अब तक इन लोगों ने किया प्रतिनिधित्व

प्रत्याशीपार्टीसाल
मिश्री सदाकांग्रेस1962-1967
राम विलास पासवानसोसलिस्ट1969
मिश्री सदाकांग्रेस1972
पशुपति पारसजनता पार्टी1977
मिश्री सदाजनता पार्टी1980
पशुपति पारसजनता पार्टी, एलजेपी1985, 1990, 1995, 2000, 2005
रामचन्द्र सदाजदयू2010
चंदन रामराजद2015

फिलहाल, अलौली विधानसभा क्षेत्र के शहरबन्नी गांव के कारण ये सीट हॉट सीट बना हुआ है. एक तरफ जहां लोग राम विलास पासवान की मौत से गमजदा हैं. वहीं, चिराग पासवान और उनकी पार्टी एलजेपी के लिए लोगों के मन मे सहानभूति भी देखी जा रही है.

खगड़िया : जिला मुख्यालय खगड़िया से 36 किलोमीटर दूर स्थित है शहरबन्नी गांव. इस गांव में बाइक और कार से पहुंचने में करीब डेढ़ घंटे लग जाते हैं. जब बड़ी गाड़ियां मुख्यालय से शहरबन्नी की ओर जाती हैं तो स्थानीय पूछते हैं, 'स्टेपनी है कि नहीं, यहां टायर खूब पंक्चर होता है.' हर बार चुनाव में यह गांव चर्चा में आता है. इस बार राम विलास पासवान की मृत्‍यु के कारण चर्चा में है. हालांकि, पासवान की मौत के बाद उनके पार्थिव शरीर को गांव नहीं ले जाया गया. उनकी पहली पत्‍नी के मुताबिक 2015 में पिता के श्राद्ध कर्म में राम विलास पासवान शहरबन्नी आए थे. वह उनकी आखिरी गांव की यात्रा थी.

अलौली विधानसभा से रिपोर्ट

बहुत संभल कर बोलते हैं ग्रामीण

राम विलास पासवान के भाई राम चंद्र पासवान और पशुपति पारस ने भी राजनीति में अहम ओहदों पर होते हुए गांव के विकास पर ध्‍यान दिया. अब परिवार में उनके बाद की पीढ़ी चिराग पासवान और राम चंद्र के बेटे प्रिंस राज राजनीति में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं. गांव के लोग विकास की चाहत रखते हैं और गांव के विकास से पूरी तरह संतुष्ट भी नहीं हैं. चुनाव के वक्त मीडिया के कैमरे शहरबन्नी में दिख जाते है. ऐसे में जब ग्रामीणों से सवाल होता है तो वे बहुत संभल कर बोलते हैं. जब गांव के विकास की बात होती है तो ग्रामीण कोसी नदी पर पुल के निर्माण का श्रेय राम विलास पासवान को देते हैं.


"शहरबन्नी गांव, जिले का सर्वाधिक पिछड़ा हुला इलाका माना जाता था. यही वजह रही जब से रामविलास पासवान केंद्र में मंत्री बने वो लगातार गांव के विकास के लिए प्रयास करते रहे. इस इलाके को जोड़ने के लिए कोसी नदी पर पुल का निर्माण हुआ, साथ ही सड़कों का निर्माण कर जिला मुख्यालय से गांव को जोड़ा."- ग्रामीण, शहरबन्नी


''रामविलास पासवान का जन्म ही इस इलाके के उद्धार के लिए हुआ था. हम कभी जिला मुख्यालय से नहीं जुड़ पाते और न देश-विदेश में शहरबन्नी की चर्चा होती. जिस भी मंत्रालय में वो रहे, इस गांव के लिए हमेशा काम किया.''- धर्मदेव चौधरी, ग्रामीण, शहरबन्नी


''जिस वक्त पढ़ाई के लिए राम विलास पासवान खगड़िया जाते थे, उन्हें 18 किलोमीटर पैदल और दो नदी पार करना पड़ता था. उस तकलीफ को सोच कर भी रूह कांप उठता हैं.''- नरसिंह पासवान, राम विलास पासवान के पड़ोसी

तीन भाई और दो बहनों में राम विलास थे सबसे बड़े

जिला मुख्यालय से करीब 36 किलोमीटर दूर अलौली प्रखंड के एक छोटे से गांव शहरबन्नी में राम विलास पासवान का जन्म एक गरीब दलित परिवार में हुआ. पिता जामुन दास और मां का नाम सिया देवी था. तीन भाई और दो बहनों में राम विलास पासवान सबसे बड़े थे. शहरबन्नी गांव खगड़िया जिले का आखिरी गांव है. सहरसा, दरभंगा और समस्तीपुर जिले की सीमाएं इस गांव से सटी हुईं हैं. उस वक्त शहरबन्नी से अलौली प्रखंड मुख्यालय आने के लिए भी कोसी सहित दो नदियों को पार करना होता था. न गांव में स्कूल था और न सड़कें. यातायात के साधन के अभाव के कारण ग्रामीणों को चाहे अलौली प्रखंड मुख्यालय जाना हो या 18 किलोमीटर दूर खगड़िया जिला मुख्यालय, वहां पहुंचने का एक ही जरिया था, नाव से नदी पार कर पैदल यात्रा करना.

कोसी नदी पर पुल का निर्माण कराया

शहरबन्नी गांव जिले का सर्वाधिक पिछड़ा इलाका माना जाता था. यही वजह रही जब से रामविलास पासवान केंद्र में मंत्री बने, वो लगातार इस इलाके के विकास के लिए प्रयास करते रहे. इस इलाके को जोड़ने के लिए कोसी नदी पर पुल का निर्माण हुआ. साथ ही सड़कों का निर्माण कर जिला मुख्यालय से गांव को जोड़ा गया. खगड़िया से कुशेश्वरस्थान को जोड़ने वाली रेल परियोजना पूर्ण होने के कगार पर है, जो शहरबन्नी गांव होकर गुजरी है.

पड़ोस की भाभी जिक्र सुनते ही फफकने लगीं

रामविलास पासवान को करीब से जानने वाली उनकी पड़ोस की भाभी राम विलास का जिक्र सुनते ही फफकने लगतीं हैं. वो कहती हैं कि राम विलास देवता थे. वे अपने भाइयों और ग्रामीणों को बहुत चाहते थे. यही वजह है कि उन्होंने भाइयों को भी मुकाम पर पहुचाया और गांव के विकास के लिए वो सब कुछ किया, जो वो कर सकते थे. वे कहती हैं कि अगर पासवान न होते तो यहां के लोग आज भी पगडंडियों पर ही चलते नजर आते.

दोस्तों के चंदे पर चुनाव लड़ जीते पासवान

अलौली विधानसभा के लिए हुए उपचुनाव में 1969 में पहली बार राम विलास पासवान अपने दोस्तों व करीबियों के इकट्ठा किए गए पैसे से चुनाव लड़े और जीते. इसके बाद उन्होंने मुड़कर पीछे नहीं देखा. वे हाजीपुर से रिकॉर्ड मतों से सांसद चुने गए. अलौली विधानसभा सुरक्षित विधानसभा है. क्षेत्र में ज्यादातर मुसहर जाति के लोग हैं. वहीं अन्य महादलित जाति भी काफी संख्या में हैं.

सीट पर एलजेपी या पासवान परिवार की मजबूत पकड़

2015 के चुनाव में राजद के चंदन राम ने एलजेपी के पशुपति पारस को 24 हजार से ज्यादा मतों के अंतर से परास्त किया था. पशुपति पारस यहां 35 वर्षों तक विधायक रहे हैं. कमोवेश राम विलास पासवान के कारण इस सीट पर एलजेपी या पासवान परिवार की मजबूत पकड़ दशकों से बनी हुई है. इस बार भी जदयू के बागी पूर्व विधायक रामचन्द्र सदा को एलजेपी ने टिकट दिया है. वहीं, राजद ने रामवृक्ष सदा को टिकट दिया है. जबकि जदयू ने इस सीट पर साधना सदा पर अपना भरोसा जताया है. इधर, पप्पू यादव ने नक्सलियों के पूर्व जोनल कमांडर बोढन सदा को चुनाव मैदान में उतारा है. अब ये देखना दिलचस्प होगा कि राम विलास पासवान की मौत के बाद सहानुभूति की लहर का फायदा एलजेपी प्रत्याशी को मिल पाता है या नहीं.

इस विधानसभा में अब तक इन लोगों ने किया प्रतिनिधित्व

प्रत्याशीपार्टीसाल
मिश्री सदाकांग्रेस1962-1967
राम विलास पासवानसोसलिस्ट1969
मिश्री सदाकांग्रेस1972
पशुपति पारसजनता पार्टी1977
मिश्री सदाजनता पार्टी1980
पशुपति पारसजनता पार्टी, एलजेपी1985, 1990, 1995, 2000, 2005
रामचन्द्र सदाजदयू2010
चंदन रामराजद2015

फिलहाल, अलौली विधानसभा क्षेत्र के शहरबन्नी गांव के कारण ये सीट हॉट सीट बना हुआ है. एक तरफ जहां लोग राम विलास पासवान की मौत से गमजदा हैं. वहीं, चिराग पासवान और उनकी पार्टी एलजेपी के लिए लोगों के मन मे सहानभूति भी देखी जा रही है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.