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हिंदी भाषा के नाम पर राजनीति चमका रही हैं विपक्षी पार्टियांः सांसद राकेश सिन्हा - rajyasabha member

नई शिक्षा प्रणाली के ड्राफ्ट में तीसरी भाषा पर खड़ा हुआ विवाद अब राजनीतिक रूप ले चुका है. इसी पर ईटीवी भारत से बातचीत में शिक्षाविद और राज्य सभा सांसद राकेश सिन्हा ने कहा कि देशव्यापी विरोध का माहौल पैदा करने की कोशिश हो रही है. जानने के लिए पूरा मामला पढ़े पूरी खबर.

राकेश सिन्हा से ईटीवी भारत की बातचीत.
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Published : Jun 4, 2019, 5:08 PM IST

नई दिल्ली: हिन्दी विरोध का हौआ खड़ाकर विपक्षी पार्टियां अपना खोया हुआ राजनीतिक जनाधार वापस करने की कोशिश कर रही हैं. यह दावा भाजपा सांसद राकेश सिन्हा ने किया है. उन्होंने कहा कि मोदी सरकार कभी भी हिन्दी को ैगैर हिन्दी भाषी राज्यों पर नहीं थोपेगी. ऐसा जानबूझकर विवाद खड़ा किया जा रहा है.

मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने भी स्पष्ट किया है कि ड्राफ्ट न्यू एजुकेशन पॉलिसी में किसी भाषा को किसी पर भी थोपने की बात नहीं कही गई है. बहरहाल ये ड्राफ्ट इसलिये सार्वजनिक तौर पर रखा गया है क्योंकि इस पर नए सुझाव आ सकें और आवश्यक्तानुसार संशोधन हो सके.

इसके बावजूद भी मामला नहीं थमा और विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया. नेता #इमपोजीशनऑफहिन्दी लिख कर सोशल मीडिया पर पोस्ट करने लगे.

मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने दोबारा ड्राफ्ट की संशोधित कॉपी सार्वजनिक की, जिसमें स्पष्ट तौर पर तीसरी भाषा को वैकल्पिक या ऐच्छिक रखने की बात कही गई है. इसमें किसी भी तरह से हिन्दी भाषा को पाठ्यक्रम में गैर हिन्दी भाषियों के लिये बाध्य करने की बात नहीं है.

हालांकि, लोकसभा चुनाव में दक्षिणी राज्य, विशेषकर कर्नाटक में मिली करारी हार के बाद राज्य में राजनीति को जिंदा करने की कवायद में जुटी कांग्रेस ने आज भी अपना विरोध प्रदर्शन जारी रखा है.

राकेश सिन्हा से ईटीवी भारत की बातचीत.

ईटीवी भारत ने इस पूरे मामले पर शिक्षाविद और राज्य सभा सांसद राकेश सिन्हा से राय ली. राकेश सिन्हा ने बताया कि देश की सरकार कभी भी हिन्दी भाषा को किसी गैर हिन्दी भाषी पर थोपने का काम नहीं करेगी और इस बात को जबरदस्ती मुद्दा बना कर विपक्षी पार्टियां अपनी राजनीतिक जमीन बचाने की कोशिश कर रही हैं.

राकेश सिन्हा ने कहा कि देश की सभी भाषाओं का अपना महत्व और ये सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा हैं. जाहिर तौर पर तीसरी भाषा के रूप में हिन्दी को शामिल किये जाने की बात न ही मानव संसाधन विकास मंत्रालय की तरफ से आई और न ही सरकार के किसी मंत्री ने ही ऐसी बात कही. ड्राफ्ट न्यू एजुकेशन पॉलिसी की सिफारिशों को अमली जामा पहनाने में अभी समय है और लगभग 400 पन्ने के दस्तावेज में महज एक बिंदु को आधार बना कर देशव्यापी विरोध का माहौल पैदा करने का प्रयास किया गया.

खुद कमेटी के चेयरमैन के कस्तूरीरंगन ने भी मीडिया के माध्यम से ये स्पष्ट किया कि ड्राफ्ट में जरूरी सुधार कर किये गए हैं और कभी भी हिन्दी या किसी अन्य भाषा को पाठ्यक्रम में तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने की बात की ही नहीं गई.

दरअसल, ड्राफ्ट न्यू एजुकेशन पॉलिसी 2019 जून माह तक सार्वजनिक है और जरूरी सुधार और संशोधन के सुझावों पर विचार करने के बाद ही इसे अमली जामा पहनाया जाएगा.

नई दिल्ली: हिन्दी विरोध का हौआ खड़ाकर विपक्षी पार्टियां अपना खोया हुआ राजनीतिक जनाधार वापस करने की कोशिश कर रही हैं. यह दावा भाजपा सांसद राकेश सिन्हा ने किया है. उन्होंने कहा कि मोदी सरकार कभी भी हिन्दी को ैगैर हिन्दी भाषी राज्यों पर नहीं थोपेगी. ऐसा जानबूझकर विवाद खड़ा किया जा रहा है.

मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने भी स्पष्ट किया है कि ड्राफ्ट न्यू एजुकेशन पॉलिसी में किसी भाषा को किसी पर भी थोपने की बात नहीं कही गई है. बहरहाल ये ड्राफ्ट इसलिये सार्वजनिक तौर पर रखा गया है क्योंकि इस पर नए सुझाव आ सकें और आवश्यक्तानुसार संशोधन हो सके.

इसके बावजूद भी मामला नहीं थमा और विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया. नेता #इमपोजीशनऑफहिन्दी लिख कर सोशल मीडिया पर पोस्ट करने लगे.

मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने दोबारा ड्राफ्ट की संशोधित कॉपी सार्वजनिक की, जिसमें स्पष्ट तौर पर तीसरी भाषा को वैकल्पिक या ऐच्छिक रखने की बात कही गई है. इसमें किसी भी तरह से हिन्दी भाषा को पाठ्यक्रम में गैर हिन्दी भाषियों के लिये बाध्य करने की बात नहीं है.

हालांकि, लोकसभा चुनाव में दक्षिणी राज्य, विशेषकर कर्नाटक में मिली करारी हार के बाद राज्य में राजनीति को जिंदा करने की कवायद में जुटी कांग्रेस ने आज भी अपना विरोध प्रदर्शन जारी रखा है.

राकेश सिन्हा से ईटीवी भारत की बातचीत.

ईटीवी भारत ने इस पूरे मामले पर शिक्षाविद और राज्य सभा सांसद राकेश सिन्हा से राय ली. राकेश सिन्हा ने बताया कि देश की सरकार कभी भी हिन्दी भाषा को किसी गैर हिन्दी भाषी पर थोपने का काम नहीं करेगी और इस बात को जबरदस्ती मुद्दा बना कर विपक्षी पार्टियां अपनी राजनीतिक जमीन बचाने की कोशिश कर रही हैं.

राकेश सिन्हा ने कहा कि देश की सभी भाषाओं का अपना महत्व और ये सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा हैं. जाहिर तौर पर तीसरी भाषा के रूप में हिन्दी को शामिल किये जाने की बात न ही मानव संसाधन विकास मंत्रालय की तरफ से आई और न ही सरकार के किसी मंत्री ने ही ऐसी बात कही. ड्राफ्ट न्यू एजुकेशन पॉलिसी की सिफारिशों को अमली जामा पहनाने में अभी समय है और लगभग 400 पन्ने के दस्तावेज में महज एक बिंदु को आधार बना कर देशव्यापी विरोध का माहौल पैदा करने का प्रयास किया गया.

खुद कमेटी के चेयरमैन के कस्तूरीरंगन ने भी मीडिया के माध्यम से ये स्पष्ट किया कि ड्राफ्ट में जरूरी सुधार कर किये गए हैं और कभी भी हिन्दी या किसी अन्य भाषा को पाठ्यक्रम में तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने की बात की ही नहीं गई.

दरअसल, ड्राफ्ट न्यू एजुकेशन पॉलिसी 2019 जून माह तक सार्वजनिक है और जरूरी सुधार और संशोधन के सुझावों पर विचार करने के बाद ही इसे अमली जामा पहनाया जाएगा.

Intro:नई शिक्षा प्रणाली के ड्राफ़्ट में तीसरी भाषा को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने की शिफारिश पर जो बवाल शुरू हुआ वो अब राजनीतिक रंग ले चुका है । दक्षिणी राज्यों में इसे ले कर विरोध हुआ तो मोदी सरकार के मंत्रियों और मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने भी स्पष्ट किया कि ड्राफ्ट न्यू एजुकेशन पॉलिसी में किसी भाषा को किसी पर भी थोपने की बात नहीं कि गई है और बहरहाल ये ड्राफ्ट इसलिये सार्वजनिक रखा गया है कि इस पर उपर्युक्त सुझाव और संशोधन हो सकें ।
लेकिन मामला यहाँ भी नहीं थमा, और विरोध प्रदर्शन भी शुरू हो गए ।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने दोबारा ड्राफ्ट की संशोधित कॉपी सार्वजनिक की जिसमें स्पष्ट तौर पर तीसरी भाषा को वैकल्पिक या ऐच्छिक रखने की बात कही गई है और किसी भी तरह से हिन्दी भाषा को पाठ्यक्रम में गैर हिन्दी भाषियों के लिये बाध्य करने की बात नहीं है ।


Body:हालांकि लोकसभा चुनाव में दक्षिणी राज्य, विशेषकर कर्नाटक में मिली करारी हार के बाद राज्य में राजनीति को जिंदा करने के कवायद में जुटी कांग्रेस ने आज भी अपना विरोध प्रदर्शन जारी रखा है ।
ईटीवी भारत ने इस पूरे मामले पर शिक्षाविद और राज्य सभा सांसद राकेश सिन्हा से राय ली । राकेश सिन्हा ने बताया कि देश की सरकार कभी भी हिन्दी भाषा को किसी गैर हिन्दी भाषी पर थोपने का काम नहीं करेगी और इस बात को जबरदस्ती मुद्दा बना कर विपक्षी पार्टियाँ अपनी राजनीतिक जमीन बचाने की कोशिश कर रही हैं ।
राकेश सिन्हा ने कहा कि देश की सभी भाषाओं का अपना महत्व और सांस्कृतिक विरासत है ।


Conclusion:जाहिर तौर पर तीसरी भाषा के रूप में हिन्दी को शामिल किये जाने की बात न ही मानव संसाधन विकास मंत्रालय की तरफ से आई और न ही सरकार के किसी मंत्री ने ही ऐसी बात कही । ड्राफ्ट न्यू एजुकेशन पॉलिसी की सिफारिशों को अमली जामा पहनाने में अभी समय है और लगभग 400 पन्ने के दास्तावेज में महज एक बिंदु को आधार बना कर देशव्यापी विरोध का माहौल बनाने का प्रयास किया गया ।
जबकि खुद कमिटी के चेयरमैन के कस्तूरीरंगन ने भी मीडिया के माध्यम से ये स्पष्ट किया की ड्राफ्ट में जरूरी सुधार कर दिये गए हैं और कभी भी हिन्दी या किसी अन्य भाषा को पाठ्यक्रम में तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने की बात की ही नहीं गई ।
बहरहाल ड्राफ्ट न्यू एजुकेशन पॉलिसी 2019 जून माह तक सार्वजनिक है और जरूरी सुधार और संशोधन के सुझावों पर विचार करने के बाद ही इसे अमली जामा पहनाया जाएगा ।
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